⏳ करीना ए ज़िंदगी ⏳
🌷★الصــلوة والسلام عليك يارسول الله ﷺ★🌷
اَلۡـحَـمۡـدُ لِـلّٰـہِ رَبِّ الۡـعٰـلَـمِیۡنَ وَ الـصَّـلٰـوۃُ وَ الـسَّـلَامُ عَـلٰی سَـیِّـدِ الۡـمُـرۡ سَـلِـیۡنَ اَمَّـا بَــعۡـدُ فَـاَعُـوۡذُ بِـا لـلّٰـہِ مِـنَ الـشَّـیۡـطٰنِ الـرَّجِیۡمِ ؕ بِـسۡمِ الـلّٰـہِ الـرَّحۡـمٰنِ الـرَّحِـیۡمِؕ
🌷📖 ✧➤ किताब पढ़ने की दुआ दीनी किताब या इस्लामी सबक़ पढ़ने से पहले ये दुआ दी गई है इसे पढ़ ले اِنْ شَــآءَالـلّٰـه عَزَّوَجَلَّ जो कुछ पढ़ेंगे याद रहेगा दुआ ये हैं.★↷
اَللّٰهُمَّ افۡتَحۡ عَلَيۡنَا حِكۡمَتَكَ وَانۡشُرۡ عَلَيۡنَا رَحۡمَتَكَ يَـا ذَا الۡجَلَالِ وَالۡاِكۡرَام
⚘ तर्जुमा ❁☞ ए अल्लाह عَزَّوَجَلَّ! عَزَّوَجَلَّ हम पर इल्म-व-हिकमत के दरवाज़े खोल दे और हम पर अपनी रहमत नाज़िल फरमा ए अज़मत औऱ बुज़ुर्गी वाले,
*📬 अल - मुस्तातराफ़ जिल्द 1 पेज 40 📚*
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○✧➤ _कुदरत ने हर मर्द ( male ) के लिए औरत ( female ) और हर औरत के लिए मर्द पैदा फरमा कर बहुत से जोड़े आ़लम में बनाए और हर के बदन के मशीन पर मुख्तलिफ़ पुर्जों को इस अंदाज के साथ सजाया की वोह हर इक की फ़ितरत के मुताबिक़ एक दूसरे को फायदा पहुँचाने वाले और जरूरत को पूरा करने वाले हैं।_
○✧➤ _अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मर्द और औरत को एक दूसरे के ज़रिये सुकून हासिल करने की ख्वाहिश रखी है । चुनान्चे मज़हबे इस्लाम ने इस ख्वाहिश का एहतिराम करते हुए हमें निकाह करने का तरीका़ बताया ताकि इंसान जाइज़ तरीकों से सुकून हासिल कर सकें।_
○✧➤ _इस जमाने में अक्सर मर्द निकाह के बाद ला इल्मी और मज़हब से दूर रहने की वजह से तरह तरह की गलती करते हैं। और नुकसान उठाते है इन नुकसानात से उसी वक्त बचा सकता है। जब के इसके मुत्अल्लिक सही इल्म हो अफसोस इस जमाने में लोग किसी आ़लिमे दीन या जानकार शख्स से मियाँ, बीवी के खाश तआल्लुकात के मुत्अल्लिक पूछने या माअलूमात हासिल करने से कतराते हैं। हालाँकि दीन की बातें और शरई मसाइल माअलूम करने में कोई शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए।_
*_हमारा रब अज़्ज़ व जल्ला इरसाद फरमाता है।_*
○✧➤ _तो अए लोगों इल्म वालों से पूछो अगर इल्म न हो।_
*📒 ( तर्ज़ुमा कन्जुल इमान पारा 17 सूरए "अम्बिया" आयत नं 7 ) 📒*
*_हमारे आक़ा ﷺ इरसाद फ़रमाते है।_*
○✧➤ _इल्मे [ दीन ] सीखना हर मुसलमान मर्द औरत पर फर्ज है।_
*📘 ( मिश्क़ात शरीफ जिल्द 1, सफा नं 68, कीम्या -ए- सआ़दत सफा नं 127 ) 📘*
○✧➤ _अक्सर देखा येह गया है के लोग मियाँ बीवी के दरमियान होने वाली खास चीज़ो के बारे में पूछने में शर्म महसूस करते हैं। और इसे बेहूदापन और बेशर्म समझते हैं। यही वह शर्म और झिझक है जो गलतियों का सबब बनते हैं। और फिर सिवाय नुकसान के कुछ हाथ नही आता है।_
○✧➤ _एक साहब मुझसे कहने लगे । "क्या यह शर्म की बात नहीं ? के आपने एसी किताब लिखी है। जिसमें सोहबत के बारे में साफ़ साफ़ खुले अनदाज़ में बयान किया गया है। अगर मैं यह किताब अपने घर पर रखूँ तो वह मेरी माँ,बहनो के हाथ में लग जाएँ तो वोह मेरे मुत्अल्लिक किया सोचेंगे कि मे कैसी गन्दी किताब पढ़ता हूँ। उनकी बात सुनकर मुझे उनकी कम अक़्ली पर अफ़सोस हुआ। मैंने उनसे सवाल किया-क्या आपके घर टीवी (t.v.)है ? कहने लगे_ _"हाँ है" मैंने कहा । मुझे आप बताइए "जब आप एक साथ इक ही क़मरे में अपने माँ,बहन के साथ टीवी पर फिल्म देखते हैं। और उसमें वोह सब देखते हैं। जो अपनी माँ बहनों के साथ तो क्या अकेले भी देख़ना ज़ायज़ नही तो उस वक्त आपको शर्म क्यों नहीं आती" !!_
○✧➤ _मेरे प्यारे भाईयों शरई रोशनी में अ़दब के दाइरे मे ऐसी माअ़लूमात हासिल करना और उसे बयान करना ज़रूरी है। और इसमें किसी किस्म की शर्म व बेहूदापन नही है।_
○✧➤ _देखो हमारा अल्लाह अज़्ज़ व ज़ल्ला किया इरसाद फरमाता है।---_
○ _तर्ज़ुमा ➤ और अल्लाह हक़ फ़रमाने में नही शर्माता।_
*📬 तर्जुमा ➤ ( कन्जुल इमान पारा 22, सूरए अहज़ाब, आयात 43, )📕*
○✧➤ _हदीसो में है कि हुज़ूरे अकरम ﷺ के जाहिरी जमाने में औरतें तक आज्दवाज़ी [ शादी शुदा ज़िन्दगी में ] आने वाले मसाइल के बारे में हुज़ूर ﷺ से पूछा करती थी।_
○✧➤ _उम्मुलमोमेनीन हज़रत आइशा सिद्दीक़ा [ रदीअल्लाहो तआ़ला अन्हु ] इरसाद फरमाती है।_
○✧➤ _अन्सारी [ मदीने मुनव्वराह की औरतें ] क्या खूब है । के उन्हें दीन समझने में हया [ शर्म ] नही रोकती"। [ यानी वोह दीनी बातें माअ़लूम करने में नहीं शर्माती ]_
*📗 ( बुख़ारी शरीफ,जिल्द 1, सफा नं 140, इब्ने माज़ा जिल्द 1, सफा नं 202 ) 📗*
○✧➤ _मअ़लूम हुआ। के दीन सीखने मे किसी किस्म की हया [ शर्म ] नहीं करनी चाहिए। अगर यह बात [ मियाँ बीवी के दरमियान होने वाली चीजें ] बेहूदा या गन्दी होती तो उसे हमारे आक़ा व मौला ﷺ क्यों बयान फरमाते और फिर सहाब-ए-किराम, आइम्म-ए-दीन, बुजुर्गाने दीन, लोगों तक इसे क्यों पहुँचाते? और इन बातों को अपनी किताबों में क्यों लिखते। क्या कोई शर्म व हया में हमारे आक़ा व मौला ﷺ से ज्यादा हो सकता है।_
*⇩ ◥◣ यकीनन नही ◢◤ ⇩*
○✧➤ _हमारा अक़ीदह है। के सरकार ने बिला झिझक वोह तमाम चीज़े हमें साफ़ साफ़ बयान फरमा दिया जिस के करने से हमारी ही ज़ात को नुकसान है।..✍_ *( अल्लहमदुलिल्लाह )*
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*🏻 आयत➧* _अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरसाद फरमाता है।_
*🏻 तर्जुमा➧* _तो निकाह मे लाओ जो औरतें तुम्हें खुश आए।_
*📒 [ तर्जुमा कन्जुल इमान पारा 4, सूरए निशा, आयात नं 3 ] 📒*
*🏻 हदीस➧* _नूरे मुजस्सम, रसूले खुदा, हबीबे किब्रिया, नबी-ए-रहमत, शाफ-ए-महशर, फख़रे दो आलम, फख़रे बनी -ए-आदम, मालिके दो जहाँ, ख़ातमुल अम्बिया, ताजदारे मदीना राहते कल्बो सीना, जनाबे अहमदे मुज़्तबा, मुहम्मद मुस्तफा ﷺ ने इरसाद फरमाया,_
⚘✧➤ _निकाह मेरी सुन्नत है।_
📘 *[ इब्ने माज़ा जिल्द 1, हदीस नं 1913, सफा नं 518,] 📘*
*🏻 हदीस➧* _और इरसाद फरमाते है हमारे मद़नी आक़ा ﷺ,_
⚘✧➤ _"बन्दे ने जब निकाह कर लिया तो आधा दीन मुक़म्मल हो जाता है। अब बाकी आधे के लिए अल्लाह तआला से डरे" ।_
📕 *[ मिस्क़ात शरीफ जिल्द 2, हदीस नं 2962, सफा नं 72,] 📕*
*🏻 हदीस➧* _हज़रत सहल बिन सअ़द [रदिअल्लाहो तआला अन्हे] से रिवायत है। कि नबी-ए-करीम ﷺ ने इरसाद फरमाया,_
⚘✧➤ _"निकाह करो चाहे [ महेर देने क लिए ] एक लोहे की अँगूठी ही हो...✍_
*📚 [ बुखारी शरीफ जिल्द 3, हदीस नं 136, सफा नं 80,] 📚*
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*🏻 हदीस➧* _हज़रत अब्दुल्ला बिन मसऊद [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। सरकार ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"अए ! ज़वानो तुम मे से जो औरतों के हुक़ूक़ [हको़ को] अदा करने की ताक़त रखता हो तो वोह निकाह जरूर करे। क्यों कि यह निगाह को झुक़ाता और शर्मगाह की हिफ़ाज़त करता है जो इसकी ताक़त न रखे वोह रोज़ा रखे क्यों कि यह शहवत [वासना sex] को कम करता है।"_
📕 *[बुखारी शरीफ जिल्द 3, सफा नं 52, तिर्मिज़ी शरीफ जिल्द 1, सफा नं 553,]*
*🏻 मसअला➧* _शहवत का गल़्बा [ज़वानी का जोश] ज़्यादा है और डर है कि निकाह नही करेगा तो ज़िना [बलात्कार ] हो जाऐगा और बीवी का महेर व ख़र्चा वगै़रह दे सकता है तो निकाह करना वाज़िब है।_
*🏻 मसअला➧* _येह यक़ीन है कि निकाह नही करेगा तो ज़िना हो जाएगा तो उस हालत निकाह करना फ़र्ज़ है।_
*🏻 मसअला➧* _डर है कि अगर निकाह किया तो बाद मे बीवी का महेर, खर्चा वगैरह नही दे सकता तो एसी हालत मे निकाह करना मक़रूह है।_
*🏻 मसअला➧*_यक़ीन है कि महेर और खर्चा दे ही नही सकेगा तो ऐसी हालत में निकाह करना हराम है।_
📕 *[बहारे शरीअ़त जिल्द 2, हिस्सा 7, सफा नं 6, ( करीन-ए-जिंदगी) क़ानूने शरीअ़त जिल्द 2, सफा नं 44,]*
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○✧➤ *[ किन लोगों से निकाह ज़ायज़ नही]*
🏻 ☆➧ _दुनिया में इन्सान के वज़ूद को बाकी रख़ने के लिए क़ानूने खुदा के मुताबिक़ दो गै़र जिन्स [ Different sex, मर्द और औरत ] का आपस में मिलना ज़रूरी है लेकिन उसी खु़दा के कानून के मुताबिक़ कुछ ऐसे भीे इन्सान होते है। जिनका जिन्सी तौर पर मिलना कानूने खुदा के ख़िलाफ़ है।_
*🏻 आयात➧* _चुनान्चे हमारा और सबका ख़ुदा अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरसाद फरमाता है।_
*🏻 तर्जुमा ➧* _हराम हुई तुम पर तुम्हारी माँऐ, और बेटियाँ, और बहनें, और फूफियाँ, और खालाऐं, और भतीज़ियाँ, और भांज़ियाँ, और तुम्हारी माँऐ जिन्होंने दूध पिलाया और दूध की बहनें,और औरतों की माँऐ।_
📕 *[तर्जुमा कन्जुल इमान, पारा 4, सूरए निशा, आयात नं 23,]*
○✧➤ _क़ुरआने करीम की इस आयात से मअ़लूम हुआ कि माँ, बेटी, बहन, भूभी, ख़ाला, भतीज़ी, भांजी, दादी, नानी, पोती, नवासी, सगी सास, वगैरह से निकाह करना हराम है।_
*🏻 मसअला ➧* _माँ सगी हो या सौतेली, बेटी सगी हो या सौतेली, बहन सगी हो या सौतेली, इन सब से निकाह करना हराम है। इसी तरह दादी, परदादी, नानी, परनानी, पोती, परपोती, नवासी, परनवासी, बीच में चाहे कितनी ही पुस्तों [पीढ़ियों ] का फासला हो, इन सब से निकाह करना हराम है।_
*🏻 मसअला ➧*_फूफी, फूफी की फूफी, खाला, खाला की खाला, भतीज़ी, भान्ज़ी, भतीज़ी की लड़की, उसकी नवासी, पोती, इसी तरह भान्ज़ी की लड़की, उसकी पोती, नवासी, इन सब से भी निकाह करना हराम है।_
📕 *[बहारे शरीअ़त जिल्द 2, हिस्सा 7, सफा नं 23, ( कानूने शरीअ़त जिल्द 2, सफा नं 47,]*
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*🏻 हदीस ➧* _हज़रत अमरा बिन्त अ़ब्दुर्रहमान व मौला अली [रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा ] से रिवायत है। कि नबी-ए-करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"रज़ाअ़त [ दूध के रिश्तों] से भी वही रिश्ते हराम हो जाते हैं जो विलादत से हराम हो जाते हैं।_
📕 *[बुखारी शरीफ जिल्द 3, सफा नं 62, तिर्मिज़ी शरीफ जिल्द 1, सफा नं 587,]*
○✧➤ _यानी किसी औरत का दूध बचपन के आलम मे पिया हो तो उस औरत से माँ का रिश्ता हो जाता है। अब उसकी बेटी, बहन है उससे निकाह हराम है। यानी जिस तरह सगी माँ के जिस रिश्तेदारों से निकाह करना हराम है। उसी तरह उस दूध पिलाने वाली के रिश्तेदारों से भी निकाह करना हराम है।_
*🏻 मसअला ➧* _निकाह हराम होने के लिए ढ़ाई बरस का ज़माना है कोई औरत किसी बच्चे को ढाई बरस के अन्दर अगर दूध पिलाएगी तो निकाह हराम होना साबित हो जाएगा। और अगर ढाई बरस की उमर के बाद पिया तो निकाह हराम नही । अगर्चे बच्चे को ढाई बरस के बाद दूध पिलाना हराम है।_
📕 *[बहारे शरीअ़त जिल्द 2, हिस्सा नं 7, सफा नं 37, , कानूने शरीअ़त जिल्द 2, सफा नं 50, ]*
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत अबूहुरैरा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] से रिवायत है। कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"कोई शख्स अपनी बीवी के साथ उसकी भतीज़ी, या भान्जी से निकाह न करे "_
📕 *[बुखारी शरीफ जिल्द 3, हदीस नं 98, सफा नं 66, ]*
○✧➤ _औरत [ बीवी ] की बहन, चाहे सगी हो या रज़ाई [यानी दूध के रिश्ते से बहन हो ] या बीवी की खाला, फूफी, चाहे रज़ाई फूफी या खाला हो इन सब से निकाह करना हराम है।_
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास [ रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा ] से इमाम बुखारी [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] नेे रिवायत किया है_
📕 *[बुखारी शरीफ जिल्द 3, बाब नं 54, सफा नं 48, ]*
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*[ क़ाफ़िर मुश्'रिक से निकाह ]*
*🏻 आयत➧* _अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है।_
*○✧➤ [तर्जुमा :-]* _"और मुश'रिको के निकाह में न दो जब तक वोह ईमान न लाए।_
📕 *[ तर्जुमा :- कन्जुल इमान पारा 2, सूरए बक़रा, आयात नं 221, ]*
*🏻 मसअला➧* _मुसलमान औरत का निकाह मुसलमान मर्द के सिवा किसी भी मज़हब वाले से नहीं हो सकता।_
📕 *[ कानूने शरीअ़त जिल्द 2, सफा नं 49, ]*
○✧➤ *[आयत :-]* _अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है_
*🏻 तर्जुमा➧* _और शिर्क वाली औरतों से निकाह न करो जब तक मुसलमान न हो जाए।_
📕 *[तर्जुमा :- कन्जुल इमान पारा 2, सूरए बक़रा, आयात नं 221, ]*
*🏻 मसअला➧*_मुसलमान का आग की पूज़ा करने वाली, बुत [मूर्ती] पूज़ने वाली, सूरज़ की पूज़ा करने वाली, सितारों को पूज़ने वाली, इन मे से किसी से निकाह नहीं होगा।_
📕 *[ बहारे शरीअ़त जिल्द 2, हिस्सा नं 7, सफा नं 32,(Android software), ]*
○✧➤ _आज के इस दौर में अक्सर हमारे मुस्लिम नवज़वान क़ाफ़िर मुश'रिक़ [ मूर्ती पूज़ने वाली हिन्दू ] औरतों से निकाह करते हैं। और निकाह के बाद उन्हें मुसलमान बनाते है। येह बहुत गल़त तरीका है और शरीअ़त में हराम है। अव्वल तो निकाह ही नही होता क्यों कि निकाह के वक्त तो लड़की काफ़िर मज़हब पर थी। लिहाजा पहले उसे मुसलमान किया जाए फिर निकाह किया जाए।_
○✧➤ _याद रखिए क़ाफ़िर मुश'रिक़ औरत से मुसलमान करके शादी करना जायज जरूर है लेकिन येह कोई फ़र्ज़ या वाज़िब नही है। बल्कि हुज़ूरﷺ ने इसे पसंद भी नही फरमाया इसकी बहुत सी वज़ूहात औलमा -ए- किराम ने बयान फ़रमायी है जिसमें से चन्द ये है।_
*[ 1 ]➧* _जिस औरत से आपने शादी की वोह तो मुसलमान हो गयी मगर उसके सारे मैक़े वाले क़ाफ़िर ही है और अब चूँकि वह आपकी औरत के रिश्तेदार है। इसलिए वोह उनसे तआ़ल्लुक़ रखती है।_
*[ 2 ]➧* _औरत के नव मुसलमान होने की वजह से औलादौ की तरबियत ख़ालिस इस्लामी ढंग से नहीं हो पाती_
*[ 3 ]➧* _अगर मुसलमान मर्द क़ाफ़िर औरतों से निकाह करेंगे तो मुसलमान औरत को ज़्यादा दिनो तक कुँवारा रहना पड़ेगा और मुसलमानों में मर्दो की क़िल्लत होगी तब जब औरतें ज़्यादा होगी।_
*[ 4 ]➧* _दीने इस्लाम में मुश्'रिकाना रश्मो का रिवाज़ बढ़ेगा।_
○✧➤ _इस तरह की कई बातें हैं जो यहां बयान करना मुमकिन नही - बेहतर यही है कि क़ाफ़िर व मुश'रिक़ से औरत से निकाह न करे इस से दीन व दुनिया का बड़ा नुकसान है। इसलिए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने जहाँ मुश'रिक़ औरत से मुसलमान करके निकाह की इज़ाज़त दी वहीं मो'मिन लवंड़ी [ गुलाम लड़की ] से निकाह को ज्यादा बेहतर बताया । ब निस्बत इसके कि का़फ़िर व मुश'रिक़ औरत से निकाह किया जाए।_
*🏻 मसअला➧* _जिसमे मर्द व औरत दोनों की अलामतें पायी जाए और येह साबित न हो कि मर्द है या औरत उससे न मर्द का निकाह हो सकता है न औरत का अगर किया गया बातिल [ झूठा ] है_
📕 *[बहारे शरीअ़त जिल्द 2, हिस्सा नं 7, सफा नं 5 ]*
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*[ क्या वहाबियों से निकाह करें? ]*
○✧➤ _वहाबियों से निकाह करने के मुताअ़ल्लिक. इमाम इश्क़ो मुहब्बत मुजद्दिदे दीन व मिल्लत अज़ीमुल बरक़त आला हज़रत अश्शाह इमाम अहमद रज़ा खाँ [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] अपनी "मलफ़ूज़ात" मे इरशाद फरमाते है।_
*🏻 इरशाद➧* _सुन्नी मर्द या औरत का शिया, वहाबी, देवबन्दी, नेचरी, कादयानी, जितने भी दीन से फिरे लोग है उनकी औरत या मर्द से निकाह नहीं होगा। अगर निकाह किया तो निकाह न हो कर सिर्फ़ ज़िना होगा। और औलाद ज़ायज़ न होकर नाज़ायज़ व हरामी कहलाएगी फ़तावा-ए-आलमगीरी मे है_
لا یجوز النکاح المرتد
مع مسلمة ولا كافرة اصلية ولا مرتدة وكذالایجوز نكاح المرتدة مع احد
☝🏻 _अगर कहीं लिखने मे गल़ती [mistake] हो तो जरूर बताऐं_
📕 *[ अ़लमलफ़ूज़ जिल्द नं 2, सफा नं 105, ]*
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○✧➤ _अक्सर हमारे कुछ कम अक़्ल- न समझ सुन्नी मुसलमान जिन्हें दीन की माअ़लूमात व ईमान की अ़हमियत माअ़लूम नही होती वोह वहाबियों से आपस में रिश्ते जोड़ते है। कुछ बदनसीब सब जानने के बावजूद वहाबियों से आपस में रिश्ता करते हैं._
○✧➤ _कुछ सुन्नी हज़रात ख्याल करते हैं। कि वहाबी अ़क़ीदे की लड़की अपने घर ब्याह कर ला लो। फिर वोह हमारे माहौल में रहकर खुद ब खुद सुन्नी हो जाएगी। अव्वल तो यह निकाह ही नही होता क्यों कि जिस वक्त यह निकाह हुआ उस वक्त तक लड़का सुन्नी और लड़की वहाबी अ़क़ीदे पर क़ायम थी। लिहाजा सिरे से ही येह निकाह ही नही हुआ_
○✧➤ _सैंकड़ो जगह तो येह देखा गया है कि किसी सुन्नी ने वहाबी घराने मे येह सोचकर रिश्ता किया कि हम समझा बुझा कर हम अपने माहौल में रखकर वहाबी से सुन्नी बना लेंगे लेकिन वह समझा कर सुन्नी बना पाते इससे पहले ही उस वहाबी रिश्तेदारों ने उन्हें कुछ ज़्यादा ही समझा दिया और अपना हम ख़्याल बनाकर सुन्नी से वहाबी बना डाला [ अल्लाह की पनाह ] सारी होश़ियारी धरी की धरी रह गयी और दीन व दुनिया दोनों बर्बाद हो गये_
○✧➤ _येह बात हमेशा याद रखिए एक ऐसे शख्स को समझाया जा सकता है तो वहाबियों के बारे में हक़ीक़त से वाकिफ न हो लेकिन ऐसे शख्स को समझा पाना मुम्क़िन ही नही जो सबकुछ जानता और समझता है। औलमा -ए- देवबन्द [ वहाबियों ] की हुज़ूरﷺ अम्बिया-ए-किराम, बुजुरगाने दीन, की शाने अ़क्दस में गुस्ताख़ियों को समझता है। उनकी किताबों में येह सब गुस्ताख़ाना बातों को पढ़ता है लेकिन इस सबके बावजूद येह कहता है कि येह [ वहाबी ] तो बहुत अच्छे लोग हैं इन्हें बुरा नहीं कहना चाहिए। ऐसे लोगों को समझा पाना हमारे बस में नहीं।_
*🏻 आयत ➧* _अल्लाह तआला---ऐसे लोगों के मुत्अ़ल्लिक़ इरशाद फरमाता है_
*🏻तर्जुमा ➧* _अल्लाह ने उनके दिलों पर और कानो पर मुहर कर दी और उनकी आँखों पर घटा टूप है और उनके लिए बड़ा अज़ाब़ है_
📕 *[ तर्जुमा :- कन्जुल इमान पारा 1, सूरए बक़रा, आयत नं 7,]*
○✧➤ _लिहाजा जरूरी व अहम फर्ज है कि ऐसे लोगों से जिनके दिलों पर अल्लाह ने मोहर [ seal छाप ] लगा दी हो उनसे रिश्ता न क़ायम करें वर्ना शादी शादी न होकर ज़िना रह जाएगी।_
○✧➤ _*अल्हमदुलिल्लाह !* आज दुनिया में सुन्नी लड़कियों और लड़कों की कोई कमी नहीं है। और इन्शा अल्लाह तआला अहले सुन्नत व ज़माअत के मानने वाले क़यामत तक बड़ी तादाद में शानो शौक़त केसाथ क़ायम रहेंगे_
✍🏻 *बाकी अगले पोस्ट में...*
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*[ क्या येह मुसलमान है ]*
○✧➤ _वहाबी ज़माअत का बहुत बड़ा आलिम "मौलवी इस्माईल दहलवी" अपनी किताब [ तक्वियतुल ईमान ] में लिखता है_
*🏻(1)➧* _जो कोई नियाज़ करे किसी बुज़ुर्ग को [ अल्लाह तआला की बारगाह ] में सिफारिश करने वाला समझे तो वोह और " अबूज़हल" शिर्क में बराबर हैं। [ माज़अल्लाह ]_
📕 *[ तक्वियतुल ईमान, सफा नं 20,]*
*🏻(2)➧* _हर मख़लूक [ जैसे अम्बिया, फिरिश्ते, औलिया, ओलामा, आम मुसलमान, बन्दे सबके सब ] अल्लाह की शान के आगे चमार से भी ज़्यादा ज़लील है। [माज़अल्लाह ]_
*[ तक्वियतुल ईमान, सफा नं 30, ]* 📙
*🏻(3)➧* _अल्लाह की मक्कारी, धोके से डरना चाहिए कि अल्लाह बन्दो से मक्कारी भी करता है। [ माज़अल्लाह ]_
📗 *[ तक्वियतुल ईमान, सफा नं 76, ]*
*🏻(4)➧* _तमाम नबी और खुद हुज़ूरﷺ अल्लाह के बेबस बन्दे है और हमारे बड़े भाई है। [माज़अल्लाह]_
*[तक्वियतुल ईमान, सफा नं 99,]* 📘
*🏻(5)➧*_हुज़ूर अकरमﷺ मर कर मिट्टी में मिल गए। [माज़अल्लाह]_
📕 *[तक्वियतुल ईमान, सफा नं 100, प्रकाशक :- दारूस्सालाफिया मुम्बई, ]*
✍🏻 *बाकी अगले पोस्ट में...*
🌹☝🏻 _मुझे अपनी और सारी दुनिया के लोगों की इस्लाम करनी है।_
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*❓ क्या यही मुसलमान है।*
⚘✧➤ यही मौलवी इस्माईल दहलवी अपनी एक दूसरी किताब "सिराते मुस्तक़ीम" में लिखता है।
*🏻1➧* नमाज़ में हुज़ूर अकरमﷺ का ख़्याल लाना अपने गधे और बैल के ख़्याल में डूब जाने से बदतर है *[ माज़अल्लाह ]*
📕 *[ सिराते मुस्तक़ीम, सफा नं 119, प्रकाशक :- इदाराहे अलरशीद, देवबन्द जिला सहारनपुर ]* 📕
⚘✧➤ वहाबियों के एक दूसरे आलिम जिन्हें वहाबी हज़रत हुज्जतुल इस्लाम कहते नहीं थकते जनाब "मौलवी कासिम नानूतवी" है जो मदरसा-ए-देवबन्द बानी [ Founder ] थे अपनी एक किताब *"तहजीरून्नास"* में लिखते है।
*🏻1➧* हुज़ूर ﷺ के बाद भी कोई नबी आ जाए तो भी हुज़ूर के ख़ात्मियत पर *[ हुज़ूर के आख़िरी नबी होने ]* पर कोई फर्क नहीं आएगा। *[ माज़अल्लाह ]*
*📗 [ तहज़ीरून्नास, सफा नं 14, ]* 📗
*🏻 2➧* उम्मती अ़मल *[ जैसे नमाज़, रोजा, हज़, नफिल इबाद़त वगैरह ]* में नबियों से बढ़ जाते हैं। *[ माज़अल्लाह ]*
📘 *[ तहज़ीरून्नास, सफा नं 5, प्रकाशक :- मक़तब-ए-फै़ज़, जामा मस्जिद, देवबन्द, यू-पी ]* 📘
⚘✧➤ वहाबियों के नक़ली मुजद्दिद मौलवी "रशीद अहमद गंगौही" अपनी किताब में अपना ख़बीश अ़कीदह बयान करते हुए लिखते हैं।
🏻1➧जो सहाब-ए-किराम, को क़ाफ़िर कहे वोह सुन्नत ज़माअत से खारिज नही होगा *[ यानी सहाब-ए-किराम, को क़ाफ़िर कहने वाला मुसलमान ही रहेगा। ]* [ माज़अल्लाह ]
📙 *[ फ़तावा-ए-रशीदीया जिल्द नं 2, सफा नं 11, ]* 📙
*🏻 2➧* मोहर्रम में इमामे हुसैन *[ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ]* की शहाद़त का बयान करना शरबत पिलाना ऐसे कामों में चन्दा देना येह सब हराम है। *[ माज़अल्लाह ]*
📓 *[ फ़तावा-ए-रशीदीया, जिल्द नं 2, सफा नं 114, प्रकाशक :- मक़तब-ए-थानवी, देवबन्दी, यू पी ]* 📓
⚘✧➤ इन्हीं रशीद अहमद गंगौही के शागिर्द और वहाबियों के बड़े इमाम "मौलवी खलील अहमद अम्बेठी" ने अपने उस्ताद "गंगौही" की इज़ाज़त और देख रेख में "बराहिनुल कातिअ़" नामी एक किताब लिखी आइये देखिए उसमें उन्होंने किया गुल खिलाया है।
*🏻 1➧* हुज़ूर अकरमﷺ से ज़्यादा इल्म शैतान को है। शैतान को ज़्यादा इल्म होना क़ुरआन से साबित है जबकि हुज़ूर का इल्म क़ुरआन से साबित नहीं है। जो शैतान से ज़्यादा इल्म हुज़ूर का बताए वोह मुश'रिक़ [ बुतो की पूज़ा करने वाला क़ाफ़िर ] है। *[ माज़अल्लाह ]*
*📒 [ बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 55, ]* 📒
*🏻 2➧* अल्लाह तआला झूठ बोलता है। *[ यानी अल्लाह झूठा है ]* [माज़अल्लाह]
📬 *[ बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 273, ] 📚*
🌹☝🏻 _मुझे अपनी और सारी दुनिया के मुसलमान की इस्लाह करनी है।...✍_
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*❓क्या येह मुसलमान है।*
*🏻 3➧* _हुज़ूर अकरमﷺ का मीलाद [ जन्मदिन ईदे मिलादुन्नबी ] मनाना कन्हैया [ हिन्दूओ के देव ] के जन्मदिन मनाने की तरह है। बल्कि उससे भी ज़्यादा बदतर है। *[ माज़अल्लाह ]*_
📕 *[ बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 152, 📕]*
*🏻 4➧* _हुज़ूरﷺ ने उर्दू ज़बान मदरसा-ए-देवबन्द में ओलमा-ए-देवबन्द से सीख़ी [यानी ओलमा-ए-देवबन्द हुज़ूर के उस्ताद हैं। ] *[ माज़अल्लाह ]*_
📗 *[बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 30, ] 📗*
*🏻 5➧* _हुज़ूरﷺ को दीवार के पीछे का भी इल्म नहीं । *[ माज़अल्लाह ]*_
📙 *[बराहिनुल कातिअ़, सफा नं 55, प्रकाशक :- "कुतुब खाना इमदादिया" देवबन्द यू पी ] 📙*
○✧➤ _येह है "मौलवी अशरफ अली थानवी" जो वहाबियों के हकीमुल उम्मत है और वहाबियों के नजदीक इनके पैर धोकर पीने से नज़ात मिलती है। येह साहब अपनी किताब में लिखते हैं।_
*🏻 1➧* _नबी-ए-करीमﷺ को जो इल्मे गै़ब है इसमें हुज़ूरﷺ का किया कमाल ऐसा इल्मे गै़ब तो हर किसी को हर बच्चे व पागलों बल्कि तमाम जानवरों को भी हासिल है। *[ माज़अल्लाह ]*_
📘 *[ हिफ़जुल इमान, सफा नं 8, प्रकाशक :- दारूल किताब, देवबन्द यू पी ] 📘*
*🏻 2➧* _इन्हीं थानवी साहब की एक किताब "रिसाल-ए-अलइम्दाद" मे है कि_
○✧➤ _इनके एक मुरीद ने कलमा पढ़ा "ला इलाहा इल्लल्लाह अशरफ अली रसूलुल्लाह" *[ माज़अल्लाह ]* और अपने पीर अशरफ अली थानवी से पूछा कि " मेरा यह कलमा पढ़ना कैसा है" ?_
○✧➤ _इसके जवाब में थानवी साहब ने कहा : तुम्हारा ऐसा कहना ज़ायज़ है तुम इसके लिए परेशान न हो तुम अगर इस तरह का कलमा पढ़ रहे हो तो सिर्फ़ इस वजह से के तुम्हें मुझ से मुहब्बत है। लिहाजा तुम्हारा ऐसे कलमा पढ़ने में कोई हर्ज नहीं । *[ माज़अल्लाह ]*_
📕 *[ रिसाल-ए-इम्दाद, सफा नं 45, ] 📕*
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○✧➤ हमने यहां जितने भी वहाबी जमाअ़त से मुत्अ़ल्लिक़ हवाले पेश किए है। वोह सब उन्हीं क ओलमा की किताबों से नक़ल किये है। याद रहे येह किताबें आज भी छप रही है। और इनके मदर्सों व क़ुतुब ख़ानो [ बुक स्टॉलो ] पर आसानी से मिल जाती है।
○✧➤ हमारा आ़म ऐलान *[ challenge ]* है। कि अगर कोई साहब इन बातों को या हवालों मे से किसी एक हवाले को गल़त साब़ित कर दे। तो उसे पच्चीस हजार रुपये *[25000]* नगद दिए जाएंगे।
*🏻 आयत* हमारा रब जल्ला जलालहु इरशाद फरमाता है। कि
○✧➤ तुम फ़रमाओ के अपनी दलील लाओ अगर तुम सच्चे हो।
📕 *[ तर्जुमा ➧ कन्जुल इमान, सूरए नम्ल, पारा 20, रूकू 1, आयत नं 64, ] 📕*
*🏻 आयत ➧* और एक दूसरी जगह इरशाद फरमाता है। कि
*🏻 तर्जुमा ➧* जब सुबूत ना ला सके तो अल्लाह के नज़दीक वही झूठे हैं।
📒 *[ तर्जुमा ➧ कुरआने करीम, सूरए नूर, पारा 18, रूकू 8, आयत नं 13, ] 📒*
○✧➤ वहाबियों के यही वोह अक़ाएद [ faith ] है जिनकी वजह से ओलमा-ए-हरमैन तय्यबैन [ मक्का-ए-मुअ़ज़्ज़मा, व मद़ीना शरीफ के ] और दुनिया के तमाम ओलमा-ए-दीन ने वहाबियों को क़ाफ़िर, गुमराह, बद्'दीन, मुरतद, [ दीन से फिरे हुए ] और मुनाफ़िक़ करार दिया।
○✧➤ ओलमा-ए-किराम इन लोगों के बारे में फरमाते है।
○✧➤ "जो इन [ वहाबियों ] के क़ाफ़िर होने मे और इनके अ़ज़ाब में शक करे वोह खुद भी क़ाफ़िर है"।
📘 *[ हस्सामुल हरमैन, ]* 📘
*🏻 हदीस➧* हज़रत अबूह़ुरैरा, हज़रत अनस बिन मालिक, हज़रत अब्दुल्लाह बिन ऊमर, व हज़रत जाबिर [रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] रिवायत करते हैं। कि हुज़ूरे अक़दसﷺ ने इरशाद फरमाया
○✧➤ "अगर बद़ मज़हब, बेदीन, मुनाफ़िक़ बीमार पड़े तो उनको पूछने न जाओ, और अगर वोह मर जाए तो उनके ज़नाज़े पर न जाओ, उनको सलाम न करो, उनके पास न बैठो, उनके साथ न खाओ न पियो, *---न ही उनके साथ शादी करो---* न उनके साथ नमाज़ पढ़ो..✍
