✊ तज़किरए इमाम अहमद रज़ा
🌷★الصــلوة والسلام عليك يارسول الله ﷺ★🌷
اَلۡـحَـمۡـدُ لِـلّٰـہِ رَبِّ الۡـعٰـلَـمِیۡنَ وَ الـصَّـلٰـوۃُ وَ الـسَّـلَامُ عَـلٰی سَـیِّـدِ الۡـمُـرۡ سَـلِـیۡنَ اَمَّـا بَــعۡـدُ فَـاَعُـوۡذُ بِـا لـلّٰـہِ مِـنَ الـشَّـیۡـطٰنِ الـرَّجِیۡمِ ؕ بِـسۡمِ الـلّٰـہِ الـرَّحۡـمٰنِ الـرَّحِـیۡمِؕ
🌷📖 ✧➤ किताब पढ़ने की दुआ दीनी किताब या इस्लामी सबक़ पढ़ने से पहले ये दुआ दी गई है इसे पढ़ ले اِنْ شَــآءَالـلّٰـه عَزَّوَجَلَّ जो कुछ पढ़ेंगे याद रहेगा दुआ ये हैं.★↷
اَللّٰهُمَّ افۡتَحۡ عَلَيۡنَا حِكۡمَتَكَ وَانۡشُرۡ عَلَيۡنَا رَحۡمَتَكَ يَـا ذَا الۡجَلَالِ وَالۡاِكۡرَام
⚘ तर्जुमा ❁☞ ए अल्लाह عَزَّوَجَلَّ! عَزَّوَجَلَّ हम पर इल्म-व-हिकमत के दरवाज़े खोल दे और हम पर अपनी रहमत नाज़िल फरमा ए अज़मत औऱ बुज़ुर्गी वाले,
*📬 अल - मुस्तातराफ़ जिल्द 1 पेज 40 📚*
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*✊ तज़किरए इमाम अहमद रज़ा ✊*
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*🌷👑 विलादते बा सआदत...★↷*
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⚘ ⌬ ➤ मेरे आक़ा आला हज़रत, इमामे अहले सुन्नत, हज़रते अल्लामा मौलाना अलहाज अल हाफ़िज़ अल कारी शाह इमाम अहमद रज़ा खान अलैरहमा की विलादते बा सआदत बरेली शरीफ के महल्ला जसुली में 10 शव्वालुल मुकर्रम 1272 सी.ही. बरोज़े हफ्ता ब वक़्ते ज़ोहर मुताबिक़ 14 जून 1856 ई. को हुई। सने पैदाइश के ऐतिबार से आप का नाम अल मुख्तार (1272 ही.) है।
*✍ हयाते आला हज़रत, 1/58 📒*
*_आला हज़रत का सने विलादत_*
⚘ ⌬ ➤ मेरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा ने अपना सने विलादत पारह 28 सूरतुल मुजा-दलह की आयत 22 से निकाला है। इस आयते करीमा के इल्मे अब्जद के ऐतिबार के मुताबिक़ 1272 अदद है और हिजरी साल के हिसाब से येही आप का सने विलादत है। इस पर आला हज़रत अलैरहमा ने इरशाद फ़रमाया मेरी विलादत की तारीख इस आयते करीमा में है *ये है जिन के दिलो में अल्लाह ने ईमान नक्श फरमा दिया और अपनी तरफ की रूह से इन की मदद की*
⚘ ⌬ ➤ आप का नामें मुबारक मुहम्मद है और आप के दादा ने अहमद रज़ा कह कर पुकारा और इसी नाम से मश्हूर हुए।..✍
*✍ तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 2 📚*
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*तोहफा ए दीन कुबूल फरमाए आप*
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*🌷👑 हैरत अंगेज़ बचपन...★↷*
