🌷 सिरते मुस्तफा ﷺ 💐


🌷★الصــلوة والسلام عليك يارسول الله ﷺ★🌷

اَلۡـحَـمۡـدُ  لِـلّٰـہِ  رَبِّ  الۡـعٰـلَـمِیۡنَ    وَ الـصَّـلٰـوۃُ   وَ  الـسَّـلَامُ  عَـلٰی سَـیِّـدِ  الۡـمُـرۡ سَـلِـیۡنَ اَمَّـا بَــعۡـدُ فَـاَعُـوۡذُ   بِـا لـلّٰـہِ   مِـنَ الـشَّـیۡـطٰنِ الـرَّجِیۡمِ ؕ   بِـسۡمِ  الـلّٰـہِ  الـرَّحۡـمٰنِ الـرَّحِـیۡمِؕ

🌷📖 ✧➤ किताब पढ़ने की दुआ दीनी किताब या इस्लामी सबक़ पढ़ने से पहले ये दुआ दी गई है इसे पढ़ ले  اِنْ شَــآءَالـلّٰـه عَزَّوَجَلَّ जो कुछ पढ़ेंगे याद रहेगा दुआ ये हैं.★↷

اَللّٰهُمَّ افۡتَحۡ عَلَيۡنَا حِكۡمَتَكَ وَانۡشُرۡ عَلَيۡنَا رَحۡمَتَكَ يَـا ذَا الۡجَلَالِ وَالۡاِكۡرَام

⚘ तर्जुमा ❁☞ ए अल्लाह عَزَّوَجَلَّ! عَزَّوَجَلَّ हम पर इल्म-व-हिकमत के दरवाज़े खोल दे और हम पर अपनी रहमत नाज़िल फरमा ए अज़मत औऱ बुज़ुर्गी वाले,

*📬 अल - मुस्तातराफ़ जिल्द 1 पेज 40 📚*

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                      🕋﷽🕋

      *❥═❥ ❥~ ​​इल्म ए दीन ~❥ ❥═❥​*
             *पैगाम ए उम्मते मुहम्मदी ﷺ*

​                🅿🅾ST ➪ 0⃣1⃣

           *✊  सिरते  मुस्तफा  ﷺ  ✊*

●BISMILLAHIRRAHMANI RRAHIM●

  *हजरते इब्राहीम अलैहिस्सलाम की औलाद*
     •───────────────•

⚘ ⌬ ➤ बानीये काबा हजरते इब्राहीम खलीलुल्लाह के एक फरजंद का नाम हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम है जो हजरते बीबी हाजिरा के शिकमे मुबारक से पैदा हुए थे हजरते इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उनको और उनकी वालिदा को मक्कए मुकर्रमा में ला कर आबाद किया और अरब की ज़मीन इन को अता फरमाई

     *🌷 औलादें  हजरते  इस्माईल..★↷*
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⚘ ⌬ ➤  हजरते इस्माईल अलैहिस्सलाम के बारा बेटे हुए और इनकी औलाद में अल्लाह ने इस कदर बरकत अता फरमाई की वो बहूत जल्द अरब में फैल गये हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम के एक फरजंद जिन का नाम "कैदार" था वो बहूत ही नामवर हुए और इनकी औलाद खास मक्का में आबाद रही और ये लोग अपने बाप की तरह हमेशा काबा की खिदमत करते रहे, जिसेको दुनिया में तौहीद की सबसे पेहली दर्सगाह होने का शरफ हासिल है इन्ही कैदार की औलाद में "अदनान" नामी निहायत ऊलुल अजम शख्स पैदा हुए और अदनान की औलाद में चंद पुश्तों के बाद "कसी" बहूत ही जाहो जलाल वाले शक्स पैदा हुए जिन्हों ने मक्का ए मुकर्रमा में मुश्तरिका हुकूमत की बूनयाद पर सि. 440 ई. मे एक सल्तनत कायम की कसी के बाद इनके फरजंद "अब्द मनाफ" अपने बाप के जा नशीं हुए फ़िर इनके फरजंद "हाशिम" फ़िर इनके फरंजद "अब्दुल मुत्तलीब" जा नाशी हुए इन्ही अब्दुल मुत्तलीब के फरजंद हजरते अब्दुल्लाह है जिनके फरजंदे अरजुमंद हमारे "हुजूर रहमतूल्लिल आ-लमीन ﷺ " है..✍

