🌷 तज़किरतुल अम्बिया 🌷
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⚘❂•➤ और बेशक हमने तुमसे पहले कितने ही रसूल भेजे कि जिनमें किसी के अहवाल तुम से बयान फरमाये और किसी के अहवाल बयान नहीं फरमाये।
⚘❂•➤ क़ुरआन में बाज़ अम्बियाए किराम عليه السلام के नाम मज़कूर है और उनके हालात को भी ज़िक्र किया गया है और बाज़ अम्बियाए किराम के नाम तो है लेकिन उनके हालात ज़िक्र नहीं किये गये जैसे हज़रत यसआ और हज़रत जुल्फ़िक़्ल और बाज़ के वाक़यात ज़िक्र है लेकिन नाम नहीं, जैसे हज़रत हज़कैल और हज़रत शमुइल और बाज़ के नाम भी नहीं और हालात भी नहीं जैसे हज़रत दानयाल عليه السلام
⚘❂•➤ क़ुरआन में अम्बियाए किराम के इस्मे गिरामी (नाम)
⚘❂•➤ हज़रत आदम, हज़रत नूह, हज़रत इब्राहिम, हज़रत इस्माइल, हज़रत इस्हाक़, हज़रत याक़ूब, हज़रत युसूफ, हज़रत हूद, हज़रत स्वालेह, हज़रत लूत, हज़रत मूसा, हज़रत हारून, हज़रत शोएब, हज़रत दाऊद, हज़रत सुलेमान, हज़रत ज़करिया, हज़रत यहया, हज़रत इल्यास, हज़रत यसआ, हज़रत इदरीस, हज़रत ज़ुल्क़ीफ़ल, हज़रत युनुस, हज़रत अय्यूब, हज़रत ईसा عليه السلام और हज़रत मुहम्मद मुस्तफा ﷺ...✍
📮 बाक़ी अगली पोस्ट में..أن شاء الله
*📬 तज़किरतुल अम्बिया सफ़ह 23 📚*
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*तोहफा ए दीन कुबूल फरमाए*
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*⚘ ≼ अम्बियाए किराम की तादाद ≽ ⚘*
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⚘❂•➤ अगर्चे मशहूर रिवायत है कि अम्बियाए किराम عليه السلام की तादाद एक लाख चोबीस हज़ार है लेकिन एक रिवायत में दो लाख चोबीस हज़ार का भी ज़िक्र है। एक रिवायत में आठ हज़ार का भी ज़िक्र है। इसलिये बेहतर ये है कि अक़ीदा यह हो कि जितने अम्बियाए किराम रब तआला की तरफ से आये है सब बरहक़ है उन तमाम पर हमारा ईमान है खास तादाद ज़िक्र न की जाये, क्यों की ऐसा न हो कि यह तादाद पर ईमान लाये और वाक़ई में ज़्यादा हो, या ऐसा न हो कि यह ज़्यादा तादाद पर ईमान लाये और वाक़ई में कम हो।
*⚘❂ तंबीह •➤* अम्बियाए किराम की तादाद का हमें यक़ीनी इल्म नहीं क्यूंकि रिवायत मुख़्तलिफ़ है इस से यह लाज़िम नहीं आता कि नबी करीम ﷺ को भी इल्म नहीं था इसी तरह तफसिलन अम्बियाए किराम के वाकियात को न ज़िक्र करने का भी यह मतलब नहीं है कि आप पर बज़रिये वही (क़ुरआन) कई अम्बियाए किराम के हालात ज़ाहिर नहीं किये गये अगर बज़रिये वही (क़ुरआन) आप को खबर दी जाती तो हमें भी इल्म हासिल होता। यह दुरुस्त नहीं क्योंकि नबी ﷺ के अपने इल्म का यह आलम है।
⚘❂•➤ बेशक नबी ﷺ उस वक़्त तक दुन्या से तशरीफ़ नहीं ले गये यहाँ तक कि अल्लाह ने आपको दुन्या व आख़िरत के तमाम गैबी उलूम अता फरमा दिये, अलबत्ता बाज़ चीजों के छुपाने का आप को हुक्म दिया गया था।
*≼ रसूलों और आसमानी किताबो की तादाद ≽*
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⚘❂•➤ तमाम अम्बियाए किराम عليه السلام में से बाज़ ज़्यादा मर्तबा वाले नबी हुए है जिन को रसूल कहा जाता है उन रसूलों की तादाद तिन सो तेरह (313) है और आसमानी किताबों की तादाद कुल एक सो चार (104) है। चार के मुस्तकिल नाम है, तौरेत, इंजील, ज़बूर, क़ुरआन और एक सो के मुस्तकिल नाम नहीं बल्कि उनको सहिफे कहा जाता है।..✍
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*⚘≼ नबी किसे कहा जाता है ≼⚘*
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⚘❂•➤ नबी का लफ्ज़ या तो "नबावह" से बना है जिसका मतलब होता है बुलन्दी मर्तबा और या यह लफ्ज़ बना है "नबा" (बा-साकिन) से जिस का मतलब होता है खबर देना ज़ाहिर करना। और या यह लफ्ज़ बना है "नबाह्" से जिसका मतलब होता है मख़फ़ी आवाज़।
⚘❂•➤ पहले मायने के लिहाज़ से नबी को "नबी" इसलिये कहते है कि तमाम मख्लूक़ से बुलन्द मर्तबा रखता है। दूसरे मायने के लिहाज़ से कि वह हक़ बात को ज़ाहिर करता है और गैबी खबरें देता है और तीसरे मायने के लिहाज़ से वह वही (क़ुरआन) को सुनता है जो आवाज़ दूसरों पर मख़फ़ी होती है।
⚘❂•➤ इसी तरह एक एहतेमाल यह भी है कि यह लफ्ज़ असल में नबीया हो तो उस वक़्त मायने होता है रास्ता, इस सूरत में नबी को नबी कहने की वजह यह होगी कि अल्लाह और मख्लूक़ के दरमियान वास्ता होता है जिस तरह रास्ता मन्ज़िले मक़सूद तक पहुचने का ज़रिया होता है इसी तरह अम्बियाए किराम عليه السلام रब का कुर्ब हासिल करने और मन्ज़िले मुराद को पाने का ज़रिया और वास्ता होते है।
⚘❂•➤ यह तो लफ्ज़ "नबी" के लगवी मायने थे जो सब के सब नबी में बेयक वक़्त जमा होते है। इस्तेलाही तौर पर नबी की तारीफ़ यह है कि "बनिए आदम से हो, यानी इंसान हो, मुज़ककर हो, आज़ाद हो, उसकी तरफ वही आए और लोगों तक अल्लाह के अहकाम पहुचाए, नेक लोगों को जन्नत की बशारत दे और कुफ्फार को जहन्नम से डराये और मिज्ज़ात के ज़रिये उसकी नबुव्वत तो ताईद हासिल होती है।
⚘❂•➤ रसूल का मायना पैगाम पहुचाने वाला, भेजा हुआ। लेकिन इस्तेलाह में रसूल उसे कहते है जिसे किताब भी अता हो या पहली शरीअत पर अमल करना खत्म हो चूका हो तो फिर से पहली शरीअत की तजदीद का हुक्म दिया जाये। हर रसूल नबी ज़रूर होता है लेकिन हर नबी का रसूल होना ज़रूरी नहीं। तमाम रसूलो और अम्बियाए किराम को मिज्ज़ात से तक़्वीयत पहुचाई जाती है अब देखना यह है मिजिज़ा किसे कहते है?..✍
*📬 तज़किरतुल अम्बिया सफ़ह 24 📚*
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*⚘≼ मोजिज़ा ≼⚘*
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⚘❂•➤ आदत के खिलाफ आलात के वास्ता के बगैर मुद्दई नबुव्वत से बाद अज़ ऐलाने नबुव्वत किसी काम का खिलाफे आदत सर ज़द होना, मिजिज़ा कहलाता है। आदत के मुताबिक़ काम करने का नाम मोजिज़ा नहीं, जेसे तेज़ दौड़कर दूसरों से आगे निकल जाना, तेज़ नज़र वाले शख्स का किसी चीज़ को इतनी दूर से देख लेना कि आम आदमी को नज़र न आ सके। इस तरह के काम मिजिज़ा नहीं कहलाते।
⚘❂•➤ आलात के वास्ता से आदत के खिलाफ काम करने का नाम भी मिजिज़ा नहीं। टेलीफोन के ज़रिये दूर दराज़ बात करलेना टेलीविज़न के ज़रिये किसी की शक्ल देख लेना वगैरह इस तरह के काम मिजिज़ात नहीं।
*⚘❂•➤ मिजिज़ा* सिर्फ नबी से आदत के खिलाफ होने वाले काम का नाम है। गैर नबी ने कोई काम हैरत अंगेज़ कर दिया हो तो उसे मिजिज़ा कहना जहालत व दीवानगी है, जेसे आज के दौर में आम कामों को मिजिज़ा कहना अक्सर पढ़े लिखे बेवकूफों में रिवाज पा चूका है जो सरासर बातिल है।
*⚘≼ अरहास ≼⚘*