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⚘ ⌬ ➤ उमुमन हर ज़माने के बच्चों का वही हाल होता है जो आज कल बच्चों का है, के सात आठ साल तक तो उन्हें किसी बात का होश नही होता और न ही वो किसी बात की तह तक पहोच सकते है, मगर आला हज़रत अलैरहमा का बचपन बड़ी अहमिय्यत का हामिल था।कमसिन और कम उम्र में होश मन्दी और क़ुव्वते हाफीजा का ये आलम था के साढ़े चार साल की नन्ही सी उम्र में क़ुरआन मुकम्मल पढ़ने की नेअमत से बारयाब हो गए। 6 साल के थे के रबीउल अव्वल के मुबारक महीने में मिम्बर पर जलवा अफ़रोज़ हो कर मिलादुन्नबी के मौजू पर एक बहुत बड़े इज्तिमा में निहायत पुर मग्ज़ तक़रीर फरमा कर उल्माए किराम और मसाईखे इज़ाम से तहसीन व आफरीन की दाद वसूल की।
⚘ ⌬ ➤ इसी उम्र में आप ने बगदाद शरीफ के बारे में सम्त मालुम कर ली फिर ता दमे हयात गौषे आज़म के मुबारक शहर की तरफ पाउ न फेलाए। नमाज़ से तो इश्क़ की हद तक लगाव था चुनांचे नमाज़े पंजगाना बा जमाअत तकबिरे उला का तहफ़्फ़ुज़ करते हुए मस्जिद में जा कर अदा फ़रमाया करते।
⚘ ⌬ ➤ जब किसी खातुन का सामना होता तो फौरन नज़रे नीची करते हुए सर जुका लिया करते, गोया के सुन्नते मुस्तफा का आप पर गल्बा था, जिस का इज़हार करते हुए हुज़ूरे पुरनूर की खिदमत में यु सलाम पेश करते है
*नीची नज़रो की शर्म हया पर दुरुद*
*उची बिनी की तफअत पे लाखो सलाम*
⚘ ⌬ ➤ आला हज़रत अलैरहमा ने लड़क पन में तक़वा को इस क़दर अपना लिया था के चलते वक़्त क़दमो की आहत तक सुनाई न देती थी। 7 साल के थे के माहे रमज़ान में रोज़े रखने शुरू कर दिये...✍
*✍ फतावा रज़विय्या, 30/16 📚*
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*🌷👑 बचपन की एक हिकायत...★↷*
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⚘ ⌬ ➤ जनाबे अय्यूब अली शाह साहिब अलैरहमा फरमाते है के बचपन में आप को घर पर एक मौलवी साहिब क़ुरआन पढ़ाने आया करते थे। एक रोज़ का ज़िक्र है के मोलवी साहिब किसी आयत में बार बार एक लफ्ज़ आप को बताते थे मगर आप की ज़बाने मुबारक से नही निकलता था वो "ज़बर" बताते थे आप "ज़ेर" पढ़ते थे ये केफिय्यत जब आप के दादाजान हज़रते रज़ा अली खान रहमतुल्लाह अलैह ने देखि तो आला हज़रत अलैरहमा को अपने पास बुलाया और कलामे पाक मंगवा कर देखा तो उस में कातिब ने गलती से ज़ेर की जगह ज़बर लिख दिया था, यानी जो आला हज़रत अलैरहमा की ज़बान से निकलता था वो सही था। आप के दादा ने पूछा के बेटे जिस तरह मोलवी साहिब पढ़ाते थे तुम उसी तरह क्यू नही पढ़ते थे अर्ज़ की में इरादा करता था मगर ज़बान पर काबू न पाता था।
⚘ ⌬ ➤ आला हज़रत अलैरहमा खुद फरमाते थे के मेरे उस्ताद जिन से में इब्तिदाई किताब पढ़ता था, जब मुझे सबक पढ़ा दिया करते, एक दो मर्तबा में देख कर किताब बंद कर देता, जब सबक सुनते तो हर्फ़ ब हर्फ़ सूना देता। रोज़ाना ये हालत देख कर सख्त ताज्जुब करते। एक दिन मुझसे फरमाने लगे अहमद मिया ! ये तो कहो तुम आदमी हो या जिन के मुझ को पढ़ाते देर लगती है मगर तुम को याद करते देर नही लगती !