📬 *[ मुस्लिम शरीफ, अबूूदाऊद शरीफ, व इब्ने माज़ा शरीफ, मिश्क़ात शरीफ, ]* 📚
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○✧➤ _हमने यहां जितने भी वहाबी जमाअ़त से मुत्अ़ल्लिक़ हवाले पेश किए है। वोह सब उन्हीं क ओलमा की किताबों से नक़ल किये है। याद रहे येह किताबें आज भी छप रही है। और इनके मदर्सों व क़ुतुब ख़ानो [ बुक स्टॉलो ] पर आसानी से मिल जाती है।_
○✧➤ _हमारा आ़म ऐलान *[ challenge ]* है। कि अगर कोई साहब इन बातों को या हवालों मे से किसी एक हवाले को गल़त साब़ित कर दे। तो उसे पच्चीस हजार रुपये *[25000]* नगद दिए जाएंगे।_
*🏻 आयत➧* _हमारा रब जल्ला जलालहु इरशाद फरमाता है। कि_
*🏻 तर्जुमा ➧* _तुम फ़रमाओ के अपनी दलील लाओ अगर तुम सच्चे हो।_
📕 *[ तर्जुमा :- कन्जुल इमान, सूरए नम्ल, पारा 20, रूकू 1, आयत नं 64, ] 📕*
*🏻 आयत➧* _और एक दूसरी जगह इरशाद फरमाता है। कि_
*🏻 तर्जुमा➧* _जब सुबूत ना ला सके तो अल्लाह के नज़दीक वही झूठे हैं।_
📙 *[ तर्जुमा :- कुरआने करीम, सूरए नूर, पारा 18, रूकू 8, आयत नं 13, ]* 📙
○✧➤ _वहाबियों के यही वोह अक़ाएद [ faith ] है जिनकी वजह से ओलमा-ए-हरमैन तय्यबैन [ मक्का-ए-मुअ़ज़्ज़मा, व मद़ीना शरीफ के ] और दुनिया के तमाम ओलमा-ए-दीन ने वहाबियों को क़ाफ़िर, गुमराह, बद्'दीन, मुरतद, [ दीन से फिरे हुए ] और मुनाफ़िक़ करार दिया।_
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○✧➤ _"जो इन [ वहाबियों ] के क़ाफ़िर होने मे और इनके अ़ज़ाब में शक करे वोह खुद भी क़ाफ़िर है"।_
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*🏻 हदीस➧*_हज़रत अबूह़ुरैरा, हज़रत अनस बिन मालिक, हज़रत अब्दुल्लाह बिन ऊमर, व हज़रत जाबिर [रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] रिवायत करते हैं। कि हुज़ूरे अक़दसﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"अगर बद़ मज़हब, बेदीन, मुनाफ़िक़ बीमार पड़े तो उनको पूछने न जाओ, और अगर वोह मर जाए तो उनके ज़नाज़े पर न जाओ, उनको सलाम न करो, उनके पास न बैठो, उनके साथ न खाओ न पियो, *---न ही उनके साथ शादी करो---* न उनके साथ नमाज़ पढ़ो,"_
📕 *[ मुस्लिम शरीफ, अबूूदाऊद शरीफ, व इब्ने माज़ा शरीफ, मिश्क़ात शरीफ, ]* 📕
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*🏻 हदीस➧* _हज़रत इब्ने अ़दी [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] हज़रत मौला अली [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत करते है कि हुज़ूर अकरमﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _जो मेरी इज़्ज़त न करे और मेरे अन्सारी सहाबा और अ़रब के मुसलमानो का हक़ न पहचाने वोह तीन हाल से खाली नहीं_,
*(1)* या तो मुनाफ़िक़ है,
*(2)* या हराम की औलाद,
*(3)* या हैज़ [ माहवारी ] की हालत में जना हुआ।
📕 *[ बयहक़ी शरीफ, बहवाला इसअ़तुल अ़दब लफ़ाज़िलिन्नसब, सफा नं 46, अज :- आला हज़रत, ]*
*🏻 हदीस➧*_हज़रत इकरेमा [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] रिवायत करते हैं। हज़रत मौला अली [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] की ख़ितमत में कुछ बद'दीन, गुस्ताख़, पेश किए गएे तो आपने उन्हें ज़िन्दा जला दिया जब यह खबर इब्ने अब्बास [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ]को पहुँची तो उन्होंने ने फरमाया के अगर में होता तो उन्हें न जलाता क्योंकि *रसूलुल्लाहﷺ* ने किसी को जलाने से मना फरमाया है बल्कि उन्हें कत्ल करता कि *रसूलुल्लाहﷺ* ने इरशाद फरमाया "जो अपना दीने इस्लाम तब्दील करे उसे कत्ल कर दो"।_
📕 *[ बुखारी शरीफ, जिल्द 3, हदीस नं 1814, सफा नं 658, ]*
*🏻 आयत➧* _अल्लाह जल्ला जलालाहु इरशाद फरमाता है_
*🏻 तर्जुमा➧* _अऐ गै़ब की ख़बर देने वाले [ नबी ] जिहाद [ जंग ] फ़रमाओ क़ाफ़िरो, और मुनाफ़िक़ो पर और सख़्ती करो।_
📕 *[ तर्जुमा :- कन्जुल इमान, सूरए तौबा, पारा 10, आयत नं 73, ]*
*🏻 आयत➧* _अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है_
*🏻 तर्जुमा➧* _और तुम मे से जो कोई उनसे दोस्ती करे वोह उन्हीं मे से है।_
📕 *[ तर्जुमा :- कन्जुल इमान, पारा 6, सूरए माएदह, आयत नं 51, ]*
○✧➤ *ज़रा सोचिए* _अब भी क्या कोई ग़ैरतमन्द इन्सान अपनी बेटी ऐसे क़ाफ़िरो, मुनाफ़िक़ो के यहाँ ब्याहना पसंद करेगा ?।_
○✧➤ _अब भी क्या कोई ग़ुलामे रसूल इन गुस्ताख़ वहाबियों की लड़कियाँ अपने घर लाना गंवारा करेगा?।_
○✧➤ _अब भी क्या कोई आशिके़ नबी अपने नबी के इन गुस्ताख़ो से रिश्ता जोड़ना चाहेगा?।_
○✧➤ _हमारा येह सवाल उन लोगों से है। जिनमें ग़ैरत का ज़रा सा भी हिस्सा बाकी है जिन्हें दौलत से ज़्यादा अल्लाह व रसूल की खुशी प्यारी है। और रहे वोह लोग जो किसी दुनियावी लालच या हुस्न व जमामाल या फिर माल व दौलत से मुतास्सिर [ Impres ] होकर वहाबियों से रिश्ता बनाए हुए है या रिश्तेदारी करना चाहते हैं तो उनके मुत्अ़ल्लिक़ ज़्यादा कुछ कहना फ़ुजूल है। वोह अपनी इस हवस व लालच मे जितनी दूर जाना चाहें चले जाए अब इस्लाम का कोई कानून, शरीअ़त की कोई दफअ़, कोई ज़न्जीर उनके इस उठे हुए क़दम को नही रोक सकती। लेकिन हाँ ! हाँ याद रहे यक़ीनन एक दिन अल्लाह और उसके रसूल को मुँह दिखाना है।_
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*🧕 निकाह कहाँ करें 🧕*
*🏻 हदीस➧* _हज़रत अनस [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] से रिवायत है। कि नबी-ए-करीमﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"अच्छी नस्ल में शादी करो [रगे खुफ़या काम करती है ]"_
📕 *[ दारक़ुत्नी शरीफ, बहवाला इराअतुल अदब लेफ़ाज़िलिल नसब, सफा नं 26, अज़ :- आला हज़रत ]* 📕
*🏻 हदीस➧* _और फरमाते है आक़ा ﷺ-_
○✧➤ _"घोड़े की हरयाली से बचो, बुरी नस्ल में खूबसूरत औरतों से,"_
📗 *[ दारक़ुत्नी शरीफ, बहवाला इराअतुल अ़दब लेफ़ाज़िलिल नसब, सफा नं 26, अज़ :- आला हज़रत ]* 📗
○✧➤ _लड़की का खूबसूरत होना ही काफ़ी नही बल्कि ख़ूबी तो येह है कि लड़की पर्दादार, नमाज़ रोज़े की पाबंद हो, उसका खानदान रहेन-सेहन, तहज़ीब व इख़्लाक, मे और ख़ास तौर पर मज़हबी अक़ाएद मे बेहतर हो । अगर आपने येह सब चीजों को देख कर निकाह किया तो आप .की दुनिया व आख़िरत कामयाब है और आगे ऐसी लड़की के जरिए, फ़रमांबरदार, मज़हबी और दुनियावी ख़ूबियों वाली बेहतर नस्ल जन्म लेती है। चुनान्चे सरकारे दो आलमﷺ ने हमें यही हुक़्म दिया है।_
*🏻 हदीस➧* _हज़रत अबूह़ुरैरा व हज़रत जाबिर [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] से रिवायत है। कि हुज़ूर अकरमﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"औरत से चार चीजों की वजह से निकाह किया जाता है। उसके दौलत, उसके खानदान, उसके हुस्न व ज़माल, और उसके दीनदार होने की वजह से, लेकिन तू दीनदार औरत को हासिल कर" ।_
📕 *[ बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 59, तिर्मिज़ी शरीफ. जिल्द नं 1, सफा नं 555, ]* 📕
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*🏻 हदीस➧*_उम्मुलमोमेनीन हज़रत आएशा सिद्दीक़ा, हज़रत अनस बिन मालिक, हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने ऊमर [ रदिअल्लाहो तआला अन्हम ] से रिवायत है। कि हुज़ूर अक़दसﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"अपने नुत्फे़ [ शादी के लिए ] अच्छी जगह तलाश करो, अपनी बिरादरी में ब्याह हो, और बिरादरी से ब्याह कर लाओ कि औरतें अपने ही कुन्बे [बिरादरी] के मुशाबा [मिलते हुए बच्चे] जन्ती है।_
📕 *[ इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, हदीस नं 2038, सफा नं 549, बयहक़ी शरीफ़, व हाकिम, ]* 📕
○✧➤ _इस हदीसे पाक से पता चलता है कि अपनी ही बिरादरी में शादी करना बेहतर है। अपनी ही बिरादरी में निकाह करने के बहुत से फायदे हैं जैसे_
🏻 1⃣➧ औलाद अपनी बिरादरी के लोगों के चेहरे से मिलती जुलती पैदा होंगी जिस की वजह से दूसरे लोग देखते ही पहचान लेंगे कि येह सैय्यद है येह पठान है वगै़रा वगै़रा।
🏻 2⃣➧ दूसरा येह फ़ायदा है कि बिरादरी की गरीब लड़कियों की जल्द से जल्द शादी हो जाएगा
🏻 3⃣➧ तीसरा फायदा येह है कि अपनी ही बिरादरी की लड़की हो तो वोह क्यों कि बिरादरी के तौर तरीके, घर के रहन सहन से पहले से ही जानती है लिहाज़ा घर में झगड़े और न इत्तेफ़ाक़ियां नही होगी
🏻 4⃣➧ चौथा फ़ायदा येह है कि बिरादरी की ऐसी लड़कियाँ जो देखने दिखाने में ज़्यादा खूबसूरत नहीं होती उनकी भी शादी हो जाएेगी । अक्सर देखा गया है कि लोग दूसरे बिरादरी की खूबसूरत लड़कियों को ब्याह कर लाते हैं। जब के उनके बिरादरी की बद सूरत लड़कियाँ कुंवारी रह जाती है और बहुत सी लड़कियों की जब शादी नही हो पाती तो वह किसी बदमाश, आवारा, मर्द के साथ भाग जाती है या फिर तरह तरह की बुराइयों में फँस जाती है यही वजह है कि बिरादरी में ही शादी करना बेहतर बताया गया।
*🏻 हदीस➧*_हज़रत इमाम बुखारी [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] रिवायत करते हैं। कि_
○✧➤ _"और मुस्तहब [ अच्छा बेहतर ] है के अपनी नस्ल के बेहतर औ़रत चुने लेकिन येह वाज़िब नही" [ सिर्फ मुस्तहब है ]_
📗 *[ बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 41, सफा नं 56, ]* 📗
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*🏻 हदीस➧* _हज़रत अनस [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] से रिवायत है। कि नबी-ए-करीमﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"अच्छी नस्ल में शादी करो [रगे खुफ़या काम करती है ]"_
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*🏻 हदीस➧* _और फरमाते है आक़ाﷺ_
○✧➤ _"घोड़े की हरयाली से बचो, बुरी नस्ल में खूबसूरत औरतों से,"_
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○✧➤ _लड़की का खूबसूरत होना ही काफ़ी नही बल्कि ख़ूबी तो येह है कि लड़की पर्दादार, नमाज़ रोज़े की पाबंद हो, उसका खानदान रहेन-सेहन, तहज़ीब व इख़्लाक, मे और ख़ास तौर पर मज़हबी अक़ाएद मे बेहतर हो । अगर आपने येह सब चीजों को देख कर निकाह किया तो आप .की दुनिया व आख़िरत कामयाब है और आगे ऐसी लड़की के जरिए, फ़रमांबरदार, मज़हबी और दुनियावी ख़ूबियों वाली बेहतर नस्ल जन्म लेती है। चुनान्चे सरकारे दो आलमﷺ ने हमें यही हुक़्म दिया है।_
*🏻 हदीस➧* _हज़रत अबूह़ुरैरा व हज़रत जाबिर [ रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] से रिवायत है। कि हुज़ूर अकरमﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"औरत से चार चीजों की वजह से निकाह किया जाता है। उसके दौलत, उसके खानदान, उसके हुस्न व ज़माल, और उसके दीनदार होने की वजह से, लेकिन तू दीनदार औरत को हासिल कर" ।_
📕 *[ बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 59, तिर्मिज़ी शरीफ. जिल्द नं 1, सफा नं 555, ]* 📕
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*🏻 हदीस➧*_हुज़ूर अकरमﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"जो कोई ज़माल (ख़ूबसूरती) या माल व दौलत की ख़ातिर किसी औरत से निकाह करेगा----तो वोह दोनों से मेहरूम रहेगा और जब दीन के लिए निकाह करेगा तो दोनों मकसद पूरे होंगे"_
📗 *[ कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 260, ]*📗
*🏻 हदीस➧* _और फरमाया रसूलुल्लाहﷺ ने_
○✧➤ _"औरत की तलब दीन के लिए ही करनी चाहिए जमाल (खूबसूरती) के लिए नही" । इसके मअ़नी येह है कि सिर्फ़ खूबसूरती के लिए निकाह न करें। न येह कि खूबसूरती ढ़ून्डे़ ही नहीं, अगर निकाह करने से सिर्फ़ औलादें हासिल करना और सुन्नत पर अ़मल करना ही किसी शख़्स का मक़सद है खूबसूरती नहीं चाहता तो येह परहेज़गारी है।_
📘 *[ कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 260, ]* 📘
*🏻 आयत➧* _अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है_
*🏻 तर्जुमा ➧* _अगर वह फक़ीर (गरीब) हो तो अल्लाह उन्हें ग़नी कर देगा। अपने फज़्ल के सबब_
📕 *[ तर्जुमा :- कन्जुल इमान, पारा 18, सूरए "नूर", आयत नं 32, ]* 📕
○✧➤ _लिहाजा अगर किसी लड़की में दीनदारी ज़्यादा हो चाहे वोह कितनी ही गरीब क्यों न हो उससे शादी करना बेहतर है क्या अज़ब के अल्लाह तआला उससे शादी करने की और उस की बरक़त से आप को भी दौलत से नवाज़ दे । आप को उस नेक व गरीब लड़की से वोह ही खुशी व सुकून मिल सकता है जो एक दौलतमन्द बदमिज़ाज, मार्डन (modern) फ़ैशन की देवी से नही मिल सकता।_
○✧➤ _हाँ अगर कोई दौलतमन्द लड़की दीनदार, नेक, अच्छे इख़्लाक वाली हो और उस से शादी की जाए तो येह भी बहुत ख़ुशनसीबी की बात है। बेशक अल्लाह माल व दौलत, व चेहरों को नही देखता बल्कि तक़वा व परहेज़गारी को देखता है।_
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*शादी के लिए इस्तेख़ारा*
🌼 *_Judging from omens or augury for marriage_* 🌼
○✧➤ _किसी नये काम को शुरू करने से पहले इस्तेख़ारा करना चाहिए, इस्तेखा़रा उस अमल को कहते है जिसके करने से ग़ैबी तौर पर यह माअ़लूम हो जाता है के फु़ंला काम करने मे फ़ायदा है या नुक़सान ।_
*🏻 हदीस➧*_हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह [ रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा ] रिवायत करते हैं।_
○✧➤ _*रसूलुल्लाहﷺ* हमें हर काम में हमें इस्तेखा़रा की तलक़ीन फ़रमाते थे जैसे क़ुरआन की कोई सूरत सिखाते"_
📕 *[ बुखारी शरीफ, जिल्द 1, सफा नं 455, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द 1, सफा नं 292, ]* 📕
○✧➤ _इस्तेखा़रा और "शगून" में बहुत फ़र्क़ है इस्तेखा़रा में किसी नये काम शुरू करने में अल्लाह से दुआ़ करना और उसकी मर्ज़ी माअ़लूम करना मक़सद होता है। जबकि शगून जादूगरो, छू- छा करने वाले, सितारों से, परिन्दो से, तीरो से, नुजूमी, ज्योतिषीयों, वगै़रा, और इस तरह की दूसरी चीज़ों के जरिए लेते हैं। जो कि शरीअ़त में "शिर्क" के बराबर है, शिर्क वह गुनाह है जिसे अल्लाह कभी मुआ़फ नही करेगा, शिर्क करने वाला हमेशा हमेशा ज़हन्नम में रहेगा, लेकिन इस्तेखा़रा करना सुन्नते *रसूलुल्लाहﷺ* व सहाबा और बुजु़रगाने दीन का तरीक़ा है।_
*🏻 हदीस➧* _सरकारे *मद़ीनाﷺ* ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"अल्लाह तआला ने इस्तेखा़रा करना औलादें आदम [ इन्सानो ] की ख़ुश बख़्ती [ सौभाग्य, Good fortune, ] है और इस्तेखा़रा न करना बद बख़्ती [ दुर्भाग्य, misfortune, ] है" ।_
○✧➤ _इस्तेखा़रा किसी भी नये काम को शुरू करने से पहले करना चाहिये जैसे नया कारोबार शुरू करना है, नया मकान बनाना है, या ख़रीदना है, किसी सफ़र पर जा रहा है, या कोई नयी चीज़ ख़रीद रहा है, वगैरा वगैरा इन चीजों में नुकसान होगा या फ़ायदा येह जानने के लिए इस्तेखा़रा का अ़मल किया जाना चाहिए।_
○✧➤ _अब चूँकि शादी एक ऐसा काम है जिस पर सारी ज़िन्दगी के आराम व सुकून का दारोमदार है बीवी अगर नेक, परहेज़गार, मुहब्बत करने वाली, ख़ुशमिज़ाज होगी तो ज़िन्दगी ख़ुशियों से भरी होगी और आने वाली नस्ल भी एक बेहतर नस्ल साब़ित होंगी। लेकिन अगर बीवी बदमिज़ाज, बदक़ार, बेवफ़ा, हुई तो सारी ज़िन्दगी झगड़ो से भरी और सुकून से खाली होगी। यहाँ तक कि तलाक़ तक नौबत पहुँच जाऐगी । लिहाजा जरूरी है कि शादी से पहले ही माअ़लूम कर लिया जाए के जिस औरत को अपनी शरीकेे जिन्दगी [ बीवी ] बनाना चाहता है। वोह दीन व दुनिया के एतेबार से बेहतर साबित होगी या नहीं।_
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*🔖 शादी के लिए इस्तेखा़रा 🔖*
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*🏻 हदीस➧*_हज़रत इब्ने ऊमर व हज़रत सहेल सअ़द [ रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा ] से रिवायत है कि हुज़ूरे अकरमﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"अगर नहुसत किसी चीज़ में है तो वोह घर, औरत, और घोड़ा है [ यानी इन मे से कोई चीज़ मनहूस हो सकती हैं ]_
📕 *[ मुस्नदे इमामे आ़ज़म बाब नं 121, सफा नं 211,मोता इमाम मालिक़, जिल्द नं 2, बाब नं 8, हदीस नं 21, सफा नं 207, बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 47, हदीस नं 86, सफा नं 61, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 2, बाब नं 327, हदीस नं 730, सफा नं 295, अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 3 बाब 206, हदीस नं 524, सफा नं 186, नसाई शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 538, इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, बाब नं 643, हदीस नं 2064, सफा नं 555, मिश्क़ात शरीफ, जिल्द नं 2, हदीस नं 2953, सफा नं 70, मासबता बिस्सुन्ना, सफा नं 70, ]* 📕
○✧➤ _इमाम तिर्मिज़ी [रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] फरमाते है_
○✧➤ _ये हदीस हसन सही है *هذا حديث حسن صحيح"* येह हदीस अहादीस की और दीगर किताबों जैसे मुस्लिम शरीफ, मुस्नदे इमाम अहमद, तबरानी वगैरा में भी नक़्ल है। इस से पहले एडीशनो में हमने ये हदीस बुखारी के अ़ल्फाज़ मे नक़्ल की थी और हालाँकि अपनी तरफ से इस पर कोई तबसेरा भी नही किया था। लेकिन इस के बावजूद कुछ ना वाक़िफ़ो ने इस पर एतराज़ात किये थे। लिहाजा इस बार मज़ीद हवाले बढ़ा दिये गये है। अब भी अगर किसी साहब का हम पर इल्ज़ाम बाकी हो तो वोह हमसे सही हवाले देख सकते हैं।_
*🏻 शरह➧* _इमामे आ़ज़म अबूहनीफा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] इस हदीस की तशरीह में फरमाते है। कि_
○✧➤ _घर की मन्हूसियत येह है कि वह तंग [छोटा] हो [और बुरे पड़ोसी हो] घोड़े की मन्हूसियत उस की सर क़शी और मुँह जोर होना है और औरत की मन्हूसियत येह है कि वोह बद इख़्लाक, ज़बानदराज़, और बांन्झ हो।_
📗 *[ मुस्नदे इमामे आ़ज़म, बाब नं 121, सफा नं 212, ]* 📗
*🏻 शरह➧* _इसी हदीस की शरह में आ़ला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ाँ [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] इरशाद फरमाते है।_
○✧➤ _"शरीअ़त के मुताबिक़ नहूसत येह है कि घर तंग हो, पड़ोसी बुरे हो, और घोड़े की नहूसत येह है कि शरीर हो बद लगाम हो, औरत की नहूसत येह है कि बदज़बान, बद इख़्लाक हो, । और बाकी वोह ख़्याल के औरत के पहरे से येह हुआ फु़ंला के पहरे से येह, येह सब बकवास है और क़ाफ़िरों के ख़्याल है"_
📙 *[ फ़तावा ए रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 254, ]* 📙
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*🔖 इस्तेखा़रा करने का तरीका़ 🔖*
🏻 1⃣➧ _जिस से निकाह करने का इरादा हो तो पैग़ाम या मंगनी के बारे मे किसी से ज़िक्र न करें। अब खूब अच्छी तरह वुज़ू कर के जितनी नफि़ल नमाज़ पढ़ सकता है दो दो करके पढ़े । नमाज़ ख़त्म करने के बाद खूब खूब अल्लाह की तस्वीह बयान करे। [जो भी तस्वीह याद हो ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ें] जैसे.. अल्लाहो अक़बर اللٰہ اکبر, सुब्हान अल्लाह سبحان اللہ, अल्हमदुलिल्लाह الحمداللہ, या रहीमो یا رحیم, या करीमो یا کریم, वगैरा फिर उसके बाद येह दुआ़ खुलूस व दिल की गहराई से येह दुआ पढ़ें_
*🏻 दुआ➧* _अल्लाहुम्मा इनन-क-तक़दिरो वला अक़देरो व तअ़लमु वला आ़लमु व अन-त-अल्लामुल गु़यूबे-फ-ईन-र-एै-त-अन-न-फी *[यहां लड़की या औरत का पूरा नाम ले ]* खैरल ली फी दीनी व दुनया-य-व अाख़ेरती फ़क़ दिर हाली व इन काना गै़रो-ह-ख़ैरम मिन-ह-फी दीनी व आ़खेरती फ़क़ दिर हाली ०_
*🏻 तर्जुमा➧* _अए अल्लाह तू हर चीज़ पर क़ादिर है। मै क़ादिर नही और तू सब कुछ जानता है मै कुछ नही जानता----बेशक तू गै़ब की बातों को खूब जानता है अगर [लड़की का नाम ले ] मेरे लिए मेरे दीन के एतेबार से, दुनिया व आ़ख़ेरत के एतेबार से बेहतर हो तो उस को मेरे लिए मुक़द्दर फरमा दे । और अगर उसके अलावा और कोई लड़की या औरत मेरे हक़ में मेरे दीन व आ़ख़ेरत के एतेबार से उस से बेहतर हो तो उस को मेरे लिए मुक़द्दर फ़रमा दे।_
📕 *[ हिस्ने हसीन, सफा नं 160 ]* 📕
○✧➤ _इस तरह इस्तेखा़रा करने से इन्शा अल्लाह तआला सात (7) दिनो मे ख़्वाब या फिर बेदारी मे ही अल्लाह की जानिब से कुछ ऐसा जा़हिर होगा या कुछ ऐसा गुज़रेगा जिस से आपको अंदाज़ा हो जाऐगी के उस लड़की या औरत से निकाह करने में बेहतरी है या नहीं_
🏻 2⃣➧ _कुछ ओलमा-ए-किराम ने इस्तेखा़रा करने का तरीका येह भी बयान किया है। कि_
○✧➤ _रात को दो रक्अ़त नमाज़ इस तरह पढ़ें के पहली मे सूरए फ़ातिहा [अलहम्द शरीफ] के बाद [कुल या अइयोहल काफ़ेरून] (पूरा सूरह पढ़ें) और दूसरी रकाअ़त में सूरए फ़ातिहा के बाद (कुल हुवल्लाहोअहद ) पूरा सूरा पढ़ें। और सलाम फेर कर दुआ पढ़ें (वही दुआ जो हमने ऊपर लिखी है) दुआ करने से पहले और दुआ करने के बाद सूरए फ़ातिहा (अल्हमदु शरीफ ) और दुरूद शरीफ, जरूर पढ़े।_
○✧➤ _बेहतर येह है कि सात (7) बार इस्तेखा़रा करें [यानी सात (7) रोज़ रात को करें एक ही रात में सात बार कर सकते हैं।] इस्तेखा़रा करने के बाद फौरन बा तहारत क़िब़ले की तरफ रूख़ करके सो जाएे । अगर ख़्वाब में सफ़ेदी या हरे रंग की कोई चीज़ देखे तो कामयाबी है उस लड़की से शादी करना ठीक होगा। और अगर लाल या काली चीज़ देखे तो समझे कामयाबी नहीं उस लड़की से शादी करने में बुराई है। *[वल्लाहो आ़लम]*_
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*🔖 मंगनी या निकाह का पैग़ाम 🔖*
*🏻 आयत➧*_अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है_
*🏻 तर्जुमा➧* _और तुम पर गुनाह नही इस बात मे जो पर्दा रख कर तुम औरतों के निकाह का पयाम दो_
📗 *[ कन्जुल इमान, पारा 2, सूरए बकर, आयत नंबर 235, ]* 📗
○✧➤ _जब किसी लड़की या औरत से शादी करने का इरादा हो तो उसे शादी का पैग़ाम या मंगनी करने से पहले येह जरूर देख ले के उस लड़की या औरत को किसी और इस्लामी भाई ने पहले से ही तो पैग़ाम नही दिया है या उस की मंगनी तो नही हो गयी है।_
○✧➤ _अगर किसी इस्लामी भाई ने उस लड़की को निकाह का पैग़ाम दिया है या उस से रिश्ते की बात चीत चल रही हो तो हरगिज़ उसे मंगनी या रिश्ते का पैग़ाम न दे के इसे इस्लामी शरीअ़त मे सख्त ना पसंद किया गया है चुनान्चे हदीस पाक में है_
*🏻 हदीस➧*_हज़रत अबूह़ुरैरा व हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने ऊमर [रदिअल्लाहो तआला अन्हम ] से रिवायत है। कि हुज़ूरे अकरमﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"कोई आदमी अपने भाई के पैग़ाम पर [उसी औरत को] निकाह का पैग़ाम न दे यहां तक कि पहला खुद मंगनी का इरादा तर्क कर दे [छोड़ दे] या उसे पैग़ाम भेजने की इज़ाज़त दे" ।_
📕 *[ बुखारी शरीफ, जिल्द 3, सफा 78, मोता शरीफ, जिल्द 2, सफा 415, ]* 📕
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*🏻 हदीस➧*_हज़रत अब्दुल्ला इब्ने अब्बास [रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा] से रिवायत है। के_
○✧➤ _"एक औरत का शौहर मर गया। उसके देवर ने निकाह का पैग़ाम भेजा मगर [औरत का] बाप औरत से निकाह करने पर राज़ी न हुआ उसने किसी दूसरे मर्द से औरत का निकाह कर दिया और *नबीﷺ* की ख़ितमत में हाजिर हुई और आप से पूरा किस्सा बयान किया । हुज़ूर ने उसके बाप को बुलावाया । उससे आपने फ़रमाया "येह औरत क्या कहती है" उस ने जवाब दिया सच कहती है मगर मैंने इसका निकाह ऐसे मर्द से किया जो इसके देवर से बेहतर है। इस पर हुज़ूर ने उस मर्द और औरत में जुदाई करवा दी और औरत का निकाह उसी देवर से कर दिया जिस से वोह निकाह करना चाहती थी।_
📗 *[ मुस्नदे इमामे आ़ज़म बाब नं 124, सफा नं 215, ]* 📗
*🏻 शरह➧* _हज़रत मुल्ला अ़ली क़ारी [रहमतुल्लाह तआला अलेह] इस हदीस के बारे में लिखते हैं। कि_
○✧➤ _"इब्ने क़तान [रदिअल्लाहो अन्हो] ने कहा कि इब्ने अब्बास की हदीस सहीह है और येह औरत हज़रत ख़नसा बिन्त ख़ेज़ाम [रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा] थी ।जिस की हदीस इमाम मालिक व इमाम बुखारी लाए हैं के उन का निकाह *अँ-हज़रातﷺ* ने रद्द फ़रमा दिया था।_
*🏻 हदीस➧* _इमाम बुखारी ने बुखारी शरीफ मे यही हदीस इन अ़ल्फाजो़ के साथ नक़्ल की है। हज़रत ख़नसा बिन्त ख़ेज़ाम [रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा] इरशाद फरमाती है। कि_
○✧➤ _"इन के वालिद ने उन का निकाह कर दिया जबकि वोह बेवह थी। और इस निकाह को ना पसंद करती थी। वोह *रसूलुल्लाहﷺ* की बारगा़ह में हाजिर हों गयी आप ने फरमाया कि "वोह निकाह नहीं हुआ"_
📕 *[ मोता शरीफ, जिल्द 2, सफा नं 424, बुखारी शरीफ, जिल्द 3, सफा नं 76, ]* 📕
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*🌹 निकाह से पहले लड़की देखना 🌹*
*🏻 हदीस➧*_हुज़ूर सैय्यदना इमाम बुख़ारी [रदिअल्लाहो अन्हा] ने अपनी मशहूर किताब "सही बुखारी" जिल्द 3, बाब "किताबुन निकाह" मे निकाह से पहले औरत को देखने के मुत्अ़ल्लिक़ एक ख़ास बाब [अध्याय Chapter] लिखा है जिसमें यह साबित किया है के निकाह से पहले औरत को देखना जाइज़ है। चुनांचे उस बाब की एक तवील हदीस मे है के_
○✧➤ _*....* *हुज़ूरे अकरमﷺ* की ख़ितमते अक़दस में एक मर्तबा एक सहाबिया औरत तशरीफ़ लाई और आपसे शादी की दरख़्वास्त की लेकिन हुज़ूर ने अपना सरे मुबारक झुका लिया और उन्हें कुछ जवाब नहीं दिया । एक सहाबी ने खड़े होकर अ़र्ज़ किया *"या रसूलुल्लाह"* अगर उस औरत की आपको हाज़त नही है तो उस का मेरे साथ निकाह कर दीजिए" । सरकार के उन से पूछने पर मअ़लूम हुआ कि उनके पास कुछ रुपया पैसा कपड़े वगैरा नहीं है। यहां तक की यहां मैहर के लिए एक लोहे की अंगूठी भी नहीं है लेकिन क़ुरआन की कुछ सूरतें याद है चुनांचे सरकार ने उन के क़ुरआन करीम जानने की वजह से उस सहाबी का निकाह उस सहाबिया औरत से पढ़ा दिया।_
○✧➤ _इसी तरह एक दूसरी हदीस में है कि रसूले अकरमﷺ को ख्वाब में हज़रत आएशा [रदिअल्लाहो तआला अन्हा] को निकाह से पहले दिखाया गया।_
○✧➤ _इन हदीसे मुबारका से इमाम बुख़ारी ने येह साबित करने की कोशिश की है कि औरत को निकाह से पहले देखना जाइज़ है_