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⚘❂•➤ ऐलाने नुबुव्वत से पहले नबी से आदत के खिलाफ कोई काम सर ज़द हो तो उसे मिजिज़ा नहीं कहा जायेगा बल्कि उसको अरहास कहा जायेगा जेसे हुज़ूर ﷺ को ऐलाने नुबुव्वत से पहले ही पथ्थर सलाम किया करते थे और हज़रत ईसा عليه السلام ने बचपन में कलाम फ़रमाया।..✍
*📬 तज़किरतुल अम्बिया सफ़ह 25 📚*
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*⚘≼ कौन नबी नहीं हो सकते ≼⚘*
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⚘❂•➤ मोअन्नस को नबी नहीं बनाया गया क्यूंकि तब्लीगे दीन उनसे मुमकिन नहीं। नबी को घर से बाहर मर्दों के हुजूम और मजालिस में अहकाम इलाहिया पहुंचाने होते है यह काम मोअन्नस से नहीं हो सकते। गुलाम नबी नहीं हो सकता क्योंकि गुलाम दूसरे लोगों की नज़र में हक़ीर होता है और मालिक की इजाज़त के बगैर कोई काम नहीं कर सकता इसलिये उससे तब्लीगे अहकाम दीन मुमकिन नहीं।
⚘❂•➤ जिन्न और फ़रिश्ते नबी नहीं बनाए गये। जीन्स का जीन्स से फायदा हासिल करना तो मुमकिन होता है लेकिन दूसरी जीन्स से फायदा हासिल करना मुश्किल होता है इस लिये इंसानों को फायदा पहुचाने के लिये नबी का इन्सान होना ज़रूरी है इसलिये अल्लाह ने इर्शाद फ़रमाया अगर हम नबी को फ़रिश्ता बनाते जब भी उसे मर्द ही बनाते। (अनआम 6)
⚘❂•➤ यह उन बताया गया है जो अम्बियाए किराम عليه السلام को अपने जैसा बशर कह कर ईमान से महरूम होते थे कि हम उस पर ईमान क्यों लाये तो अल्लाह ने फ़रमाया कि नबी की तालीम से फैज़ हासिल करने का यही तरीक़ा है कि नबी इन्सानी शक्ल में भेजा जाये ताकि वह लोग फायदा हासिल कर सके। अगर फ़रिश्ते को नबी बनाते तो उसे असली शक्ल में देखने की इन्सानो में ताकत ही न होती। अगर फ़रिश्ते को नबी बनाया भी होता तो इन्सानी शक्ल में ही आता ताकि लोग उससे फैज़ हासिल कर सके।..✍
*📬 तज़किरतुल अम्बिया सफ़ह 25 📚*
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*⚘≼ नबी गुनाहों से पाक होते है ≼⚘*
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⚘❂•➤ इमाम क़ाज़ी अयाज़ رحمة الله عليه फ़रमाते है फ़ुक़हाए किराम और मुतक्लिमीन में से मुहक़्केकिन की एक जमाअत का मज़हब यही है कि अम्बियाए किराम عليه السلام जिस तरह क़ब्ल अज़ नबुव्वत और बाद अज़ नबुव्वत कबीरा गुनाहों से पाक है उसी तरह सगीरा गुनाहों से भी पाक है।
*⚘≼ अम्बियाए किराम अखलाके अज़ीमा के मालिक होते है ≼⚘*
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⚘❂•➤ अम्बियाए किराम को अल्लाह ने ऐलाने नबुव्वत से पहले भी ऐसे आला और पाकीज़ा अख़्लाक़ अता किये होते है ताकि लोग उनके माज़ी हाल मुस्तक़बिल पर कोई ऐतराज़ न कर सकें। यानी यह पाकीज़ा अख़्लाक़ उनको तमाम औक़ात में हासिल रहते है सुजाअत, बुर्दबारी, करीमाना गुफ्तगू वगैरह हर तरह के अच्छे अख़्लाक़ के मालिक होते है और रज़ील व घटिया कामों से पाक होते है।..✍
*📬 तज़किरतुल अम्बिया सफ़ह 26 📚*
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*⚘≼ नफ्से नबुव्वत में तमाम अम्बिया बराबर है ≼⚘*
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⚘❂•➤ तमाम अम्बियाए किराम عليه السلام नफ्से नबुव्वत में यानी बहैसियत नबी होने के बराबर है। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि किसी नबी की नबुव्वत असली हो और किसी नबी की नबुव्वत आरज़ी हो। बल्कि तमाम अम्बियाए किराम की नबुव्वत असली है। किसी नबी की नबुव्वत आरज़ी नहीं। हाँ अलबत्ता दरजात के लिहाज़ से बाज़ अम्बियाए किराम को बाज़ पर फ़ज़ीलत हासिल है और तमाम अम्बियाए किराम से अफ़्ज़ल हमारे नबी करीम ﷺ है।
⚘❂•➤ दुन्या में तशरीफ़ लाने के लिहाज़ से सबसे पहले आने वाले नबी हज़रत आदम عليه السلام है और सब से आखरी में तशरीफ़ लेन वाले हज़रत मुहम्मद ﷺ है।..✍
*📬 तज़किरतुल अम्बिया सफ़ह 26 📚*
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*⚘≼ हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام हिस्सा - 01 ≼⚘*
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*⚘ अल्लाह का फरिश्तों से मशवरा ⚘*
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⚘❂•➤ अल्लाह ने हज़रत आदम عليه السلام की तख़्लीक़ से पहले फरिश्तों से मशवरा किया।और याद कीजिए ! जब आपके रब ने फरिश्तों से फ़रमाया बेशक में बनाने वाला हूँ ज़मीन में (अपना) नायब। (बक़रह 30)
*⚘ मशवरा करने की हिकमत ⚘*
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⚘❂•➤ अल्लाह का फरिश्तों से फरमाना कि में ज़मीन में खलीफा बनाने वाला हूँ मआजअल्लाह उनसे इजाज़त तलब करना मक़्सूद नहीं था बल्कि सिर्फ मशवरा तलब करना था और वह भी ऐहतेयाजी या ला इल्मी की वजह से नहीं, क्योंकि अल्लाह किसी अम्र में किसी का मोहताज नहीं बल्कि मशवरा तलब करने में हिकमत यह थी कि इसमें फरिश्तों और खलीफा का इकराम पाया जाये, क्योंकि रब तआला का फरिश्तों से मशवरा तलब करने में फरिश्तों की अज़मते शान वाजेह होती है और खलीफा के मुतअल्लिक़ मशवरा करने में खलीफा की अज़मत भी वाज़ेह होती है कि उसकी तख़्लीक़ से पहले ही उसका नूरानी मख्लूक़ में ज़िक्र हो रहा है।
*⚘ हदिष मरफुअ ⚘*
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⚘❂•➤ बेशक मेरे रब ने मेरी उम्मत के बारे में मुझसे मशवरा तलब फ़रमाया। यह मशवरा तलब करना भी उसी हिकमत के पेशे नज़र था कि इसमें हुज़ूर ﷺ और आपकी उम्मत की इज़्ज़त अफ़ज़ाई हो। अल्लाह ने अपनी ला इल्मी या ऐहतेयाजी के तौर पर मआजअल्लाह नबी ﷺ से मशवरा नहीं किया। इसी तरह अल्लाह ने हुज़ूर ﷺ को हुक्म फ़रमाया आप इनसे, उमुर में मशवरा करें।
⚘❂•➤ यहाँ सहाबा से मशवरा करने का हुक्म इस लिये नहीं दिया गया कि आप सहाबा के मशवरे के मोहताज थे बल्कि सहाबा की इज़्ज़त अफ़ज़ाई के लिये मशवरे का हुक्म दिया गया। और इस वजह से भी अल्लाह ने फरिश्तों से मशवरा किया और नबी ﷺ को सहाबा से मशवरा करने का हुक्म दिया गया कि लोग इससे सबक़ हासिल करें और अपने मामलात में एक दूसरे से मशवरा किया करें।..✍
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*⚘≼ हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام हिस्सा 03 ≼⚘*
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*⚘≼ नुक्ता ≼⚘*
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⚘❂•➤ अल्लाह ने हज़रत आदम عليه السلام को खलीफा बनाने के मुतअल्लिक़ जो मशवरा किया इससे मुराद सिर्फ आदम عليه السلام नहीं और आप की औलाद भी मुराद नहीं बल्कि आदम عليه السلام और आपकी औलाद से बाज़ हज़रात जो इस खिलाफत के मनसब के अहल होंगे यह सब मुराद है और वह अफ़राद आदम عليه السلام की औलाद में हज़रत मुहम्मद ﷺ तक पैदा होने वाले तमाम अम्बिया व रसूल है।