*एक   मिशन  ★↷*   अमन   व   मुहब्बत   की   छाओं   में   खिदमात   सुबह  - व -  शाम   करें

आओ   हम   सब   मिल   कर   पैगाम   - ए -   नबी   ﷺ   को   आम   करें  إن شاء الله عزوجل

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     *तोहफा  ए  दीन  कुबूल  फरमाए  आप*

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⚘ ⌬ ➤ हुज़ूर ﷺ के वालिदैन का नसब नामा "किलाब बिन मुर्राह" पर मिल जाता है और आगे चल कर दोनों सिलसिले एक हो जाते है।

⚘ ⌬ ➤ अदनान तक आप का नसब नामा सहीह सनदो के साथ ब इत्तिफ़ाके मुअर्रिखिन साबित है इसके बाद नमो में बहुत कुछ इख़्तिलाफ़ है और हुज़ूर ﷺ जब भी अपना नसब नामा बयान फरमाते थे तो "अदनान" ही तक जिक्र फरमाते थे। मगर इस पर तमाम मुअर्रिखिन का इत्तेफाक है की "अदनान" हज़रते इस्माइल अलैहिस्सलाम हज़रते इब्राहिम खलिलुल्लाह के फरजंदे अर्जुमंद है

⚘ ⌬ ➤ हुज़ूरे अकरम ﷺ का खानदान व नसब नजाबत व शराफत में तमाम दुनिया के खानदानों से अशरफ व आला है। और ये वो हक़ीक़त है की आप ﷺ के दुश्मन कुफ्फार मक्का भी कभी इसका इन्कार न कर सके । चुनांचे अबू सुफ़यान ने जब वो कुफ़्र की हालात में थे बादशाहे रुम हरकुल के भरे दरबार में इस हकीकत का इकरार किया की नबी ﷺ  का आली खानदान है

⚘ ⌬ ➤ हाला की उस वक़्त वो आप के बद तरीन दुश्मन थे और चाहते थे की अगर ज़रा भी कोई गुंजाइश मिले तो आप  की जाते पाक पर कोई ऐब लगा कर बादशाहे रूम की नज़रो से आप का वकार गिरा दे।

⚘ ⌬ ➤ हुज़ूर ﷺ के खानदान का इस कदर बुलंद मर्तबा है की कोई बी हसब व नसब वाला और नेअमत व बुज़ुर्गी वाला आप  के मिस्ल नहीं है...✍

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                 *अब्दुल मुत्तलिब*
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⚘ ⌬ ➤ हुज़ूर ﷺ के दादा "अब्दुल मुत्तलिब" का अस्ली नाम "शैबा" है। ये बड़े ही नेक नफ़्स और आबिदो ज़ाहिद थे। गारे हिरा में खाना पीना साथ लेकर जाते और कई कई दिनों तक लगातार खुदा  की इबादत में मसरूफ़ रहते। रमज़ान के महीने में अकषर गारे हिरा में एतिकाफ किया करते थे। रसूलल्लाह  का नूरे नबुव्वत इन की पेशानी में चमकता था और इनके बदन से मुश्क की खुशबु आती थी।

⚘ ⌬ ➤ मक्का वालो पर जब कोई मुसीबत आती या क़हत पड़ जाता तो लोग अब्दुल मुत्तलिब को साथ ले कर पहाड़ पर चढ़ जाते और बारगाहे खुदा वन्दी में इनको वसीला बना कर दुआ मांगते थे तो दुआ मकबूल हो जाती थी।

⚘ ⌬ ➤ अपने दस्तरखान से परिंदों को भी खिलाया करते थे इसलिये इनका लक़ब "मुतइमूत्तिर" (परिंदों को खिलानेवाला) है। शराब और जीना को हराम जानते थे और अक़ीदे की लिहाज़ से "मुवह्हिद" थे।

⚘ ⌬ ➤ "ज़मज़म शरीफ" का कुआ जो बिलकुल पट कया था आप ही ने उसे नए सिरे से खुदवा कर दुरुस्त किया और लोगो को आबे ज़मज़म से सैराब किया।आप भी काबे के मुतवल्ली और सज्जादा नशीन हुए। अस्हाबे फिल का वाक़िआ आप ही के वक़्त में पेश आया।

⚘ ⌬ ➤ 120 बरस की उम्र में आप की वफ़ात हुई...✍

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          *हज़रते अब्दुल्लाह Part - 1*
            •────────────•