*🏻 हदीस➧*_सैय्यदना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] रिवायत करते है कि_
○✧➤ _"निकाह से पहले औरत को देख लेना इमाम शाफ़अ़ई [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] के नज़दीक सुन्नत है।_
*🏻 हदीस➧* _यही इमाम ग़ज़ाली आगे नक़्ल फरमाते है। के_
○✧➤ _औरत का ज़माल व [उसका चेहरा] मुहब्बत व उलफ़त का ज़रीया है इसलिए निकाह करने से पहले लड़की को देख लेना सुन्नत है। बुजुर्गों का कौ़ल है कि औरत को बे देखे जो निकाह होता है उसका अन्जाम परेशानी और ग़म है।_
📕 *[ कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 260, ]*
*🏻 हदीस➧*_हुज़ूर सैय्यदना गौ़से आ़ज़म शेख अब्दुल क़ादिर ज़ीलानी [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] इरशाद फरमाते है।_
○✧➤ _"मुनासिब है के निकाह से पहले औरत का चेहरा और ज़ाहिरी बदन देख ले [यानी हाथ मुँह वगैरा को] ताकि बाद को नफरत या तलाक़ की नौबत न आए क्यों कि तलाक़ और नफरत अल्लाह तआला को ना पसंद हैं।_
📕 *[ गुन्यतुत्तालेबीन सफा नं 112, ]*
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○✧➤ _आपने अक्सर देखा और सुना होगा अक्सर ग़ैर मुस्लिम, मुसलमानों को ताना देते है कि इस्लाम ने औरतों के साथ नाइंसाफ़ी की है। हालांकि इन बेवक़ूफ़ो को येह नहीं दिखता कि इनके धर्म ने औरतों के कितने ही हुक़ूक का किस बेदर्दी से गला घोंटा गया है।_
○✧➤ _यह कम अपनी औरतों को सड़कों, बाज़ारों और अपनी झूठी इबादत गांहों [मंदिरों] मैं आधा नंगी हालत में खुले आ़म में घूमने फिरने ही को उनकी आज़ादी और जाइज़ हक़ समझते हैं यही वजह है कि उनके अपने ख़ूद साख़्ता धर्म में मर्द व औरते ही नहीं उनके देवी देवता और उनके भगवान भी आशिक़ मिजाज़ नजर आते हैं किसी साएर ने क्या ख़ूब कहा है_
○✧➤ _औरतें बाल संवारे मन्दिर मे गयी पूजा के लिए !_
○✧➤ _देवता बाहर निकले और खुद पुजारी हो गए !_
○✧➤ _बेशक मज़हबे इस्लाम ऐसी बेहूदा़ चीजों की हरगिज़ इजाज़त नहीं देता। वोह औरतों को बाजारों और सड़कों पर खुले आ़म हुस्न का मुज़ाहिरा पेश करने से रोकता है। लेकिन वही औरतों को ज़ायज़ हुक़ूक़ देने में कोई कमी नही करता और न ही औरतों के साथ बुरा सुलूक करने उनके साथ ज़बर्दस्ती करने, या ना इन्साफ़ी करने की हरगिज़ इज़ाज़त नही देता। वोह हर मामले में औरतों से बराबरी और इन्सानी सुलूक करने का मर्दों को हुक़्म देता है।_
○✧➤ _चुनान्चे शरीअ़ते इस्लामी में जहां कई मामलों में औरत की रज़ामंदी ज़रूरी समझी जाती है। वही शादी के लिए लड़की या औरत से उसके रज़ामंदी ज़रूरी है_
*🏻 हदीस➧*_हज़रत अबूह़ुरैरा व हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। के हुज़ूरे अकरमﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"कुंवारी का निकाह न किया जाए जब तक उसकी रज़ा मन्दी न हासिल कर ली जाए और उसका चुप रहना उसकी रज़ामंदी है और न निकाह किया जाए बेवाह का जब तक उससे इज़ाज़त न ली जाए।_
📕 *[ तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द 1, सफा 566, मुस्नदे इमामे आज़म सफा नं 214, ]* 📕
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○✧➤ 👉🏻 _इन तमाम अहादीसे मुबारका से पता चला कि कुंवारी लड़की और बेवाह से इज़ाज़त लेना ज़रूरी है और हमारे प्यारे *आक़ाﷺ* की बहुत ही प्यारी सुन्नत भी है। चुनान्चे इस हदीसे पाक में है। कि_
*🏻 हदीस➧*_हज़रत अबूह़ुरैरा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो ] से रिवायत है।_
○✧➤ _नबी-ए-करीम ﷺ अपनी किसी साहबज़ादी को किसी के निकाह में देना चाहते तो उनके पर्दे के पास तशरीफ़ लाते और फ़रमाते "फु़ंला शख्स [ यहां उसका नाम लेते] तुम्हारा जिक्र करता है" फिर [ रजा़मन्दी माअ़लूम हो जाने पर] निकाह पढ़ा दिया करते ।_
📕 *[मुस्नदे इमाम ए आज़म, बाब नं 123, सफा नं 214]* 📕
○✧➤ _लेकिन आज देखा येह जा रहा है मां, बाप, लड़की की मरज़ी को कोई अहमियत को नहीं देते है अपनी मरज़ी के मुताबिक ही ब्याह देते है अगर लड़की को लड़का पसंद आ गया तो ठीक, और अगर पसंद न आया तो झगड़ो और नाइत्तेफ़ाक़ीयों का एक सैलाब उमड़ पड़ता है और नौबत तलाक़ तक आ पहुंचती है। अपनी लड़की के लिए अच्छे लड़के की तलाश करना और ब्याह देना येह यक़ीनन मां-बाप की ही ज़िम्मेदारी है लेकिन जहां इतनी उठा पटक करते है वही अगर लड़की से उसकी रज़ामन्दी माअ़लूम कर ली जाए तो इसमें भला किया हर्ज है। लड़की से उसकी मरज़ी भी मअ़लूम करना चाहिए। क्यों कि उसे ही सारी ज़िन्दगी गुजारना है। हाँ अगर खुल कर कहने मे झिझक या शर्म महसूस हो तो दबे अलफ़ाज़ो (code word) में इज़हार करे येह सुन्नत भी है।_
*🏻 हदीस➧* _हज़रत इब्ने अब्बास [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। के_
○✧➤ _सरकार ﷺ ने जब अपनी साहबज़ादी हज़रत फ़ातमा [ रदिअल्लाहो तआ़ला अन्हा ] का हज़रत अली [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से निकाह करने का इरादा फरमाया तो आप हज़रत फा़तमा के पास के पास तशरीफ लाए और इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"अली तुम्हारा जिक़्र करते हैं"। [यानी निकाह का पैग़ाम भेजा है]।_
📗 *[ मुस्नदे इमामे आ़ज़म, बाब नं 122, सफा नं 213, ]* 📗
○✧➤ _यह इज़ाज़त हासिल करने का निहायत ही बेहतर तरीक़ा है जो पैग़ाम के वक़्त ज़रूरी है। और वैसे भी साफ खुले अल्फाजों में पूछना हेजाब व हया के ख़िलाफ़ मअ़लूम होता है। इसी तरह ऐेेैसे बहुत से अल्फाज़ है जो इज़ाज़त लेते वक़्त दबे लफ़्ज़ो में कह सकते है । जैसे कहे---- फुंला लड़का आपका ज़िक्र करता है, फु़ंला तुम पर बहुत मेहरबान है, फु़ंला तुम्हारे लिए बेहतर है, फु़ंला को तुम्हारी ज़रूरत है, फु़ंला का पैग़ाम तुम्हारे लिए है, वगैरा वगैरा, जहाँ जहाँ "फु़ंला" लिखा है वहां लड़के या मर्द का नाम लें।_
*🏻 मसअ़ला➧* _लड़की या औरत से इज़ाज़त लेते वक्त़ जरूरी है है जरूरी है की जिस के साथ निकाह करने का इरादा हो उसका नाम इस तरह ले की औरत जान सके। अगर यूं कहा एक मर्द से शादी कर दूंगा। फु़ंला क़ौम के एक शख्स से निकाह कर दूंगा। तो येह जाइज़ नही और येह इज़ाज़त सही भी नही ।_
📘 *[ कानूने शरीअ़त, जिल्द 2, सफा नं 54, ]* 📘
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*🏻 हदीस➧* _इमाम बुख़ारी [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] नक़्ल फरमाते है। के हज़रत आइशा [रदिअल्लाहो तआला अन्हा]ने अ़र्ज़ किया -"या रसूलुल्लाह ! कुंवारी लड़की तो निकाह की इज़ाज़त देने में शर्माती है ? इरशाद फरमाया "उसका खामोश हो जाना ही इज़ाज़त है।_
📙 *[ बुखारी शरीफ, बाब नं 71, हदीस नं 124, जिल्द 3 सफा 76, ]* 📙
*🏻 मसअ़ला➧* _अगर औरत कुंवारी है तो साफ़-साफ़ रजामंदी के अल्फ़ाज़ कहे या कोई ऐसी हरकत करे जिससे राज़ी होना साफ़ मअ़लूम हो जाए। जैसे कि मुस्कुरा दे, या हंस दे, या फिर इशारे से जा़हिर करेे,_
📕 *[ कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 54, ]* 📕
○✧➤ _और अगर इंकार हो तो इस तरह से साफ़-साफ़ कहे "मुझे उस की ज़रूरत नहीं या फिर कहे वह मेरे लिए बेहतर नहीं" वगै़रा वगै़रा जिस तरह भी मुनासिब तौर से ज़ाहिर कर सकती हो उस तरह से जा़हिर कर दे। फिर मां बाप का भी फ़र्ज़ है कि वह ज़्यादा दबाव ना डालें यह ज़बरदस्ती ना करें कि येह जाइज़ नही_
*🏻 हदीस➧*_हज़रत अबूह़ुरैरा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। रसूले अकरमﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"कुंवारी लड़की से उसके निकाह की इज़ाज़त ली जाए अगर खा़मूश हो जाए तो येह उसकी तरफ से इज़ाज़त है। और अगर इंकार करे तो उस पर कोई ज़बर्दस्ती नही"_
📗 *[ तिर्मिज़ी शरीफ, हदीस नं 1101, जिल्द 1, सफा नं 567,]* 📗
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*🏻 मसअ़ला➧* _बालिग़ व आक़ेला [समझदार] औरत का निकाह बगैर उसकी इज़ाज़त के कोई नही कर सकता न उसका बाप, न इस्लामी हुकूमत का बादशाह, चाहे औरत कुंवारी हो या बेवाह, । इसी तरह बालिग़ व समझदार [पागल वगैरह न हो] मर्द का निकाह बगै़र उसकी मरज़ी के कोई नही कर सकता ।_
📘 *[ कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2 सफा 54, ]* 📘
*🏻 मसअ़ला➧*_कुंवारी लड़की का निकाह या लड़के का निकाह उनकी इज़ाज़त के बगै़र कर दिया गया । और उन्हें निकाह की ख़बर दी गई तो अगर औरत चुप रही, या हँसी, या बगै़र आवाज के रोई तो निकाह मन्ज़ूर है समझा जाएगा। इसी तरह मर्द ने इन्कार न किया तो निकाह मन्ज़ूर है समझा जाएगा। लेकिन औरत ने इन्कार कर दिया या मर्द ने इन्कार कर दिया निकाह टूट गया।_
📙 *[ फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द 5, सफा 104, कानूने शरीअ़त, जिल्द 2, सफा 54, ]* 📙
○✧➤ _येह दीनी मसाइल है जिन का जानना और उन पर अ़मल करना ज़रूरी है। जिस में माँ, बाप, भी अपनी औलादों की खुशी का ख्याल रखे और औलाद का भी फ़र्ज़ है कि वोह माँ, बाप, और घर के दीगर बुज़ुर्ग की सुने और वोह जहां शादी करना चाहे उनकी रज़ा में ही अपनी रज़ा समझे कि माँ, बाप, कभी भी अपनी औलाद का बुरा नही चाहते ।_
*🏻 हदीस➧*_हज़रत अबूह़ुरैरा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"कोई औरत दूसरी औरत का निकाह न करे, और न कोई औरत अपना निकाह खुद करे क्यों कि ज़िनाकार वही है जो अपना निकाह खुद करती है।_
📗 *[ इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, बाब नं 603,हदीस नं 1950, सफा नं 528, मिश्क़ात शरीफ, जिल्द नं 2, हदीस नं 3002, सफा नं 78, ]* 📗
*🏻 मसअ़ला➧*_बालिग़ लड़की वली [माँ,बाप,वगैरा] की इज़ाज़त के बगै़र खुद अपना निकाह छुप कर या एलानिया करे उसके जाइज़ होने के लिए येह शर्त है। शौहर उस का क़ुफू़ हो, यानी मज़हब या खानदान, या पेशे, या माल, या चाल चलन में औरत से ऐसा कम न हो कि उसके साथ उसका निकाह होना लड़की के माँ, बाप, व रिश्तेदारों के लिए बे इज़्ज़ती, या शर्मिन्दगी, व बदनामी का सबब हो, अगर ऐसा है तो वोह निकाह न होगा।_
📕 *[ फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 142, ]* 📕
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○✧➤ _आपका और हमारा यह मुशाहेदा है कि मुसलमानों में आज बड़ी ताअ़दाद में ऐसे लोग है जो शादी तो कर लेते है मेहर भी बाँध लेते हैं लेकिन उन्हें येह पता ही नहीं होता है कि मेहर कितने क़िस्म के होता है और उनका निकाह किस क़िस्म के मेहर पर तय हुआ था लिहाजा मुसलमानों को येह सब जान लेना बहुत जरूरी है।_
*⇩ ◥◣ मेहर तीन क़िस्म का होता हैं! ◢◤ ⇩*
*🏻 मुअ़ज्जल➧*_मेहरे मुअ़ज्जल येह है कि रुख़सती से पहले मेहर देना करार पाया हो । [चाहे दिया कभी भी जाए]_
*🏻 मुवज्जल➧* _मेहरे मुवज्जल येह है कि मेहर की रक़म देने के लिए कोई वक्त़ [अवधि, period] मुक़र्रर कर लिया जाए।_
*🏻 मुतलक़➧* _मेहरे मुतलक़ येह है कि जिस में कुछ तय न किया जाए।_
📗 *[फ़तावा-ए-मुस्तफ़ाविया, जिल्द नं 3, सफा नं 66, कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 60,]* 📗
○✧➤ _इन तमाम मेहर की किस्मों में मेहर "मुअ़ज्जल" रखना ज़्यादा अ़फज़ल है। [यानी रुख़सती से पहले ही मेहर अदा कर दी जाए]_
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*🏻 मसअ़ला➧* _मेहरे मुअ़ज्जल वसूल करने के लिए औरत अगर चाहे तो शौहर को सोहबत से रोक सकती है और मर्द को हलाल [जायज़] नहीं की औरत को मजबूर करे या उसके साथ किसी तरह की जबरदस्ती करे । येह हक़ औरत को उस वक्त़ तक हासिल है जब तक मेहर वसूल न कर ले [इस दरमियान औरत अपनी मरज़ी से चाहे तो सोहबत कर सकती है] इस दौरान भी मर्द अपनी बीवी का नान नफ़्क़ा [खाना, पीना, कपड़ा, खर्चा वगैरह] बन्द नही कर सकता। जब मर्द औरत को उसका मेहर दे दे तो औरत को अपने शौहर को सोहबत करने से रोकना जाइज़ नही।_
📕 *[ फ़तावा-ए-मुस्ताफ़ाविया, जिल्द नं 3, सफा नं 66, कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 60, ]* 📕
*🏻 मसअ़ला➧*_इसी तरह अगर मेहरे मुवज्जल था [यानी मेहर अदा करने के लिए एक ख़ास मुद्दत मुक़र्रर की गयी थी] और वह मुद्दत खत्म हो गई तो औरत शौहर को सोहबत करने से रोक सकती है।_
📗 *[ कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 60, ]* 📗
*🏻 मसअ़ला➧*_औरत को मेहर मुआफ़ कर देने के लिए मजबूर करना जाइज़ नहीं ।_
○✧➤ _इस जमाने में ज़्यादा तर लोग यही समझते कि मेहर देना कोई ज़रूरी नहीं बल्कि सिर्फ़ एक रस्म है और कुछ लोगों का ख़्याल है कि मेहर तलाक के बाद ही दिया जाता है कुछ लोग समझते हैं कि मेहर इसलिए रखते है कि औरत को मेहर देने के ख़ौफ से तलाक़ नही दे सकेगा।_
○✧➤ _यही वजह है हमारे हिंदुस्तान में ज़्यादा तर लोग मेहर नही देते यहां तक कि और इन्तिक़ाल के बाद औरत उनके जनाज़े पर अाकर मेहर मुआ़फ करती है। वैसे औरत के मेहर मुआ़फ कर देने से मुआ़फ तो हो जाता है लेकिन मेहर दिए बगै़र दुनिया से चले जाना ठीक नही, अगर ख़ुदा न ख़ांंसता पहले औरत का इन्तिक़ाल हो गया तो क़यामत में सख़्त पकड़ और सख़्त अ़ज़ाब, लिहाजा इस खतरे से बचने के लिए मेहर अदा कर देना चाहिए। इस मे सवाब भी है और येह हमारे आक़ा ﷺ की सुन्नत भी है ।_
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*🏻 आयत➧* _हमारा रब जल्ला जलालाहु हमें क्या हुक़्म फरमाता है।_
*🏻 तर्जुमा➧*_"और औरतों को उन के मेहर खुशी से दो "।_
📕 *[ तर्जुमा :- कन्जुल इमान, पारा 4, सूरए निसा, रूकू 12, आयत नं 4,]* 📕
*🏻 जहालत➧*_अक्सर मुसलमान अपनी हैसियत से ज़्यादा महेर रखते है और येह ख़्याल करते हैं। कि "ज़्यादा महेर रख भी दिया तो क्या फ़र्क़ पड़ता है देना तो है ही नही" येह सख़्त जहालत है और दीन से मजाक़ ऐसे लोगों के मुत्अ़ल्लिक़ "सहजादा-ए-आला हज़रत हुज़ूर मुफ़्ती-ए-आज़मे हिन्द मुस्तफ़ा खाँ रज़ा [रहमतुल्लाह तआला अलैह] अपने एक फ़तवे में इरशाद फरमाते है_
○✧➤ _"[महेर नही देना है] ऐसा ख्याल कर लेना बहुत बुरा है जो ऐसी निय्यत रखता है कि [वोह] दीन नही समझता वोह इस से डरे के हदीसे पाक में है उसका हश्र जिना करने वालों के साथ होगा।_
📗 *[ फ़तावा-ए-मुस्तफ़ाविया, जिल्द नं 3, सफा नं 79,]* 📗
○✧➤ _लिहाजा महेर उतना ही रखे जितना देने की हैसियत हो और महेर जितना जल्दी हो सके अदा कर दे। के यही अ़फज़ल तरीक़ा है।_
*🏻 हदीस➧*_हुज़ूर रसूले मक़बूल ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"औरतों में वोह सबसे बेहतर है जिसका हुस्न व ज़माल [खूबसूरती] ज़्यादा हो और महेर कम हो।_
📙 *[कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 260,]* 📙
○✧➤ _"इमाम ग़ज़ाली [रदिअल्लाहो तआला अन्हा] फरमाते है_
○✧➤ _"बहुत ज़्यादा महेर बांधना मक़रूह है लेकिन हैसियत से कम भी न हो।_
📚 *[कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 260,]* 📚
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⛑ *शादी के रूसुम* ⛑
○✧➤ _शादी में तरह तरह की रस्में बरती जाती है हर मुल्क में नई रस्म हर क़ौम व खानदान खनन का अपना अलग अलग रिवाज येह कोई नही समझता है के शरअन येह रस्में कैसी है मगर येह ज़रूर है के रस्मों की पाबन्दी उसी हद तक की जाए कि किसी हराम काम में मुब्तेला न हो । कुछ लोग रस्मों की इस कदर पाबन्दी करते है कि ना जाइज़, हराम काम भले ही करना पड़े मगर रस्म न झूटने पाए।_
○✧➤ _हमारे हिन्दुस्तान में आम तौर पर बहुत सी रस्मों की जाती है। जैसे----रतजगा, हल्दी की रस्म, नेहारी शादी के रोज़, शराब पीना, ढोल बाजे नाच गाना, शादी से एक रात पहले खूब खूब जुवा खेलना, गाने बाजे के साथ बारात निकालना वग़ैर वगै़र जबकि इन रस्मों में बे पर्दगी, छिछोरापन, अय्याशी और हराम कामों का वज़ूद होता है जवान लडके लड़कियाँ हल्दी खेलते हैं नाचते गाते है बेहुदा हँसी मजाक़ और तरह तरह की इंसानियत से गिरी हुई हरकत करते हैं। अगर इन तमाम रस्मों की पाबन्दी के लिए रुपए न हो तो सूद [ब्याज] पर रुपए लेने से भी नही चूकते ।_
○✧➤ _यहां मुमकिन नहीं की हर रस्म पर अलग-अलग बहेस की जाए, लिहाजा हम यहां पर मुख़्तसर तौर पर चन्द हदीसे पेश करते हैं।इन्साफ़ पसन्द के लिए इसी क़द्र क़ाफी और हट धर्म और ज़ाहिल के लिए पूरा क़ुरआन व हदीसो के ख़ज़ाने भी न क़ाफी।_
*🏻 आयत➧* _अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है_
*🏻 तर्जुमा➧*_"और फ़ुजूल न उड़ा बे शक उड़ाने वाले शैतानो के भाई है, और शैतान अपने रब का बड़ा ना शुक्रा है।_
📕 *[तर्जुमा :- कन्जुल इमान, पारा 15, सूरए बनी इस्राईल़, आयत नं 26/27,]* 📕
*🏻 हदीस➧*_सरकारे मद़ीना राहते क़ल्बो सीना ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"सूद का एक रुपया लेना छत्तीस (३६) मरतबा जिना करने से बढ़कर है। बेशक सूद लेना अपनी माँ के साथ जिना करने से भी बदतर है।_
📗 *[फ़तावा-ए-मुस्तफ़ाविया, जिल्द नं 1, सफा नं 76,]* 📗
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⛑ *शादी के रूसुम* ⛑
*🏻 हदीस➧*_सरकारे दो आ़लम ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"जिसने जुवा खेला गोया उस ने ख़िन्ज़ीर [सुवर] के गोश्त व खून से हाथ धोया"।_
📕 *[ मुस्लिम शरीफ, अबूूदाऊद शरीफ, मुका़शेफातुल क़ुलूब, बाब नं 99, सफा नं 635,]* 📕
*🏻 हदीस➧*_नबी-ए-करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"सब से पहले गाना इब्लीस [शैतान, मरदूद,] ने गाया था"।_
📗 *[क़रउल समा बाइख़्तिलाफ़े अक्वालुल मशाइख़ व अहवालोहुम फ़ील समा, अज़ :- शेख अब्दुलहक़ मुहद्दिस देहलवी रदिअल्लाहो तआला अन्हो, सफा नं 41,]* 📚
*🏻 हदीस➧*_हज़रत इमाम मुजाहिद [रदिअल्लाहो अन्हो] फरमाते है_
○✧➤ _"गाने बाजे शैतान की आवाजें है जिसने इन्हें सुना गोया उस ने शैतान की आवाज सुनी"।_
📙 *[हादीन्नास फ़ी रूसूमिल आरास, सफा नं 18,]* 📙
*🏻 मसअ़ला➧* _उबटन मलना जाइज़ है। और दुल्हा की उम्र नव दस साल की हो तो अजनबी औरतों का उसके बदन में उबटन मलना भी गुनाह व मना नही, हाँ बालिग़ के बदन पर ना महरम औरतों का मलना ना जाइज़ है और बदन को हाथ तो माँ भी नही लगा सकती है। येह हराम और सख़्त हराम है। और औरत व मर्द के दरमियान शरीअ़त ने कोई मुँह बोला रिश्ता न रखा येह शैतानी व हिन्दुवानी रस्म है।_
📚 *[फ़तावा-ए-रज़वीया जिल्द नं 9, सफा नं 170,]* 📚
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⛑ *दुल्हन दूल्हे को सजाना* ⛑
○✧➤ _शादी के मौके पर दुल्हन, दूल्हे को मेहंदी लगाई जाती है कंगन बाँधा जाता है और शादी के दिन सेहरा बाँधा जाता है और जे़वरात से सजाया जाता है लिहाजा यहां मसाइल बयान कर देना निहायत जरुरी है।_
*🏻 मसअ़ला➧*_औरतों को हाथ पांव में मेहँदी लगाना जाइज़ है लेकिन बिला ज़रूरत छोटी बच्चियों के हाथ पाँव में मेहँदी लगाना न चाहिए। बड़ी लड़कियों के हाथ पाँव में मेहँदी लगा सकते हैं।_
📕 *[ कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 214,] 📕*
○✧➤ _इस मसअ़ले से पता चला कि औरतें और लड़कियाँ मेहँदी लगा सकती है चाहे शादी का दिन हो या और कोई ख़ुशी का मौक़ा_
*🏻 हदीस➧*_सरकारें मदीना ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _औरतों को चाहिये के हाथ और पाँव में मेहँदी लगाए ताकि मर्दों की तरह हाथ न हो। और किसी वजह से या बे अहतियाती से किसी ग़ैर मर्द को दिख जाए तो उसे पता न चले औरत किस रंग की है यानी गोरी है या काली क्यों कि हाथों के रंग को देख कर भी इंसान चेहरे के रंग का अंदाज़ लगा लेता है"। इस हदीस से इरशाद हुआ कि "ज़्यादा न हो तो मेहँदी से नाखून ही रंगीन रखे"_
📘 *[ फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 148,]* 📘
○✧➤ _लिहाजा औरतों को मेहँदी लगाना बेशक जाइज़ है और इसी तरह हर किस्म के जे़वरात भी जाइज़ है। चुनान्चे औरत को मेहँदी लगाने जे़वरात से सजाने में कोई हर्ज नही । लेकिन मर्दों को येह सब हराम है चाहे दुल्हा ही क्यों न हो।_
*🏻 मसअ़ला➧* _हाथ पाँव मे बल्कि सिर्फ़ नाखूनो में ही मेहँदी लगाना मर्द के लिए हराम है।_
📗 *[फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 149,]* 📗
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*⚘⇩ ◥◣ दुल्हन दूल्हे को सजाना ◢◤ ⇩⚘*
○✧➤ _सहजादा-ए-आला हज़रत हुज़ूर मुफ़्ती-ए-आज़मे हिन्द [रहमतुल्लाह तआला अलैह] के फ़तावा-ए मे है कि आप से फ़तवा पूछा गया_
*🏻 सवाल➧*_दूल्हे को मेहन्दी लगाना दुरूस्त है कि नही। दूल्हा चाँदी के जे़वर पहनता है कंगन बांनधता है इस सूरत में निकाह पढ़ा दिया तो निकाह दुरूस्त हुआ है कि नही।_
*🏻 जवाब➧* _[इस सवाल के जवाब में आप ने फ़तवा दिया कि] मर्द को हाथ पाँव में मेहँदी लगाना ना जाइज़ है जे़वर पहनना गुनाह है कंगन हिन्दूओ की रस्म है। येह सब चीज़े पहले उतरवाए फिर निकाह पढाए के जितनी देर निकाह मे होगी उतनी देर वोह [दुल्हा] और गुनाह में रहेगा। और बुरे काम, को कुदरत [ताक़त] होते हुए न रोकना और देर करना खुद गुनाह है बाकी अगर जे़वर पहने हुए निकाह हुआ निकाह हो जाएगा।_
📕 *[फ़तावा-ए-मुस्तफ़ाविया, जिल्द नं 3, सफा नं 175,]* 📕
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*⚘⇩दुलहन दूल्हे को सज़ाते वक्त़ दुआ़⇩⚘*
○✧➤ _दुल्हन को जो औरतें सजाए उन्हें चाहिए कि वोह दुल्हन को दुआ़ए दे हदीसे पाक में है। कि_
*🏻 हदीस➧* _उम्मुलमोमेनीन हज़रत आइशा सिद्दीक़ा [रदिअल्लाहो तआला अन्हा] इरशाद फरमाती है कि_
○✧➤ _हुज़ूर ﷺ से जब मेरा निकाह हुआ तो मेरी वालिदह माजेदाह मुझे सरकार के दौलत कदे पर लाई वहाँ अन्सार की कुछ औरतें मौजूद थी [उन्होंने मुझे सजाया] और दुआ दी_
○✧ 🤲🏻 على الخیری والبراکة وعلى خير طائر
*🏻 दुआ➧*_अलल ख़ैरे वल बराकतेे व आ़ला खै़रे त-अ-ए-रिन०_
*🏻 तर्जुमा➧*_ख़ैरो बरक़त हो अल्लाह तुम्हारा नसीब अच्छा करे_
📕 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 87, हदीस नं 142, सफा नं 82,]* 📕
○✧➤ _लिहाजा हमारी इस्लामी बहनों को भी चाहिए जब वह किसी की शादी के मौके पर जाएं दुल्हन सजाते वक़्त या फिर उनसे मुलाकात करते वक्त़ अल्फ़ाज़ो से बरक़त की दुआ करें ।_
○✧➤ _इसी तरह दूल्हे के दोस्तों को भी चाहिए की वह भी दूल्हे को सजाते या सेहरा बांधते वक्त़ यही दुआ दें। बुखारी शरीफ की एक दूसरी रिवायत में है कि हुज़ूर ﷺ ने हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औ़फ़ [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] को उनकी शादी पर इसी तरह बरक़ात की दुआ इरशाद फरमाई थी।_
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*⚘⇩ ◥◣ निकाह ◢◤ ⇩⚘*
○✧➤ _हुज़ूर सैय्यदना ग़ौसे आ़ज़म शेख अब्दुल क़ादिर ज़ीलानी [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] नक्ल फरमाते है। कि_
○✧➤ _"निकाह जुमेरात या जुम्अे को करना मुस्तहब है। सुबह कीे बजाए शाम के वक्त़ निकाह करना बेहतर व अ़फज़ल है।"_
📕 *[गुन्यतुत्तालिबीन, बाब नं 5, सफा नं 115,]* 📕
○✧➤ _आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ "फ़तावा-ए-रज़वीया" में नक़्ल करते है। कि_
○✧➤ _"जुम्अे के दिन अगर जुम्अे की अज़ान हो गई हो तो उसके बाद जब तक नमाज़ न पढ़ ली जाए निकाह की इजाजत नहीं के अजान होते ही जुम्अे के नमाज के लिए जल्दी करना वाज़िब है। फिर भी अगर कोई अज़ान के बाद निकाह कर करेगा तो गुनाह होगा मगर निकाह जाइज़ व सही हो जाएगा"_
📘 *[फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 158,]* 📘
*🏻 मसअ़ला➧*_कुछ लोगों का ख़्याल है कि निकाह मोहर्रम के महीने में नही करना चाहिए। येह ख़्याल फ़ुजूल व गल़त है।_
📗 *[ फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 179,]* 📗
○✧➤ _"दुल्हा दुल्हन दोनो के माँ बाप को चाहिये कि निकाह के लिए सुन्नी का़जी को ही बुलावाए । क़ाजी वहाबी, देवबन्दी, मौदूदी, नेचरी, ग़ैर मुक़ल्लिद वगैरह न हो।_
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*⚘⇩ ◥◣ निकाह ◢◤ ⇩⚘*
○✧➤ _इमामे इश्क़ो मुहब्बत मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] इरशाद फरमाते है। कि_
○✧➤ _वहाबी से निकाह पढ़वाने में उसकी ताअ़ज़ीम होती है जो कि हराम है लिहाजा इससे बचना ज़रूरी है।_
📕 *[अलमलफूज़, जिल्द नं 3, सफा नं 16,]* 📕
○✧➤ _निकाह की शर्त येह है कि दो गवाह हाजिर हो । इन दोनों गवाहों का भी सुन्नी सहीहुल अ़कीदाह होना ज़रूरी है।_
*🏻 मसअ़ला➧* _एक गवाह से निकाह नही हो सकता जब तक दो मर्द या एक मर्द दो औरतें मुस्लिम [सुन्नी] समझदार बालिग़ न हो।_
📗 *[ फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 163,]* 📗
*🏻 मसअ़ला➧* _सब गवाह ऐसे बद-मज़हब है। जिन की बद-मज़हबी कुफ़्र तक पहुँच चुकी हो जैसे वहाबी, देवबन्दी, नेचरी, चकड़ालवी, कादयानी, गैर मुक़ल्लिद, [मौदूदी] तो निकाह नही होगा।_
📘 *[फ़तावा-ए-अफ्रीका, सफा नं 61,]* 📘
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत इब्ने अब्बास [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _"गवाहों के बिना निकाह करने वाली ज़ानिया [ज़िना करने वाली] है।_
📚 *[तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1 बाब नं 751, हदीस नं 1095, सफा नं 563,]* 📚
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*⚘⇩ ◥◣ निकाह के बाद ◢◤ ⇩⚘*
○✧➤ _निकाह के बाद मिसरी व खजूर बाँटना बहुत अच्छा है येह रिवाज हुज़ूर ﷺ के जाहिरी जमाने में था।_
○✧➤ _आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] फरमाते है_
○✧➤ _"(निकाह के बाद) छुवारे (खजूर) हदीस शरीफ में लूटने का हुक़्म है और लुटाने में भी कोई हर्ज नही और येह हदीस "दारक़ुत्नी" व "बयहक़ी" व "तहावी" से मरवी है।_
📗 *[ अलमलफूज़, जिल्द नं 3, सफा नं 16,]* 📗
○✧➤ _आला हज़रत के इस इरशाद से पता चला कि मिसरी व खजूर लुटाना चाहिए यानी लोगों पर फेंके । लोगों को भी चाहिए कि वोह अपनी जगह पर बैठे रहे और जिस क़दर उनके दामन में गिरे वोह उठा ले ज़्यादा हासिल करने के लिए किसी पर न गिर पड़े।_
*⚘⇩ दुल्हन दुल्हा को मुबारक़बाद ⇩⚘*
○✧➤ _निकाह होने के बाद दुल्हन दुल्हा को मुबारक़बाद देनी चाहिए और उन के लिए बरक़त की दुआ करनी चाहिये।_