⚘❂•➤ अम्बियाए किराम तमाम के तमाम फरदन फरदन मासूम है लेकिन सिद्दीक़ीन, औलिया, स्वालेहीन फरदन फरदन मासूम नहीं, अलबत्ता इज्तिमाई तौर पर खता से महफूज़ है। यही वजह है कि उन हज़रात का इस्तेमाइ फैसला उम्मत को क़बूल करना लाज़िम हो जाता है।
⚘❂•➤ जब यह साबित हुआ कि खिलाफत का हक़दार वह है जिसमें यह इस्तेदाद पाई जाये तो खुद वाज़ेह हुआ कि औरत की फितरत सलीमा और तबियत मुस्तक़ीमा इस क़ाबिल नहीं कि जुमुआ या बाक़ी नमाज़ों की इमामत या खिलाफत यानी हाकमियत उस के सुपुर्द की जाये। औरत अपनी फितरती और तबई कमज़ोरी की वजह से यह काम सर अन्जाम नहीं दे सकती।..✍
*📬 तज़किरतुल अम्बिया सफ़ह 28 📚*
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*⚘≼ हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام हिस्सा 04 ≼⚘*
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*खलीफा बनाने का मक़सद*
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⚘❂•➤ खलीफा बनाने का मक़सद यही था कि वह अल्लाह के अहकाम मखुल्क तक महुंचाए और रब के अवामीर व नवाहि का निज़ाम जारी करे, मुसलमानों की अक्सरियत जब इस निज़ाम को चाहने वाली हो तो उम्मते मुस्लिमा का कुफ्फार पर गल्बा रहता है लेकिन यह उसी वक़्त होता है जब मुसलमान अपने ईमान व आमाल में कामिल हो, कामिल ईमान का मैयर यह है कि अल्लाह और रसूलल्लाह ﷺ की महब्बत तमाम मुहब्बतों पर ग़ालिब हो और अल्लाह की राह में मौत की तमन्ना कामिल और ग़ालिब हो।..✍
*📬 तज़किरतुल अम्बिया सफ़ह 36 📚*
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*⚘≼ हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام हिस्सा -5 ≼⚘*
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*मुसलमानो की जुबुं हाली की वजह हिस्सा - 01* ••──────•◦❈◦•──────••
⚘❂•➤ खिलाफ़ते राशिदा अदलिया के बाद मुसलमानों पर दुन्या की महब्बत ग़ालिब आ गई। अल्लाह और उसके रसूल ﷺ की महब्बत उन के दिलों में रासिख न रही, दुन्या की महब्बत की वजह से मौत से उनके दिलों में कराहत पैदा हो गई और अल्लाह की राह में जान देने का जज़्बा कामिल न रहा, जिसकी वजह से उम्मते मुस्लिमा बदहाली का शिकार हो गई, गैरों पर उस को ग़ालिब रहने की नेअमत से महरूम कर दिया गया।
⚘❂•➤ सुनन अबू दाऊद और बहकी की हदिष में उम्मते मुस्लिमा की इस बदहाली का ज़िक्र निहायत ही अलमनाक सूरत में वारिद है। हज़रत सुबान से रिवायत है रसूलल्लाह ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया
⚘❂•➤ ऐ मुसलमानों ! क़रीब है कि काफिरों की जमाअते तुम पर हमला आवर होने के लिये इस तरह एक दूसरे को बुलायेंगी जेसे किसी प्याले में खाना रखा हो और उसे खाने के लिये हर तरफ से लोगों को बुलाया जाये। सहाबा ने अर्ज़ की कि हुज़ूर ! क्या उस वक़्त हम क़लील होंगे ? फ़रमाया नहीं तुम उस वक़्त बहुत कसीर तादाद में होंगे लेकिन तुम उस वक़्त सैलाब के झाग और उस के खस व खशाक की तरह होंगे (यानी ईमानी कुव्वत व शुजाअत तुम में बाक़ी न रहेगी)। अल्लाह तुम्हारी हैबत और तुम्हारा रोब दुश्मन के दिल से निकाल देगा और तुम्हारे दिलों में बुजदिली और कमज़ोरी पैदा कर देगा। सहाबा ने अर्ज़ किया हुज़ूर ! बुजदिली और कमज़ोरी का सबब क्या होगा ? फ़रमाया दुन्या की महब्बत और मौत की कराहत।..✍
*📬 तज़किरतुल अम्बिया सफ़ह 29 📚*
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*⚘≼ हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام हिस्सा 06 ⚘≼*
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*⚘ मुसलमानो की जुबुं हाली की वजह 02 ⚘*
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⚘❂•➤ ज़ाहिर है कि जो शख्स दुन्या से महब्बत करेगा मौत उसे नापसंद होगी। अर्सा दर्ज़ा से मुसलमान इसी बदहाली में मुब्तला है और मौजूदा दौर में यह बदहाली ऐसी खौफनाक सूरत इख़्तियार कर गई है कि इसके नताइज के तसव्वुर से भी दिल लरज़ जाता है।
⚘❂•➤ ख्याल रहे कि हर दौर में नेक लोग, असहाबे इल्म व तक़्वा रहे है, इन्हीं के दम क़दम से निज़ामे दुन्या चल रहा है और दुन्या की बक़ा है लेकिन अक्सरियत जब गुनाहों में मुब्तला हो जाती है तो कम तदाद में नेक लोग भी हलाकत की ज़द में आ जाते है अगर्चे वह हलाकत उनके लिये अज़ाब नहीं होती, जैसा कि हदिष में वारिद है
⚘❂•➤ जब अल्लाह किसी क़ौम पर अज़ाब भेजता है तो नेक व बद सभी उसमें हलाक हो जाते है फिर जब वह उठाये जायेंगे तो हर एक का उठाया जाना उसके अच्छे या बुरे आमाल के मुताबिक़ होगा।
*✍ (बुखारी) 📚*
⚘❂•➤ मुसलमान अगर अपनी अज़मते रफ्ता को हासिल करना चाहते है और उनकी तमन्ना यह है कि वह काफिरों पर ग़ालिब आ जाये तो उसका वाहिद हल यह है कि तमाम मुसलमान मजमुइ तौर पर कामिल ईमान रखे, अल्लाह और उसके रसूल ﷺ की महब्बत पर किसी और चीज़ पर तरजीह न दे, इसी महब्बत और कामिल ईमान की वजह से ज्ज़बए जिहाद और शौके शहादत पैदा करें तो कोई वजह नहीं कि मुसलमान अपनी इस अज़मते दूर रफ्ता को हासिल न कर ले जो सहाबा के दौर में कुफ्फार पर मुसलमानों को हासिल थी कि मुसलमानों की हैबत से कुफ्फार के आज़ा पर कपकपी तारी होती।..✍
*📬 तज़किरतुल अम्बिया सफ़ह 29 📚*
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*⚘≼ हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام हिस्सा 07 ≼⚘*
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*⚘अल्लाह के मशवरा तलब करने पर फरिश्तों का ताज्जुब से सवाल⚘*
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⚘❂•➤ जब अल्लाह ने फरिश्तों से खलीफा बनाने का मशवरा तलब किया तो फरिश्तों ने ताज्जुब करते हुए रब से सुवाल किया क्या ऐसे को (नायब) करेगा जो उसमें फसाद फैलाये और खून रेज़ियां करे ? और हम तुझे सराहते हुए तेरी तस्बीह करते और तेरी पाकी बोलते है। फरिश्तों ने रब पर कोई एतराज नहीं किया और न ही कोई मुखालफत की बल्कि उनको अल्लाह ने पहले ही यह इल्म दे रखा था कि जो खलीफा में बनाने वाला हूँ उसमे और उसकी औलाद में अनासिर अरबा की आमेज़िश होगी जो एक दूसरे के मुखालिफ होंगे यानी आग, मिट्टी, पानी, हवा का मजमुआ होगा। यह इल्म फरिश्तों को रब के बताने से हासिल हुआ था या उन पर लौहे महफूज़ को मुनकसिफ करने से हासिल हुआ था। उन्होंने समझा कि मुखालिफ और ज़िद की चीज़ें मिलने से तो फसाद ही फसाद होगा, खलीफा तो इसलिये बनाया जाता है कि ज़मीन में भलाई क़ायम हो और लोगों को बलाई की राह पर क़ायम किया जाये और उनके नफ़्सो की तकमील की जाये और उनमें अल्लाह के अहकाम जारी किये जाये तो जिस की बिना ही फसाद पर होगी उस से यह काम कैसे हो सकेंगे ?