⚘ ⌬ ➤ आप ने फ़रमाया के अल्लाह का शुक्र है में इंसान ही हु, हा अल्लाह का फ़ज़लो करम शामिल है...✍
*✍ हयाते आला हज़रत, 168 📕*
*✍तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 5 📚*
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*🌷👑 पहला फतवा...★↷*
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⚘ ⌬ ➤ मेरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा ने सिर्फ 13 साल 10 माह 4 दिन की उम्र में तमाम मुरव्वजा उलूम की तक्लिम अपने वालीद मौलाना नकी अली खान अलैरहमा से कर के सनदे फरागत हासिल कर ली। इसी दिन आप ने एक सुवाल के जवाब में पहला फतवा तहरीर फ़रमाया था।
⚘ ⌬ ➤ फतवा सही पा कर आप के वालिद ने मसनदे इफ्ता आप के सुपुर्द कर दी और आखिर वक़्त तक फतावा तहरीर फरमाते रहे...✍
*✍ हयाते आला हज़रत, 1/279 📕*
*✍ तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 6 📚*
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*🌷👑 सिर्फ एक माह में हिफ़्ज़े क़ुरआन...★↷*
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⚘ ⌬ ➤ हज़रत अय्यूब अली साहिब अलैरहमा का बयान है के एक रोज़ आला हज़रत अलैरहमा ने इरशाद फ़रमाया के बाज़ न वाक़िफ़ हज़रात मेरे नाम के आगे हाफ़िज़ लिख दिया करते है, हाला के में इस लक़ब का अहल नही हु।
⚘ ⌬ ➤ अय्यूब अली फरमाते है के आला हज़रत अलैरहमा ने इसी रोज़ से दौर शुरू कर दिया जिस का वक़्त गालिबन ईशा का वुज़ू फरमाने के बाद से जमाअत क़ाइम होने तक मख़्सूस था।रोज़ाना एक पारह याद फरमा लिया करते थे, यहाँ तक के तीसवें रोज़ तीसवाँ पारह याद फरमा लिया।
⚘ ⌬ ➤ और एक मौक़ा पर फ़रमाया के में ने कलामे पाक बित्तरतिब ब कोशिश याद कर लिया और ये इस लिये के उन बन्दगाने खुदा का (जो मेरे नाम के आगे हाफ़िज़ लिख दिया करते है) कहना गलत साबित न हो।
*✍ हयाते आला हज़रत, 1/208 📕*
*✍तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 9 📚*
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*🌷👑 इश्के रसूल ﷺ...★↷*
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⚘ ⌬ ➤ मेरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा इश्के मुस्तफा का सर से पाउ तक नमूना थे। आप का नातिया दीवान "हदाईके बख्शीश शरीफ" इस अम्र का शाहिद है। आप की नाके कलम बल्कि गहराइये क्लब से निकला हुवा हर मिसरा मुस्तफा जाने रहमत से आप की बे पाया अक़ीदत व महब्बत की शहादत देता है।
⚘ ⌬ ➤ आप ने कभी दुन्यवि ताजदार की खुशामद के लिये कोई कसीदा नही लिखा, इस लिये के आप ने हुज़ूरे ताजदारे रिसालत की इताअत व गुलामी को पहोंचे हुए थे, इस का इज़हार आप ने एक शेर में इस तरह फ़रमाया
_इन्हें जाना इन्हें माना न रखा गैर से काम_
_लिल्लाहिल हम्द में दुन्या से मुसलमान गया_
⚘ ⌬ ➤ एक मर्तबा रियासत नानपारा (जिल्ला बहराइच यूपी) के नवाब की तारीफ़ में शुअरा ने क्साइड लिखे। कुछ लोगो ने आप से भी गुज़ारिश की के हज़रत आप भी नवाब साहिब की तारीफ़ में कोई कसीदा लिख दे। आप ने इस के जवाब में एक नात शरीफ लिखी जिसका मतलअ ये है
_वो कलामे हुस्ने हुज़ूर है के गुमाने नक्स जहां नही_
_ये फूल खार से दूर है ये शमा है के धुँआ नही_
⚘ ⌬ ➤ मुश्किल अलफ़ाज़ के माना , कमाल=पूरा होना , नक्स=खामी , खार=काटा
*🌷👑 शरहे कलामे रज़ा...★↷*
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⚘ ⌬ ➤ मेरे आक़ा महबूबे रब्बे जुल जलाल का हुस्नो जमाल दरजाए कमाल तक पहुचता है, यानी हर तरह से कामिल व मुकम्मल है इस में कोई खामी होना तो दूर की बात है, खामी का तसव्वुर तक नही हो सकता, हर फूल की शाख में काटे होते है मगर गुलशने आमिना का एक येही महकता फूल ऐसा है जो काटो से पाक है, हर शमा में ऐब होता है के वो धुँआ छोड़ती है मगर आप बज़मे रिसालत की ऐसी रोशन शमा है के धुंए (यानी हर तरह) से बे ऐब है...✍