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत अबूह़ुरैरा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। कि_
○✧➤ _जब कोई शख़्स निकाह करता तो हुज़ूर ﷺ उस को मुबारक़बाद देते हुए उसके लिए यूँ दुआ फरमाते।_
*○✧⚘ بارك الله لك ، وبارك عليك ، وجمع بينكما في خير*
*🏻 दुआ➧*_ब-र-कल्लाहो लका-व-ब-र-क-अलैका व जम-आ-बै-न-कुमा फी़ ख़ैर ०।_
*🏻 तर्जुमा➧* _अल्लाह तआला तुझे बरक़त दे और तुझ पर बरक़त नाज़िल फ़रमाए और तुम दोनों में भलाई रखे ।_
📕 *[तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 557, अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 139,]* 📕
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○✧➤ _लड़की को दहेज देना सुन्नत है मगर ज़रुरत से ज़्यादा देना क़र्ज लेकर देना दुरूस्त नहीं है। लड़की वाले अपनी हैसियत के मुताबिक जिस क़दर भी दहेज दें उसे खुशी खुशी कु़बूल करना चाहिए अपनी तरफ से मांग करना किसी भीखारी के भीख माँगने से किसी तरह कम नही है।_
*🏻 मसअ़ला➧*_दहेज के तमाम माल पर ख़ास औरत का हक़ है। दूसरे का उस मे कुछ हक़ नही है।_
📕 *[ फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 529,]* 📕
○✧➤ _हमारे मुल्क में यह रिवाज़ हर क़ौम में पाया जाता है। कि निकाह के बाद दुल्हन वाले दूल्हे को तोहफ़े देते हैं जिसमे कपड़े का जोड़ा, सोने की अंगूठी, घड़ी वगै़रा होती है तोहफ़े देने में कोई हर्ज़ नहीं लेकिन इसमें चंद बातों की एहतियात ज़रूरी है। मसलन आप जो अँगूठी दूल्हे को दे वोह सोने की न हो।_
*🏻 मसअ़ला➧* _मर्द को किसी भी धातु का ज़ेवर पहेनना हराम है। इसी तरह मर्द को सोने की अंगूठी पहेनना भी हराम है। औरत को सोने की अंगूठी व जे़वर पहेनना जाइज़ है। मर्द सिर्फ़ चांदी की अंगूठी ही पहेन सकता है। लेकिन उसका वज़न 4 माशा से कम होना चाहिए । दूसरी धातें मस्लन लोहा, पीतल, ताँबां, जस्त, वगै़रा इन धातु की अँगूठी मर्द और औरत दोनो को पहेनना ना जाइज़ है।_
📘 *[कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 196,]* 📘
*🏻 हदीस➧* _एक शख़्स हुज़ूर ﷺ की ख़ितमत में पीतल की अँगूठी पहेन कर हाजिर हुए। सरकार ने इरशाद फरमाया "क्या बात है कि तुम से बुतों की बू आती है" उन्होंने वोह अँगूठी फेंक दी। "फिर दूसरे दिन लोहे की अँगूठी पहेन कर हाजिर हुए। फरमाया क्या बात है कि तुम पर जे़हन्नमियों का जे़वर देखता हूँ"। अर्ज किया या रसूलुल्लाह ! फिर किस चीज़ की अँगूठी बनाऊँ ! इरशाद फरमाया चाँदी की और उसको साढ़े चार माशे से ज़्यादा न करना।_
📗 *[अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 2, बाब नं 292, हदीस नं 821, सफा नं 277,]* 📗
*🏻 मसअ़ला➧* _मर्द को दो अंगूठियां चाहे चाँदी ही की क्यों न हो पहेनना न जाइज़ है। इसी तरह एक अँगूठी में कई नग या साढ़े चार माशा से ज़्यादा वज़न हो तो इस तरह की अँगूठी भी पहेनना ना जाइज़ है।_
📚 *[अहकामे शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 160,]* 📚
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○✧➤ _लिहाजा दूल्हे को सोने की अँगूठी न दे। इस के बजाए उस की की़मत के बराबर कोई और चीज़ या सिर्फ़ चाँदी की एक अँगूठी साढ़े चार माशा से कम वज़न की ही दे वरना देने वाला और उसे पहेनना वाला दोनो गुनाहगार होंगे।_
○✧➤ _मुम्क़िन है कि आप के दिल में येह ख़्याल आए के अगर चाँदी की अँगूठी देंगे तो लोग क्या कहेंगे? किस कदर बदनामी होगी वगै़रा वगै़रा। तो होश़ियार ! येह सब शैतान के वसवसे है। वोह इसी तरह लोगों से गल़त काम करवाया करता है। हम आप से एक सीधी सी बात पूछते हैं कि आपको अल्लाह व उस के रसूल की खुशी चाहिए कि लोगों की वाह ! वाह ! सोंचिंए और अपने जमीर मे ही इस का जवाब तलब कीजिए।_
○✧➤ _अब आइये हम आप को घड़ी के मुत्अ़ल्लिक़ भी कुछ ज़रूरी व अहम माअ़लूमात दें।_
*🏻 मसअ़ला➧* _सरकार सय्यदी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] अपने एक फ़तवे में इरशाद फरमाते है।_
○✧➤ _घड़ी की ज़न्जीर (चैन) सोने चाँदी की मर्द को हराम है। और दूसरी धातों [जैसे लोहा, स्टील, पीतल, वगै़रा] की मम्नूअ़, इन सब को पहेन कर नमाज़ [पढ़ना] और इमामत़ करना मक़रूहे तहरीमी [ना जाइज़ व गुनाह] है।_
📕 *[अहकामे शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 170,]* 📕
*🏻 मसअ़ला➧*_हुज़ूर मुफ़्ती-ए-आज़मे हिन्द [रहमतुल्लाह अलैह] ने अपने फ़तवे में इरशाद फरमाते है।_
○✧➤ _वोह घड़ी जिस की चैन सोने, या चाँदी, या स्टील, वगै़रा किसी धातु की हो, उस का इस्तेमाल ना जाइज़ है। और उस को पहेन कर नमाज़ पढ़ना गुनाह और जो नमाज़ गई उसे लौटाना वाज़िब है।_
📘 *[बाहवाला माहनामा इस्तेक़ामत़ कानपुर, जनवरी 1978,]* 📘
○✧➤ _इस लिए हमेशा वही घड़ी पहेने जिस का पट्टा (चैन) चमड़े, प्लास्टिक, या रेगज़ीन का ही हो। स्टील या किसी और धातु का न हो। और शादी के मौके पर भी अगर घड़ी देना ही हो तो सिर्फ़ चमड़े, या प्लास्टिक, के पट्टे वाली ही घड़ी दें।_
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*⚘⇩ ◥◣ रुख़सती ◢◤ ⇩⚘*
○✧➤ _जब कोई शख़्स अपनी लड़की की शादी करें। तो रुख़सती के वक्त़ के अपनी लड़की व दामाद [दुल्हा, दुल्हन] दोनो को अपने पास बुलाऐ फिर उसके बाद एक प्याले [गिलास] मे पानी लेकर येह दुआ पढ़ें।_
*⚘○✧ اَلّٰلهُمّٰ اِنِىّ اُعِىیْذُهَا بِكَ وَذُرِِّیِّتَھَاَ مِنَ الشَّیْطَانِ الرَّجِيمِ*
*🏻 तर्जुमा➧* _अए अल्लाह मेेैे तेरी पनाह में देता हूँ इस लड़की को, और इसकी [जो होगी] औलादों को मरदूद शैतान से ।_
📕 *[हिस्ने हसीन, सफा नं 163,]* 📕
○✧➤ _इस दुआ को पढ़ने के बाद प्याले में दम करें [यानी फूँके] उस के बाद पहले अपनी लड़की [दुल्हन] को अपने सामने खड़ा करे और फिर उस के सिर पे पानी के छींटे मारे फिर सीना पर और उस की पीठ पर छींटे मारे।_
○✧➤ _फिर उस के बाद इसी तरह दामाद [दूल्हा] को भी बुलाए और प्याले में दूसरा पानी ले कर येह दुआ पढ़ें।_
*⚘○✧ اَلّٰلهُمّٰ اِنِىّ اُعِىیْذُهْ بِكَ وَذُرِِّیِّتَهْ مِنَ الشَّیْطَانِ الرَّجِيمِ*
*🏻 तर्जुमा➧*_अए अल्लाह मै तेरी पनाह में देता हूँ इस लड़के को, और इसकी[जो होगी] औलादें उन को शैतान मरदूद से।_
📗 *[हिस्ने हसीन, सफा नं 163,]* 📗
○✧➤ _पानी पर दम करने के बाद पहले की तरह अपने दामाद के सर और सीने पर फिर पीठ पर छींटे मारे और उस के बाद रुख़सत कर दें।_
*🏻 हदीस➧* _हरत इमाम मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन जज़री शाफ़अ़ई [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] अपनी किताब "हिस्ने हसीन" नक़्ल फरमाते है। के_
○✧➤ _"जब रसूलुल्लाह ﷺ ने हज़रत अली [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] का निकाह हज़रत फा़तमा [रदिअल्लाहो तआला अन्हा] से कर दिया तो आप उन के घर तशरीफ ले गए और हज़रत फा़तमा से फरमाया "थोड़ा सा पानी लाओ"। चुनान्चे वोह एक लकड़ी के प्याले में पानी लेकर हाजिर हुई आप ने उन से वह प्याला ले लिया और एक घूँट पानी दहने मुबारक [मुँह शरीफ] में ले कर प्याले में ही कुल्ली की। और इरशाद फरमाया "आगे आऔ" । हज़रत फा़तमा सामने आ कर खड़ी हो गई तो आपने उन के सर पर और सीने पर वोह पानी छिड़का और येह दुआ फरमाई [वोह दुआ जो हम पहले लिख चुके हैं] और उस के बाद फरमाया"मेरी तरफ पीठ करो"। चुनान्चे वोह आपकी तरफ पीठ करके खड़ी हो गई तो आपने बाकी पानी भी आपने यही दुआ पढ़ कर पीठ पर छिड़क दिया। इसके बाद आप ने [हज़रत अली के जानिब रूख़ करके] फरमाया"पानी लाओ"। हज़रत अली कहते है कि। मै समझ गया जो आप किया चाहते हैं चुनान्चे मैंने भी प्याला भर कर पानी पेश किया । आप ने फरमाया "आगे आऔ"। मै आगे आया आप ने वही कलमात पढ़ कर और प्याले में कुल्ली करके मेरे सर और सीने पर पानी के छींटे दिये और फिर वही दुआ पढ़कर मेरे मोन्ढ़े [कंधों] के दरमियान पानी के छींटे दिये उस के बाद फरमाया "अब अपनी दुल्हन के पास जाओ"_
📘 *[हिस्ने हसीन, सफा नं 164,]* 📘
*🏻⚠नोट➧*_पानी पर सिर्फ़ दुआ कर के ही दम करें उस में कुल्ली न करें। सरकार ﷺ का थूक मुबारक और कुल्ली किया हुआ मुबारक पानी पाक़ ही नही बल्कि बाइसे बरक़ात है। और बीमारियों से शिफ़ा देने वाला और ज़हन्नम की आग के हराम होने का सबब हैं। सरकारﷺ का लुवाबे दहन [थूक मुबारक] खुश नसीबो को ही मिलता है।_
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*⚘⇩ ◥◣ सुहागरात के आदाब ◢◤ ⇩⚘*
○✧➤ _जब दुल्हा दुल्हन कमरे में जाए और तन्हाई हो तो बेहतर येह है कि सबसे पहले दुल्हा दुल्हन दोनो वुज़ू कर ले और फिर जानमाज़ या कोई पाक़ कपड़ा बिछा कर दो (2) रकाअ़त नफ़िल, शुक्राना पढ़ें । अगर दुल्हन हैज़ (माहवारी) की हालत में हो तो नमाज़ न पढ़ें। लेकिन दुल्हा ज़रूर पढ़ें।_
*🏻 हदीस➧*_हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] फरमाते है। के_
○✧➤ _एक शख्स ने उनसे बयान किया कि मै ने एक जवान लड़की से निकाह कर लिया और मुझे डर है के वोह मुझे पसंद नही करेगी। हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद ने फरमाया । "मुहब्बत अल्लाह की तरफ से होती है और नफरत शैतान की तरफ से, जब तुम बीवी के पास जाओ तो सब से पहले उस को कहो कि वोह तुम्हारे पीछे दो (2) रकाअ़त नमाज़ पढ़े ।_
📕 *[गुन्यतुत्तालिबीन, बाब नं 5, सफा नं 115,]* 📕
*🏻 नमाज़ की नियत ➧*_नियत की मै ने दो रकाअ़त नमाज़ नफिल शुक्राने की वास्ते अल्लाह तआला के मुँह मेरा काबा शरीफ के अल्लाहो अक़बर ।_
○✧➤ _फिर जिस तरह दूसरी नमाज़े पढ़ी जाती है उसी तरह येह नमाज़ भी पढ़ें। (यानी अल्हमदु शरीफ, फिर उस के बाद कोई एक सूरा मिलाए)_
*🏻 दुआ➧*_नमाज़ के बाद इस तरह दुआ करें_
○✧➤ _अए अल्लाह अज़्ज़ व जल्ला तेरा शुक्रा व एहसान है के तू ने हमें येह दिन दिखाया और हमें इस खुशी व नेमत से नवाज़ा और हमे अपने हबीब ﷺ की इस सुन्नत पर अमल की तौफ़ीक़ अता फरमाई अए अल्लाह हमारी खुशी को इसी तरह क़ायम रख, हमें मेल मिलाप प्यार मुहब्बत के साथ इत्तेफ़ाक़ व इत्तेहाद के साथ जिन्दगी गुजारने की तौफ़ीक़ अ़ता फ़रमा, अए रब्बे क़दीर हमे नेक़ फ़रमांबरदार औलाद अ़ता फ़रमा, अए अल्लाह मुझे इस से और इस को मुझ से रोज़ी अ़ता फ़रमा । आमीन"।_
📘 *[गुन्यतुत्तालिबीन, बाब नं 5, सफा नं 115,]* 📘
*⚘⇩ सुहाग रात की ख़ास दुआ ⇩⚘*
○✧➤ _नमाज़ और फिर उस के बाद दुआ पढ़ लेने के बाद दुल्हा दुल्हन पलंग पर सुकून से बैठ जाए फिर दुल्हा अपनी दुल्हन की पेशानी के थोड़े से बाल अपने सीधे हाथ मे नर्मी के साथ मुहब्बत भरे अंदाज़ में पकड़े और येह दुआ पढ़े ।_
⚘○✧ اللَّهُمَّ إِنِّي أَسَْلُكَ مِنْ خَيْرِهَا ، وَخَيْرِ مَا جُبِلَتهاْ عَلَيْهِ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّهَا وَشَرِّ مَا جُبِلَتهاْ عَلَيْهِ
*🏻 तर्जुमा➧* _अए अल्लाह मैं तुझ से इस की (बीवी की) भलाई और ख़ैरो बरक़त माँगता हूँ और उस की फ़ितरी आदतों की भलाई, और तेरी पनाह चाहते हूँ इस की बुराई और फ़ितरी आदतों की बुराई से।_
*🏻 हदीस➧* _हज़रत अ़म्र बिन आ़स [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। कि सरकारे मदीना ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _जब कोई शख्स निकाह करे और पहली रात (सुहाग रात) को अपनी दुल्हन के पास जाए तो नर्मी के साथ उस के पेशानी क थोड़े सेे बाल अपने सीधे हाथ में ले कर येह दुआ पढ़ें। (वही दुआ जो हम ऊपर नक़्ल कर चुके हैं)_
📗 *[अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 150, व हिस्ने हसीन, सफा नं 164,]* 📗
*🏻 फ़ज़ीलत ➧*_सुहाग रात के रोज़ इस दुआ को पढ़ने की फ़ज़ीलत में ओलमा-ए-दीन इरशाद फरमाते है। के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इस के पढ़ने की बरक़त से मियाँ,बीवी, के दरमियान इत्तेहाद व इत्तेफ़ाक़ और मुहब्बत क़ायम रखेगा, और अगर औरत में बुराई हो तो उसे दूर फ़रमा कर उस के जरिए नैकी फैलाएगा और औरत हमेशा मर्द की ख़ितमत गुजार, वफ़ादार, और फरमांबरदार रहेगी। (इन्शा अल्लाह)_
○✧➤ _अगर हम इस दुआ मअ़नो (अर्थ meaning) पर गौ़र करें तो हमारे लिए कितना अम्न व सुकून का पैग़ाम है। लिहाजा इस दुआ को सुहाग रात की रात को ज़रूर पढ़ लें। येह दुआ हमें दर्स देती है के किसी भी वक्त़ यादे इलाही से गा़फ़िल न होना चाहिए। बल्कि हर वक्त़ हर मामले में अल्लाह की रहमत के तलबगार रहे।_
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*🏻 एक बड़ी गल़त फ़हमी ➧* _कुछ लोगों का ख़्याल है कि औरत से जब पहली बार सोहबत की जाए तो उस की शर्मगाह से खून का ख़ारिज़ होना ज़रूरी है। चुनान्चे येह खून का आना उस के बा अ़ज़मत पाक दामन (पवित्र) होने का सबूत समझा जाता है। अगर खून नही आया तो औरत बदचलन, आवारा समझी जाती है। और औरत की शराफ़त और बा अ़ज़मत होने में शक किया जाता है। कभी कभी येह शक जिन्दगी को कड़वा और बद मज़ा कर देता है। और कई बार तो नौबत तलाक़ तक आ पहुँचती है। लिहाजा इस मसअ़ले पर रोशनी डालना और इस गलत फहमी को दूर करना ज़रूरी है।_
○✧➤ _कुंवारी लड़कियों की शर्मगाह में थोड़ा अन्दर एक पतली झिल्ली होती है जिसे पर्दा-ए-अ़ज़मत या पर्दा-ए-बकारत (Hymen) कहते है। इस झिल्ली मे एक छोटा सूराख होता है जिसके जरिए लड़की के बालिग़ होने पर हैज़ (माहवारी) का खून अपने वक्त़ पर खारिज होता रहता है।_
○✧➤ _शादी के बाद जब मर्द पहली बार सोहबत करता है तो मर्द के ऊज़ू-ए-तनासुल के उस से टकराने की वजह से वोह झिल्ली फट जाती है इस मौके़ पर औरत को थोड़ा तकलीफ़ होती है और थोड़ा सा खून भी खारिज होता है। फिर येह झिल्ली (पर्दा) हमेशा के लिए खत्म हो जाता है।_
○✧➤ _लेकिन चूँकि येह झिल्ली पतली और नाज़ुक होती है तो कई मर्तबा किसी किसी लड़की की येह मामूली चोट या किसी हादसे की वजह से या कभी कभी खुद ब खुद भी फट जाती है।_
○✧➤ _आजकल बहुत सी लड़कियाँ साइकल वगै़रा चलाती है कुछ खेल कूद कुछ कसरत वगै़रा भी करती है जिसकी वजह से भी येह झिल्ली कई मर्तबा फट जाती है। ऐसी लड़कियों की जब शादी होती है और पहली रात सोहबत के वक्त़ जब मर्द खून नही देखता तो वोह शक करने लगता है ।_
○✧➤ _किसी किसी औरत की येह झिल्ली ऐसी लचक़दार होती है कि सोहबत के बाद भी नही फटती और सोहबत करने में रुकावट भी पैदा नही करती। और न ही खून खारिज होता है।_
○✧➤ _लाखों में से किसी एक औरत की येह झिल्ली इतनी मोटी और सख़्त होती है कि फटती नही जिसके लिए नश्तर की ज़रूरत पड़ती है। लिहाजा किसी लड़की से सोहबत के वक्त़ खून न आए तो ज़रूरी नही के वोह आवारा और अय्याश बद चलन हो इसलिए उस की अ़ज़मत और पाक दामनी पर शक करना किसी भी सूरत में मुनासिब न होगा जब तक मुकम्मल श़रई सुबूत न हो।_
○✧➤ _फिक़ह की मशहूर किताब "तन्वीरूल अबसार" मे है।_
○✧➤ _जिस का पर्दा-ए-अ़ज़मत कूदने हैज़ आने या ज़ख़्म या उमर ज़्यादा होने की वजह से फट जाए वोह औरत हक़ीक़त में बकिरह (कुंवारी पाक दामन) है"।_
📕 *[तन्वीरूल अबसार, बाहवाला,फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 12, सफा नं 36,]*
*🏻 सुहाग रात की बातें दोस्तों से कहना➧*_कुछ लोग अपने दोस्तों को पहली रात(सुहाग रात) में बीवी के साथ की हुई बातें और हरकते मज़े ले कर सुनाते हैं। दुल्हा अपने दोस्तों को बताता है और दुल्हन अपनी सहेलियों को बताती है और सुनाने वाला और सुनने वाला इसे बड़ी खुशी के साथ मज़े ले ले कर सुनते है। येह बहुत ही जाहिलाना तरीक़ा है भला इस से ज़्यादा बेशर्मी की बात और क्या हो सकती है।_
*🏻 हदीस➧*_जमाने जाहिलियत मे लोग अपने दोस्तों को और औरतें अपनी सहेलियों को रात में की हुई बातें और हरकतें बताया करते थे। चुनान्चे जब सरकारे मद़ीना ﷺ को इस बात की ख़बर हुई तो आप ने इसे सख़्त न पसन्द फ़रमाया और इरशाद फ़रमाया_
○✧➤ _जिस किसी ने सोहबत की बातें लोगों में बयान की उस की मिसाल ऐसी है जैसे शैतान औरत शैतान मर्द से मिले और लोगों के सामने ही खुले आम सोहबत करने लगे"।_
📕 *[अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 2, बाब नं 127, हदीस नं 407, सफा नं 155,]*
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○✧➤ _वलीमा करना सुन्नते मोकेदाह है (जान बूझकर वलीमा न करने वाला सख़्त गुनाहगार है।)_
📗 *[कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 261,]* 📗
○✧➤ _वलीमा येह है कि सुहाग रात की सुबह को अपने दोस्तों, रिशतेदारों, और मोहल्ले के लोगों को अपने हैसियत के मुताबिक दावत करे, दावत करने वालों का मकसद सुन्नत पर अमल करना हो ।_
📕 *[कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 185,]* 📕
*🏻 हदीस➧* _हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] का बयान है के मुझ से नबी-ए-करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _वलीमा करो चाहे एक ही बकरी हो।_
📘 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 85, मोता शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 434,]* 📘
○✧➤ _इस्तेताअ़त (हैसियत) हो तो कम से कम एक बकरे या बकरी का गोश्त ज़रूर हो के सरकार ﷺ ने इसे पसंद फरमाया लेकिन अगर हैसियत न हो। तो अपनी हैसियत के मुताबिक किसी भी क़िस्म का खाना पका सकते है कि येह भी जाइज़ है। एक हदीस मे है_
*🏻 हदीस➧*_हज़रत सफ़िया बिन्त शैबा [रदिअल्लाहो तआला अन्हा] फरमाती है के_
○✧➤ _नबी ﷺ ने अपनी बाज़ अज़वाजे मुतहरात (बीवीयों) का वलीमा दो सेर जव के साथ किया था।_
📕 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 87,]* 📕
○✧➤ _सैय्यदना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] कीम्या-ए-सआ़दत में इरशाद फरमाते है_
○✧➤ _वलीमा में ताख़ीर (देरी) करना ठीक नही अगर किसी श़रअई वजह से ताख़ीर हो जाए तो एक हफ़्ते के अन्दर, अन्दर वलीमा कर लेना चाहिए। उस से ज़्यादा दिन गुजरने न पाए।_
📙 *[कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 261,]* 📙
*🏻 हदीस➧*_हज़रत इब्ने मसऊद [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है कि नबी-ए-करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _पहले दिन का खाना (यानी सुहाग रात के दूसरे रोज़ वलीमा करना) वाज़िब है दूसरे दिन का सुन्नत है और तीसरे दिन का खाना सुनाने और शोहरत के लिए है। और जो कोई सुनाने के लिए काम करेगा। अल्लाह तआला उसे सुनाएगा (यानी इस की सजा उसे मिलेगी) इमाम तिर्मिज़ी [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] फरमाते है येह हदीस ग़रीब व ज़ईफ़ है"।_
📕 *[तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 746, हदीस नं 1089, सफा नं 559,]* 📕
*🏻 दावत क़ुबूल करना➧*_दावत क़ुबूल करना सुन्नत है।_
*🏻 हदीस➧* _हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर [रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा] से रिवायत है। कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _जब तुम मे से किसी को वलीमा खाने के लिए बुलाया जाए तो वोह हाज़िर हो जाए"।_
📗 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 87, मोता इमाम मालिक, जिल्द नं 2, सफा नं 434,]* 📗
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*🏻 बिन दावत जाना➧* _दावत में बगै़र बुलाए नही जाना चाहिए। आज कल आम तौर पर कई लोग दावतों में बिन बुलाए ही चले जाते है और उन्हें न शर्म ही आती है न ही अपनी इज़्ज़त का कुछ ख़्याल होता है गोया मान न मान मेरा तेरा मेहमान_
*🏻 हदीस➧* _सरकारे मदीनाﷺ ने इरशाद फ़रमाया_
○✧➤ _दावत में जाओ जब के बुलाए जाओ"।और फरमाया_
○✧➤ _जो बग़ैर बुलाए दावत में गया वोह चोर होकर घुसा और गारतगीरी कर के लुटेरे की सूरत में बाहर निकला" (यानी गुनाहो को साथ लेकर निकला)_
📕 *[अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 127, हदीस नं 342, सफा नं 130,]* 📕
*🏻 बुरा वलीमा➧*_हदीस पाक में उस वलीमें को बहुत बुरा बताया गया है । जिस में सब अमीर ( रूपये पैसे वाले) ही हो और कोई ग़रीब न बुलाया जाए या जिसमें गरीबों के लिए अलग क़िस्म का खाना और अमीरों के लिए अलग क़िस्म का खाना रखा जाए।_
*🏻 हदीस➧* _हज़रत अबूह़ुरैरा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] रिवायत करते है रसूले ख़ुदा ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _सब से बुरा वलीमा का वोह खाना है जिस में अमीरों को तो बुलाया जाए और गरीबों को नज़र अन्दाज़ कर दिया जाए"।_
📗 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 88, मोता शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 434,]* 📗
*🏻 टेबल कुर्सी पर खाना➧*_आज कल टेबल कुर्सी पर जूते पहने हुए खाना-खाना फैशन बन गया है। याद रखिए येह हमारी शरीअ़त में जाइज़ नही टेबल कुर्सी पर खिलाने वाले, खाने वाले दोनो सख़्त गुनेहगार है।_
*🏻 हदीस➧*_हज़रत अनस [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _जब खाना खाने बैठो तो जूते उतार लो के इस में तुम्हारे पाँव के लिए ज़्यादा राहत है और येह अच्छी सुन्नत है"_
📘 *[तबरानी शरीफ,,]* 📘
○✧➤ _टेबल कुर्सी पर खाना खाने के मुत्अ़ल्लिक़ मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] इरशाद फरमाते है_
○✧➤ _टेबल कुर्सी पर जूता पहेने हुए खाना खाना ईसाइयों की नक़्ल है, इससे दूर भागे और रसूलुल्लाह ﷺ का वोह इरशाद याद करे। من تشبه بقوم فهو منهم कि जो किसी क़ौम से मुशाबेहत (नक़्ल) पैदा करे वोह उन्ही में से है।_
📕 *[फ़तावा-ए-अफ्रीका, सफा नं 53,]* 📕
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*⚘सोहबत (संभोग) करने का तरीका⚘*
*🏻 कुरआन➧*_अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है_
*🏻 तर्जुमा➧* _तो उन से सोहबत करो और तलब करो जो अल्लाह ने तुम्हारे नसीब में लिखा हो ।"_
📕 *[तर्जुमा :- कन्जुल इमान, पारा 2, सूरए बक़र, आयत नं 187,]* 📕
○✧➤ _इस बात का हमेशा ख़्याल रखे कि जब कभी भी सोहबत का इरादा हो तो येह जान ले के कही औरत हैज़ (माहवारी) की हालत में तो नही है। चुनान्चे औरत से साफ़ साफ़ पूछ ले । अगर औरत हैज़ की हालत में हो तो हरगिज़ हरगिज़ सोहबत न करे कि इस हालत में औरत से सोहबत करना बहुत बड़ा गुनाह है। (इस मसअ़ले का बयान इंशा अल्लाह आगे तफ़्सील से आएेगा)_
○✧➤ _औरत का फ़र्ज़ है। कि अगर वोह हैज़ की हालत में हो तो बे झिझक अपने शौहर को बता दे।_
○✧➤ _अक्सर औरतें शादी की पहली रात (सुहाग रात) शर्म की वजह से बताती नही है। या कह भी दे तो मर्द सब्र नही कर पाते और सोहबत कर बैठते है और फिर इस जल्दबाज़ी की सज़ा उम्र भर डॉक्टरों और हकीमों की फ़ीस की शक़्ल में भुगत्ते फिरते हैं। लिहाजा मर्द और औरत दोनों को ऐसे मौक़ों पर सब्र से काम लेना चाहिये।_
○✧➤ _कुछ मर्द मतलब प्रस्त होते हैं। उन्हें सिर्फ़ अपने मतलब से ही लेना होता है वोह दूसरे की खुशी को कोई अहमियत नहीं देते वोह येह ही वुसूल अपनी बीवी के साथ भी रखते हैं चुनान्चे जब वह सोहबत का इरादा करते है तो येह नही देखते कि औरत सोहबत करना चाहती है या नही वोह कही किसी बीमारी या दुख, दर्द, मुब्तिला तो नही है। इन सब से उन्हें कोई मतलब नहीं होता वोह बेसब्री के साथ औरत पर टूट पड़ते है और अपना मतलब पूरा कर लेते है ! इस हरकत से औरत की निगाह में मर्द की इज़्ज़त कम हो जाती है और वोह मर्द को मतलब प्रस्त समझने लगती है साथ ही सोहबत का वोह लुत्फ़ हासिल नही हो पाता।_
*🏻 हदीस➧* _रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _तुम मे से कोई अपनी बीवी के पास जाए तो पर्दा कर ले और गधो की तरह न शुरू हो जाए_
📗 *[इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, बाब नं 616, सफा नं 538, हदीस नं 1990,]* 📗
*🏻 हदीस➧* _सैय्यदना हज़रत इमाम ग़ज़ाली [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] रिवायत करते है । कि सरकारे आ़लमयान ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _मर्द को न चाहिए कि अपनी औरत पर जानवर की तरह गिरे, सोहबत से पहले क़ासिद (पैग़ाम पहुँचाने वाला) होता है"। सहाब-ए-किराम ने अ़र्ज़ किया या रसूलुल्लाह ! वोह क़ासिद क्या है?? आप ने इरशाद फरमाया वोह बोस व किनार (चुम्मन kiss) वगै़रा है"। (यानी सोहबत से पहले चुम्मन वगै़रा से औरत को राज़ी करें)_
📙 *[कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 266,]* 📙
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*⚘सोहबत (संभोग) करने का तरीका ⚘*
*🏻 हदीस➧* _हज़रत आएशा सिद्दीक़ा[रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। कि रसूले अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _जो मर्द अपनी बीवी का हाथ उसको बहलाने के लिए पकड़ता है। अल्लाह तआला उस के लिए एक (1) नेक़ी लिख देता है जब मर्द प्यार से औरत के गले में हाथ डा़लता है उसके हक़ में दस (10) नेक़ियां लिखी जाती है, और जब औरत से सोहबत करता है तो दुनिया और जो कुछ उस में है उन सब से बेहतर हो जाता है।_
📕 *[गुन्यतुत्तालिबीन, सफा नं 113,]* 📕
○✧➤ _सोहबत से पहले खुद बेचैन न हो जाए अपने आप पर इतमिनान रखे जल्दबाज़ी न करें पहले बीवी से प्यार मुहब्बत की बात चीत करे फिर बोस व किनार (चुम्मन kiss) वगै़रा से उसको राज़ी करे और इसी दौरान दिल ही दिल में येह दुआ पढ़ें।_
⚘○✧ بسم الله العلى العظيم الله اكبر الله اكبر
*🏻 तर्जुमा➧* _अल्लाह के नाम से जो बुज़ुर्ग व बरतर अ़ज़मत वाला है। अल्लाह बहुत बड़ा है अल्लाह बहुत बड़ा है_
○✧➤ _इसके बाद मर्द, औरत जब सोहबत का इरादा कर ले तो कपड़े जिस्म से अलग करने से पहले एक मर्तबा "सूरए इख़लास" पढ़े_
*⚘ ﷽ ⚘*
⚘○✧ قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ۔ اللَّهُ الصَّمَدُ ۔ لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ۔ وَلَمْ يَكُن لَّهُ كُفُوًا أ َحَدٌ۔
○✧➤ _सूरए इख़्लास पढ़ने के बाद येह दुआ पढ़ें।_
⚘ ○✧ بِسْمِ اللَّهِ ، اللَّهُمَّ جَنِّبْنَا الشَّيْطَانَ ، وَجَنِّبْ الشَّيْطَانَ مَا رَزَقْتَنَا