⚘❂•➤ यह सवाल उनका मख़फ़ी हिकमत के पता चलाने के लिये था या इस सवाल पर तअज्जुब करते हुए था कि जो फसाद फेलाने वाले होंगे उनसे ज़मीन को आदाब करना और उसमे सलाहियत पैदा करना क्योंकर मुमकिन होगा ? ख्याल रहे कि यह फरिश्तों की इज्तेहादि खता थी कि उन्होंने समझा शायद तमाम इंसान ऐसे होंगे हालांकि अम्बियाए किराम मासूम होने की वजह से नेक और पारसा, सालेह व मुत्तक़ी लोग अल्लाह की हिफाज़त में होने की वजह से फसाद बरपा करने से पाक है।
⚘❂•➤ फरिश्तों के ख्याल के मुताबिक़ उनकी तस्बीह व तक़दिस और इस्मत के पेशे नज़र वह खिलाफ़ते इलाहया के ज़्यादा मुस्तहिक़ थे, उनके इस तरह के कसुरे इल्म को ज़ाहिर करने के लिये अल्लाह ने फ़रमाया ऐ मेरे फरिश्तों ! में वह सब कुछ जानता हु जो तुम नहीं जानते। महज़ तस्बीह व तक़दिस मैयारे खिलाफत नहीं और न ही मुख़्तलिफ़ और एक दूसरे की ज़िद अनासिर से मुरक्कब होना मनसबे खिलाफत के मनाफि है। बल्कि खिलाफत का मैयार यह है कि अल्लाह का खलीफा जिन चीज़ों का गैरो को हुक्म दे उन पर खुद भी अमल करे, इसलिये सारे इंसान फसाद और नाहक़ खुनरेजि करने के गुनाहों में मुब्तला नही होंगे, उनमें कुछ मासूम होंगे जो अल्लाह के खलीफा बनने के हक़दार होंगे।..✍
*📬 तज़किरतुल अम्बिया सफ़ह 30 📚*
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*⚘≼ हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام हिस्सा 08 ≼⚘*
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*⚘आदम عليه السلام के उलूम⚘*
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⚘❂•➤ और अल्लाह ने आदम को तमाम अशिया के नाम सिखाए फिर सब अशिया मलायका पर पेश करके फ़रमाया सच्चे हो तो इनके नाम बताओ। हज़रत इब्ने अब्बास, अकरमा, क़तादा, मिजाहिद और इब्ने ज़ुबेर رضى الله عنهم का इर्शाद है अल्लाह ने आप को तमाम चीज़ों के नामों का इल्म अता किया यहाँ तक कि बड़े और छोटे प्याले के नाम भी बताये।
⚘❂•➤ बाज़ हज़रात ने इब्ने अब्बास رضي الله عنه की तरफ क़ौल मन्सूब करते हुए कहा कि आप ने फ़रमाया कि हज़रत आदम عليه السلام को अल्लाह ने जो कुछ हो चूका है और जो कुछ होना है उसका इल्म अता फ़रमाया । पहले मायने और इस मायने के लिहाज़ से मक़सद एक ही है कि अल्लाह ने आप को तमाम चीज़ों और उनके नामों का इल्म अता कर दिया ख्वाह वह पहले पाई जा चुकी है या बाद में पाई जाने वाली है।
⚘❂•➤ इमाम رضي الله عنه ने फ़रमाया कि आप को तमाम चीजों की सिफ़ात और नेमतें और खास तक का इल्म अता फरमा दिया गया था। अल्लाह ने आपको तमाम चीज़ों के अहवाल और उनसे दीनी या दुन्यवी मुनाफ़ा जो मुतअल्लिक़ है उन तमाम का इल्म अता फरमा दिया था। एक क़ौल के मुताबिक़ आप عليه السلام को तमाम ज़बाने सिखा दी गई और एक क़ौल के मुताबिक़ आप को तमाम मलायका के नामों से आगाह कर दिया गया, और एक क़ौल के मुताबिक़ आप को सितारों के नामों पर मुत्तला फरमा दिया गया था।
⚘❂•➤ अल्लामा आलुसी رحمةالله علىه ने मुख़्तलिफ़ अक़वाल नक़ल करने के बाद हकीम तिर्मिज़ी का क़ौल नक़ल किया कि इस आयते करीमा में अस्मा (नाम) से मुराद अस्माए इलाहया है। इस के बाद आपने फ़रमाया मेरे नज़दीक हक़ यह है और तमाम अल्लाह वाले भी इसे ही हक़ मानते है और मनसबे खिलाफत का तक़ाज़ा भी यही है कि आप को तमाम आशिया के नाम का इल्म अता किया गया है। वह अशिया ख्वाह अलवी हो या सिफली जौहरी हों या अर्ज़ी, इन तमाम के नामों को अल्लाह के अस्मा ही कहा जाता है। क्योंकि तमाम चीज़ें अल्लाह की ज़ात पर दलालत करती है, और अल्लाह की ज़ात के जलवे तमाम अशिया से ज़ाहिर होते है अगर्चे अल्लाह उनमें मुक़य्यद नहीं होता।..✍
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*⚘आदम عليه السلام को नाम सिखाए, फरिश्तों को नहीं, क्या वजह ?⚘*
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⚘❂•➤ अलफ़ाज़ के ज़रिये मानी का इल्म हासिल होता है जिसके पढ़ाने वाले का मोल्लिम कहते है और पढ़ने वाले को मूतअल्लीम। सिर्फ मुअल्लिम के पढ़ाने से मूतअल्लीम को इल्म हासिल होना ज़रूरी नहीं बल्कि मूतअल्लीम में इस्तेदाद का पाया जाना ज़रूरी है यानी मूतअल्लीम में समझने की सलाहियत हो तो मुअल्लिम की तालीम का उस पर असर होगा, यह रोज़ मर्रा हम मुशाहदा करते है। एक ही क्लास के लड़कों को उस्ताद पढ़ाता है सब को यकसाँ पढ़ा रहा होता है लेकिन फिर कोई लायक़ होता है और कोई नालायक़, अल्लाह को भी जब आदम عليه السلام को मनसबे खिलाफत अता करना था तो आप को पहले तमाम अशिया और उनकी कैफ़ियात और उनके नामों को समझने की इस्तेदाद भी अता फ़रमाई लेकिन फरिश्तों को हर हर चीज़ के हालात की तफसील को समझने की इस्तेदाद अता नहीं हुई थी क्योंकि उनको मनसब खिलाफत पर फाइज़ करना मकसूद ही नहीं था।..✍
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*⚘आदम عليه السلام को इल्म कैसे अता किया गया था ?⚘*
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⚘❂•➤ आप को तमाम चीज़ों का इल्म दिया गया यानी अल्लाह ने अपनी तमाम मख़लूक़ात में से एक एक जीन्स आपको दिखा दी और उसका नाम बताया, मसनल घोड़ा दिखाकर बता दिया गया कि इसे घोड़ा कहते है और ऊंट दिखाकर बता दिया गया कि इसे ऊंट कहते है इसी तरह एक एक चीज़ दिखा कर उसके नाम बता दिये गये।
⚘❂•➤ आदम عليه السلام को यह खसुसियत हासिल थी की आपको तमाम चीज़ों के नाम हर ज़बान में बता दिये गए थे और वही ज़बाने आपकी औलाद में मुतफर्रिक़ तौर पर पाई जाती है यानी एक चीज़ का नाम आपने हर हर ज़बान में बताया जो ज़बाने भी इजाद होनी थी आपको उनका इल्म पहले से ही अता कर दिया गया था।
*⚘❂ फायदा •➤* जब आदम عليه السلام को तमाम चीज़ों का इल्म दिया गया हर चीज़ के नाम हर ज़बान में सिखाये गए तो सय्यदुल अम्बिया ﷺ के इल्म का मक़ाम क्या होगा ? आला हज़रत رحمة الله عليه ने इस तरह तहरीर फ़रमाया "रहमान ने अपने महबूब को क़ुरआन सिखाया इंसानियत की जान मुहम्मद को पैदा किया माकाना व मायकुन का बयान उन्हें सिखाया।