⚘ ⌬ ➤ ये हमारे आक़ा  के वालीदे माजिद है। ये अब्दुल मुत्तलिब के तमाम बेटो में सबसे ज्यादा बाप के लाडले थे। चुकी इन की पेशानी में नुरे मुहम्मदी अपनी पूरी शानो शौकत के साथ जल्वा गर था इसलिये हुस्नो खूबी के पैकर, और जमाल सूरत व कमाल सीरत के आइना दार और ईफ्कत व पारसाई में यक्ताए रोज़कार थे।

⚘ ⌬ ➤ एक दिन आप शिकार के लिए जंगल में तशरीफ़ ले गए थे मुल्क शाम के यहूदी चन्द अलामतो से पहचान गए थे के नबिय्ये आखिरुज़्ज़मा के वालिद माजिद यही है। चुनांचे उन यहूदियो ने आप को बारह कत्ल कर डालने की कोशिश की। इस मर्तबा भी यहूदियो की एक बहुत बड़ी जमात मुसल्लह हो कर इस निय्यत से जंगल में गई की आप को तन्हाई में धोके से कत्ल कर दिया जाए।

⚘ ⌬ ➤ मगर अल्लाह ने इस मर्तबा भी अपने फज़लो करम से बचा लिया। आलमे गैब से चन्द ऐसे सुवार ना गहा नमूदार हुए जो इस दुनिया से कोई मूशा-बहत ही नहीं रखते थे। इन सुवारोने आकर यहूदियो को मार भगाया और आप को ब हिफाज़त उनके मकान तक पहुचा दिया।

⚘ ⌬ ➤ वहब बिन मनाफ भी उस जंगल में थे और उन्होंने अपनी आँखोसे ये सबकुछ देखा। इसलिए उनको हज़रते अब्दुल्लाह से बे इंतिहा मोहब्बत व अकीदत पैदा हो गई।

⚘ ⌬ ➤ ओर घर आ कर ये अज़्म कर लिया की मैं अपनी नुरे नज़र हज़रते आमिना की शादी हज़रते अब्दुल्लाह ही से करूँगा...✍

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                      *शकके सढ्र*
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⚘ ⌬ ➤ एक दिन आप ﷺ चारगाह में थे की एक दम हज़रते हलीमा के एक फ़रज़न्द जमरह दौड़ते और हापते कांपते हुए अपने घर पर आए और अपनी माँ से कहा की अम्मीजान ! बड़ा गजब हो गया, मुहम्मद ﷺ को 3 आदमियो ने जो बहुत ही सफ़ेद लिबास पहने हुए थे, चित लिटा कर उन का शिकम फाड़ डाला है और में इसी हाल में उनको छोड़ कर भागा हुआ आया हु।

⚘ ⌬ ➤  ये सुन कर हज़रते हलीमा और उनके शौहर दोनों बाद हवास हो कर घबराये हुए दौड़ कर जंगल में पोहचे तो ये देखा की आप ﷺ बैठे हुए है। मगर खौफो हिरास से चेहरा जर्द और उदास है, हज़रते हलीमा के शौहर ने प्यार से चूमकर पूछा की बीटा ! क्या बात है ? आप ने फ़रमाया की 3 शख्स मेरे पास आये और मुजको चित लिटाकर मेरे शिकम चाक करके उसमेसे कोई चीज़ निकल कर बाहर फेक दी और फिर कोई चीज़ मेरे शिकम में डाल कर शिगाफ को सी दिया लेकिन मुझे जर्रा बराबर भी कोई तकलीफ नहीं हुई।

⚘ ⌬ ➤  ये वाक़िआ सुन कर हज़रते हलीमा और उनके शौहर दोनों बेहद घबराये और शौहर ने कहा की बहुत जल्द तुम इनको इनके घरवालो के पास छोड़ आओ। इसके बाद हज़रते हलीमा आप को ले कर मक्कए मुकर्रमा आई क्यू की उन्हें इस वाकिए से ये ख़ौफ़ पैदा हो गया था की शायद अब हम कमा हक्कुहु इन की हिफाज़त न कर सकेंगे। और हज़रते हलीम ने आप ﷺ को आप की वालिदा मजीदा के सुपुर्द कर के अपने गाव वापस चली आई और आप ﷺ अपनी वालिदा माजिदा की आगोशे तरबिय्यत में परवरिश पाने लगे...✍