*🏻 तर्जुमा➧* _अल्लाह के नाम से 0 अए अल्लाह दूर कर हम से शैतान मरदूद को और दूर कर शैतान मरदूद को उस औलाद से जो तू हमें अता करेगा।_
📗 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3 सफा नं 473, कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 266, हिस्ने हसीन, सफा नं 165,]* 📗
*🏻 हदीस➧* _हज़रत इब्ने अब्बास [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। कि रसूले अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _जो शख़्स इस दुआ को सोहबत के वक्त़ पढे़गा (वही दुआ जो ऊपर लिखी गई है) तो अल्लाह उस पढ़ने वाले को अगर औलाद अ़ता फ़रमाए तो उस औलाद को शैतान कभी भी नुकसान न पहुँचा सकेगा।_
📙 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 85, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 557,]* 📙
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*🏻 होश़ियार➧*_इस हदीस की तशरीह (अर्थ Explanation) में हुज़ूर गौ़से आ़ज़म शेख़ अब्दुल क़ादिर ज़ीलानी व मुहक़्क़िक़े इस्लाम शेख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस दहलवी और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदिअल्लाहो तआला अन्हम] इरशाद फरमाते है_
○✧➤ _अगर कोई शख़्स सोहबत के वक्त़ येह दुआ न पढ़े (यानी शैतान से पनाह न माँगे) तो उस शख़्स की शर्मगाह से शैतान लिपट जाता है और उस मर्द के साथ शैतान भी उस की औरत से सोहबत करने लगता है। और जो औलाद पैदा होती है वोह न फ़रमान, बुरी आ़दतों वाली, बेगै़रत, बद्'दीन होती है शैतान की इस दख़्ल अंदाज़ी की वजह से औलाद में तबाहकारी आ जाती है।_
📕 *[गुन्यतुत्तालिबीन, सफा नं 116, अश्अ़तुल लम्आ़त, फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 46,]* 📕
*🏻 हदीस➧* _बुखारी शरीफ" की एक हदीस में है के हज़रत सअ़द बिन ऊबादा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] ने फरमाया_
○✧➤ _अगर में अपनी बीवी को किसी के साथ देख लूं तो तलवार से उस का काम तमाम कर दूँ। उन की येह बात सुन कर अल्लाह के रसूल"ﷺ ने इरशाद फरमाया लोगों तुम्हें साअ़द की इस बात पर ताअ़ज्जुब आता है हालाँकि मैं उन से बहुत ज़्यादा ग़ैरत वाला हूँ और अल्लाह तआला मुझ से ज़्यादा ग़ैरत वाला है।_
📗 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 137, सफा नं 104,]* 📗
○✧➤ _क्या आप गंवारा करेंगे। कि आप की बीवी के साथ आप के अलावा भी कोई और मर्द सोहबत करे । यकीनन अगर आप में ग़ैरत का जरा सा भी जर्रा मौजूद है तो आप हरगिज़ येह गंवारा नही करेंगे। फिर भला बताईये आप कैसे गंवारा कर लेते है! कि आप की बीवी के साथ शैतान मरदूद भी सोहबत करे ! लिहाजा इस मुसीबत से बचने के लिए जब भी सोहबत करे तो याद करके येह दुआ ज़रूर पढ़ लिया करे।_
○✧➤ _गालिबन आज कल ज़्यादा तर इस्लामी भाई ऐसे होंगे जो सोहबत के वक्त़ दुआ़ नहीं पढ़ते । शायद यही वजह है कि औलादें बे ग़ैरत, ना फ़रमान, और दीन से दूर नज़र आ रही है। हमारा और आप का रोज़ मर्रा का मुशाहिदा है कि मसलन औलाद से बाप कहता है बुजुर्गों की मज़ारात पर हाजिरहोना चाहिए बेटा बुजुर्गों की मज़ारों पे जाने को ज़िना और कत्ल कर देने से ज़्यादा बुरा समझता है। बाप का अ़कीदाह है कि रसूलुल्लाह ﷺ आक़ा व मौला है, बेटा रसूले अकरम को अपना बड़ा भाई कहता हुआ नज़र आ रहा है। ग़र्ज़ के दुनियावी मामला हो या दीनी, औलाद अपने बाप से बाग़ी नज़र आती है अल्लाह तआला मुसलमानों को तौफ़ीक़ दे।_
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*⚘इन्जा़ल(मनी निकलते वक्त़)की दुआ़⚘*
○✧➤ _जिस वक़्त इन्ज़ाल हो यानी मर्द की (मनी धातु वीर्य) उस के आले (ऊज़ू-ए-तनासुल) से निकल कर और की शर्मगाह में दाखिल होने लगे उस वक्त़ दिल ही दिल में येह दुआ़ पढ़ें_
⚘○✧ اللَّهُمَّ لَا تَجْعَلْ لِلشَّيْطَانِ فِيمَا رَزَقْتَنِى نَصِيبًا
*🏻 तर्जुमा➧*_अए अल्लाह शैतान के लिए हिस्सा न बना उस में जो (औलाद) तू हमें अ़ता करें।_
📕 *[हिस्ने हसीन, सफा नं 165, फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 161,]* 📕
○✧➤ _इस दुआ़ की तअ़लीम देना इस बात की शहादत है कि इस्लाम एक मुकम्मल दीन है। और ज़िन्दगी के हर मोड़ पर अपना हुक़्म नाफ़िज़ करता है ताकि मुसलमान किसी भी मामले में किसी दूसरे मज़हब का मोहताज़ न रहे और मुसलमान हर हाल में यादें इलाही से गा़फ़िल न हो कर यादें इलाही मे मसरूफ़ रहे साथ ही येह बात भी याद रखना ज़रूरी है। कि आने वाली औलाद के लिए अल्लाह तआला की बारगा़ह में दुआ़ तो कीजिए के अल्लाह तआला उसे शैतान से महफ़ूज रखे लेकिन औलाद जब पैदा हो जाए और उसे शैतानी कामों से न रोके, उसे बुरी बातों से मना न रोके, और अच्छी बातों का हुक़्म न दे, तो बड़ी अ़जीब व ताअ़ज्जुब की बात होगी। इसलिए आगाह हो जाईये! के येह दुआ़ हमें आइन्दा के लिए भी अ़मल करने की दावते फिक्र देती है।_
○✧➤ _इन्ज़ाल के फौरन बाद अलग न हो_
*🏻 हदीस➧* _सैय्यदना इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] रिवायत करते है। कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _मर्द में येह कमजोरी की निशानी है कि जब सोहबत का इरादा हो तो बोस व किनार (चुम्मन kiss) से पहले बीवी से सोहबत करने लगे और जब उस की मनी (धातु वीर्य) निकलने लगे तो सब्र ना करे और फौरन अलग हो जाए कि औरत की हाजत पूरी नही होती_
📗 *[कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 266,]* 📗
○✧➤ _आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] फ़रमाते है_
○✧➤ _इन्ज़ाल होने के बाद फौरन औरत से जुदा न हो यहाँ तक कि औरत की भी हाजत पूरी हो हदीस में इस का भी हुक़्म है? अल्लाह अज़्ज़ व जल्ला की बेशुमार दुरूदे उन पर जिन्हो ने हम को हर बाब में तअ़लीमे खै़र दी और हमारी दुनियावी और दीनी हाज़तो की कश्ती को बगै़र किसी दूसरे के सहारे न छोड़ा।_
📙 *[फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 161,]* 📙
○✧➤ _चुनान्चे मर्द की मनी (धातु वीर्य) निकल जाए तो भी फौरन औरत से अलग न हो जाए बल्कि इसी तरह कुछ देर और ठहरा रहे ताकि औरत का भी मतलब पूरा हो जाए क्योंकि कुछ औरतों को देर में इन्ज़ाल होता है।_
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*⚘⇩ सोहबत के बाद जिस्म की सफ़ाई ⇩⚘*
○✧➤ _सोहबत के बाद मर्द और औरत अलग हो जाए फिर किसी साफ़ कपड़े से पहले दोनों अपनी अपनी शर्मगाह को साफ़ करे ताकि बिस्तर पर गन्दगी लगने न पाए। शर्मगाह को साफ़ कर लेने के बाद दोनो पेशाब कर ले इस के बहुत से फायदे है जैसे_
*🏻 1⃣➧*_अगर मर्द के ऊज़ू-ए-तनासुल में या औरत की शर्मगाह में कुछ मनी बाकी रह गयी हो तो वोह पेशाब के ज़रिए निकल जाती है और अगर थोड़ी सी मनी ऊज़ू-ए-तनासुल में या औरत की शर्मगाह में ऊपर रह जाए तो बाद में पेशाब मे जलन व खुजली की बीमारी का अंदेशा है।_
*🏻 2⃣➧*_पेशाब जरासीमकश होता है (पानी पेशाब Germs को ख़त्म करने वाला होता है) इसलिए पेशाब के वहाँ से गुजरने से वहां की सारी गन्दगी ख़त्म हो जाती है उस जगह के जरासीनम (Germs कीटाणु) ख़त्म हो जाते है और शर्मगाह की नली साफ़ हो जाती है।_
○✧➤ _ऐसे बहुत से फायदे हैं जो यहाँ बयान करना मुम्क़िन नही, पेशाब कर लेने के बाद शर्मगाह और उस के आस पास के हिस्से को भी अच्छी तरह से धो लें इस से बदन तंदुरूस्त रहता है और खुजली की बीमारी से बचाव हो जाता है।_
○✧➤ _लेकिन याद रखिये सोहबत करने के फौरन बाद ठन्ड़े पानी से न धोए, इसलिए कि इस से बुख़ार (Fever) होने का ख़तरा होता है। इसलिए कि सोहबत के बाद जिस्म का दर्जा-ए-हरारत (temperature) बढ़ जाता है जिस्म में गर्मी आ जाती है अगर गर्म जिस्म पर ठन्डा पानी डाला जाए तो बुख़ार जल्द होने का ख़तरा है।_
○✧➤ _लिहाजा सोहबत करने के बाद तकरीबन पाँच, दस मिनट बैठ जाए या लेट जाए अगर जल्दी हो तो हल्के गर्म, गुन गुने पानी से शर्मगाह धोने में कोई नुकसान नही ।_
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*⚘⇩ सोहबत के चन्द और आदाब ⇩⚘*
○✧➤ _जैसे के पहले ही बयान कर चुके है कि मज़हबे इस्लाम हमारी हर जगह हर हाल में रहनुमाई करता हुआ नज़र आता है यहाँ तक कि मियाँ बीवी के आपसी तअ़ल्लुक़ात में भी एक बेहतरीन दोस्त व रहनुमा बन कर उभरता है और हमारी भरपूर रहनुमाई करता है।_
○✧➤ _यहाँ हम श़रई रोशनी में सोहबत (संम्भोग) करने के चन्द आदाब बयान कर रहे है जिसे याद रखना और उस पर अ़मल करना हर शादी शुदा मुसलमान मर्द व औरत पर ज़रूरी है।_
*🏻 सोहबत तन्हाई में करें➧* _आज कल सड़कों पर, सिनेमा हाल में और बग़िचो में खुले आम कुछ पढ़े लिखे कहलाने वाले माड्रन (Modern) इन्सान, इन्सानी शक़्ल में जानवर नज़र आते है जो सड़को और बग़ीचों में ही वोह सब कुछ कर लेते है जो उन्हें नही करना चाहिये। लेकिन अल्हमदुलिल्लाह हम मुसलमान है और अशरफुल मख़लूकात है। इसलिए हम पर ज़रूरी है कि हम इस्लाम का हुक़्म माने और ग़ैरों की नक़्ल करने से बचे वरना एक जानवर और हम में क्या फ़र्क़ रह जाएगा लिहाज़ा याद रखिये सोहबत हमेशा तन्हाई में ही करे और ऐसी जगह करे जहाँ किसी के आने का कोई ख़तरा न हो। और सोहबत के वक्त़ कमरे में अँधेरा कर दे रोशनी मे हरगिज़ सोहबत न करे।_
*🏻 मसअ़ला➧* _जहाँ कुरआ़ने करीम की कोई आयते करीमा, कागज़ या किसी चीज़ पर लिखी हुई हो अगर्चे ऊपर शीशा (काँच) हो जब तक उस पर ग़िलाफ़ न डाल लें वहाँ सोहबत करना या बरहेना (नंगा) होना बेअदबी है।_
📕 *[फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 258,]* 📕
○✧➤ _हुज़ूर ग़ौसे आ़ज़म़ [रदिअल्लाहो अन्हो] की "गुन्यतुत्तालिबीन" में और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदिअल्लाहो अन्हो] की "मलफ़ूज़ात"में है_
○✧➤ _जो बच्चा समझदार है और दूसरों के सामने बयान कर सकता है उस के सामने सोहबत करना मक़रूह (यानी शरीअ़त में न पसंद, व न जाइज़) है"_
*🏻 मसअ़ला➧* _किसी की दो बीवीयां हो तो एक बीवी से दूसरी बीवी के सामने सोहबत करना जाइज़ नही। मर्द को अपनी बीवी से पर्दा नही तो एक बीवी को दूसरी बीवी से तो पर्दा फ़र्ज़ है और शर्म व हया ज़रूरी है"_
📙 *[फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 207,]* 📙
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*⚘⇩ ◥◣ सोहबत से पहले वुज़ू ◢◤ ⇩⚘*
○✧➤ _सोहबत करने से पहले वुज़ू कर लेना चाहिये इस के बहुत से फ़ायदे है जिन में से चन्द हम यहाँ बयान करते है।_
*🏻 1⃣➧*_अव्वल तो वुज़ू करने से सवाब मिलता है।_
*🏻 2⃣➧*_सोहबत से पहले वुज़ू करने की हिक्मत एक येह भी है के मर्द और औरत दोनो मे येह एहसास पैदा हो कि सोहबत हम सिर्फ़ अपनी हवस मिटाने या मज़ा लेने के लिए नही कर रहे हैं। बल्कि नेक सालेह औलाद पैदा करना मक़सद है और किसी भी वक्त़ यादें इलाही से हमें गा़फ़िल नही होना चाहिए।_
*🏻 3⃣➧* _मर्द बाहर के कामों से और औरत घर के कामों की वजह से दिन भर के थके मान्दे होते हैं। थका जिस्म दूसरे को फ़ायदा नही पहुँचा सकता लिहाजा वुज़ू कर लेने से चुस्ती और क़ुव्वत (ताक़त) में इज़ाफ़ा होता है।_
*🏻 4⃣➧* _दिन भर के काम की वजह से चेहरे पर गन्दगी और जरासीम (किटाणु) मौजूद रहते है जब मर्द व औरत सोहबत करते हैं और बोस व किनार (चुम्मन) करते है। तो येह जरासीम मुँह में जा सकते है जिस से आगे बीमारियों के पैदा होने का ख़तरा होता है। ऐसे सैकड़ों फ़ायदे है जो वुज़ू कर लेने से हासिल होते हैं।_
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*⚘⇩ नशे की हालत में सोहबत ⇩⚘*
○✧➤ _शरीअ़ते इस्लामी मे हर हराम है और शराब को तो तमाम बुराइयों की माँ बताया गया है। दो हदीसे पाक का हासिल है के_
*🏻 हदीस➧* _जिस ने शराब पी गोया उस ने अपनी माँ के साथ जिना (बलात्कार) किया" ।_
📕 *[ब हवाला फ़तावा-ए-मुस्तफ़ाविया, जिल्द नं 1, सफा नं 76,]* 📕
*🏻 हदीस➧* _रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _शराब पीते वक्त़ शराबी का ईमान ठीक नही रहता"।_
📗 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 614-]* 📗
*🏻 हदीस➧*_और फरमाते है आक़ा ﷺ_
○✧➤ _शराबी अगर बगै़र तौबा मरे तो अल्लाह तआला के हुज़ूर इस तरह से हाज़िर होगा जैसे कोई बुत पूज़ने वाला"_
📕 *[अहमद, इब्ने हब्बान, बहवाला फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 10, सफा नं 47]*
*🏻 हदीस➧*_हज़रत अबूह़ुरैरा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _जो ज़िना करे या शराब पीये अल्लाह तआला उससे ईमान खींच लेता है जैसे आदमी अपने सर से कुर्ता खींच ले।_
📕 *[हाक़िम शरीफ, बहवाला फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 10, सफा नं 47,]* 📕
*🏻 हदीस➧* _हज़रत अबू उमामा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। के रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _अल्लाह ताआ़ला फरमाता है क़सम है मेरी इज़्ज़त की, जो मेरा कोई बन्दा शराब का एक घूँट पीयेगा मै उस को उतना ही पीप पिलाऊंगा_
📘 *[इमाम अहमद, बहवाला बहारे शरीअ़त, जिल्द नं 1, हिस्सा 9, सफा नं 52,]*📘
○✧➤ _हक़ीमों और डॉक्टरों ने कहा है नशे की हालत में सोहबत करने से रेहुमेटीक पैन (Rehumetic Pain) नामी बीमारी पैदा हो जाती है और औलाद अपाहिज़ (लंगड़ी लूली) पैदा होती है_
○✧➤ अल्लाह तआला मुसलमानों को शराब और दूसरे क़िस्म के नशे से नफरत अता फरमाये
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*⚘⇩ सोहबत खड़े खड़े न करे ⇩⚘*
○✧➤ _सोहबत खड़े खड़े न करे कि येह जानवरों का तरीक़ा है और न ही बैठे बैठे कि इससे मर्द औरत दोनों के लिए नुकसान है। इस तरीक़े से सोहबत करने से बदन और ऊज़ू-ए-तनासुल (मर्द का सेक्स पार्ट) जड़ से कमज़ोर हो जाता है और औलाद कमजोर अपंग (हाथ पैर से अपाहिज़) पैदा होती है । बाज उलमा-ए-दीन ने फरमाया है कि औलाद बददिमाग़ और बेवकूफ़ होती है।_
○✧➤ _हकीमों ने कहा है कि खड़े हो कर सोहबत करने से राशा (बदन हिलने) की बीमारी हो जाती है।_
(अल्लाह की पनाह)
○✧➤ _सोहबत करने का सही तरीक़ा येह है कि बिस्तर पर लेटे लेटे करे और औरत नीचे हो मर्द ऊपर हो जैसा कि कुरआने पाक़ को इस आयते करीमा में भी इरशाद किया गया है_
*🏻 कुरआन➧* _तर्जुमा- फिर जब मर्द उस पर छाया उसे एक हल्का सा पेट रह गया_
📕 *[तर्जुमा :- कन्जुल इमान, पारा 9, सूरए, आराफ़, रूकू 14, आयत नं 189,]* 📕
○✧➤ _इस आयते करीमा से हमें येह सबक मिलता है कि सोहबत के वक्त़ औरत चित लेटे और मर्द उस पर पट (उल्टा) लेटे कि इस तरह सेे मर्द के जिस्म से औरत का जिस्म ढ़क जायेगा ।और देखा जाए तो इस तरीक़े में ज़्यादा आसानी है और मर्द की मनी आसानी से निकल कर औरत की शर्मगाह (योनी) में दाख़िल होती है और हमल जल्द करार पाता है।_
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*⚘⇩ सोहबत के दौरान शर्मगाह देखना ⇩⚘*
*🏻 मसअ़ला➧* _मियाँ बीवी का सोहबत के वक्त़ एक दूसरे की शर्मगाह को मस करना बेशक जाइज़ है बल्कि नेक नियत से हो तो मुस्तहब व सवाब है।_
📕 *[फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 570, और जिल्द नं 9, सफा नं 72,]* 📕
○✧➤ _लेकिन सोहबत के वक्त़ मर्द व औरत ने एक दूसरे की शर्मगाह नही देखना चाहिये कि इसके बहुत से नुक़सानात है_
*🏻 हदीस➧* _उम्मुलमोमेनीन हज़रत आएशा सिद्दीक़ा [रदिअल्लाहो तआला अन्हा] फरमाती है कि_
○✧➤ _हुज़ूर ﷺ की वफ़ात हो गई लेकिन न कभी आप ने मेरा सत्र (शर्मगाह को) न देखा और न मैं ने आप का सत्र (शर्मगाह को) देखा।_
📗 *[इब्ने माज़ा शरीफ़, जिल्द नं 1, बाब नं 616, हदीस नं 1991, सफा नं 538,]* 📗
○✧➤ _सोहबत के आदाब मे से एक येह भी है के सोहबत के दौरान मर्द औरत की शर्मगाह की तरफ न देखे.।_
*🏻 हदीस➧* _हज़रत इब्ने अ़दी [रदिअल्लाहो अन्हो] हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत करते है हज़रते इब्ने अब्बास ने फरमाया_
○✧➤ _तुम मे से कोई अपनी औरत से सोहबत करे तो उस की शर्मगाह को न देखे कि इस से आँखों की बीनाई (रौशनी) ख़त्म हो जाती है(यानी आदमी आँखों से अंधा हो जाता है)_
📙 *[हाशिया, मुस्नदे इमाम आ़ज़म, सफा नं 225,]* 📙
○✧➤ _आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] नक़्ल फरमाते है_
○✧➤ _सोहबत के वक्त़ शर्मगाह देखने से हदीस में मुमानियत फ़रमायी और फ़रमाया वोह अंधे होने का सबब होता है। ओलमा ने फरमाया है कि इस से अंधे होने का सबब या वोह औलाद अंधी हो, जो उस सोहबत से पैदा हो, या माज़अल्लाह दिल का अंधा होना के सब से बदतर है।_
📗 *[फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 570,]* 📗
○✧➤ _क़ानूने शरीअ़त में है कि_
○✧➤ _औरत की शर्मगाह की तरफ नज़र न करें क्योंकि इस से निसयान (भूलने की बीमारी) पैदा होती है और नज़र भी कमज़ोर होती है"।_
📕 *[कानूने शरीअ़त, 2, सफा नं 202,]* 📕
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*⚘⇩ सोहबत के दौरान बात करना ⇩⚘*
○✧➤ _सोहबत के दौरान बात चीत न करे ख़ामूशी से सोहबत करे, इमामे अहलेसुन्नत आ़ला हज़रत [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] इरशाद फरमाते है_
○✧➤ _सोहबत के दौरान बात चीत करना मक़रूह है बल्कि बच्चे के गूंगे (मूक्के,बेजुबान) व तोतले होने का ख़तरा है"।_
📕 *[फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 76,]* 📕
*⚘⇩ पिस्तान (स्तन,Breast) चूमना ⇩⚘*
○✧➤ _सोहबत करते वक्त़ औरत के पिस्तान (स्तन) चूमने या चूसने में कोई हर्ज नही, लेकिन ख़्याल रहे कि औरत का दूध हलक मे न जाएे। अगर हल्क में दूध आ गया तो फौरन थूक दे जान बूझकर दूध पीना ना जाइज़ व हराम है।_
○✧➤ _फ़तावा-ए-रज़वीया में हज़रत इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खाँ [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] नक़्ल फरमाते है के_
○✧➤ _सोहबत के वक्त़ अपनी बीवी के पिस्तान मुँह में लेना जाइज़ है बल्कि नेक नियत से हो तो सवाल की उम्मीद है जैसे कि हमारे इमामे आ़ज़म [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] ने मियाँ बीवी का एक दूसरे की शर्मगाह को मस करने के बारे मे फरमाया यानी में उम्मीद करता हूँ कि वोह दोनों उस पर अज्र (सवाब) दिये जाएंगे" हाँ अगर औरत दूध वाली हो तो ऐैसा चूसना न चाहिए जिससे दूध हलक मे चला जाए और अगर मुँह में आ जाए और हलक में न जाने दे तो हर्ज नही कि औरत का दूध हराम है नजिस नही, अलबत्ता रोज़े में इस ख़ास सूरत से परहेज करना चाहिए"।_
📗 *[फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, निस्फ़ आख़िर, सफा नं 72,]* 📗
○✧➤ _कुछ लोगों में येह गल़त फ़हमी है कि सोहबत करते हुए अगर औरत का दूध मर्द के मुँह में चला गया तो औरत मर्द पर हराम हो जाती है और खुद ब खुद तलाक़ (Divorce) हो जाती है, येह बात ग़लत है इस की शरीअ़त में कोई हैसियत नही ।_
○✧➤ _कानूने शरीअ़त में है कि मर्द ने अपनी औरत की छाती (स्तन) चूसा तो निकाह में कोई ख़राबी न आई चाहे दूध मुँह में आ गया हो बल्कि हलक से उतर गया हो तब भी निकाह न टूटेगा, लेकिन हलक में जान बूझकर लेना जाइज़ नही'_
📕 *[कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 52,]*📕
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*⚘⇩ सोहबत के दौरान किसी और का ख़्याल ⇩⚘*
○✧➤ _सोहबत के दौरान मर्द किसी दूसरी औरत का और औरत किसी दूसरे मर्द का ख़्याल न लाऐ। यानी ऐसा न हो कि मर्द सोहबत तो करे अपनी बीवी से तसव्वर (कल्पना Imagination) करे कि किसी और औरत से सोहबत कर रहा हूँ। और इसी तरह औरत किसी और मर्द का तसव्वर करे तो येह सख़्त गुनाह है।_
○✧➤ _हुज़ूर पुरनूर सैय्यदना ग़ौसे आ़ज़म शेख अब्दुल क़ादिर ज़ीलानी [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] अपनी मशहूर किताब "गुन्यतुत्तालिबीन" में नक़्ल फरमाते है कि_
○✧➤ _सोहबत के दौरान मर्द अपनी बीवी के अलावा किसी दूसरी औरत का ख़्याल लाऐ तो येह सख़्त गुनाह है और एक क़िस्म का (छोटा) जिना (बलात्कार) है"_
📕 *[गुन्यतुत्तालिबीन,]* 📕
*⚘ ⇩ सोहबत के बाद पानी न पीये ⇩⚘*
○✧➤ _जैसा कि हम पहले ही बयान कर चुके है कि सोहबत करने के बाद जिस्म का दर्जा-ए-हरारत (temperature) बढ़ जाता है इस लिए उस वक्त़ प्यास भी महसूस होती है।_
○✧➤ _लेकिन ख़बरदार ! सोहबत करने के फ़ौरन बाद भूल कर भी पानी न पीये। हकीमों ने लिखा है कि_
○✧➤ _सोहबत करने के फ़ौरन बाद पानी नही पीना चाहिये क्योंकि इस से दमा (साँस) की बीमारी हो जाती है।_ (मौला ताला महफ़ूज रखे)
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*⚘⇩ दोबारा सोहबत करना हो तो ⇩⚘*
○✧➤ _एक रात मे एक मरतबा सोहबत करने के बाद उसी रात में दूसरी मरतबा सोहबत करने का इरादा हो तो मर्द और औरत दोनो वुज़ू करले कि येह फ़ायदेमन्द है और अगर सोहबत न भी करना हो तो वुज़ू करके सो जाए।_
*🏻 हदीस➧*_हज़रत उमर व अबू सईद खुदरी [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है कि नबी-ए-करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _जब तुम मे से कोई अपनी बीवी से एक बार सोहबत करने के बाद दोबारा सोहबत का इरादा करे तो उसे वुज़ू करना चाहिए।_
📕 *[तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 139, इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, सफा नं 188,]* 📕
○✧➤ _इमाम ग़ज़ाली [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] फरमाते है_
○✧➤ _एक बार सोहबत कर चुके, और दोबारा (सोहबत) का इरादा हो तो चाहिए कि अपना बदन धो डालें (वुज़ू कर ले) और अगर ना पाक़ आदमी कोई चीज़ खाना चाहे तो चाहिए कि वुज़ू कर ले फिर खाये और सोना चाहे तो भी वुज़ू कर के सोए अगर्चे (वुज़ू करने के बाद भी) ना पाक़ ही रहेगा (जब तक ग़ुस्ल न कर ले) लेकिन सुन्नत यही है"।_
📗 *[कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 167,]* 📗
*⚘⇩ वुज़ू करके सोए ⇩⚘*
○✧➤ _सोहबत करने के बाद अगर सोने का इरादा हो तो मर्द और औरत दोनो पहले अपनी शर्मगाह को धो ले और वुज़ू करले फिर उस के बाद सो जाए।_
*🏻 हदीस➧* _हज़रत आएशा सिद्दीक़ा [रदिअल्लाहो तआला अन्हा] फरमाती है_
○✧➤ _रसूलुल्लाह ﷺ हालते जनाबत मे (सोहबत के बाद) सोने का इरादा फ़रमाते तो अपनी शर्मगाह धो कर नमाज़ जैसा वुज़ू कर लेते थे"_ (फिर आप सो जाते)
📕 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 194, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 129,]* 📕
*⚘⇩ बीमार औरत से सोहबत ⇩⚘*
○✧➤ _औरत अगर किसी दुख, परेशानी व बीमारी में मुबतेला हो तो उस की सेहत का ख़्याल किये बगै़र हरगिज़ सोहबत न करे, वैसे भी इन्सानियत का तकाज़ा भी येह है कि दुखी या बीमार इन्सान को और तकलीफ़ न दी जाए बल्कि उसे आराम और सुकून दे।_
*⚘⇩ सोहबत मज़े के लिए न हो ⇩⚘*
○✧➤ _हज़रत मौला अली मुश्किलकुशा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] ने अपनी वसीयत (Will) मे और हज़रत इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] ने अपनी किताब "कीम्या-ए-सआ़दत"में नक़्ल किया है कि_
○✧➤ _जब कभी सोहबत करे तो नियत सिर्फ़ मज़ा लेने या शहवत (Sex हवस) की आग बुझाने की न हो बल्कि नियत येह रखे कि जिना से बचूँगा और औलाद नेक होगी। अगर इस नियत से सोहबत करेगा तो सवाब मिलेगा।_
📙 *[वसाया शरीफ, कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 255,]* 📙
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*⚘⇩ ज़्यादा सोहबत नुकसानदेह ⇩⚘*
○✧➤ _बीवी से जिन्दगी मे एक मरतबा सोहबत करना कज़ाअन वाज़िब है। और दूसरा येह है कि औरत से सोहबत कभी कभी करता रहे इस के लिए कोई हद (तअ़दाद मुक़र्रर, Fix) नही मगर इतना तो हो कि औरत की नज़र औरों की तरफ़ न उठे और इतना ज़्यादा भी जाइज़ नही कि औरत को नुक़सान पहुँचे।_
📕 *[कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 2, सफा नं 63,]* 📕
○✧➤ _हद से ज़्यादा सोहबत करने से मर्द और औरत दोनो के लिए नुक़सान है इससे ख़ास तौर पर मर्द की सेहत चौपट हो जाती है। सेहत की कमजोरी की वजह से जब मर्द औरत की पहले की तरह ख्वाहिश पूरी करने में नाकाम होता है (जिस की वोह पहले से आदी हो चुकी होती है) और औरत को आदत के मुताबिक़ पूरी तसल्ली नही होती तो वोह फिर पड़ोस और बाहर वोह चीज़ तलाश करने की कोशिश करती है और फिर एक नई । बुराई का जन्म होता है इसलिए ज़रूरी है कि क़ुदरत के इस अनमोल ख़ज़ाने का इस्तेमाल अहतियात से किया जाए।_
○✧➤ _हकीमों ने लिखा है कि ज़्यादा से ज़्यादा हफ्ते में दो मरतबा सोहबत की जाए। हकीम बुक़रात (जो एक बहुत बड़ा हकीम था और हज़रत ईसा अलेहिस्सलाम से 450 साल पहले गुजरा है) उससे किसी ने पूछा "सोहबत हफ़्ते में कितनी मरतबा करनी चाहिये?? उसने जवाब दिया "हफ़्ते में सिर्फ एक मरतबा" पूछने वाले ने फिर पूछा एक मरतबा ही क्यों ?? बुक़रात ने झल्ला के जवाब दिया "तुम्हारी ज़िन्दगी है तुम जानो मुझसे क्या पूछते हो (गोया येह इशारा था ज़्यादा सोहबत करोगे तो कमज़ोर होगे जिन्दगी ख़तरे में पड़ सकती है)_
○✧➤ _फक़ीहे अबूललैस समरक़न्दी [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] रिवायत करते है। कि हज़रत मौला अ़ली [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _जो शख़्स इस बात का ख़्वाहिशमन्द हो कि उसकी सेहत अच्छी हो और ज़्यादा दिनो तक क़ायम रहे तो उसे चाहिए कि वोह कम खाया करे और औरत से कम सोहबत किया करे ।_
📕 *[बुस्तान शरीफ,]* 📕
○✧➤ _आज के इस फ़ैशन और नंगाई के दौर में ज़ज़्बात बहुत जल्द बे क़ाबू हो जाते है इसलिए ध्यान रखे कि बीवी की अगर ख़्वाहिश हो तो इन्कार भी न करे वरना ज़हन भटकने का अंदेशा है वैसे तो आ़म तौर पर4 एक सेहतमन्द औरत जिन्सी ताक़त में एक सेहतमन्द मर्द का मुक़ाबला नही कर सकती है।_