⚘❂•➤ आला हज़रत ने नबीए करीम ﷺ को इंसानियत की जान कहा। हज़रत अल्लामा आलुसी ने तफ़सीर में तहरीर फ़रमाया तमाम जहान एक जिस्म है और नबी ﷺ कायनात की जान है।
⚘❂•➤ आला हज़रत के तर्जमा से यह वाज़ेह हुआ कि इल्मुल बयान का मतलब यह है कि हबीबे पाक को इल्म अता किया गया, इस पर अल्लामा करतबी की अलजामियउल अहकामिल ब्यान की तफ़सीर मुलाहज़ा हो "यानी इल्मुल ब्यान में ज़मीर मन्सूब का मरजअ इंसान है और इससे मुराद नबीए करीम ﷺ है।
⚘❂•➤ इल्मुल ब्यान में ब्यान से मुराद या तो हलाल व हराम का इल्म और गुमराही से हिदायत देना और या जिस तरह बयान किया गया है कि बयान से मुराद माकाना व मायकुन का इल्म है क्योंकि नबीए करीम ﷺ ने अव्वलीन व आखरिन और क़यामत का ज़िक्र फरमा दिया है यानी आपने सभी गुज़रे हुए और आने वाले और वाक़याते क़यामत से मुत्तला फरमा दिया तो आपको माकाना व मायकुन का इल्म हासिल है।..✍
*📬 तज़किरतुल अम्बिया सफ़ह 32 📚*
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*⚘≼ हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام हिस्सा 12 ≼⚘*
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*⚘इल्म के फ़ज़ाइले अक़लिया व नक़लिया-01⚘*
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⚘❂•➤ तफ़सीर कबीर और अज़ीज़ी के हवाले से इल्म के फ़ज़ाइल पर मुख़्तसर बहस पेशे खिदमत है। फ़क़ीह अबुल लैस समर कंदी رحمة الله عليه ने फ़रमाया कि आलिम कि सोहबत में हाज़िर होने में 7 फायदे है ख्वाह उससे इल्म हासिल करे या न करे।
⚘1⃣ •➤ वह शख्स तालिबे इल्मों के ज़ुमरे में शुमार किया जाता है और उनका षवाब पाता है।
⚘2⃣ •➤ जब तक उस मजलिस में बैठा रहेगा गुनाहों से बचता रहेगा।
⚘3⃣ •➤ जिस वक़्त यह अपने घर से तलबे इल्म की निय्यत से निकलता है हर क़दम पर नेकी पाता है।
⚘4⃣ •➤ इल्म के हल्के में रहमते इलाही नाज़िल होती है जिस में यह भी शरीक हो जाता है।
⚘5⃣ •➤ इल्म का ज़िक्र सुनता है जो कि इबादत है।
⚘6⃣ •➤ वहां जब कोई मुश्किल मसला सुनता है जो उसकी समझ में नहीं आता और उसका दिल तंग होता है तो हक़ तआला के नज़्दीक दिल टुटा हुआ जो रहमत का मुस्तहिक़ होता है उसमे शुमार किया जाता है।
⚘7⃣ •➤ उसके दिल में इल्म की इज़्ज़त और जहालत से नफरत पैदा हो जाती है।
⚘❂•➤ हज़रते अलीكَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم फ़रमाते है कि इल्मे दीन माल पर सात वजह से अफ़्ज़ल है
⚘1⃣ •➤ इल्म पैगम्बरों की मीरास और माल फ़िरऔन, हामान, शद्दान और नमरूद की।
⚘2⃣ •➤ माल खर्च करने से कम होता है मगर इल्म बढ़ता है।
⚘3⃣ •➤ माल की हिफाज़त इंसान को करनी पड़ती है लेकिन इल्म खुद इंसान की हिफाज़त करता है।
⚘4⃣ •➤ मरने के बाद माल तो दुन्या में रह जाता है और इल्मे दीन क़ब्र में साथ होता है।
⚘5⃣ •➤ माल मोमिन और काफ़िर सब को मिल जाता है लेकिन दीन का नफा (यानी क़ब्र व हश्र में कामयाबी) सिर्फ ईमानदार को ही हासिल होता है।
⚘6⃣ •➤ कोई शख्स भी आलिम से बे परवा नहीं लेकिन बहुत से लोगों को मालदारों की ज़रूरत नहीं।
⚘7⃣ •➤ इल्म से पुल सिरात पर गुज़रने की कुव्वत हासिल होगी और माल से कमज़ोरी।..✍
*📬 तज़किरतुल अम्बिया सफ़ह 33 📚*
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*⚘≼ हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلامहिस्सा 14 ≼⚘*
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*⚘इल्म के फ़ज़ाइले अक़लिया व नक़लिया- 03⚘*
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⚘❂•➤ हज़रत अली كَرَّمَ اللّٰهُ تَعَالٰى وَجْهَهُ الْكَرِيْم ने फ़रमाया कि दुन्या 4 शख्सों से क़ायम है
⚘1⃣ •➤ आलिम बा अमल से - यानी इल्मे दीन के हासिल करने के बाद उसके आमाल भी अहकामे दिनिया के मुताबिक़ हों।
⚘2⃣ •➤ ऐसे जाहिल लोगों से जो उलेमा से मुहब्बत रखते हों यक़ीनन उलेमा की सोहबत की वजह से उन्हें नेकी के कामों की रगबत हासिल होगी और उलुमे दिनिया के मसायल से कुछ न कुछ ज़रूर हासिल होंगे।
⚘3⃣ •➤ सखावत करने वाले मालदारों से यानी मालदार जो अल्लाह की राह में माल खर्च करता है वह भी बुलन्द मर्तबा रखता है जो निज़ामे दुन्या के क़ायम रहने का सबब है।
⚘4⃣ •➤ गरीब लोग जिन के पास माल तो नहीं लेकिन वह थोड़े माल और मेहनत व मशक़्क़त पर सब्र करने वाले हों यानी साबिर फ़क़ीर के दम से भी दुन्या क़ायम है।
*⚘अल्लाह ने इर्शाद फ़रमाया⚘*
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⚘❂•➤ बेशक अल्लाह के बन्दों में से अल्लाह से डरने वाले उलमा ही है।
⚘❂•➤ इस आयत में जब लफ्ज़ अल्लाह पर पेश (यानी उर्दू का एराब जिसे लगाने से ऊ की आवाज़ निकलती है) हो और लफ्ज़ उलमा पर ज़बर हो तो मायने होगा कि अल्लाह अपने बन्दों में से उलमा को इज़्ज़त व वक़ार अता फ़रमाता है।
⚘❂•➤ नबीए करीम ﷺ ने फ़रमाया जब इल्मे दीन पढ़ाने वाला शख्स फौत होता है तो उस पर फ़िज़ा से परिन्दे, ज़मीन के तमाम जानवर, दरियाओं में रहने वाली मछलियाँ रोती है।
⚘❂•➤ हज़रत आमिर जहनी رضي الله عنه एक हदिष बयान फ़रमाते है कि क़यामत के दिन इल्मे दीन पढ़ने वाले तालिबे इल्म की स्याही और शहीद के खून को लाया जायेगा। किसी एक को दूसरे पर फ़ज़ीलत हासिल नहीं होगी।
⚘❂•➤ हज़रत मुसअब बिन ज़ुबैर رضي الله عنه ने अपने बेटे को कहा ऐ बेटे इल्म हासिल करो अगर तुम्हारे पास माल भी हुआ तो इल्म तुम्हारा जमाल होगा और अगर तुम्हारे पास कोई माल न हुआ तो इल्म ही तुम्हारा माल होगा।
*⚘❂नोट•➤* अल्लामा इमाम राज़ी رضي الله عنه ने फ़ज़ीलते इल्म में इस मक़ाम पर बहुत तवील बहस की है मुख़्तसर तौर पे कुछ ज़िक्र किया गया है।..✍
*📬 तज़किरतुल अम्बिया सफ़ह 35 📚*
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*⚘≼ हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام हिस्सा 15 ≼⚘*