*✍ तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 11 📚*
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*🌷👑 बेदारी में दीदारे मुस्तफा..★↷*
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⚘ ⌬ ➤ मेरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा दूसरी बार हज के लिये हाज़िर हुए तो मदिनए मुनव्वरह में नबीये रहमत की ज़ियारत की आरज़ू लिये रौज़ए अतहर के सामने देर तक सलातो सलाम पढ़ते रहे, मगर पहली रात किस्मत में ये सआदत न थी। इस मौके पर वो मारूफ़ नातिया ग़ज़ल लिखी जिस के मतलअ में दामन रहमत से वाबस्तगी की उम्मीद दिखाई है
_वो सुए लालाज़ार फिरते है_
_तेरे दिन ऐ बहार फिरते है_
*🌷👑 शरहे कलामे रज़ा..★↷*
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⚘ ⌬ ➤ ऐ बहार ज़ूम जा ! के तुज पर बहारो की बहार आने वाली है। वो देख ! मदीने के ताजदार जानिबे गुलज़ार तशरीफ़ ला रहे है ! मकतअ में बारगाहे रिसालत में अपनी आजिज़ी और बे मिस्किनी का नक्शा यु खीचा है
_कोई क्यू पूछे तेरी बात रज़ा_
_तुझ से शैदा हज़ार फिरते है_
*🌷👑 शरहे कलामे रज़ा..★↷*
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⚘ ⌬ ➤ इस मकतअ में आशिके माहे रिसालत आला हज़रत अलैरहमा कलामे इन्किसारि का इज़हार करते हुए अपने आप से फरमाते है : ऐ अहमद रज़ा ! तू क्या और तेरी हक़ीक़त क्या ! तुझ जेसे तो हज़ारो सगाने मदीना गलियो में यु फिर रहे है ! ये ग़ज़ल अर्ज़ करके दीदार के इन्तिज़ार में मुअद्दब बेठे हुए थे के किस्मत अंगड़ाई ले कर जाग उठी और चश्माने सर (यानी सर की खुली आँखों) से बेदारी में ज़ियारते महबूबे बारी से मुशर्रफ हुए
*✍ हयाते आला हज़रत, 1/92 📕*
⚘ ⌬ ➤ क़ुरबान जाइए उन आँखों पर के जो आलमी बेदारी में जनाबे रिसालत के दीदार से शरफ-याब हुई। क्यू न हो के आप के अंदर इश्के रसूल कूट कूट कर भरा हुवा था और आप *"फनाफिर्रसूल"* के आला मन्सब पर फ़ाइज़ थे। आप का नातिया कलाम इस अम्र का शाहिद है...✍
*✍ तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 13 📚*
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*🌷👑 सीरत की बाज़ ज़लकिया...★↷*
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⚘ ⌬ ➤ मेरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा फरमाते है अगर कोई मेरे दिल के दो टुकड़े कर दे तो एक पर لااِلٰهَ اِلَّااللّٰهُ और दूसरे पर مُحَمَّدٌرَّسُوْلُ اللّٰهِ लिखा हुवा पाएगा।
*✍ स्वानेहे इमाम अहमद रज़ा, 96 📕*
⚘ ⌬ ➤ मशाईखे ज़माना की नज़रो में आप वाक़ई फनाफिर्रसूल थे। अक्सर फिराक मुस्तफा में गमगीन रहते और सर्द आहे भरा करते। पेशावर गुस्ताखो की गुस्ताखाना इबारात को देखते तो आँखों से आसुओ की जड़ी लग जाती और प्यारे मुस्तफा की हिमायत में गुस्ताखो का सख्ती से रद करते ताके वो ज़ुज़ला कर आला हज़रत अलैरहमा को बुरा कहना और लिखना शुरू कर दें। आप अक्सर इस पर फख्र किया करते के बारी तआला ने इस डोर में मुझे नामुसे रिसालत मआब के लिये ढाल बनाया है। तरीके इस्तिमाल ये है के बद गोयों का सख्ती ओर तेज़ कलामी से रद करता हु के इस तरह वो मुझे बुरा भला कहने में मसरूफ़ हो जाए। उस वक़्त तक के लिए आक़ा ऐ दो जहा की शान में गुश्ताखि करने से बचे रहेंगे।
⚘ ⌬ ➤ आप गरीबो को कभी खाली हाथ नही लौटाते थे, हमेशा गरीबो की इमदाद करते रहते। बल्कि आखिरी वक़्त भी अज़ीज़ों अक़ारिब को वसिय्यत की के गरीबो का ख़ास ख्याल रखना। इन को खातिर दारी से अच्छे अच्छे और लज़ीज़ खाने अपने घर से खिलाया करना और किसी गरीब को मुत्लक न ज़िडकना