○✧➤ _कुछ लोग शादी के बाद शुरू शुरू में औरत पर अपनी क़ुव्वत और मर्दानगी का रौब डालने के लिए दवाओं का या किसी इस्पिरे या फिर तेल वगै़रा का इस्तेमाल करते है जिससे औरत को और उन्हें खूब मज़ा आता है । लेकिन बाद में उस का उल्टा असर होता है। औरत उस चीज़ की आदी हो जाती है फिर बाद में अगर वोह दवा या इस्पिरे वगैरा का इस्तेमाल न किया जाए तो औरत की तसल्ली नही होती। और वोह अपनी तसल्ली के लिए मर्द को उस का इस्तेमाल करने पर मजबूर करती है। दवाओं के मुसलसल इस्तेमाल से मर्द की सेहत चौपट हो जाती है। वोह दवाओं का आदी हो कर जल्द ही तरह तरह की बीमारियों का शिकार बन जाता है। मर्द अगर येह दवाएँ इस्तेमाल न करे तो औरत को पहले की तरह तसल्ली नही होती जिस की वोह आदी बन चुकी है ऐसी हालत मे औरत के बदचलन होने का भी ख़तरा होता है या फिर वोह दिमाग़ी मरीज़ बन जाती है। लिहाजा क़ुव्वते मर्दाना को बढ़ाने के लिए दवाओं, इस्पिरे, और तेल वगै़रा के बजाए ताक़तवर ग़िज़ाओं का इस्तेमाल करे । ग़िज़ा के जरिए बढ़ाई हुई ताक़त ख़त्म नही होती और न ही इस से किसी तरह का नुक़सान होता है।_
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*⚘⇩ सोहबत करने का वक्त़ ⇩⚘*
○✧➤ _शरीअ़ते इस्लामी मे सोहबत करने के लिए कोई ख़ास वक्त़ नही बताया गया है। शरीअ़त मे दिन और रात के हर हिस्से में सोहबत करना जाइज़ है, लेकिन बुजुर्गों ने कुछ ऐसे अवक़ात (वक्त़) बताए है जिन में सोहबत करना सेहत के लिए फ़ायदेमन्द है।_
*🏻 हदीस➧*_हज़रत इमाम ग़ज़ाली ने अपनी मशहूर किताब "इहयाउल ऊलूम" मे उम्मुलमोमेनीन हज़रत आएशा [रदिअल्लाहो तआला अन्हा] से रिवायत किया है कि फरमाती है_
○✧➤ _रसूले करीम ﷺ रात के आख़िरी हिस्से में (तकरीबन रात 2 : 30 बजे से लेकर फ़जर की अ़जान से पहले) मे जब वित्र की नमाज़ पढ़ चुके होते तो अगर आप को अपनी बीवी की हाज़त होती (यानी बीवी से सोहबत का इरादा होता) तो उनसे सोहबत फ़रमाते ।_
📕 *[इहयाउल ऊलूम,]* 📕
○✧➤ _हदीसों मे है कि सरकार ﷺ ईशा की नमाज़ पढ़ते और सिर्फ़ ईशा की वित्र नही पढ़ते फिर आप आराम फ़रमाते थे फिर कुछ घंटों के बाद आप उठ बैठते और "तहज्जुद" की नमाज़ पढ़ते और कुछ नफ़िल नमाज़े अदा और आखिर में ईशा की वित्र पढ़ते उस के बाद अगर आप को अपनी किसी बीवी की हाज़त होती तो उन से सोहबत फ़रमाते या अगर हाज़त न होती तो आप आराम फ़रमाते यहाँ तक कि हज़रत बिलाल [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] नमाज़े फ़जर के लिए अ़जान के वक्त़ आप को जगा देते।_
○✧➤ _इस हदीस के तहेत इमाम ग़ज़ाली फ़रमाते है रात के पहले हिस्से (तकरीबन 9 से 12 बजे के बीच) मे सोहबत करना मक़रूह है कि सोहबत करने के बाद पूरी रात न पाक़ी की हालत मे सोना पड़ेगा।_
📕 *[इहयाउल ऊलूम]* 📕
○✧➤ _फक़ीहे अबूललैस [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] अपनी मशहूर किताब "बुस्तान शरीफ" में नक़्ल फरमाते है कि_
○✧➤ _सोहबत के लिए सबसे बेहतर (अच्छा) वक्त़ रात का आख़िरी हिस्सा है (यानी तकरीबन 2 : 30 बजे से 4 : 30 बजे के बीच) क्योंकि रात के पहले हिस्से में पेट ग़िज़ा (खाने) से भरा होता है और भरे पेट सोहबत करने से सेहत को नुक़सान है जब कि रात के आख़िरी हिस्से में सोहबत करने से फ़ायदा है (जैसे आदमी दिन भर का थका हुआ होता है और रात के पहले और दूसरे हिस्से में उस की नींद हो जाती है जिस की वजह से उस की दिनभर की थकावट दूर हो जाती है और वोह ताज़ा दम हो जाता है और इसके अलावा दूसरा एक येह भी फ़ायदा है कि) रात के आख़िरी हिस्से तक खाना अच्छी तरह हज़म हो जाता है।_
📕 *[बुस्तान शरीफ,]* 📕
*🏻 नोट➧*_येह तमाम बातें हिक़मत के मुताबिक़ है शरीअ़त मे सोहबत करने का कोई ख़ास वक्त़ नही बताया गया है शरीअ़त मे हर वक्त़ सोहबत की इज़ाज़त है। सरकारे मदीना ﷺ अपनी बीवीयों से दिन और रात के दिगर वक्त़ो में सोहबत करना साब़ित है। (वल्लाहो आ़लम)_
*⚘⇩ इन रातों में सोहबत न करें ⇩⚘*
○✧➤ _हज़रत इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली नक़्ल फरमाते है कि अमीरूलमो'मिनीन हज़रत अली और हज़रत अबूह़ुरैरा और हज़रत अमीर मआ़विया [रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा] ने रिवायत किया है कि_
○✧➤ _(हर महीने की) चाँद रात, और चाँद की पन्द्रहवी शब (रात) और चाँद के महीने की आख़िरी रात सोहबत करना मक़रूह है कि इन रातों मे सोहबत करने के वक्त़ शैतान मौजूद होते है (वल्लाहो आ़लम)_
📗 *[कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 266,]* 📗
*🏻 नोट➧*_तहक़ीक़ येह है कि इन रातों में सोहबत करना जाइज़ है लेकिन अहतियात इसी मे है कि सोहबत करने से बचे। (वल्लाहो आ़लम)_
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*⚘⇩ हैज़ में सोहबत करने से नुकसान ⇩⚘*
○✧➤ _हकीमों ने लिखा है कि औरत से हैज़ की हालत में सोहबत करने से मर्द और औरत को जुज़ाम (कोड़, Score) की बीमारी हो जाती है। और कुछ हकीमों ने कहा है कि हैज़ की हालत में सोहबत किया और अगर हमल ठहर गया तो औलाद नाकिस (अधूरी, Un complite) या फिर कोढ़ी पैदा होगी।_
○✧➤ _हालते हैज़ मे सोहबत करने से औरत को बहुत तकलीफ़ होती है क्योंकि औरत का उस जगह से लगातार गन्दा खून निकलता रहता है जिस की वजह से वोह जगह नर्म और नाजुक़ हो जाती है और जब मर्द अपना आला (ऊज़ू-ए-तनासुल, sex-part) उसमें दाख़िल करता है तो वहां ज़ख़्म बन जाता है जिस से तकलीफ़ होती है और ज़ख़्म में गर्मी की वजह से उसमें पीप भर जाता है और फिर बाद में लेने के देने पड़ जाते हैं। जरा खुद ही सोंचिंए उस घर में इन्सान क्या रह सकता है जहां गन्दगी और बदबू हो। फिर भला उस मुक़ाम से उसे कैसे फ़ायदा हो सकता है जहां गन्दगी का बसेरा है। हाँ उस मुक़ाम से उसी वक्त़ फ़ायदा हासिल किया जा सकता है जब वोह साफ़ व पाक़ हो। लिहाजा चन्द दिनो का सब्र बेहतर है इससे कि सब्र न करके जिन्दगी भर पछताया जाए।_
*🏻 मसअ़ला➧* _औरत हैज़ की हालत मे है और मर्द को शहवत (सहवास, Sex) का ज़ोर है, और डर येह है कि सोहबत न किया तो किसी से जिना (बलात्कार) कर बैठूंगा तो ऐसी हालत मे अपनी औरत के पेट पर अपने आले (ऊज़ू-ए-तनासुल, लिंग) को मस कर के इन्ज़ाल कर सकता है (यानी मनी निकाल सकता है) जो जाइज़ है लेकिन रान पर ना जाइज़ है कि हालते हैज़ मे नाफ़ (बोम्नी, The Nevel) के नीचे से घुटने तक अपनी औरत के बदन से सोहबत नही कर सकता।_
📗 *[फ़तावा-ए-अफ़रीक़ा, सफा नं 171,]* 📗
○✧➤ _याद रहे येह मसअ़ला ऐसे शख़्स के लिए है जिसे ज़िना हो जाने का पूरा यक़ीन हो तो वोह इस तरह से मनी निकाल कर सुकून हासिल कर सकता है। लेकिन सब्र करना और उन दिनों सोहबत से बचना ही अफ़जल है।_
📕 *[बहारे शरीअ़त, जिल्द नं 1 सफा नं 42,]* 📕
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*⚘⇩ हालते हैज़ में औरत अछूत क्यों ⇩⚘*
○✧➤ _कुछ लोग औरत को हालते हैज़ (माहवारी) में जब तक वोह पाक नही होती तब तक ऐेैसा ना पाक और अछूत समझ लेते है कि उस के हाथ का खाना उस के हाथ का छूवा पानी और खाना, वगै़रा खाने पीने से एतराज़ करते है यहाँ तक कि उस के साथ बैठना भी छोड़ देते है।_
○✧➤ _ऐसे लोगों के बारे में शहज़ाद-ए-आला हज़रत हुज़ूर मुफ़्ती-ए-आज़मे हिन्द [रहमतुल्लाह तआला अलैह] अपने फ़तवे में इरशाद फरमाते है कि_
○✧➤ _जो लोग ऐसा करते है वोह ना जाइज़ व गुनाह का काम करते है और मुशरेकीन, यहूद, आग की पूजा करने वाले क़ाफ़िरों की रस्मे मरदूद की पैरवी करते है। हैज़ की हालत मे सिर्फ़ शर्मगाह में सोहबत करना ना जाइज़ है बस इससे परहेज़ ज़रूरी है मुशरेकीन, व यहूद, और मजूस (आग की पूजा करने वाले क़ाफ़िरों) की तरह हैज़ वाली औरत को भंगिन (मेहतर, A Female Sweeper) से भी बदतर समझना बहुत ना पाक ख़्याल, निरा, जुल्म बहुत बड़ा वबाल है येह उन की मन घड़त है।_
📕 *[फ़तावा-ए-मुस्तफ़ाविया, जिल्द नं 3, सफा नं 13,]* 📕
*🏻 मसअ़ला➧* _हालते हैज़ मे सोहबत करना बहुत बड़ा गुनाह (हराम व ना जाइज़) है लेकिन औरत का बोसा (चुम्मन) ले सकते है। ख़बरदार बात चुम्मन (kiss) तक ही रहे उससे आगे (सोहबत तक) न पहुँच जाए। इसी तरह एक ही पलेट में साथ खाने पीने यहां तक कि उस का झूठा खाने पीने मे कोई हर्ज नही है। ग़र्ज़ कि औरत से वैसा ही सुलूक रखे जैसा आम दिनो मे रहता है। लेकिन एक बार फिर हम आप को आगाह कर देते है कि किसी भी हालत मे औरत की शर्मगाह मे सोहबत न करे।_
📗 *[तलख़ीज़ :- तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 136,]* 📗
*🏻 मसअ़ला➧* _हालते हैज़ मे औरत के साथ शौहर का सोना जाइज़ है। और अगर साथ सोने में शैहवत (Sex) का ग़लबा और अपने को क़ाबू मे न रखने का शक़ हो तो साथ न सोए । और अगर पक्का यक़ीन हो तो साथ सोना गुनाह नही है।_
📙 *[बहारे शरीअ़त, जिल्द नं 1, हिस्सा 2, सफा नं 74,]* 📙
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*⚘⇩ हैज़ से पाक होने का तरीक़ा ⇩⚘*
*🏻 हदीस➧* _उम्मुलमोमेनीन हज़रत आएशा सिद्दीक़ा [रदिअल्लाहो तआला अन्हा] से रिवायत है कि_
أن امرأة سألت النَّبيّ - صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ - عَن غسلها مِن المحيض، فأمرها كيف تغتسل، قالَ: خذي فرصة مِن مسك فتطهري بها . قالت: كيف أتطهر بها؟ قالَ: تطهري بها . قالت: كيف؟ قالَ: سبحان الله، تطهري ، فاجتذبها إلي، فقلت: تتبعي بها أثر الدم
*🏻 तर्जुमा➧*_एक औरत ने रसूलुल्लाह ﷺ से हैज़ के ग़ुस्ल के बारे मे पूछा । आप ने उसे बताया "यूँ ग़ुस्ल करें" । और फिर फ़रमाया मुश्क (कस्तूरी) से बसा हुआ रूई का फाया ले और उस से तहारत हासिल कर"।_
○✧➤ _वोह समझ न सकी और कहा "किस तरह तहारत करूँ"?? फरमाया "सुब्हानल्लाह उस से तहारत करो " (हज़रत आएशा फरमाती है) "मैंने उस औरत को अपनी तरफ़ ख़ींच लिया और उसे बताया कि उसे खून के मुक़ाम पर फेरे "।_
📕 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 215, हदीस नं 305, सफा नं 201,]* 📕
*🏻 नोट ➧*_इस ज़माने में मुश्क मिलना मुश्किल है इसलिए उसकी जगह गुलाब जल या इतर का फाया लें।_
○✧➤ _इस हदीसे पाक से मअ़लूम हुआ कि हैज़ का खून जब आना बन्द हो जाए तो जब औरत ग़ुस्ल करने बैठे तो पहले रूई (कपास, Cotton,) को इतर वगै़रा की ख़ूशबू में बसा ले फिर उसे खून के मुक़ाम (शर्मगाह) पर अच्छी तरह फेरे ताकि वहां की सारी गन्दगी साफ़ हो जाए फिर उस के बाद ग़ुस्ल कर ले (ग़ुस्ल का तरीक़ा हम आगे बयान करेंगे)_
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*⚘⇩ हैज़ के बाद कब सोहबत करें ⇩⚘*
○✧➤ _हमारे इमाम, इमामे आ़ज़म अबू हनीफ़ा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] के नज़दीक हालते हैज़ से जब खून दस (10) दिनो के बाद आना बन्द हो जाए तो ग़ुस्ल से पहले भी सोहबत करना जाइज़ है लेकिन बेहतर है कि औरत जब ग़ुस्ल कर ले उस के बाद ही सोहबत की जाए।_
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत सालिम बिन अब्दुल्लाह और हज़रत सुलेमान बिन यसार से हैज़ वाली औरत के बारे में पूछा गया_
○✧➤ _क्या उस का शौहर उसे पाक देखे तो ग़ुस्ल से पहले सोहबत कर सकता है या नही" ?? दोनों ने जवाब दिया न करे यहाँ तक कि वोह ग़ुस्ल कर ले।_
📙 *[मोता इमाम मालिक, जिल्द नं 1, बाब नं 26, हदीस नं 90, सफा नं 79,]* 📙
*🏻 मसअ़ला ➧* _दस दिन से कम खून आना बन्द हो गया तो जब तक औरत ग़ुस्ल न करे सोहबत जाइज़ नही।_
📕 *[बहारे शरीअ़त, जिल्द नं 1, हिस्सा 2, सफा नं 74,]* 📕
*🏻 मसअ़ला ➧* _आदत के दिन पूरे होने से पहले ही हैज़ का खून आना बन्द हो गया तो अगर्चे औरत ग़ुस्ल कर ले सोहबत जाइज़ नही, मसलन किसी औरत की हैज़ की आ़दत चार दिन व चार रात थी और इस बार हैज़ आया तीन दिन व रात तो चार दिन व रात जब तक पूरे न हो जाए सोहबत जाइज़ नही।_
📘 *[बहारे शरीअ़त, जिल्द नं 1, हिस्सा नं 2, सफा नं 47,]* 📘
*🏻 मसअ़ला ➧* _औरत को जब हैज़ का खून आना बन्द हो जाए तो उसे ग़ुस्ल करना फ़र्ज़ है।_
📕 *[कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 1, सफा नं 38,]* 📕
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*⚘⇩ ◥◣ इस्तेहाज़ा ◢◤ ⇩⚘*
○✧➤ _वोह खून जो औरत के आगे के मक़ाम से निकले और हैज़ व निफ़ास का न हो वोह इस्तेहाज़ा है। इस्तेहाज़ा का खून बीमारी की वजह से आता है।_
*🏻 मसअ़ला➧* _हैज़ की मुद्दत ज़्यादा से ज़्यादा दस दिन रात और कम से कम तीन दिन व रात है। दस दिन रात से कुछ भी ज़्यादा आया या तीन दिन रात से कुछ भी कम आया तो वोह खून हैज़ (माहवारी) का नही बल्कि इस्तेहाज़ा का है। अगर किसी औरत को पहली बार हैज़ है तो दस दिन रात तक हैज़ और बाद का इस्तेहाज़ा है और अगर पहले उसे हैज़ आ चुके है और आ़दत दस दिन रात से कम की थी तो आ़दत से जितने ज़्यादा दिन आया वोह इस्तेहाज़ा है। इसे यूँ समझे कि किसी औरत को पाँच (5) दिन की आ़दत थी (यानी उसे हमेशा हैज़ पाँच दिन आता और फिर बन्द हो जाता था) लेकिन अब आया दस (10) दिन तो कुल हैज़ है (यानी दस दिन का हैज़ है) लेकिन बारह (12) दिन आया तो पाँच दिन (जो आ़दत के थे) हैज़ के है बाकी सात दिन इस्तेहाज़ा के है । और अगर हालत मुक़र्रर न थी बल्कि हैज़ किसी महीने चार दिन आया, कभी पाँच दिन, कभी छे दिन, तो पिछली बार जितने दिन आया इतने ही दिन हैज़ के समझे जाएंगे बाकी इस्तेहाज़ा के।_
📙 *[बहारे शरीअ़त, जिल्द नं 1, हिस्सा 2, सफा नं 42, कानूने शरीअ़त, जिल्द नं 1, सफा नं 52]* 📙
*🏻 मसअ़ला ➧* _इस्तेहाज़ा मे नमाज़ मुआ़फ नही (बल्कि नमाज़ छोड़ना गुनाह) न ही रोज़ा मुआ़फ है, ऐसी औरत से सोहबत भी हराम नही।_
*🏻 मसअ़ला ➧* _अगर इस्तेहाज़ा का खून इस क़दर आ रहा हो कि इतनी मोहलत नही मिलती कि वुज़ू करके फ़र्ज़ नमाज़ कर सके (यानी खून लगातार निकलता रहता है थोड़ी देर भी नही रूकता) तो एक वुज़ू से वक्त़ में जितनी नमाज़े चाहे पढ़े खून आने से भी उस पूरे एक वक्त़ के अन्दर तक वुज़ू न जाऐगी। अगर कपड़ा वगै़रा रख कर नमाज़ पढ़ने तक खून रोक सकती है तो वुज़ू करके नमाज़ पढ़े।_
📕 *[कानूने शरीअ़त, जिल्द नं , सफा नं 54,]* 📕
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*⚘⇩ पाख़ाने के मुक़ाम में सोहबत ⇩⚘*
○✧➤ _कुछ कम अक़्ल जाहिल हालते हैज़ मे औरत से उस के पीछे के मुक़ाम (पाख़ाने के मुक़ाम) में सोहबत करते है और दीन व दुनिया दोनो अपने ही हाथों बरबाद करते है। होश में आईये येह कोई मामूली सा गुनाह नही बल्कि शरीअ़त मे सख़्त हराम है और गुनाहे-कबीरा है। बल्कि कुछ हदीसो में तो इस फे'ल को कुफ़्र तक बताया गया है।_
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत अबीज़र [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _पाख़ाने के मुक़ाम में औरत से सोहबत करना हराम है।"_
📕 *[मुस्नदे इमामे आ़ज़म, सफा नं 223,]* 📕
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत अबूह़ुरैरा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है_
○✧➤ _जिस ने औरत या मर्द से उस के पीछे (पाख़ाने के) मुक़ाम में (जाइज़ समझते हुए) सोहबत की उस ने यक़ीनन कुफ़्र किया"।_
📗 *[अबूूदाऊद शरीफ, अहमद शरीफ, नसाई शरीफ वगै़रा]* 📗
*🏻 हदीस ➧* _सेहह सित्ता (यानी अहादीस की छे सही किताबों) मे है कि रसूलुल्लाह ﷺ फरमाते है_
لاينظر الله يوم القيامة إلى رجل أتى رجلاً، أو امرأة في دّبرها
○✧➤ _अल्लाह तआ़ला क़ियामत के दिन ऐेैसे शख़्स की तरफ़ नज़रे रहमत नही फरमाएगा जिसने अपनी औरत के पीछे के मुक़ाम से सोहबत की"।_
📕 *[बुखारी शरीफ, तिर्मिज़ी, अबूूदाऊद शरीफ, इब्ने माज़ा, मुस्लिम शरीफ, नसाई ]* 📕
○✧➤ _अगर हम जरा सा भी गौ़र करे तो मअ़लूम होगा कि अक़्ल की रू से भी येह काम निहायत ही गन्दा और ना पसंदीदा है। जिससे इन्सान को खुद ब खुद घिन आने लगती है। ओलमा-ए-किराम ने औरत से उस के पीछे मे सोहबत करने के कई नुक़सानात बयान किये है जिनमें से चन्द हम यहाँ बयान कर रहे हैं।_
*🏻 नुक़सानात ➧* _अव्वल तो येह गिलाज़त, बदबू, और गन्दगी के ख़ारिज़ होने का मुक़ाम है। सोहबत की लिज़्जत व लुत्फ़ अंदोज़ी को उस से क्या इलाका !_
*🏻 दूसरा ➧* _येह कि क़ुदरत ने उस जगह को इस काम के लिए नही बनाया है। तो गोया उस जगह से सोहबत करना क़ुदरत के बनाए वुसूल से बग़ावत है।_
*🏻 तीसरे ➧* _येह कि औरत की शर्मगाह मे जाज़बियत (खींचने, absorbent) का मद्दा होता है जो मर्द की मनी को जज़्ब (खींच, absor) लेता है जब कि पाख़ाने के मुक़ाम में इख़्राज (फेंकने, Throw) का मद्दा होता है लिहाजा मर्द की मनी का कुछ हिस्सा मर्द के ऊज़ू-ए-तनासुल मे ही रह जाता है जो कई बीमारियों को पैदा करता है।_
*🏻 चौथा ➧* _येह है कि इस सूरत में ऊज़ू-ए-तनासुल (लिंग) की रगो और जिस्म के दूसरे हिस्सों पर ख़िलाफ़े फितरत जोर पड़ता है जो रगों के लिए नुकसानदेह है इस तरह के कई और नुक़सानात की वजह से शरीअ़त ने इस काम को हराम करार दिया और इसे बुरा बताया।_
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*⚘⇩ सोहबत करने के दूसरे तरीक़े ⇩⚘*
*🏻 आयत ➧* _रब तआ़ला इरशाद फरमाता है_
نِسَاؤُكُمْ حَرْثٌ لَّكُمْ فَأْتُوا حَرْثَكُمْ أَنَّىٰ شِئْتُمْ ۖ وَقَدِّمُوا لِأَنفُسِكُمْ ۚ (223)
*🏻 तर्जुमा ➧* _तुम्हारी औरतें तुम्हारे लिए खेतियाँ है तो आऔ अपनी खेतियों में जिस तरह चाहो, और अपने भले का काम पहले करो,_
📗 *[तर्जुमा :- कन्जुल ईमान, पारा 2, सूरए बक़र, आयात नं 223,]* 📗
*🏻 शरह ➧* _हज़रत इब्ने ऊमर [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है कि_
○✧➤ _येह आयत सोहबत करने के मुत्अ़ल्लिक़ नाज़िल हुई"_
📕 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 2, बाब नं 613, हदीस नं 1660, सफा नं 729,]* 📕
*🏻 हदीस ➧* _अल्लाह के रसूल ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _सोहबत सिर्फ़ औरत की शर्मगाह मे ही होना चाहिये चाहे आगे से करे, या पीछे से, दाईं करवट से हो, या बाईं करवट से, जिस तरह कोई शख़्स अपने खेत में जिस तरफ से आना चाहे आता है उसी तरह उसकी बीवी भी उसके खेत की तरह है उस से सोहबत किसी भी सिम्त (दिशा) से की जा सकती है लेकिन सोहबत सिर्फ़ शर्मगाह मे ही चाहिये।_
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*⚘⇩ ◥◣ बी---एफ फिल्में ◢◤ ⇩⚘*
○✧➤ _हमारा और आपका मुशाहेदा है कि आज कल लोग सेक्स की माअ़लूमात के लिए ब्ल्यू फ़िल्में (B.F) देखते है।बिल्ख़ुसूस नव जवान लड़के। कुछ बेवकूफ़ सुहाग रात में औरत को ख़ास तौर पर ब्ल्यू फ़िल्म दिखाते है ताकि औरत जिस तरह फ़िल्म मे दिखाया गया है उसी तरह उन से पेश आए और येह खुद भी हर वोह काम और तरीक़ा अपनाने की कोशिश करते है जो फ़िल्म में होता है चाहे उस में कितनी ही तकलीफ़ क्यों न हो। आप को मअ़लूम होना चाहिये किसी भी मुश्किल से मुश्किल काम को फ़िल्माया जाना अलग बात है और उसको हक़ीक़त मे कर लेना अलग बात है । ब्ल्यू फ़िल्में तो सरासर आँखों की अय्याशी और धोखे के सिवा कुछ नही। आज तकरीबन हर मुसलमान का बच्चा जानता है कि येह इस्लाह में गुनाह व हराम है लेकिन परवाह किसे है ।_
○✧➤ _फ़िल्मों मे देख कर उस की बातों को सीख कर अमल करना ऐसा ही है जैसे किसी फ़िल्म में हीरो को मोटर साइकल इस तरह चलाते हुए दिखाया जाए कि हीरो सड़कों से होते हुए मोटर सायकिल को उछाल उछाल कर लोगों की बिल्डींग मकानों की छत पर चला रहा है कभी इस बिल्डींग पर तो कभी उस बिल्डींग पर।_
○✧➤ _इसी मन्जर (Scene) को किसी बेवकूफ़ ने देखा और इसी तरह करने के लिए उसने अपनी मोटर सायकिल अपने घर की छत पर खड़ी करके शुरू (Start) की और कलच दबा कर गियर बदला एकसिलेटर कलच के साथ छोड़ दिया ऐसे बेवकूफ़ शख़्स का जो हाल होगा वही हाल उस शख़्स का होता है जो ब्ल्यू फ़िल्में देखता है और उस पर अमल करता है । ऐसा शख़्स ग़ैरत और मर्दानगी की ऊँची छत से, बेहयाई ना मर्दानगी के ऐसे गढ़े में गिरता है जिससे निकलना जिन्दगी भर मुश्किल होता है।_
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*⚘⇩ ◥◣ शौहर के हुकुक़ ◢◤ ⇩⚘*
○✧➤ _बीवी का फ़र्ज़ है कि अपने शौहर की इज़्ज़त का ख्याल रखे और उस के अ़दब व एहतराम से किसी किस्म की कोताही न बरते और जुबान से ऐसी कोई बात न निकाले जो शौहर की शान के ख़िलाफ़ हो।_
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत आएशा सिद्दीक़ा व हज़रत अबूह़ुरैरा [रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा] से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _अगर मै किसी को किसी के लिए सज्दे का हुक़्म देता तो औरतों को हुक़्म देता कि अपने शौहर को सज्दा करे"।_
📕 *[तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 788, हदीस नं 1158, सफा नं 594,]* 📕
○✧➤ _इस हदीस शरीफ से एक बात तो येह मअ़लूम हुई कि खुदा के सिवा किसी को किसी के लिए सज्दा करना जाइज़ नही।_
○✧➤ _और दूसरी बात येह मअ़लूम हुई कि शौहर का दरजा इतना बुलंद है कि अगर मख़लूक में किसी के लिए सज्दा करना अगर जाइज़ होता तो औरतों को हुक़्म दिया जाता कि अपने शौहर को सज्दा करे।_
*🏻 हदीस ➧* _एक शख्स ने हुज़ूर ﷺ से दरयाफ्त किया कि बेहतरीन औरत की पहचान क्या है"?? हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _जो औरत अपने शौहर की इताअ़त व फ़रमाँ बरदारी करे"।_
📘 *[नसाई शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 364,]* 📘
○✧➤ _औरत का फ़र्ज़ है कि अपने शौहर की ख़ितमत से दूर न भागे बल्कि जिन्दगी के हर क़दम पर निहायत ही खन्दा पेशानी (खुशी के साथ) शौहर की ख़ितमत करके अपनी वफ़ादारी का अ़मली सुबूत दे। यहाँ तक की शौहर अपनी औरत को किसी ऐसे काम का हुक़्म दे जो बेकार व फ़ुजूल हो तब भी औरत का फ़र्ज़ है कि शौहर के हुक़्म की तअ़मील करे।_
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत मैमूना [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _मेरी उम्मत में सब से बेहतर वोह औरत है जो अपने शौहर के साथ अच्छा सुलूक करती है ऐैसी औरत को ऐैसे एक हज़ार शहीदों का सवाब मिलता है जो खुदा की राह में सब्र के साथ शहीद हुए, उन औरतों में से हर औरत जन्नत की हूरों पर ऐैसी फ़जीलत रखती है जैसे मुहम्मद ﷺ को तुम मे से अदना मर्द पर।_
📙 *[गुन्यतुत्तालिबीन, सफा नं 113,]* 📙
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत अबू सईद [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _शौहर की ना शुकरी करना एक तरह का कुफ़्र है और एक कुफ़्र दूसरे से कम कम होता है।_
📕 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 21, हदीस नं 28, सफा नं 109,]* 📕
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*⚘⇩ ◥◣ मियाँ बीवी के हुकुक़ ◢◤ ⇩⚘*
*🏻 आयत ➧* _अल्लाह रब्बे क़दीर इरशाद फरमाता है_
هُنَّ لِبَاسٌ لَكُمْ وَأَنْتُمْ لِبَاسٌ لَهُنَّ
*🏻 तर्जुमा ➧* _वोह तुम्हारी लिबास है और तुम उन के लिबास,_
📕 *[तर्जुमा :- कन्जुल ईमान शरीफ, पारा 2, सूरए बक़र, आयत नं 187,]* 📕
○✧➤ _इस आयते करीमा मे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने क्या ही बेहतरीन मिसाल से मियाँ बीवी के एक दूसरे पर हुकूक़ के मुत्अ़ल्लिक़ अपने बन्दो को समझाया है। जिस तरह आदमी अपने लिबास की हिफ़ाज़त करता है और लिबास जिस्म से जिस क़दर क़रीब होता है उतनी ही कोई चीज़ क़रीब नही होती चुनान्चे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमें हुक़्म देता है कि मर्द अपनी बीवी के हुकूक़ की उतनी ही जिम्मेदारी से हिफ़ाज़त करे जितना वोह अपने लिबास की हिफ़ाज़त करता है और बीवी से उतनी ही मुहब्बत करे और उसे अपने से क़रीब रखे जिस तरह लिबास से मुहब्बत होती है और जितना वोह क़रीब होता है। इसी तरह औरत पर भी येह सब चीज़े मर्द की तरह लागू होती है इस आयत की एक दूसरी तफ़सीर येह भी है कि मियाँ बीवी एक दूसरे के अ़येब छुपाने वाले है जिस तरह लिबास जिस्म को छुपा देता है।_
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○✧➤ _बीवी का फ़र्ज़ है कि अपने शौहर की इज़्ज़त का ख्याल रखे और उस के अ़दब व एहतराम से किसी किस्म की कोताही न बरते और जुबान से ऐसी कोई बात न निकाले जो शौहर की शान के ख़िलाफ़ हो।_
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत आएशा सिद्दीक़ा व हज़रत अबूह़ुरैरा [रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा] से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
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📕 *[तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 788, हदीस नं 1158, सफा नं 594,]* 📕
○✧➤ _इस हदीस शरीफ से एक बात तो येह मअ़लूम हुई कि खुदा के सिवा किसी को किसी के लिए सज्दा करना जाइज़ नही।_
○✧➤ _और दूसरी बात येह मअ़लूम हुई कि शौहर का दरजा इतना बुलंद है कि अगर मख़लूक में किसी के लिए सज्दा करना अगर जाइज़ होता तो औरतों को हुक़्म दिया जाता कि अपने शौहर को सज्दा करे।_
*🏻 हदीस ➧* _एक शख्स ने हुज़ूर ﷺ से दरयाफ्त किया कि "बेहतरीन औरत की पहचान क्या है"?? हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _जो औरत अपने शौहर की इताअ़त व फ़रमाँ बरदारी करे"।_
📗 *[नसाई शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 364,]* 📗
○✧➤ _औरत का फ़र्ज़ है कि अपने शौहर की ख़ितमत से दूर न भागे बल्कि जिन्दगी के हर क़दम पर निहायत ही खन्दा पेशानी (खुशी के साथ) शौहर की ख़ितमत करके अपनी वफ़ादारी का अ़मली सुबूत दे। यहाँ तक की शौहर अपनी औरत को किसी ऐसे काम का हुक़्म दे जो बेकार व फ़ुजूल हो तब भी औरत का फ़र्ज़ है कि शौहर के हुक़्म की तअ़मील करे।_
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत मैमूना [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _मेरी उम्मत में सब से बेहतर वोह औरत है जो अपने शौहर के साथ अच्छा सुलूक करती है ऐैसी औरत को ऐैसे एक हज़ार शहीदों का सवाब मिलता है जो खुदा की राह में सब्र के साथ शहीद हुए, उन औरतों में से हर औरत जन्नत की हूरों पर ऐैसी फ़जीलत रखती है जैसे मुहम्मद ﷺ को तुम मे से अदना मर्द पर।_
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*🏻 हदीस ➧* _हज़रत अबू सईद [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _शौहर की ना शुकरी करना एक तरह का कुफ़्र है और एक कुफ़्र दूसरे से कम कम होता है।_
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*⚘⇩ ◥◣ शौहर के हुकुक़ ◢◤ ⇩⚘*