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*⚘जिस्मे आदम عليه السلام के लिये मिट्टी ली गई⚘* ••──────•◦❈◦•──────••
⚘❂•➤ आदम عليه السلام के जिस्मे अतहर की तख़्लीक़ के लिये मिट्टी लाने के लिये हज़रत जिब्राइल को ज़मीन पर भेजा गया। आप जब तशरीफ़ लाये तो ज़मीन से मिट्टी लेने का इरादा किया तो ज़मीन ने बड़ी आजिज़ी व इंकसारी और गिरया वुज़ारी से अर्ज़ किया कि मेरी मिट्टी से बनने वले शख्सों ने अगर खूंरेज़ियां की या वह ज़ुर्म की वजह से जहन्नम में गये तो तकलीफ होगी।
⚘❂•➤ हज़रत जिब्राइल ज़मीन की आजिज़ी को देखकर वापस चले गये और अल्लाह के हुजूर तमाम माजरा बयान कर दिया इसी तरह इस्रफिल भी आकर वापस चले गये और मिकाइल भी आकर वापस चले गये। इन तमाम के बाद इज़राइल आये उनकी खिदमत में भी ज़मीन ने वही आजिज़ाना गुफ्तगू की लेकिन आपने कहा कि में तेरी बात तस्लीम करूँ या अल्लाह के हुक्म पर अमल करू ? मुझे अल्लाह का हुक्म है इसलिये मुझे तो मिट्टी ज़रूर ही लेकर जाना है, आपने ज़मीन की इन्किसारी की तरफ कोई तवज्जोह नहीं दी बल्कि इरशादे बारी तआला के मुताबिक़ ज़मीन से मिट्टी लेकर रब के हुजूर हाज़िर हो गये, इसी वजह से अल्लाह ने रूह क़ब्ज़ करना भी उनके सुपुर्द किया कि ऐसा न हो कि जिब्राइल, मिकाइल, इस्राफिल में से किसी के ज़िम्मे लगाया तो रूह क़ब्ज़ करने के लिये जायें तो उसके अक़रबा को रोते हुए पाकर इसी तरह छोड़ कर न आ जाये।
*⚘ केसी मिट्टी ली गई ⚘*
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⚘❂•➤ हज़रत अबू मूसा अशअरी से मरफुअ हदिष मरवी है बेशक अल्लाह ने हुक्म दिया कि तमाम ज़मीन से एक मुठ्ठी भर मिट्टी ले आओ। उस मिट्टी में हर किस्म के ज़र्रात शामिल किये गये सुर्ख रंग, सफेद रंग, स्याह रंग और उनके दरमियान रंग वाली मिट्टी ली गई। इसी तरह कुछ मिट्टी नर्म ज़मीन से ली गई और कुछ सख्त ज़मीन से, ऐसे ही तैय्यब या खबीस मिट्टी को शामिल किया गया, जिनते किस्म के रंगों वाली मिट्टी आपके जिस्म में लगाई गई आपकी औलाद में उतने ही रंग पाये जाते है इसी तरह कोई नर्म और कोई सख्त दिल कोई नेक और कोई बुरे।
⚘❂•➤ बाज़ हज़रात ने बयान किया कि हज़रत आदम عليه السلام की मिट्टी में साठ किस्म के रंग शामिल थे वह तमाम आपकी औलाद में पाये जाते है।..✍
*📬 तज़किरतुल अम्बिया सफ़ह 36 📚*
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*⚘ ज़मीन में चश्मे क्यों जारी है ⚘*
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⚘❂•➤ अल्लाह ने जब हज़रत आदम عليه السلام को पैदा करने का इरादा फ़रमाया तो ज़मीन को बताया कि में तुझसे एक मख्लूक़ पैदा करने वाला हूँ जो मेरे मुतीअ होंगे उनको में जन्नत में दाखिल करूँगा और जो मेरे नाफरमान होंगे उनको में जहन्नम की आग में डाल दूंगा। यह सुनकर ज़मीन ने फिर पूछा ऐ अल्लाह मुझसे पैदा होने वाली मख्लूक़ जहन्नम की आग में जायेगी ? रब ने फ़रमाया हाँ, तो ज़मीन इतना रोइ कि उसके रोने से चश्मे जारी हो गये जो क़यामत तक जारी रहेंगे।
*⚘ इंसान को ख़ुशी कम और गम ज़्यादा क्यूं ⚘*
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⚘❂•➤ हज़रत इज़राइल जब मिट्टी को लाये तो उन्हें अल्लाह ने हुक्म दिया कि इसे सफा मरवा पहाड़ियों के पास रख दो यानी वहां रख दो जहां आज कल काबा शरीफ है फिर फरिश्तों को हुक्म दिया कि इसे मुख़्तलिफ़ पानियों से गारा बनाये फिर उस पर चालीस रोज़ बारिश हुई उन्तालीस (39) दिन तो गम व रंज का पानी बरसा और एक दिन ख़ुशी का पानी बरसा। इसलिये इंसान को रंज व गम ज़्यादा रहते है और ख़ुशी कम। फिर उसे मुख़्तलिफ़ हवाओं से खुश्क करके खटकने वाली मिट्टी बनाकर अल्लाह ने खुद अपनी कुदरते कामिला से आप के कालिब को तैयार किया।..✍
*📬 तज़किरतुल अम्बिया सफ़ह 37 📚*
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*⚘≼ हज़रत आदम स्फीउल्लाह عليه السلام हिस्सा 18 ≼⚘*
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*⚘फरिश्तों को आदम عليه السلام के सामने सज्दे का हुक्म⚘*
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⚘❂•➤ आदम عليه السلام की तख़्लीक़ से पहले ही अल्लाह ने फरिश्तों को हुक्म दे रखा था कि तुम्हें मेरे खलीफा के सामने सज्दा करना है। आदम عليه السلام की तख़्लीक़ के बाद फरिश्तों पर तमाम चीजों को पेश करके उनके नाम पूछे, जब फरिश्तों ने अपनी आजिज़ी का इज़हार कर दिया तो फिर आदम عليه السلام से पूछा आप ने तमाम चीज़ों के नाम बता दिये तो फिर हुक्म दिया। इरशादे बारी तआला है : और याद करो जब हमने फरिश्तों को कहा आदम को सज्दा करो सब ने सज्दा किया सिवाए शैतान के उसने इन्कार किया और तकब्बुर किया वह काफिरों से हो गया।
⚘❂•➤ फरिश्तों को सज्दाए ताज़िमी का हुक्म दिया गया जेसे हज़रत युसूफ عليه السلام के सामने आप के भाइयों ने ताज़िमन सज्दा किया। हमारे नबी ﷺ की शरीअत में सज्दाए ताज़िमी हराम क़रार दिया गया। इबादत की गर्ज़ से सज्दा सिवाए अल्लाह के किसी शरीअत में जायज़ नही रहा।
⚘❂•➤ अल्लामा आलुसी رحمة الله عليه फ़रमाते है ताहम फिर भी सबसे पहले सज्दा हज़रत जिब्राइल ने किया फिर मिकाइल, फिर इस्राफिल फिर इज़राइल عليه السلام ने, फिर तमाम फरिश्तों ने। इसलिये हज़रत जिब्राइल عليه السلام को सबसे बड़ा दर्जा अता किया गया यानी अम्बियाए किराम की खिदमत में उनके पास वही लाने का अज़ीम काम उनके सुपुर्द दिया हुआ। बाज़ हज़रात ने कहा कि सब से पहले सज्दा हज़रत इस्राफिल عليه السلام ने किया इसी लिये उनकी पेशानी पर सारा क़ुरआन लिख दिया गया।..✍
*📬 तज़किरतुल अम्बिया सफ़ह 38 📚*
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*⚘फरिश्तों की तादाद कितनी है ⚘*