⚘ ⌬ ➤ आप अक्सर तस्फीन व तालीफ़ में लगे रहते। पाचो नमाज़ों के वक़्त मस्जिद में हाज़िर होते और हमेशा नमाज़ बा जमाअत अदा फ़रमाया करते, आप की खुराक बहुत कम थी...✍
*✍ तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 15 📚*
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*🌷👑 दौराने मिलाद बैठने का अंदाज़...★↷*
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⚘ ⌬ ➤ मेंरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा महफिले मिलाद शरीफ में ज़िक्र विलादत शरीफ के वक़्त सलातो सलाम पढ़ने के लिये खड़े होते बाक़ी शिरू से आखिर तक अदबन दो जानू बेठे रहते। यु ही वाइज फरमाते, चार पाच घण्टे कामिल दो जानू ही मिम्बर शरीफ पर रहते।
*✍ हयाते आला हज़रत, 1/98 📗*
⚘ ⌬ ➤ काश हम गुलामाने आला हज़रत को भी तिलावते क़ुरआन करते या सुनते वक़्त नीज़ इजतिमाए ज़िक्रो नात वगैरा में अदबन दो जानू बैठने की सआदत मिल जाए।
*🌷👑 सोने का मुनफरीद अंदाज़...★↷*
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⚘ ⌬ ➤ सोते वक़्त हाथ के अंगूठे को शहादत की ऊँगली पर रख लेते ता के उंगलियों से लफ्ज़ *अल्लाह* बन जाए। आप पैर फेला कर कभी न सोते बल्कि दाहिनी करवट लेट कर दोनों हाथो को मिला कर सर के निचे रख लेते और पाउ मुबारक समेत लेते, इस तरह जिस्म से लफ्ज़ *मुहम्मद* बन जाता।
*✍ हयाते आला हाज़रत, 1/99 📕*
⚘ ⌬ ➤ ये है अल्लाह के चाहने वालो और रसूले पाक के सच्चे आशिक़ो की आदाए...✍
*✍ तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 15 📚*
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*✊ तज़किरए इमाम अहमद रज़ा ✊*
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*🌷👑 ट्रेन रुकी रही...★↷*
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⚘ ⌬ ➤ हज़रत अय्यूब अली शाह साहिब रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हे के मेरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा एक बार पीलीभीत से बरेली शरीफ ब ज़रिआए रेल जा रहे थे। रास्ते में नवाब गन्ज के स्टेशन पर जहा गाडी सिर्फ 2 मिनिट के लिये ठहरती है।
⚘ ⌬ ➤ मगरिब का वक़्त हो चूका था, आप ने गाडी ठहरते ही तकबीर इक़ामत फरमा कर गाडी के अंदर ही निय्यत बांध ली, गालिबन 5 सख्शो ने इक्तिदा की की उनमे में भी था लेकिन अभी शरीके जमाअत नही होने पाया था के मेरी नज़र गेर मुस्लिम गार्ड पर पड़ी जो प्लेट फॉर्म पर खड़ा सब्ज़ ज़ण्डि हिला रहा था, में ने खिड़की से झांक कर देखा के लाइन क्लियर थी और गाडी छूट रही थी, मगर गाडी न चली और हुज़ूर आला हज़रत ने ब इत्मिनान तीनो फ़र्ज़ रकाअत अदा की और जिस वक़्त दाई जानिब सलाम फेरा था गाडी चल दी। मुक्तदियो की ज़बान से बे साख्ता सुब्हान अल्लाह निकल गया।
⚘ ⌬ ➤ इस करामत में काबिले गौर ये बात थी के अगर जमाअत प्लेट फॉर्म पर खड़ी होती तो ये कहा जा सकता था के गार्ड ने एक बुजुर्ग हस्ती को देख कर गाडी रोक ली होगी। ऐसा न था बल्कि नमाज़ गाडी के अंदर पढ़ी थी। इस थोड़े वक़्त में गार्ड को क्या खबर हो सकती थी के एक अल्लाह का महबूब बन्दा नमाज़ गाडी में अदा करता है...✍
*✍ हयाते आला हज़रत, 3/189 📕*
*✍ तज़किरए इमाम अहमद रज़ा, 17 📚*
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*तोहफा ए दीन कुबूल फरमाए आप*
*🕋 ⚘ мαιiκo мoια κi βααяgαн - Ё - Aαιiγα мαi Dυα нαi мαιiκo мoια нαмε κεнηε, Sυηηε, ραdнηε, ιiκнηε, βoιηε Sε Ziγαdα Aмαι κi τofεεq - Ё - яαfεεq Aτα Fαямαγε.*_
⚘ امين يارب العالمين ⚘
_*ταιiβ-Ё-Dυα*_
_*мαяноомα ƒαƭเɱα βεgαм*_
*_мαянοοм мυнαммα∂ ѕι∂∂ιգ_*
*_Tαɱαɱ ααLαɱ ε αrωααɦ_*
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