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _मुझे दोज़ख दिखाई गई मै ने वहां औरतों को ज़्यादा पाया वजह येह है कि कुफ़्र करती है। सहाब-ए-किराम ने अर्ज किया, क्या वोह अल्लाह के साथ कुफ़्र करती है?? इरशाद फरमाया नही ! वोह शौहर की ना शुकरी करती है ( जो के एक तरह का कुफ़्र है) और एहसान नही मानती अगर तू किसी औरत से उमर भर एहसान और नेक़ी का सुलूक करे लेकिन एक बात भी ख़िलाफ़े तबियत हो जाए तो झट कह देंगी मैने तुझ से कभी आराम और सुकून नही पाया"।_
📙 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 21, हदीस नं 28, सफा नं 109,]* 📙
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत उमर [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है कि हुज़ूरे अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _तुम को नही मअ़लूम औरत के लिए शिर्क के बाद सब से बड़ा गुनाह शौहर की ना फ़रमानी है"_
📕 *[गुन्यतुत्तालिबीन सफा नं 114,]* 📕
○✧➤ _लिहाजा औरतों को चाहिए कि अपने शौहर की ना शुकरी न करें वरना फिर जहन्नुम में जाने के लिए तैयार रहें।_
○✧➤ _औरत अगर येह चाहती है कि शौहर को अपना गुरवीदा बनाए रखे तो उस की ख़ितमत में कोताही न करे इस की पुर ख़ुलूस ख़ितमतों को देख कर शौहर खुद ही गुरवीदा हो जाएगा।_
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत अबूह़ुरैरा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _शौहर अपनी बीवी को जिस वक्त़ बिस्तर पर बुलाए और वोह आने से मना कर दे तो उस औरत पर खुदा के फ़रीश्ते सुबह तक लअ़नत करते रहते है"_
📘 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 115, हदीस नं 178, सफा नं 96,]* 📘
*🏻 हदीस ➧* _एक और रिवायत में है कि "जब शौहर अपनी हाज़त (सोहबत) के लिए बीवी को बुलाए तो बीवी अगर रोटी पका रही हो तो उस को लाज़िम है कि सब काम छोड़ कर शौहर के पास हाज़िर हो जाए"।_
📕 *[तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 788, हदीस नं 1159, सफा नं 595,]* 📕
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत आएशा [रदिअल्लाहो तआला अन्हा] से मरवी है_
○✧➤ _हुज़ूरﷺ की ख़ितमत मे एक जवान औरत हाज़िर हुई और अर्ज किया या रसूलुल्लाह ! "मैं जवान औरत हूँ मुझे निकाह के पैग़ाम आते है मगर मै शादी को बुरा समझती हूँ, आप मुझे बताईये बीवी पर शौहर का क्या हक़ है" ?? आप ने फरमाया "अगर शौहर की चोटी से ऐड़ी तक पीप हो और वोह उसे जबान से चाटे तो भी शौहर का हक़ अदा नही कर पाएेगी"। उस ने पूछा तो मै शादी न करो" ?? आप ने फरमाया "तुम शादी करो क्यों कि इसमें भलाई है"।_
📗 *[मुका़शेफातुल क़ुलूब, बाब नं 95, सफा नं 617,]* 📗
○✧➤ _आह । अफ़सोस आज कल की ज़्यादा तर औरतें अपने शौहरों को बुरा भला कहती है और गालियाँ भी देती है। कुछ बे बाक बेशर्म तो अपने शौहर को मारने से भी नही चुकती। कुछ अय्याश बदचलन औरतें अपने बीमार शौहर को घर पर छोड़ कर दूसरे मर्दों के साथ रंग रलियाँ मनाने मे मस्त रहती है।_
○✧➤ _खुदारा ऐैसी औरतें होश में आए अपने शौहर के मरतबे को पहचाने और इस दुनिया में थोड़ी सी मस्ती, रंगरलियाँ, और थोड़े से झूठे मज़े की ख़ातिर हमेशा हमेशा रहने वाली आख़िरत की जिन्दगी को तबाह व बरबाद न करें।_
*🏻 एक ख़ास अमल ➧* _जिस शख़्स की बीवी उसका कहा न मानती हो न फ़रमान, ज़बानदराज़, और झगड़ालू हो तो वोह शख़्स सोते वक्त़ ---اَلْمَانِعُ--- अलमानेओ" दिल से बहुत ज़्यादा पढ़े बफ़जलेहि तआला औरत फरमांबरदार और मुहब्बत करने वाली हो जाएगी।_
📕 *[वज़ाइफे़ रजवीया, सफा नं 224,]* 📕
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○✧➤ _जिस तरह बीवी को लाज़िम है कि शौहर के हुकूक़ अदा करे उसी तरह शौहर पर भी फ़र्ज़ है कि बीवी के हुकूक़ अदा करने में किसी किस्म की कोताही न करे।_
*🏻 आयत ➧* _रब तआला इरशाद फरमाता है_
وَعَاشِرُوهُنَّ بِالْمَعْرُوفِ ۚ
*🏻 तर्जुमा ➧* _और उनसे (औरतों से) अच्छा बर्ताव करो।_
📕 *[तर्जुमा :- कन्जुल ईमान शरीफ, पारा 4, सूरए निशा, आयत नं 19,]* 📕
○✧➤ _शौहर पर बीवी की जो जिम्मेदारी आएद है उन मे से एक बड़ी जिम्मेदारी येह भी है कि वोह अपनी बीवी का महेर अदा करे।_
*🏻 हदीस ➧* _हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _निकाह की शर्त यानी महेर अदा करने का सब से ज़्यादा ख़्याल रखो।_
📔 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 80]* 📔
○✧➤ _बीवी का महेर शौहर के ज़िम्मे वाज़िब है और उसे अदा करना ज़रूरी है अगर इसके अदा करने मे कोताही की तो क़ियामत के दिन सख़्त गिरिफ़्त होगी और सजा भुगतनी पड़ेगी।_
○✧➤ _शौहर का अपनी बीवी को सताना, गालियाँ देना, और उस पर ज़ुल्म व ज़्यादती करना बद तरीन गुनाह है_
*🏻 हदीस ➧* _रसूले ख़ुदा ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _सब से बुरा आदमी वोह है जो अपनी बीवी को सताए।_
📕 *[तबरानी शरीफ,]* 📕
*🏻 हदीस ➧* _रसूले मक़बूल ﷺ ने इरशाद फरमाया_
خیر کم خیر کم لا ھبله وانا خير كم لاهلى
○✧➤ _तुम मे से वोह बेहतर है जो अपनी बीवीयों के साथ बेहतर है और में अपनी बीवीयों के साथ तुम सब से ज़्यादा बेहतर हूँ"।_
📘 *[इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, हदीस नं 2047, सफा नं 551, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 595,]* 📘
○✧➤ _शौहर को चाहिए कि अपनी बीवी के साथ खुश मिज़ाज़ी, नर्मी, और मेहरबानी से पेश आएे और अपने प्यारे नबी के हुक़्म पर अ़मल करे ।_
○✧➤ _लेकिन आज कल आम तौर पर देखा येह जा रहा है कि मर्द हज़रत बाहर तो चूहा बने फिरते है लेकिन घर में शेर होते है और बे वजह बीवी पर रौब झाड़ते फिरते है।_
○✧➤ _बीवी से हमेशा मुहब्बत का सुलूक रखे हाँ अगर वोह न फ़रमानी करे या जाइज़ हुक़्म न माने तो उस पे गुस्सा कर सकते हैं।_
○✧➤ _हुज़ूर सैय्यदना ग़ौसे आ़ज़म "गुन्यतुत्तालिबीन" मे और इमाम मुहम्मद ग़ज़ाली [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] "कीम्या-ए-सआ़दत" में फरमाते है_
○✧➤ _अगर बीवी शौहर की इताअ़त न करे तो शौहर नर्मी व मुहब्बत और समझा बुझा कर अपनी इताअ़त करवाए। अगर इस के बाद भी बीवी न समझे तो शौहर गुस्सा करे और उसे ड़ाँट ड़पट कर समझाए फिर भी अगर औरत न माने तो सोने के वक्त़ उस की तरफ पीठ करके सोए। अगर इस के बाद भी न माने तो फिर तीन रातें उस से अलग सोए। अगर इन तमाम चीजों से भी न माने और अपनी हट धर्मी पर अड़ी रहे तो उसे मारे मगर मुँह पर न मारे और न इतने जोर से की जख्मी हो जाए। अगर इन सब से भी फ़ायदा न हो तो फिर एक महीने तक नाराज रहे (फिर भी कुछ बात न बने तो अब एक तलाक़ दे)_
📗 *[गुन्यतुत्तालिबीन, सफा नं 118, कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 265]* 📗
○✧➤ _अगर किसी की दो बीवीयां या उस से ज़्यादा हो तो सब के साथ बराबरी का सुलूक रखे खाने पीने औढने वगै़रा सब में इन्साफ़ से काम ले हर बीवीयों के घर बराबर बराबर वक्त़ गुज़ारे और उसके लिए इनकी बारी मुक़र्रर कर ले।_
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत अबूह़ुरैरा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है कि रसूले अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _जब किसी के निकाह में दो बीवीयां हो और वोह एक ही की तरफ मायेल हो तो वोह क़ियामत के दिन जब आऐगा तो उस का आधा धड़ गिरा हुआ होगा"।_
📕 *[तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, हदीस नं 1137, सफा नं 584, इब्ने माज़ा, जिल्द नं 1, सफा नं 549,]* 📕
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*⚘⇩ ◥◣ जोरू के ग़ुलाम ◢◤ ⇩⚘*
○✧➤ _अगर आप किसी भी मोहल्ले या बस्ती में चले जाए और वहाँ का दौरा (Inspection) करे तो आप को हर दो घर के बाद तीसरा घर जोरू के ग़ुलाम का मिलेगा।_
○✧➤ _यानी इस जमाने में शौहर अपनी बीवी से अपनी इताअ़त नही करवाता बल्कि खुद उस की इताअ़त करता है।_
*🏻 आयत ➧* _रब तआला इरशाद फरमाता है_
الرِّجَالُ قَوَّامُونَ عَلَى النِّسَاءِ
*🏻 तर्जुमा ➧* _"मर्द अफ़सर है औरतों पर"_
📕 *[तर्जुमा :- कन्जुल ईमान शरीफ, पारा 5, सूरए निशा, आयत नं 34,]* 📕
*🏻 हदीस ➧* _रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _बीवी का ग़ुलाम बद बख़्त है_
تعس عبدالزوجة
📗 *[कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 263,]* 📗
○✧➤ _इमाम ग़ज़ाली [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] फरमाते है_
○✧➤ _बुजुर्गों ने फरमाया है औरतों से मशवरा करो लेकिन अ़मल उस के ख़िलाफ़ करो"। (यानी ज़रूरी नही की औरत के हर मशवरे पर अ़मल किया जाए)_
📕 *[कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 263,]* 📕
○✧➤ _लेकिन अफ़सोस आज कल लोग औरत के बहकावे मे आकर ख़िलाफ़े शरीअ़त काम तक कर लेते है यहाँ तक की वोह औरत के इस क़दर ग़ुलाम बन जाते है कि अपने माँ बाप को छोड़ देते है लेकिन बीवी की ग़ुलामी नही छोड़ सकते है। अगर घर में किसी मामले मे झगड़ा हो जाए तो बीवी को समझाने के बजाए उल्टा ही अपने माँ बाप को झिड़कते है। और अपनी आख़िरत की बर्बादी का सामान अपने हाथों से जुटाते है याद रखिए बीवी भले ही नाराज़ हो जाए लेकिन माँ बाप नाराज़ न होने पाए। बीवी तो सैंकड़ो मिल सकती है लेकिन माँ बाप नही मिल सकते।_
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत अबू उमामा [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है कि सरकार ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _माँ बाप तेरी जन्नत भी है और दोज़ख भी"_
📙 *[इब्ने माज़ा शरीफ, जिल्द नं 2, बाब नं 621, हदीस नं 1456, सफा नं 395,]* 📙
○✧➤ _इस हदीस का मतलब येह है कि तू अपने माँ बाप की फ़रमांबरदारी करेगा तो जन्नत मे जाएगा और ना फ़रमानी करेगा तो दोज़ख मे सज़ा पाएगा।_
*🏻 हदीस ➧* _फरमाते है आक़ा ﷺ_
○✧➤ _खुदा शिर्क और कुफ़्र के अलावा जिस गुनाह को चाहेगा बख़्श देगा मगर माँ बाप की ना फ़रमानी को नही बख़्शेगा बल्कि मौत से पहले दुनिया में भी सज़ा देगा।_
📕 *[बयहक़ी शरीफ,]* 📕
○✧➤ _लिहाजा माँ बाप की फ़रमांबरदारी को ही हमेशा अहमियत दे । औरत का भी फ़र्ज़ है कि वोह अपने सास ससुर को अपने माँ बाप की ही तरह समझे और उन से नेक सुलूक करे । मर्द पर भी जिम्मेदारी है कि वोह अपनी औरत से अपने माँ बाप की इताअ़त करवाए।_
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास से रिवायत है कि सरकारे मदीना ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _जब कोई नेक लड़का अपने माँ बाप की तरफ मुहब्बत की नज़र से देखता है तो अल्लाह तआला उस के लिए हर नज़र के बदले एक हज़े मक़बूल का सवाब लिखता है"। सहाब-ए-किराम, ने अर्ज किया या रसूलुल्लाह ! अगर कोई सौ (100) रोज़ाना देखे तो क्या उसे रोज़ाना सौ हज़ का सवाब मिलेगा"?? सरकार ने फरमाया हाँ! बेशक अल्लाह तआला बुजुर्ग व बरतर है उस को येह बात कुछ मुश्किल नही"।_
📚 *[बयहक़ी शरीफ,]* 📚
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○✧➤ _आज के नौजवानों मे तरह तरह की बुराइयां जन्म ले चुकी है जिसकी सबसे बड़ी वजह दीन की तअ़लीम से दूरी है इस के अलावा फिल्में देखने का आम चलन, औरतों और कुंवारी लड़कियों का बेपर्दा, सज धज कर सड़कों पर खुले आम घूमना वगै़रा वगै़रा जैसी बुराइयां है_
○✧➤ _आज के माड्रन नवज़वान जिना (बलात्कार) ग़ैर औरतों से छेड़ छाड़ जैसे गुनाह को गुनाह ही नही समझते यहाँ तक कि कुछ नवज़वान तो पेशावर औरतों के पास जाने मे भी शर्म व झिझक तक महसूस करते बल्कि इसे मर्दानगी का सुबूत व (Certificate) समझते है, और जो शख़्स ये सब नही करता वोह इन अय्याशों की नज़र मे बेवकूफ़, बुजदिल, ना मर्द समझा जाता है। आह ! किस कदर जहालत है येह_
*🏻 आयत ➧* _रब तआला इरशाद फरमाता है_
وَقُل لِّلْمُؤْمِنَاتِ يَغْضُضْنَ مِنْ أَبْصَارِهِنَّ وَيَحْفَظْنَ فُرُوجَهُنَّ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا مَا ظَهَرَ مِنْهَا ۖ وَلْيَضْرِبْنَ بِخُمُرِهِنَّ عَلَىٰ جُيُوبِهِنَّ ۖ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا لِبُعُولَتِهِنَّ
*🏻 तर्जुमा ➧* _और मुसलमान औरतों को हुक़्म दो अपनी निगाहें कुछ नीची रखे और पारसाई की हिफ़ाज़त करे और अपना बनाओ न दिखाए मगर जितना खुद ही ज़ाहिर है और दुपट्टे अपने गिरेबानों पर डाले रहें और अपना सिंगार जाहिर न करे मगर शौहरों पर_
📙 *[तर्जुमा :- कन्जुल ईमान शरीफ, पारा 18, सूरए नूर, आयत नं 31,]* 📙
○✧➤ _इस आयते करीमा मे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने साफ़ साफ़ हुक़्म दिया है कि अपनी निगाहें नीची रखे, अपना बनाव सिंगार अपने शौहर के लिए ही करे गै़र मर्दों के लिए नही, और अपने सीने, और सर पर दुपट्टे डाले रहे।_
○✧➤ _लेकिन आज मामला उल्टा ही नज़र आ रहा है अक्सर औरतें घर में तो गन्दी बैठी रहती है लेकिन जब बाहर निकलना होता है तो खुद बन संवर निकलती है गो .या गन्दगी उनके अपने शौहर के लिए और सिंगार व सफाई गै़र मर्दों के लिए।_
○✧➤ _हदीसे पाक में सरकार ﷺ ने औरतों को घर में साफ़ और सजधज कर रहने का हुक़्म दिया ताकि शौहर अपनी बीवी को ही पसंद करे और ग़ैर औरतों की तरफ न जाए, लेकिन अफ़सोस आज मामला ही उल्टा हो चुका है।_
*🏻 हदीस ➧* _रसूले करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _औरत, औरत है यानी छुपाने की चीज़ है जब वोह निकलती है तो उसे शैतान झाँक कर देखता है यानी उसे देखना शैतानी काम है"।_
📕 *[तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द 1, बाब नं 796, हदीस नं 1173, सफा नं 600,]* 📕
○✧➤ _चीड़ी मारी में मर्द व औरत दोनो कुसूरवार है मर्द ऐसे कि वोह उनसे बद निगाही करते है उन्हें छेड़ कर उनकी बेइज़्ज़ती करते है। और औरतें इस तरह कि वोह बे पर्दा सड़को पर खुले आम निकलती है ताकि मर्द उसे देखे ।_
*🏻 हदीस ➧* _फ़रमाते है आक़ा ﷺ_
○✧➤ _जिस गै़र औरत को जान बूझ कर देखा जाए, और जो औरतें अपने को जान बूझ कर गै़र मर्दों को दिखलाए उस मर्द और औरत पर अल्लाह की लअ़नत"।_
📘 *[मिश्क़ात शरीफ, जिल्द नं 2, हदीस नं 2991, सफा नं 77,]* 📘
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत मैमूना बिन साअ़द [रदिअल्लाहो अन्हुमा] से रिवायत है कि हुज़ूरे अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _अपने शौहर के सिवा दूसरों के लिए ज़ीनत के साथ दामन घसिटते हुए (इतराकर) चलने वाली औरत क़ियामत के अँधेरो की तरह है जिसमें कोई रौशनी न हो"।_
📕 *[तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 791, हदीस नं 116, सफा नं 597,]* 📕
*🏻 हदीस ➧* _रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _(जब मर्द गै़र औरत को देखता है और औरत गै़र मर्द को देखती है) दोनों की आँखें जिना करती है।_
📗 *[कशफ़ुल महजूब, सफा नं 568,]* 📗
*🏻 हदीस ➧* _फरमाया हमारे आक़ा सरकारे मदीना ﷺ ने_
○✧➤ _मर्द का गै़र औरतों को और औरत को गै़र मर्दों को देखना आँखों का ज़िना है, पैरों से उस की तरफ चलना, पैरों का ज़िना है, कानो से उस की बात सुनना कानो कानो का ज़िना है, ज़बान से उस के साथ बात करना ज़बान का ज़िना है, दिल में ना जाइज़ मिलाप की तमन्ना करना दिल का ज़िना है, हाथों से उसे छूना हाथों का ज़िना है"।_
📕 *[अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 2 बाब नं 121, हदीस नं 385, सफा नं 147,]* 📕
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*🏻 हदीस ➧* _हज़रत जरीर बिन अब्दुल्लाह का बयान है_
○✧➤ _मैंने रसूलुल्लाह ﷺ से अचानक नज़र पड़ जाने के मुत्अ़ल्लिक़ पूछा तो फ़रमाया कि अपनी फेर लिया करो"।_
📕 *[मिश्क़ात शरीफ, जिल्द नं 2, हदीस नं 2970, सफा नं 73,]* 📕
*🏻 हदीस ➧*_फ़रमाते है आक़ा ﷺ_
○✧➤ _गै़र मर्द और गै़र औरत तन्हाई में किसी जगह एक साथ होते है उन मे तीसरा शैतान होता है।_
📙 *[तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 794, हदीस नं 1171, सफा नं 599,]* 📙
*🏻 हदीस ➧* _सरकारे *मदीना ﷺ* ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _तन्हा गै़र औरत के पास जाने से परहेज़ करो"। एक सहाबी ने सवाल किया "या रसूलुल्लाह ! देवर के बारे में क्या इरशाद है"?? फरमाया "देवर तो मौत है"।_
📕 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 141, हदीस नं 216, सफा नं 108, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 794, हदीस नं 1171, सफा नं 599, मिश्क़ात शरीफ, जिल्द नं 2, हदीस नं 2968, सफा नं 73,]* 📕
○✧➤ _अब आप खुद अंदाज़ा लगाईये जब देवर के सामने भी भाभी को आने से मना किया गया यहाँ तक कि उसे मौत की तरह बताया तो भला बताईये सड़को पर, शादियों में, और दीगर मुक़ामात पर गै़र मर्दों का औरतों के सामने आना और औरतों का गै़र मर्दों के सामने बे हिजाब आना किस क़दर ख़तरनाक होगा।_
○✧➤ _लिहाजा माँ बाप पर ज़िम्मेदारी है कि वोह अपनी जवान कुंवारी लड़कियों को पर्दा करवाए और बे फ़ुजूल बाजारों और सड़कों पर घूमने से रोके। इसी तरह शादी शुदा मर्दों पर भी ज़रूरी है कि वोह अपनी औरतों को पर्दा करवाए।_
○✧➤ _इमाम ग़ज़ाली [रदिअल्लाहो तआला अन्हा] ने क्या खूब फरमाया--फरमाते है_
○✧➤ _मर्द अपनी औरतों को घर की छत और दरवाज़े पर न जाने दे ताकि वोह गै़र मर्दों को और गै़र मर्द उस को न देख सके और खिड़की दरवाजे़ से मर्दों का तमाशा देखने की इज़ाज़त न दे कि तमाम आफ़ते आँख से पैदा होती है घर में बैठे नही पैदा होती बल्कि खिड़की, रौशनदान, छत, दरवाज़े से पैदा होती है"।_
📘 *[कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 263,]* 📘
*🏻 हदीस ➧* _हज़रते उम्मे सलमा [रदिअल्लाहो अन्हा] फरमाती है_
○✧➤ _एक दिन एक ना बीना (अन्धे) सहाबी *सरकारﷺ* से मिलने आए मै और सरकार की दूसरी बीवीयां वही बैठी थी सरकार ने फरमाया "पर्दा कर लो" फरमाती है हम ने अर्ज किया "या रसूलुल्लाह! येह तो हमें देख नही सकते"?? फरमाया "तुम तो अन्धी नही हो तुम तो देख सकती हो"।_
📕 *[अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 258, हदीस नं 711, सफा नं 246, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 279,]* 📕
○✧➤ _अब ज़रा अंदाज़ा लगाईये जब ना बीना से भी जब *सरकारﷺ* ने अपनी अज़वाज्हे मुतहरात (बीवीयां) को पर्दा करवाया तो क्या आज की इन औरतों को पर्दा करना ज़रूरी न होगा?? यक़ीनन ज़रूरी होगा। वरना अज़ाबे़ क़ब्र व दोज़ख उनके लिए तैयार है।_
*🏻 हदीस ➧* _सरकारे दो आलम ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _जब मर्द के सामने कोई अजनबी औरत आती है तो शैतान की सूरत में आती है जब तुम मे से कोई किसी अजनबी औरत को देखे और वोह उसे अच्छी मअ़लूम हो तो चाहिये कि अपनी बीवी से सोहबत कर ले (ताकि गुनाह से बच जाए) तुम्हारी बीवी के पास भी वही चीज़ मौजूद है जो उस अजनबी औरत के पास मौजूद है (और अगर किसी के पास बीवी न हो तो वोह रोज़ा रखे कि रोज़ा गुनाह से रोकने वाला और हवस को मिटाने वाला है)_
📗 *[तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, सफा नं 594, मिश्क़ात शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 73,]* 📗
*🏻 मसअला ➧* _कुछ औरतें अपने मर्दों के सामने मनीहार (चूड़ी बेचने वालों) के हाथ से चूड़ीयां पहनती है, येह हराम-हराम हराम है। हाथ दिखाना गै़र मर्द को हराम है। उस के हाथ में हाथ देना हराम है। जो मर्द अपनी औरतों के साथ इसे जाइज़ रखते है दैयूस (यानी बै ग़ैरत भड़वे) है।_
📕 *[फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 9, सफा नं 208,]* 📕
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*🏻 आयत ➧* _अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है_
وَالَّذِينَ هُمْ لِفُرُوجِهِمْ حَافِظُونَ
*🏻 तर्जुमा ➧*_"और (मो'मिन) वोह जो अपनी शर्मगाह की हिफ़ाज़त करते है"।_
📕 *[तर्जुमा :- कन्जुल ईमान शरीफ, पारा 21, सूरए मआरिज, आयत नं 29,]* 📕
○✧➤ _एक मर्द एक ऐसी औरत से सोहबत करे जिस का वोह मालिक नही (यानी उस से निकाह नही हुआ) उसे ज़िना (बलात्कार) कहते है। चाहे मर्द, औरत दोनो राज़ी हो तब भी येह ज़िना ही कहलाएगा। इसी तरह पेशावर, बाज़ारी औरतों और तवाएफ़ो के साथ सोहबत करने को भी ज़िना कहा जाएगा।_
○✧➤ _आज कल अक्सर नव जवान क़ाफ़िरो की लड़कियों के साथ नाज़ायज़ तअ़ल्लुक़ात को कोई गुनाह नही समझते येह सख़्त जहालत है क़ाफ़िर लड़की से सोहबत भी ज़िना ही कहलाएगी ।_
○✧➤ _इसी तरह कट्टर वहाबी, देवबन्दी, मौदूदी, नेचरी, शिया, वगै़रा जितने भी दीन से फिरे हुए फ़िरक़े है उन की लड़की से निकाह किया तो निकाह ही नही होगा बल्कि ज़िना कहलाएगा (जब तक कि वोह सच्ची तौबा कर के सुन्नी न हो जाए और वहाबियों को क़ाफ़िर मुरतद न समझे)_
○✧➤ _ज़िना यक़ीनन बहुत ही बड़ा गुनाह है और बहुत ही बड़ी बला है येह इन्सान को कहीं का नही रख़्ती।_
*🏻 हदीस ➧* _अल्लाह के रसूल ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _शिर्क के बाद अल्लाह के नज़दीक इस से बड़ा कोई गुनाह नही के एक शख़्स किसी ऐसी औरत से सोहबत करे जो उस की बीवी नही"।_
*🏻 हदीस ➧* _और फरमाते है रसूलुल्लाह ﷺ_
○✧➤ _जब कोई मर्द और औरत ज़िना करते है तो ईमान उन के सीने से निकल कर सर पर साए की तरह ठहर जाता है"।_
📗 *[मुका़शेफातुल क़ुलूब, बाब नं 22, सफा नं 168,]* 📗
*🏻 हदीस ➧* _हज़रते इकरेमा ने हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास [रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा] से पूछा_
○✧➤ _ईमान किस तरह निकल जाता है?? हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास ने फरमाया इस तरह ! और अपने हाथ की उँगलियाँ दूसरे हाथ की उँगलियों में डाली और फिर निकाल ली और फरमाया देखो इस तरह"।_
📕 *[बुखारी शरीफ-, जिल्द नं 3, बाब नं 968, हदीस नं 1713, सफा नं 614, अशअ़तुल लम्आत, जिल्द नं 1, सफा नं 287,]* 📕
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत अबूह़ुरैरा व इब्ने अब्बास [रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा] से रिवायत है कि सरकारे दो आलम ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _मो'मिन होते हुए तो कोई ज़िना कर ही नही सकता"।_
📙 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 968, हदीस नं 1714, सफा नं 614,]* 📙
*🏻 मुसीबतें ➧* _हज़रत इमाम ग़ज़ाली [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] फरमाते है_
○✧➤ _ज़िना मे छे (6) मुसीबतें है । बाज सहाब-ए-किराम, से मरवी है कि ज़िना से बचो इस में "छे" मुसीबतें है जिन मे से तीन का तअ़ल्लुक़ दुनिया से और तीन का आख़िरत से है।_
*⚘⇩ दुनिया की मुसीबतें येह है कि ⇩⚘*
*🏻 1⃣ ➧* _ज़िन्दगी मुख़्तसर (कम) हो जाती है।_
*🏻 2⃣ ➧*_दुनिया में रिज़्क़ कम हो जाता है।_
*🏻 3⃣ ➧* _चेहरे से रौनक ख़त्म हो जाती है।_
*⚘⇩ आख़िरत की मुसीबतें येह है कि ⇩⚘*
*🏻 4⃣ ➧* _आख़िरत में खुदा की नाराज़गी।_
*🏻 5⃣ ➧* _आख़िरत में सख़्त पूछ ताछ होगी।_
*🏻 6⃣ ➧* _ज़हन्नम में जाएगा और सख़्त अज़ाब़ ।_
📕 *[मुका़शेफातुल क़ुलूब, बाब नं 22, सफा नं 168,]* 📕
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*🏻 हदीस ➧* _रिवायत है कि अल्लाह के नबी मूसा (अलेहिस्सलाम) ने अल्लाह (जल्लाजलालाहु) से ज़िना की सज़ा के बारे में पूछा तो रब तआला ने फरमाया "उसे आग की ज़र्रह पहनाऊंगा (लोहे का लिबास जो आग से बना होगा) वोह ऐैसी वज़नी है कि अगर बहुत बड़े पहाड़ पर रख दी जाए तो भी रेज़ा रेज़ा हो जाए।_
📕 *[मुका़शेफातुल क़ुलूब, बाब नं 22, सफा नं 168,]* 📕
*🏻 आयत ➧* _अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है_
وَمَن يَفْعَلْ ذَٰلِكَ يَلْقَ أَثَامًا
*🏻 तर्जुमा ➧* _जो शख़्स ज़िना करता है उसे असाम में डाला जाएगा।_
📘 *[तर्जुमा :- क़ुरआने करीम, पारा 19, सूरए फ़ुरक़ान, आयत नं 68,]* 📘
○✧➤ _असाम के बारे में ओलमा-ए-किराम ने कहा कि वोह ज़हन्नम का एक ग़ार है जब उस का मुँह खोला जाएगा तो उस की बदबू से तमाम ज़हन्नमी चीख उठेंगे ।_
📕 *[मुका़शेफातुल क़ुलूब, बाब नं 22, सफा नं 167,]* 📕
*🏻 हदीस ➧* _सातों आसमान सातों जमीनें और पहाड़ ज़िना कार लअ़नत भेजते है और क़ियामत के दिन ज़िना कार मर्द व औरत की शर्मगाह से इस कदम बदबू आती होगी के ज़हन्नम मे जलने वालों को भी इस बदबू से तकलीफ़ पहुँचेगी।_
📗 *[बहारे शरीअ़त, जिल्द नं 1, हिस्सा 9, सफा नं 43,]* 📗
○✧➤ _येह सज़ा तो आख़िरत मे मिलेगी लेकिन ज़िना करने वाले पर शरीअ़त ने दुनिया में भी सज़ा मुक़र्रर की है। इस्लामी हुकूमत हो तो बादशाहे वक्त़ या फिर क़ाज़ी पर ज़रूरी है कि ज़िना करने वाले पर जुर्म साबित हो जाने पर शरीअ़त का हुक़्म लगाए।_
○✧➤ _हदीसे पाक में है कि अगर कोई दुनिया में सज़ा से बच गया तो आख़िरत मे उस को सख़्त अज़ाब़ दिया जाएगा और अगर दुनिया में सज़ा मिल गई तो फिर अल्लाह चाहे तो उसे मुआ़फ कर दे।_
*🏻 दुनिया में सज़ा ➧* _अल्लाह के रसूल ﷺ ने ज़िना करने वाले मर्द और औरत को सज़ा का हुक़्म दिया और उस पर अमल भी करवाया।_
○✧➤ _चुनान्चे हदीसे पाक में है कि ज़िना करने वाले के लिए येह सज़ा रखी गई है_
*🏻 हदीस ➧* _ज़िना करने वाले शादी शुदा है तो खुले मैदान में पत्थरों से मार डाला जाए और गै़र शादी शुदा हो तो सौ (100) दुर्रे (चाबुक जिसके सिरे पर नुकीला कीला हो उस से) मारे जाए_
📕 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 968, 980, हदीस नं 1715, सफा नं 615, 625,]* 📕
○✧➤ _ज़्यादा तफ़सील के लिए क़ुरआन करीम मे सूरए "नूर" की दूसरी आयत का मुताला करें।_
○✧➤ _हिन्दुस्तान में चूँकि इस्लामी हुकूमत नही इसलिए यहाँ इस्लामी सज़ा भी नही दी जा सकती। लिहाजा जो इस गुनाह में पड़े हुए है वोह आज ही से सच्ची तौबा कर ले और अल्लाह से गिड़गिड़ा कर मुआ़फ़ी माँगे। अगर अल्लाह राज़ी हो गया तो उन के सारे गुनाह मुआ़फ़ कर देगा।_
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*⚘⇩ ◥◣ पेशावर औरतें ◢◤ ⇩⚘*