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⚘❂•➤ फरिश्तों की तादाद को सिर्फ अल्लाह ही जानता है या नबीए करीम ﷺ को तमाम ज़मीनों आसमानों का इल्म दिया गया तो आप जानते है, लेकिन आपने भी तादाद को ज़िक्र नहीं फ़रमाया, अलबत्ता अल्लामा राज़ी رحمة الله عليه ने इस तरह ज़िक्र फ़रमाया कि फरिश्तों की तादाद बहुत ज़्यादा है क्योंकि नबीए करीम ﷺ ने फ़रमाया
⚘❂•➤ आसमान में चर्चराहत पैदा हुई और हक़ भी यही है कि उनमें चर्चराहत पाई जाये क्योंकि आसमानों में एक क़दम की जगह भी नहीं कि वहां कोई फ़रिश्ता सज्दा या रूकू न कर रहा हो। तमाम इंसान, जिन्न, हैवानात, परिन्दे, आबी जानवर सिर्फ रुए ज़मीन के मकीन फरिश्तों का दसवा हिस्सा है, फिर यह भी सिलसिला सात आसमानों तक फिर अर्श के परदों के साथ और हामिलिने अर्श फरिश्तों की तादाद के मुक़ाबले में यह ऐसे है जेसे समुद्र के मुक़ाबिल एक क़तरा हो।..✍
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*⚘आदम عليه السلام को खलीफए हक़ीक़ी का मज़हर बनाया गया⚘*
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⚘❂•➤ अगर्चे ज़ाहिर तौर पर सबसे पहले खलीफा हज़रत आदम عليه السلام है लेकिन दरहक़ीक़त सबसे पहले खलीफा हमारे नबी ﷺ ही है क्योंकि आपका अपना इरशादे गिरामी यह है में उस वक़्त भी नबी था जब आदम عليه السلام रूह और जिस्म के दर्मियान थे।
⚘❂•➤ हज़रत जिब्राइल عليه السلام अल्लाह के हुक्म से नबीए करीम ﷺ की क़ब्रे अनवर की जगह से मिट्टी ले गये। आबे तसनीम से उसे गूंधा गया जन्नत की नहरों में गोते दिये गये ज़मीनों आसमानों में फिराया गया इसी वजह से हज़रत आदम عليه السلام से पहले ही फरिश्तों ने नबीए करीम ﷺ को पहचान लिया था। फिर उस मिट्टी को आदम عليه السلام के जिस्म से मिला दिया गया और नुरे मुहम्मदी ﷺ से आदम عليه السلام की पेशानी को चमकाया गया। वही नुरे मुहम्मदी दर अस्ल फरिश्तों से सज्दा कराने का सबब बना था।
⚘❂•➤ इमाम राज़ी رحمة الله عليه ने तफ़सीर कबीर में फ़रमाया बेशक फरिश्तों को आदम عليه السلام को सज्दा करने का हुक्म इसलिये दिया गया कि आपकी पेशानी में मुहम्मद ﷺ का नूर रखा गया था। अल्लामा आलुसी رحمة الله عليه फ़रमाते ह दरहक़ीक़त हुज़ूर ﷺ ही अल्लाह की मख्लूक़ में अल्लाह के खलीफए आज़म है और ज़मीनों और बुलन्द आसमानों में सबसे मुक़द्दस इमाम हुज़ूर ﷺ ही है अगर्चे हुज़ूर ﷺ न होते तो न आदम عليه السلام पैदा होते न उनके अलावा कोई और चीज़ । अल्लामा राज़ी और अल्लामा आलुसी رحمة الله عليه की इन इबारत से वाज़ेह हुआ कि खलीफए आज़म ﷺ ही है आदम عليه السلام की खिलाफत आपकी खिलाफत का ज़हूर है।..✍
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*⚘फरिश्तों को जिन्न क्यों कहा गया है ⚘*
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⚘❂•➤ अल्लामा आलुसी رحمة الله عليه फ़रमाते है इसलिये कि वह लोगों की नज़रों से पोशीदा होते है छुपी हुई चीज़ों को जिन्न कहा जाता है इसलिये फरिश्तों को भी जिन्न कह दिया।
⚘❂•➤ इब्लीस के आग से पैदा होने और फरिश्तों के नूर से पैदा होने में भी कोई ज़रर नहीं और उसके फ़रिश्ते होने में इससे कोई एब साबित नहीं हो सकता, क्योंकि आग और नूर का माद्दा एक ही है। एक ही जीन्स से है अलबत्ता अवारीज़ के लिहाज़ पर मुख़्तलिफ़ है यानी जिसके साथ धुएं की आमेजिश है वह आग है और जो साफ़ व शफ़्फ़ाफ़ है वह नूर है।
⚘❂•➤ जिस तरह मिट्टी, रेत, पथ्थर, सुरमा वगैरा का माद्दा और जीन्स एक है अवारिज़ात के लिहाज़ से मुख़्तलिफ़ है।..✍
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*⚘इब्लीस तकब्बुर की वजह से मर्दुद हो गया⚘*
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⚘❂•➤ अल्लाह के हुक्म से इनकार की वजह इब्लीस का तकब्बुर था। जब रब ने उससे पूछा कि तूने सज्दा क्यों नही किया हालांकि मेरा हुक्म था? तो उसने जवाब देते हुए यह कहा में इससे बेहतर हूँ क्योंकि तूने मुझे आग से पैदा किया और इसे मिट्टी से।
⚘❂•➤ यानी जो शान के लिहाज़ से बड़ा हो वो घटिया के सामने (मअज़ल्लाह) सज्दा नहीं करता। इब्लीस हक़ीक़त में आदम عليه السلام की शान को समझने से क़ासिर रहा। उसे यह मालुम न हो सका कि अल्लाह के नबी की शान फरिश्तों से बुलन्द होती है। रब ने इर्शाद फ़रमाया तू जन्नत से निकल जा! तू मर्दुद है और बेशक क़यामत तक तुझ पर लानत है।
⚘❂•➤ सालहा साल तक इबादत करने वाला, रब का मुक़र्रब, नबी की शान में गुस्ताखी करने से एक पल भर में मर्दुद हो गया। जन्नत से निकाल दिया गया। क़यामत तक लानत का मुस्तहिक़ ठहरा दिया गया।..✍
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*⚘शैतानी वस्वसे के असर होने या न होने के लिहाज़ से पांच किस्मे - 01⚘*
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⚘❂•➤ इंसान जिस्म और रूह का मजमुआ है रूह आलमे कुद्स की एक लतीफ मख्लूक़ है जिस्मे आलमे बाला के हक़ायक़ व कमालात और तमाम मनाफे पाये जाते है और जिस्म की तख़्लीक़ मिट्टी से हुई इस लिये इसमें मद्दी असरात और खुसुसिय्यत और ज़मीन की मख़लूक़ात वाले कमालात पाये जाते है।
⚘❂•➤ अल्लाह का खलीफा बनने की इस्तेदाद हर इंसान को जिस्म और रूह के ज़िमन् में अता हुई लेकिन शैतान ने इंसान को जो इस नेअमत से महरूम करने की कोशिश की है उसके नतीजे में इंसानों के पांच गिरोह बन गये।
*⚘ पहला गिरोह ⚘*
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⚘❂•➤ वह जो पूरी तरह शैतान के क़ब्ज़े में आकर खिलाफ़ते इलाहया से बगावत कर बैठा उसने खिलाफत की इस्तेदाद बिलकुल ज़ाया कर दी। अल्लाह की तौहीद और उसकी मारफ़त से उसका कोई तअल्लुक़ न रहा दोनों जहानों की नेक बख्ती और हमेशा की नजात की राहों से दूर जा पड़ा, कोई रूहानी कमाल हासिल करने की उसमें ताक़त न रही यहाँ तक की माद्दी फ़वाइद जानने और उन्हें हासिल करने से भी यह महरूम रहा, यह वह लोग है जो अक्ल व ख़िरद से खाली है जाहिल काफ़िर और मुशरिक है।..✍
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*⚘शैतानी वस्वसे के असर होने या न होने के लिहाज़ से पांच किस्मे 02⚘*