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       *शकके सद्र कितनी बार हुवा...❔*
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⚘ ⌬ ➤ हज़रते मौलाना शाह अब्दुल अज़ीज़ साहिब मुहद्दीशे दहेल्वी ने सूरए अलम नशरह की तफ़सीर में फरमाया है की 4 मर्तबा आप  का मुक़द्दस सीना चाक किया गया और उस में नुरे व हिक्मत का खजिना भरा गया।

⚘ ⌬ ➤ पहलीबार जब आप हजरते हलीमा के घर थे। इस की हकीकत ये थी की हुज़ूर उन वस्वसो और ख़यालात से महफूज़ रहे जिन में बच्चे मुब्तला हो कर खेल कूद और शरारतो की तरफ माइल हो जाते है।

⚘ ⌬ ➤ दूसरी बार 10 बरस की उम्र में हुवा ताकि जवानी की पुर आशोब शहवतो के ख़तरात से आप बे ख़ौफ़ हो जाये।

⚘ ⌬ ➤ तीसरी बार गारे हिरा में हुवा और आप के क्लब में नूर सकीना भर दिया गया ताकि आप वहये इलाही के अज़ीम और गिराबार बोझ को बरदास्त कर सके।

⚘ ⌬ ➤ चौथी बार शबे में'राज में आप का सीना मुबारक चाक करके नूर व हिक्मत के खजानो से मामूर किया गया, ताकि आप के कल्बे मुबारक में इतनी वुस्अत और सलाहिय्यत पैदा हो जाए की आप दीदारे इलाही की तजल्लियो और कलामें रब्बानी की हैबतो और अज़्मतो के मुतहम्मिल हो सके...✍

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                        *बचपन*
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⚘ ⌬ ➤ हुज़ूर ﷺ की तारीखे पैदाइस में इख़्तिलाफ़ है। मगर क़ौले मशहूर यही है की वकीअए "असहाबे फिल" से 55 दिन के बाद 12 रबीउल अव्वल ब मुताबिक 20 एप्रिल 571 इ. विलादते बा सआदत की तारीख है।

⚘ ⌬ ➤ तारीखे आलम में ये वो निराला और अज़मत वाला दिन है की इसी रोज़ आलमे हस्ती के इज़ाद का बाइष और तमाम जहान के बिगड़े निज़ामो को सुधारने वाला यानी हमारे आका ﷺ आलमे वुज़ूद में रौनक अफ़रोज़ हुए और पाकीज़ा बदन, नाफ बरीदा, खतना किये हुए खुशबु में बेस हुए ब हालते सज्दा, मक्कए मुकर्रमा की मुक़द्दस सर जमीन में अपने वालीदे माजिद के मकान में पैदा हुए।

⚘ ⌬ ➤ आप के चाचा अबू लहब की लौंडी "षुवैबा" ख़ुशी में दौड़ती हुई अबू लहब को भतीजा पैदा होने की ख़ुश खबरी दी तो उसने इस ख़ुशी में शहादत की ऊँगली के इशारे से उसे आज़ाद कर दिया

⚘ ⌬ ➤ जीस्का ष-मरा अबू लहब को ये मिला की उस्की मौत के बाद उस्के घर वालोने उस्को ख्वाब में देखा और हाल पूछा, तो उस्ने अपनी उंगली उठा कर ये कहा की तुम लोगो से जुदा होने के बाद मुझे कुछ खाने पिने को नहीं मिला बजुज़ इस के की "षुवैबा" को आज़ाद करने के सबब से इस ऊँगली के जरए कुछ पानी पिला दिया जाता है।

⚘ ⌬ ➤ इस मौके पर हज़रते अब्दुल हक् मुहद्दीष दहलवी फरमाते है : की जब अबू लहब जो काफ़िर था और उसकी मज़म्मत में क़ुरआन नाज़िल हुआ, हुज़ूर  की विलादत पर ख़ुशी मानाने से, तो उस मुसलमान का क्या हाल होगा जो हुज़ूर  की मुहब्बत में सरशार हो कर ख़ुशी मनाता है और अपना माल खर्च करता है।

⚘ ⌬ ➤ दूध पिने का ज़माना सब से पहले हुज़ूर  ने अबू लहब की लौंडी हज़रते षुवैबा का दूध नोश फ़रमाया। फिर आप ने अपनी वालिदा माजिदा हज़रते आमिना के दूध से सैराब होते रहे। फिर हज़रते हलीमा सादिया आप को अपने साथ ले गई और अपने काबिले में रख कर आप को दूध पिलाती रही और इन्ही के पास आप के दूध पिने का ज़माना गुज़रा...✍