○✧➤ _अक्सर नवज़वान शादी से पहले अपने आप पर क़ाबू नही रख पाते और वोह अपनी हवस मिटाने के लिए बाज़ारी औरतों का सहारा लेते हैं। कुछ तो शादी के बाद भी अपनी बीवी के होते हुए पेशावर बाज़ारी औरतों के पास जाना नही छोड़ते।_
○✧➤ _येह बाज़ारी औरतें वोह है जिन्होंने हया व शर्म के नक़ाब को उठाया और बे गै़रती व बेशर्मी के लिबास को पहेना है वोह यक़ीनन इन्सानी सोसायटी (Society) के लिए वोह ख़तरनाक कीड़े है जो पिलेग, (Plague) और हैज़ा के कीड़ों से ज़्यादा दुनिया के लिए ख़तरनाक है।_
○✧➤ _अगर आप एक पिलेट में तरह तरह के खाने खट्टे, मीठे, कड़वे, तेज, तीखे, सब मिला कर रख दे तो वोह कुछ दिनों बाद सड़ेंगे, बदबू पैदा होगी, कीड़े पड़ जाएंगे।_
○✧➤ _बस येह बाज़ारू औरतें भी उसी पिलेट की तरह है। देखो इन के पावडर लिपस्टिक पर न बहलना ! बालों की बनावट और कपड़ों की सजावट पर न रिझना ! येह वही ख़ूबसूरत दस्तर से ढ़की पिलेट है। जिस में अलग अलग मिज़ाज़ वाले इन्सानो के हाथ पड़ चुके है और मुख्तलिफ़ किस्म के माद्दो ने एक जगह मिल कर इसे इस क़दर सड़ा दिया है और ऐसे बारीक बारीक कीड़ों को पैदा कर दिया है जो देखने में नही आते ! तुम ज़रा इस के पास गए और उन्होंने तुम्हे डंग मारा । येह ऐसा नाग है जिस का काटा साँस भी नही लेता, एक वक्त़ की ज़रा सी लिज़्जत पर अपनी ऊमर भर की दौलत, आराम व राहत तन्दुरूस्ती व सेहत और ऐैश व इशरत को न खो बैठना, देखो।_
*🏻 आयत ➧* _हमारा रब इरशाद फ़रमाता है_
*﷽*
قُل لِّلْمُؤْمِنِينَ يَغُضُّوا مِنْ أَبْصَارِهِمْ وَيَحْفَظُوا فُرُوجَهُمْ ۚ ذَٰلِكَ أَزْكَىٰ لَهُمْ ۗ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا يَصْنَعُونَ
*🏻 तर्जुमा ➧* _मुसलमान मर्दों को हुक़्म दो अपनी निगाहें नीची रखे, और अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करे येह उन के लिए बहुत सुथरा है बेशक अल्लाह ही को उन के कामों की ख़बर है ।_
📕 *[तर्जुमा :- कन्जुल ईमान शरीफ, पारा 18, सूरए "नूर" आयत नं 31,]*
○✧➤ _इस आयत की तफ़सीर में इमाम ग़ज़ाली फरमाते है_
○✧➤ _इस आयत में बड़े से मुराद ज़िना करना और छोटे से मुराद बोसा (ग़ैर औरत का चुम्मन) लेना, व बुरी नज़र से देखना और छूना है"।_
📕 *[मुका़शेफातुल क़ुलूब, बाब नं 22, सफा नं 167,]* 📕
*🏻 आयत ➧* _एक दूसरी जगह इरशाद रब्बानी है_
الْخَبِيثَاتُ لِلْخَبِيثِينَ وَالْخَبِيثُونَ لِلْخَبِيثَاتِ ۖ وَالطَّيِّبَاتُ لِلطَّيِّبِينَ وَالطَّيِّبُونَ لِلطَّيِّبَاتِ ۚ
*🏻 तर्जुमा ➧* _गन्दियां गन्दो के लिए, और गन्दे गन्दियों के लिए, सुथरियां सुथरो के लिए, सुथरे सुथरियों के लिए।_
📕 *[तर्जुमा :-कन्जुल ईमान शरीफ, पारा 18, सूरए "नूर" आयत नं 26,]* 📕
○✧➤ _इस आयत की तफ़सीर में ओलमा-ए-किराम इरशाद फ़रमाते है कि-----बदकार और गन्दी औरतें, गन्दे और बदकार मर्दों के ही लाएक है। इसी तरह बदकार और गन्दे मर्द इसी क़ाबिल है कि उन का तअ़ल्लुक़ उन जैसी ही गन्दी और बदकार औरतों से हो। जबकि पाक़ सुथरे नेक मर्द सुथरी और नेक औरतों के लाएक है और नेक औरत का तअ़ल्लुक़ नेक मर्द से ही किया जा सकता है।_
*🏻 हदीस ➧* _अल्लाह के रसूल ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _अल्लाह तआला अपने बन्दो से क़रीब है और कोई मग़फ़िरत माँगे उसे बख़्शता है लेकिन उस औरत को नही बख़्शता जो अपनी शर्मगाह का ना जाइज़ इस्तेमाल करती है" (यानी धंधा करती है)_
*🏻 हदीस ➧* _फ़रमाया सरकार ﷺ ने_
○✧➤ _जिस ने ज़िना किया या शराब पी अल्लाह तआला उस में से ईमान को ऐसे निकालता है जैसे इन्सान सर से अपना कुर्ता निकाल डालता है"।_
○✧➤ _इस हदीस को पढ़ कर वोह लोग दिल से सोचें जो पेशावर औरतों के पास जाते है और ज़िना करते है। ताअ़ज्जुब है कोई मुसलमान हो और ज़िना करे ! लिल्लाह अब भी होश में आ जाईये वरना फिर उन्हें मौत ही होश में लाएेगी लेकिन याद रहे उस वक्त़ का होश किसी भी काम का न होगा। उस वक्त़ होश आया भी तो क्या!_
*🏻 रिवायत ➧*_हज़रत इमाम ग़ज़ाली (रदिअल्लाहो तआला अन्हो) रिवायत करते है कि_
○✧➤ _जिस ने किसी ग़ैर और (जो शादी शुदा हो) का बोसा (चुम्मन, kiss) लिया उस ने गोया सत्तर (70) कुंवारी लड़कियों से ज़िना किया। और जिसने किसी कुंवारी लड़की से ज़िना किया तो गोया उस ने सत्तर हज़ार (70 000) शादी शुदा औरतों से ज़िना किया"।_
📗 *[मुका़शेफातुल क़ुलूब, बाब नं 22, सफा नं 168,]* 📗
*○✧➤ _बदकार से नेक बनाने के लिए_*
○✧➤ _अगर किसी औरत का मर्द बदचलन और दूसरी औरत के साथ हराम कारी करता है या हराम कारी करने पर उतारू हो तो ऐसी औरत रात को अपने मर्द से सोहबत से पहले बा वुज़ू ग्यारह बार----- ُاَلوَلِى-----"अल वलीय्यो" पढ़े। अव्वल और आख़िर में दुरूद शरीफ़ पढ़े । फिर अपने बदकार मर्द से सोहबत करे (येह अ़मल दो, तीन बार करने से) इन्शाअल्लाह वोह परहेज़गार हो जाएगा।_
○✧➤ _इसी तरह अगर किसी की औरत बदचलन हो या बदकारी करती हो तो वोह भी येह अ़मल दोहराए----इन्शाअल्लाह औरत नेक व परहेज़गार बन जाएगी।_
📕 *[वज़ाइफे़ रज़वीया, सफा नं 219,]* 📕
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*🏻 रिवायत ➧* _इमाम ग़ज़ाली (रदिअल्लाहो तआला अन्हो) फ़रमाते है_
○✧➤ _रिवायत है जिस ने शहवत (Sex, शहवास, मज़े,) के साथ किसी लड़के को चूमा तो वोह पाँच सौ (500) साल दोज़ख की आग मे जलेगा"।_
📕 *[मुका़शेफातुल क़ुलूब, बाब नं 22, सफा नं 169,] 📕*
○✧➤ _किस क़दर बेग़ैरत है वोह लोग जो किसी छोटे लड़के से या फिर किसी ना मर्द (हिजड़े) से सोहबत करते है।_
○✧➤ _क़ुदरत ने इन्सान के बदन के हर हिस्से में एक ख़ास काम की क़ुदरत रखी है चुनान्चे इन्सान के पाख़ाने के मुक़ाम में अन्दर से बाहर फेंकने की क़ुव्वते रखी गई है उज़लात (Limbs) इस मुक़ाम पर निगेहबानी के लिए हर वक्त़ तैयार रहते है कि कोई बाहर की चीज़ अन्दर न जाने पाए लेकिन जब ख़िलाफ़े फ़ितरत उस मुक़ाम से सोहबत की जाती है तो वोह नाजुक़ हिस्सा, जो नर्म और बारीक झिल्ली और छोटी छोटी रगो से बना है कभी सिमटने कभी फेेैेल जाने से जख़्मी हो जाता है रगें दब जाती है कमज़ोर हो जाती है फिर बाद में नीली मोटी रगें चमकने लगती है और बार बार की येह रगड़ जख़्म कर देती है और इन्सान तरह तरह की बीमारियों में फँस जाता है इसी तरह वोह शख़्स जो अपने ऊज़ू-ए-तनासुल (Sex part, लिंग,) को मर्द के पीछे के मुक़ाम में दाख़िल करता है उस के ऊज़ू-ए-तनासुल (लिंग) की नसे इस सख़्त मुक़ाम में बार बार दाख़िल होने की वजह से कमज़ोर हो जाती है नसे और रगें ढीली पड़ जाती है पुटठे ढीले पज़ जाते है और नली मे जख़्म पड़ कर पेशाब में जलन, वहाँ की झिल्ली में खराश पैदा हो जाती है। कसरत के साथ इस ख्वाहिश के पूरा करने की वजह से मनी का ख़ज़ाना खाली हो जाता है, आख़िर में लगातार मनी (धातु) के बहने की बीमारी हो जाती है, आँखों में गड़े, चेहरे पर बे रौनक़ी, दिल व दिमाग कमज़ोर हो जाते है फिर ऐसा इन्सान औरत को मुँह दिखाने के लाएक नही रहता।_
*⚘⇩ ऐसे शख़्स की सज़ा ⇩⚘*
○✧➤ _ऐसे शख़्स के मुत्अ़ल्लिक़ शरीअ़ते इस्लामी का फैसला है कि ऐसे इन्सान को दुनिया में जिन्दा रहने का कोई हक़ नही उस का मर जाना ही इंसानियत के लिए बेहतर है। चुनान्चे हदीसे पाक मे है कि_
*🏻 हदीस ➧* _सरकार ﷺ फ़रमाते है_
○✧➤ _जो मर्द किसी मर्द से सोहबत करे, उन्हें इतने पथ्थर मारो कि वोह मर जाए, ऊपर वाले और नीचे वाले दोनो को मार डालो"।_
📗 *[तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 983, हदीस नं 1487, सफा नं 718, इब्ने माज़ा शरीफ, जिल्द नं 2, बाब नं 143, हदीस नं 334, सफा नं 109,]* 📗
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत इकरेमा ने हज़रत अब्बास (रदिअल्लाहो तआला अन्हो) से रिवायत किया है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया_
○✧➤ _जिन को तुम पाओ के उसने दूसरे मर्द से सोहबत की है तो उसे क़त्ल कर दो करने वाले और करवाने वाले दोनो को क़त्ल कर दो"।_
📕 *[अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 3 बाब नं 348, हदीस नं 1050, सफा नं 376,]* 📕
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*🏻 हदीस ➧* _हज़रते इब्ने शिहाब (रदिअल्लाहो तआला अन्हो) से ऐसे मर्द के मर्द के बारे में पूछा गया (जो मर्द से ही सोहबत करे) इब्ने शिहाब ने फ़रमाया_
○✧➤ _उसे संगसार किया जाए (पथ्थरों से मार मार कर क़त्ल कर दिया जाए) चाहे शादी शुदा हो या गै़र शादी शुदा"।_
📕 *[मोता शरीफ, जिल्द नं 2, किताबुल हुदूद, हदीस नं 11, सफा नं 718,]* 📕
○✧➤ _एक हदीसे पाक मे येह भी आया है कि ऐसे मर्दों को जो आपस में ही सोहबत करे उन्हें एक ऊँचे पहाड़ पर ले जा कर नीचे ढ़केल कर मार डालो अगर वोह बच जाए तो फिर ढ़केलो यहाँ तक की वोह मर जाए।_
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत अली (रदिअल्लाहो तआला अन्हो) ने तो इस ख़बीश काम करने वालों को क़त्ल कर देने पर ही बस न की बल्कि उन्हें आग से जलाया।_
○✧➤ _हज़रते सिद्दीक़े अकबर (रदिअल्लाहो तआला अन्हो) ने उन पर दीवार गिराई जिस के नीचे वोह दब कर मर गये।_
📕 *[बहारे शरीअ़त, जिल्द नं 1 हिस्सा 9, सफा नं 44,]* 📕
○✧➤ _इस दौर में अमेरिका और इंग्लैंड वगै़रा जो साइंस (Science) की तरक्क़ी पर अपने आप को सब से ज़्यादा तहज़ीब वाले और आला समझते है उनके यहाँ आज इस काम के करने वाले ज़्यादा पाए जाते है और वोह इसे कोई अ़येब व गुनाह नही समझते जिस के नतीजे में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने *"एड्स"* नाम की ख़तरनाक बला नाज़िल कर दी है। देखने में येह भी आया है कि इस काम के करने वाले को कुछ अरसे बाद ऐसी आदत हो जाती है कि वोह खुद ऐसा काम कराने के लिए लोगों पर माल खर्च कर के अपनी हवस की आग बुझाता है।_
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने ऊमर (रदिअल्लाहो तआला अन्हो) ने रिवायत किया है कि रसूले अकरम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया_
○✧➤ _ऐैसे लोग जो मर्द से सोहबत करे या सोहबत करवाए उन की तरफ देखना, उन से बात करना, और उन के पास बैठना हराम है"।_
📕 *[मुका़शेफातुल क़ुलूब, बाब नं 22, सफा नं 168,]* 📕
○✧➤ _इस हदीस से वोह लोग इबरत हासिल करें जो बाजारों, दुकानों में, हिजड़ों से हँसी मज़ाक करते है।_
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत इकरेमा का बयान है कि हज़रत इब्ने अब्बास (रदिअल्लाहो तआला अन्हो) ने फ़रमाया_
○✧➤ _नबी-ए-करीम ﷺ ने हिजड़ों पर लअ़नत फ़रमाई और फ़रमाया----"उन्हें अपने घरों से निकाल दो"।_
*🏻 हदीस ➧* _एक दूसरी रिवायत मे है कि_
○✧➤ _सरकार ﷺ ने हिजड़ों को शहेर से निकाल दिया और फ़रमाया-----"हिजड़ों को अपनी बस्तियों से बाहर निकाल दो कि कहीं उन की वजह से अल्लाह तआला तुम पर भी अज़ाब़ नाज़िल न कर दे"।_
📕 *[बुखारीशरीफ, जिल्द नं 3, सफा नं 635,]* 📕
○✧➤ _आह ! अफ़सोस कुछ लोग शादी ब्याह, या किसी और खुशी के मौक़े पर हिजड़ों को अपने घर बुलाना और उन से बेहूदा बातें सुनना अपनी शान समझते है इससे उन के सीने फख़्र और गुरूर से फूल जाते है। शादियों में जब येह हिजड़े आने लगेंगे तो जाहिर है फिर औलाद हिजड़ा न होगी तो क्या होगी।_
*🏻 आख़िरी ज़रूरी बात ➧* _हिजड़ों से सोहबत करने वाले को "एड्स" की बीमारी होना यक़ीनी है और फिर जल्द से जल्द तकलीफ़दा मौत ही उस का अंजाम।_
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○✧➤ _क्या आप ने जानवरों से भी बढ़ कर हैवान देखे है। येह वोह लोग है जिन्हों ने शर्म व हया के कानून की हर ज़न्जीर को तोड़ा है इन्हें कुछ नहीं मिलता तो जानवरों को ही अपनी हवस का शिकार करते है और येह सुबूत देते है कि हम देखने मे तो वैसे इन्सान ही नज़र आते है लेकिन दरिन्दागी के मामले मे जानवरों से भी बढ़ कर है।_
*🏻 गोया ➧* _शर्मे नबी खौफ़े खुदा, येह भी नही, वोह भी नही।_
○✧➤ _इन लोगों में अगर अब भी कोई खौफ़े खुदा और शर्म व हया ज़रा सा भी ज़र्रा बाकी होगा तो वोह यक़ीनन येह हदीसे पाक को पढ़ कर सहम जाएंगे_
*🏻 हदीस ➧* _हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास (रदिअल्लाहो तआला अन्हुमा) से रिवायत है कि नबी-ए-पाक ﷺ ने इरशाद फ़रमाया_
○✧➤ _जो शख़्स जानवरों से सोहबत करे उसे और उस जानवर दोनों को क़त्ल कर दो"।_
📕 *[अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 3, बाब नं 349, हदीस नं 1052, सफा नं 376, इब्नेमाज़ा, जिल्द नं 2, बाब नं 143, हदीस नं 334, सफा नं 108,]* 📕
○✧➤ _लोगों ने हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास से पूछा कि "जानवर ने क्या बिगाड़ा है" ??? उन्होंने फ़रमाया "इस की वजह और सबब तो मैं ने रसूलुल्लाह ﷺ से नही सुना मगर हुज़ूर ने ऐसा ही किया बल्कि उस जानवर का गोश्त तक खाना न पसन्द फ़रमाया।_
○✧➤ _अगर हम इस हदीस पर गौर करें तो इस में चन्द हिक़मते नज़र आती है । शायद हुज़ूर ने जानवर को क़त्ल करने का हुक़्म इस लिए दिया हो कि जब भी उसे कोई देखेगा तो गुनाह का मन्ज़र याद आएगा। दूसरी हिक़मत इस में येह भी हो कि उम्मत को बताना मक़सूद है कि येह काम किस कदर बुरा है इसके करने वाले को क़त्ल किया जाए और जिस से येह काम किया गया वोह किस कदर बुरा है कि उसे भी क़त्ल कर दिया जाए।_ *(वल्लाहो आ़लम)*
○✧➤ _अभी हाल ही में नई ख़ोज से येह भी साबित हुआ है कि जो मर्द या औरत जानवर से अपनी हवस पूरी करे उस को बहुत जल्द एड्स की बीमारी हो जाती है याद रहे "एड्स" का दूसरा नाम मौत है_
*🏻 मसअला ➧* _किसी ना बालिग़ शख़्स ने बकरी, गाय, भैंस, (या और किसी जानवर) के साथ सोहबत की तो उसे डाँट डपट कर व सख़्ती से समझाया जाए । और अगर बालिग़ ने ऐसा काम किया तो उसे इस्लामी सज़ा दी जाएगी जिसका इख़्तियार इस्लामी बादशाह को है, वोह जानवर जब्ह करके दफ़्न कर दिया जाए गोश्त व खाल जला दे पाला न जाए जैसा कि "दुर्रे मुख़्तार" में है।_
📕 *[फ़तावा-ए-रज़वीया, जिल्द नं 5, सफा नं 983,]* 📕
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*🏻 हदीस ➧* _अल्लाह के रसूल ﷺ ने इरशाद फ़रमाया_
○✧➤ _कोई मर्द किसी (ग़ैर) औरत की तरफ़ और कोई औरत किसी (ग़ैर) मर्द की तरफ़ न देखे और एक मर्द दूसरे मर्द के साथ और एक औरत दूसरी औरत के साथ एक कपड़ा औढ़ कर न लेटे"।_
*📕 [मिश्क़ात शरीफ, जिल्द नं 2, हदीस नं 2966, सफा नं 73,]* 📕
○✧➤ _क़ुरबान जाईये उस तबीबे उम्मत नबी-ए-रहमत ﷺ के जिन्होंने औरत को औरत के साथ एक बिस्तर पर एक चादर में आराम करने से मना फ़रमा दिया, मर्दों में जिस तरह इस हरकत से क़ौमे लूत के ना पाक अमल का ख़तरा, औरतों में भी उसी फ़ित्ने का डर, और जो नुक़सान दुनियावी व दीनी मर्दों की इस हरकत से पैदा होते हैं वही औरतों की शरारत व ख़बासत से होगें।_
○✧➤ _अपने हाथ की उँगलियाँ या कोई चीज़, या सिर्फ़ ऊपरी रगड़ और गैर मामूली हरकत, जिस्म की हालत को हर सूरत में तबाह करने वाली, और उमर भर के लिए जिन्दगी बेकार बनाने वाली है। येह हरकत नर्म व नाजुक़ झिल्ली में ख़राश पैदा करके वरम लाएगी इस वरम की वजह से बार बार ख़्वाहिश पैदा होगी। बार बार की इस हरकत से माद्दा निकलते निकलते पतला होगा और दिमाग की नसों पर पहुँच कर घबराहट, बेचैनी व पागल पन के आसार पैदा होगें दूसरी तरफ अपना खून इस अन्दाज़ से बहाने की वजह से दिल कमज़ोर होगा, बेहोशी के दौरे पड़ेंगे। और जब येह पतला माद्दा हर वक्त़ थोड़ा थोड़ा रिस्ते रिस्ते उस मुक़ाम (शर्मगाह) को गन्दा बनाकर सड़ाएगा, इस जहरीले कीड़े होगें, ज़ख़्म भी पैदा हो जाए तो कोई ताअ़ज्जुब नही, पेशाब में जलन इसकी ख़ास अ़लामत है। आखिर कार , मेदा, जिगर, गुरदा, सब के काम ख़राब करेगा आँखों में गड़े, चेहरे पे बेरौनकी, हर वक्त़ कमर में दर्द, बदन का कमज़ोर होना, जरा सा काम से चकराना, दिल घबराना, बात बात में चिड़चिड़ा पन और फिर इन सब के बाद "तपेदिक" (Chronic fever, पुराना ताप,) की ला इलाज बीमारी में गिरफ्तार हो कर मौत का शिकार होना है। और फिर मौत के बाद भी सुकून नही ज़हन्नम का अज़ाब़ बाकी।_
○✧➤ _शायद औरतों ने येह ख़्याल कर रखा है कि येह कोई गुनाह नही या है भी तो माअ़मूली सा, देखो अल्लाह के रसूल ﷺ ने क्या इरशाद फ़रमाया_
*🏻 हदीस ➧* _औरतों का आपस में (ख़ास सूरत में सेक्स के साथ) मिलना उन का आपस का ज़िना है।_
○✧➤ _देखो ! देखो और फ़रमाते है सरकारे दो आलम ﷺ_
○✧➤ _न औरत, औरत के साथ नज़दीकी करे न औरत अपने हाथों से अपने आप को खराब करे, जो औरत अपने हाथों अपने को खराब करती है वोह भी यक़ीनन ज़ानिया (ज़िना करने वाली) है।_
○✧➤ _इस गुनाह के लिए दुनिया का कोई बद तरीन अज़ाब़ भी काफी नही हो सकता इसके लिए ज़हन्नम के वोह दहकते हुए अंगारे और दोज़ख के वोह ड़रावने जहरीले साँप और बिच्छू ही सज़ा हो सकते हैं जिनकी तकलीफ़ हमेशा जारी और बाकी रहने वाली।_
📕 *[बहवाला :- जवानी की हिफ़ाज़त, सफा नं 76, 77, 78,]* 📕
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○✧➤ _क्या आप जानते है ?? इस दौर में नवज़वानो मे जिस कदर बुराइयां पनप रही है उस की सब से बड़ी वजह क्या है?? जी हाँ फ़िल्में ! आज मुसलमानों का तकरीबन हर मकान एक सिनेमा घर बना हुआ है । अब तो हद येह हो गई कि मुसलमान का एक बच्चा जब होश संभालता है तो वोह अपने घर में टीवी के जरिए वोह सब कुछ देखता है और सब कुछ जान लेता है जो उसे इस उम्र में नही जानना चाहिये। जब होश संभालते ही वोह फिल्मों में एक मर्द और औरत के बीच के ख़ास तअ़ल्लुक़ात को देखता है तो उस में भी वही ख़्वाहिश (इच्छा, Wish) पैदा होती है और फिर वोह उम्र से पहले ही अपने आप को जवान समझने लगता है फिर येह ही ख़्वाहिश आगे चल कर उम्र के साथ साथ ज़्यादा बढ़ने लगती है और इस ख़्वाहिश को पूरा करने के लिए ग़लत तरीक़ों का इस्तेमाल करने लगता है यहाँ तक कि जब भी वोह तन्हा (अकेला) होता है तो जिन्सी ख़्वाहिश उसे परेशान कर देती है और वोह उसे पूरा करने के लिए अपने ही हाथों अपनी क़ुव्वते (मनी) को निकाल कर मज़ा हासिल करता है। अक्सर लड़के स्कूलों और कॉलेज में बाथरूम (Bathroom) में जा कर येह सब करते है।_
○✧➤ _एक बार का येह अ़मल फिर हमेशा की आदत बन जाता है। जिस के नतीजे में सिवाए नुक़सान के कुछ नही मिलता। हाथों के इस नर्म व नाजुक़ (लिंग) से हमेशा की छेड़ छाड़ उसे कमज़ोर बना देती है और बारीक बारीक रगें पुठ्ठे भी इस सख़्ती को बर्दाश्त नही कर सकते चाहे कैसी ही चिकनाहट क्यों न इस्तेमाल में लाई जाए। इस के सब से पहले जो असर होता है वोह ऊज़ू-ए-तनासुल (लिंग) का जड़ से कमज़ोर और लाग़िर हो जाना है इसके अलावा जहाँ जहाँ रगें और पुठ्ठे ज़्यादा दब जाते हैं वोह हिस्सा टेढ़ा हो जाता है। इसके दबने से खून का आना कम होगा। रगें फै'ल नही सकेगी सख़्ती जाती रहेगी, जिस्म ढीला और बेहद लाग़िर हो जाएगा अपने हाथों की इस करतूत के सबब ऐैसा शख़्स औरत के काबिल नहीं रहता। अगर कोई शरीफ इज़्ज़त पसन्द लड़की ऐसे शख़्स के निकाह में दे दी जाए तो उम्र भर अपनी किस्मत को रोएगी । और येह बद नसीब उसको मुँह दिखाने के काबिल न होगा। इस लिए अव्वल तो उस से मिल ही नही सकता कि जब भी औरत से मिलना चाहेगा। पहले ही सब कुछ बाहर गिरा देगा और अगर किसी तरकीब से मिल भी जाए तो माद्दा में औलाद पैदा करने वाले अजज़ा (अंश) पहले ही इस हरकत से मर चुके इस लिए अब ऐसे शख़्स को औलाद से भी मायूस होना पड़ता है_
○✧➤ _याद रखिये येह वोह की़मती ख़ज़ाना है जो खून से बना और खून भी वोह तमाम बदन के ग़िज़ा पहुँचाने के बाद बचा, बस अगर इस ख़ज़ाना (मनी, वीर्य) को इस तेजी के साथ बरबाद किया गया तो दिल (Heart) कमज़ोर होगा। दिल पर तमाम बदन की मशीन का दारोमदार है जिस्म को खून न पहुँचा यानी येह आदत इस हद को पहुँची के खून बनने भी न पाया था कि निकलने की नौबत आ गई तो जिगर का काम खराब हुआ_
○✧➤ _एक जबरदस्त तजुर्बेकार डॉक्टर ने अपनी तहक़ीक (Research) में इस तरह लिखा है कि_
○✧➤ _एक हज़ार तपेदिक (Chronic fever, पुराने बुखार,) के मरीजों को देखने के बाद येह साबित हुआ कि 186 औरतों से ज़्यादा सोहबत करने की वजह से इस बीमारी में फँसे है और 414 सिर्फ़ अपने हाथों से अपनी कुव्वत के बरबाद करने की वजह से। और बाकी दूसरे मरीजों की बीमारी की वजह दूसरी है"।_
○✧➤ _और आगे लिखता है कि_
○✧➤ _हमने 124 पागलों का मुआ़एना किया उन के मुआ़एना (निरीक्षण, Inspection) करने से मअ़लूम हुआ कि उन में से 24 सिर्फ़ अपने हाथों से अपनी कुव्वत को बरबाद करने की वजह से पागल हुए है और बाकी एक सौ दूसरे हजारों वज़ूहात (कारणों) से।_
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*⚘⇩क़ुव्वत Bodly power की बरबदी⇩⚘*
○✧➤ _इन्सानी दौलत का येह अनमोल ख़ज़ाना अगर इन्सानी जिस्म के संदूक में चन्द दिनों तक अमानत रहे तो खून में जज़्ब हो कर खून को कुव्वत देने वाला, सेहत को दुरुस्त और बदन को मजबूत बनाने वाला होगा। रोब व हुस्न व ज़माल को बढ़ाने वाला और मर्दाना कुव्वत में चार चाँद लगाने वाला साबित होगा। दिमाग की तरक़्क़ी पाएगी, याददाश्त तेज़ होगी, आँखों में सुर्खी के डोरे, हिम्मत बुलन्द, हौसला की सर बुलन्दी इस दौलत में बड़ावत की अ़लामत होगा।_
○✧➤ _बाज़ हकीमों ने कहा है कि जिसे हद से ज़्यादा दुबला कमज़ोर, वहशियाना, शक़्ल व सूरत का पाओ, जिसकी आँखों में गड़े पड़ गए हो, पुतलियां फैल गई हो, शर्मीली हो, तन्हाई को ज़्यादा पसन्द करता हो तो उस के बारे में यक़ीन कर लो इस ने अपने हाथों अपना खून बहाया है।_
○✧➤ _हकीमों ने लिखा है कि सौ (100) मरतबा अपनी बीवी से सोहबत करने पर जितनी कमज़ोरी आती है उतनी एक मरतबा अपने हाथों से अपनी मनी बरबाद करने से कमज़ोरी आती है।_
○✧➤ _अाज दुनिया से छुप कर बुराईयाँ कर रहे हो लेकिन येह तो सोचो कि वोह हाज़िर व नाजिर खुदा तो देख रहा है उस से बच कर कहाँ जाएंगे। अल्लाह ने ज़िना को हराम किया उस की सज़ा बताई कि येह सज़ा दुनिया में दी जाए तो आख़िरत के अज़ाब़ से बच जाए लेकिन अपने हाथों इस अनमोल ख़ज़ाने को बरबाद करना ऐसा सख़्त गुनाह ठहराया गया कि दुनिया की कोई सज़ा ऐेैसे जुर्म के लिए काफी नही हो सकती ज़हन्नम का दर्दनाक अज़ाब़ ही इस का भुगतान हो सकता है। ऐसा ना पाक काम करने वाले की सूरत पर खुदा की हजारों लाखों फटकारे ।_
*🏻 हदीस ➧* _फ़रमाते है आक़ाﷺ_
○✧➤ _हाथ के जरिए अपनी कुव्वत (मनी) को निकालने वाला मलऊन है (अल्लाह की तरफ से फटकारा हुआ है)"_
○✧➤ _अगर खुदा न ख़ास्ता (अल्लाह न चाहे) कोई नसीब का दुश्मन इस बुरी आदत का शिकार हो चुका है तो उसे हमारा दर्दमन्दाना मशवरा है कि खुदारा इश्तेहारी दवाओं की तरफ़ न जाए पहले सच्चे दिल से तौबा करे और फिर किसी अच्छे तजुर्बेकार तअ़लीम याफ़्ता हकीम, वैद्य, या डॉक्टर के पास जाईये और बगै़र शर्माए अपना सारा कच्चा चिठ्ठा, सुनाईये, और जब तक वोह बताये बक़ायेदा पूरे परहेज़ के साथ उसके इलाज पर अमल कीजिये उम्मीद है कि कुछ मरहम पट्टी हो जाए।_
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*⚘⇩ ◥◣ तहारत का बयान ◢◤ ⇩⚘*
*🏻 आयत ➧* _अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फ़रमाता है_
اِنَّ اللّٰهَ يُحِبُّ التَّوَّابِيۡنَ وَيُحِبُّ الۡمُتَطَهِّرِيۡنَ
*🏻 तर्जुमा ➧* _बेशक अल्लाह पसंद करता है बहुत तौबा करने वालों को और पसंद करता है सुथरो को।_
📕 *[तर्जुमा :- कन्जुल ईमान शरीफ, पारा 2, सूरए बक़र, आयत नं 222,]* 📕
*🏻 हदीस ➧* _अल्लाह के रसूल ﷺ ने इरशाद फ़रमाया_
○✧➤ _पाक़ीज़गी आधा ईमान है"।_
*🏻 हदीस ➧* _और फ़रमाते है आक़ा ﷺ_
○✧➤ _दीन की बुनियाद पाक़ीज़गी पर है"।_
📕 *[कीम्या-ए-सआ़दत, सफा नं 132,]* 📕
*___________________________________*
*⚘⇩🚿 ग़ुस्ल कब फ़र्ज़ होता है 🚿⇩⚘*
*___________________________________*
○✧➤ _ग़ुस्ल पाँच चीजों से फ़र्ज़ होता है यानी इन पाँच चीजों में से कोई एक सूरत भी पाई जाए तो ग़ुस्ल करना फ़र्ज़ है।_
*🏻 1⃣ मनी के निकलने से ➧* _मर्द ने औरत को छुआ या देखा, या औरत का सिर्फ़ ख़्याल लाया और मज़े के साथ मनी (धातु, वीर्य,) निकली तो ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो गया। चाहे सोते में हो या जागते में। उसी तरह औरत ने मर्द को छुआ या देखा, या उस का ख़्याल लाई और लिज़्जत (मज़े) के साथ मनी निकली तो औरत पर भी ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो गया। इन तमाम बातों का हासिल येह है कि अगर मज़े के साथ मनी (धातु) चाहे औरत से निकले या मर्द से ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाता है।_
*🏻 2⃣ एहतलाम होने से ➧* _यानी सोते में मनी का निकलना जिसे "नाईट फ़ाल" कहते है उससे भी ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाता है येह मर्द और औरत दोनो को होता है। चुनान्चे हदीसे पाक में है_
*🏻 हदीस ➧* _हज़रते उम्मे सलीम (रदिअल्लाहो तआला अन्हा) ने रसूले करीम ﷺ से पूछा या रसूलुल्लाह ﷺ ! अल्लाह तआला हक़ बात बयान करने में नही शर्माता है जब औरत को एहतलाम (नाईट फ़ाल) हो जाए यानी मर्द को ख़्वाब में देखे तो उसके लिए भी ग़ुस्ल ज़रूरी है"?? सरकार ने इरशाद फ़रमाया अगर मनी (धातु) की तरी देखे तो ग़ुस्ल करे"।_
📕 *[बुखारी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 195, हदीस नं 275, सफा नं 193, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द नं 1, बाब नं 89, हदीस नं 114, सफा नं 130,]* 📕
*🏻 मसअ़ला ➧* _रोज़े की हालत में था और एहतलाम (नाईट फ़ाल) हो गया तो रोज़ा न टूटा लेकिन ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो गया।_
📕 *[कानूने शरीअ़त व फ़तावा-ए-रज़वीया, वगै़रा]* 📕
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_*🕋 ⚘ мαιiκo мoια κi βααяgαн - Ё - Aαιiγα мαi Dυα нαi мαιiκo мoια нαмε κεнηε, Sυηηε, ραdнηε, ιiκнηε, βoιηε Sε Ziγαdα Aмαι κi τofεεq - Ё - яαfεεq Aτα Fαямαγε.*_
⚘ امين يارب العالمين ⚘
_*ταιiβ-Ё-Dυα*_
_*мαяноомα ƒαƭเɱα βεgαм*_
*_мαянοοм мυнαммα∂ ѕι∂∂ιգ_*
*_Tαɱαɱ ααLαɱ ε αrωααɦ_*
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