*⚘ दूसरा गिरोह ⚘*
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⚘❂•➤ वह जिस में जिस्मानी इस्तेदाद तो बाक़ी रही मगर शैतान के भटकाने से भटक गया और रूहानी इस्तेदाद को ज़ाया कर दिया, इसलिये रूहानी तक़ाज़ों को बरुए कार लाने से वह महरूम हो गया। मारफते इलाहया तो दरकिनार अल्लाह की हस्ती से भी मुनकिर हो गया, उसने सिर्फ जिस्म और माद्दा को अपना मक़सद समझ लिया और अपनी बकिया इस्तेदाद का रुख माद्दियात ही की तरफ मोड़ दिया, वह अक्लि पेचीदगियों में गुम होकर रह गये, बाज़ ने जदीद इंकिशाफात और माद्दी इजादात में बहुत बड़ी कामयाबी हासिल कर ली, बेशुमार मुफीद चीज़ें ईजाद की। हैरत अंगेज़ आलात ईजाद कर लिये अब उनकी तरक़्क़ी का आखरी मरहला है कि उन्होंने बनी नूअ इंसान की हलाकत के लिये हज़ारों मिल तक मार करने वाले मिसाइल तैयार कर लिये। ज़्यादा तेज़ रफ़्तार हवाई जहाज़ तैयार किये जिनके ज़रिये चंद सेकण्डों में रुए ज़मीन को हलाकत खेज़ मंज़र में तब्दील किया जा सकता है।
⚘❂•➤ खिलाफ़ते इलाहया की वह इस्तेदाद जो बनी नूअ इंसान की जिस्मानी, रूहानी, दुन्यवी, उखरवी फ़वाइद के लिये थी उसे इन्सानो के हलाक कर देने वाले आलात के लिये वक़्फ़ कर दिया गया। अब मामला यहाँ तक पहुंच चुका है कि इन हथियारों को ईजाद करने वाले खुद अपने आपको उन की ज़द में महसूस कर रहे है उन्हें हर वक़्त यह खतरा लाहिक़ है कि हमारे ही ईजाद किये हुए आलात न मालुम किस वक़्त हम पर फट पड़े और कुर्रए अर्ज़ के साथ हम भी लुक़मए अजल बन कर न रह जाएँ।..✍
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*⚘≼ शैतान की दरख्वास्त की मंजूरी ≼⚘*
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⚘❂•➤ बोला मुझे फुर्सत दे उस दिन तक कि लोग उठाये जायें, फ़रमाया तुझे मोहलत है, बोला तो क़सम उसकी कि तूने मुझे गुमराह किया में ज़रूर तेरे सीधे रास्ते पर उनकी ताक में बैठूंगा फिर में ज़रूर उनके पास आऊंगा उनके आगे और उनके पीछे और उनके दाहिने और उनके बाये से और तू उनमे से अक्सर को शुक्रगुज़ार नहीं पायेगा। शैतान यह मोहलत लोगों के उठाये जाने तक तलब करना चाहता था ताकि मौत की सख्ती से बच जाये लेकिन शैतान की यह बात तो न मानी गई अलबत्ता पहली मर्तबा सुर फूंकने तक उसको मोहलत दे दी गई।
⚘❂•➤ सूरए नहल में फ़रमाया बेशक तुझे एक मुक़र्ररा वक़्त तक यानी पहले नफखा तक मोहलत है, यानी पहली मर्तबा सुर फूंकने पर शैतान भी मर जायेगा। अलबत्ता उस वक़्त तक उसे मोहलत है कि वह चारो तरफ से घेरा डाल कर इंसानों के दिलो में वस्वसे डालता रहे और उन्हें बातिल राह की तरफ मायल करता रहे और कुछ लोगों को इताअत से रोके और गुमराही में डाल सके।
⚘❂•➤ अगर्चे शैतान इंसानों को शुबहात और बुराइयों में वाकेय करने का पक्का इरादा कर चुका था और उसे उम्मीद भी थी कि वह अपने मक़सद में कामयाब होगा लेकिन फिर भी उसने कहा कि तू उनमें से अक्सर को शुक्रगुज़ार नहीं पायेगा। दूसरे मक़ाम पर शैतान ने नेक लोगों पर अपना दाव चलाने से आजिज़ होने का यूँ ज़िक्र किया। बोला ऐ मेरे रब! क़सम उसकी कि तूने मुझे गुमराह किया में उन्हें ज़मीन में भुलावे दूंगा और ज़रूर में उन सब को बे राह करूँगा मगर जो उनमें तेरे चुने हुए बन्दे है।
⚘❂•➤ शैतान ने कहा कि में लोगों पर बुरे आमाल अच्छे और मुज़य्यन करके पेश करूँगा इस तरह वह मेरे बहकाने से सीधी राह से हट जायेंगे अलबत्ता ऐ अल्लाह तेरे नेक, मुख्लिस और बरगुज़ीदा बन्दों पर मेरे वर्गलाने का कोई असर नहीं होगा। अल्लाह ने भी शैतान को बता दिया था। बेशक जो मेरे बन्दे है उन पर तेरा कुछ क़ाबू नहीं।..✍
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*⚘ शैतानी वस्वसे के असर होने या न होने के लिहाज़ से पांच किस्मे 03 ⚘*
*⚘ तीसरा गिरोह ⚘*
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⚘❂•➤ वह है जिन में खिलाफ़ते इलाहया की इस्तेदाद तो मौजूद थी मगर शैतान के वर्गलाने का इतना असर उन पर ज़रूर हुआ कि वह गफलत और सुस्ती का शिकार हो गये कि अपनी इस्तेदाद को पूरी तरह बरुए कार न लाये, यह वह आम मुसलमान लोग है जिन्होंने क़दरे क़लील जिस्मानी और रूहानी मुनाफा हासिल किये मगर अपनी सलाहियतों को पूरी तरह काम में न लाने की वजह से रुहानियात या माद्दियात पर कामिल तसर्रुफ़ हासिल न कर सके, बेशक वह मनसबे खिलाफत पर फायज़ नहीं हुए मगर उन्होंने खिलाफ़ते इलाहया से बगावत भी नहीं की, यानी ईमान से हाथ नहीं धोए।
⚘❂•➤ लेकिन यह ख्याल रहे कि इस गिरोह में फिर दो किस्मे है एक वह जिन पर शैतान का असर कम होता है और दूसरे वह जिन शैतान का बहुत ज़्यादा असर होता है अगर्चे ईमान से दूर तो नहीं होते लेकिन बहुत ही ज़्यादा गुनाहों में मुब्तला हो जाते है।..✍
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*⚘≼ शैतानी वस्वसे के असर होने या न होने के लिहाज़ से पांच किस्मे 04 ≼⚘*
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*चौथा गिरोह*
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⚘❂•➤ अल्लाह के उन ख़ास बन्दों का है जिन में अल्लाह की अता फ़रमाई हुई जिस्मानी, रूहानी, इल्मी, अमली पूरी इस्तेदाद मौजूद थी और शैतान के भटकाने का उनकी इस्तेदाद को कोई नुक़्सान न पहुच सका। अल्लाह ने शैतान को मुखातिब फरमा कर पहले ही फरमा दिया था "बेशक मेरे ख़ास बन्दों पर तुझे कोई गल्बा हासिल न होगा।
⚘❂•➤ यह मुक़द्दस गिरोह अम्बियाए किराम और उनके मानने वाले कामिलिन पर मुस्तमिल है जिन्होंने अल्लाह की अता फ़रमाई हुई इस्तेदाद को पूरी तरह काम में लाकर खिलाफ़ते इलाहया के मनसब को पाया, हिकमत व मसलेहत के मुताबिक़ रूहानियत व माद्दियत पर मुतसर्रिफ़ होने और खिलाफ़ते इलाहया के तक़ाज़ों को उन्होंने सही मायनों में पाए तकमील तक पहुंचाया।..✍
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