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                 *उम्मी लक़ब PaRT~1*
                 •──────────•

⚘ ⌬ ➤  हुज़ूरे अक़्दस ﷺ का लक़ब "उम्मी" है इस लफ्ज़ के दो मा'ना है या तो ये "उम्मुल कुरा" की तरफ निस्बत है। उम्मुल कुरा मक्कए मुकर्रमा का लक़ब है। लिहाज़ा उम्मी में मा'ना मक्कए मुकर्रमा के रहने वाले।

⚘ ⌬ ➤ या उम्मी के ये मा'ना है की आप ﷺ ने दुन्या में किसी इन्सान से लिखना पढ़ना नहीं सीखा। ये हुज़ूर ﷺ का बहुत ही अज़ीमुश्शान मो'जीजा है की दुन्या में किसी ने भी आप को नहीं पढ़ाया या लिखाया। मगर खुदा वन्दे कुद्दूस ने आप को इस कदर इल्म अ'ता फ़रमाया की आप का सीना अव्वलीन व आखिरिन के उलूम व मआ'रीफ का ख़ज़ीना बन गया। और आप पर ऐसी किताब नाज़िल हुई जिस की शान हर हर चीज़ का रोशन बयान है...✍

      *📬 [ सीरते मुस्तफा, स. 84 ] 📚*

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             *पैगाम ए उम्मते मुहम्मदी ﷺ*

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                 *उम्मी लक़ब ParT~2*
                 •───────────•

⚘ ⌬ ➤  जिस का उस्ताद और तालीम देने वाला खल्लाके आलम عزوجل हो भला उसको किसी और उस्ताद से ता'लिम हासिल करनेकी क्या ज़रूरत होगी❔

⚘ ⌬ ➤  आप ﷺ के उम्मी लक़ब होने का हक़ीक़ी राज़ क्या है ? इसको तो खुदा वन्दे अल्लामुल गुयुब के सिवा और कौन बता सकता है ? लेकिन ब ज़ाहिर इसमें चंद हिकम्ते और फवाइद मा'लूम होते है।

                          *अव्वल*
                      •──────•

⚘ ⌬ ➤  ये की तमाम दुन्या को इल्म व हिक्मत सिखाने वाले हुज़ूरे अक़्दस ﷺ हो और आप का उस्ताद खुदा वन्दे आलम ही हो, कोई इन्सान आप का उस्ताद न हो ताकि कभी कोई ये न कह सके की पैग़म्बर तो मेरा पढ़ाया हुवा शागिर्द है।

                           *दुवुम*
                      •──────•

⚘ ⌬ ➤  ये की कोई सख्श कभी ये ख़याल न कर सके की फुला आदमी हुज़ूर ﷺ का उस्ताद था तो शायद वो हुज़ूर ﷺ से ज्यादा इल्म वाला होगा।

                          *सीवुम*
                      •──────•

⚘ ⌬ ➤  हुज़ूर ﷺ के बारे में कोई ये वहम भी न कर सके की हुज़ूर चुकी पढ़े लिखे आदमी थे इस लिये उन्हों ने खुद ही कुरआन की आयतो को अपनी तरफ से बना कर पेश किया है और कुरआन उन्ही का बनाया हुवा कलाम है।

                         *चाहरुम*
                      •──────•

⚘ ⌬ ➤  जब हुज़ूर ﷺ सारी दुन्या को किताब व हिक्मत की ता'लिम दे तो कोई ये न कह सके की पहली और पुरानी किताबो को देख देख कर इस किस्म की अनमोल और इन्क़िलाब आफरी ता'लिमात दुन्या के सामने पेश कर रहे है।

                          *पन्जुम*
                      •──────•

⚘ ⌬ ➤  अगर हुज़ूर ﷺ का कोई उस्ताद होता तो आप को उस की ता'ज़िम करनी पड़ती, हाला की हुज़ूर ﷺ को ख़ालिक़े काएनात ने इस लीये पैदा फरमाया था की सारा आ'लम आप की ता'ज़िम करे, इस लीये हज़रते हक़ ने इस को गवारा नहीं फ़रमाया की मेरा महबूब किसी के आगे जानुए तलम्मूज़ तह करे और कोई इसका उस्ताद हो।

        *📬 [ सीरते मुस्तफा, स. 85 ] 📚*

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      *बसरा   में   ईसाई   साधू   ने   आप   ﷺ   को   पहचान   लिया*
                 •─────────•

⚘ ⌬ ➤ जब हुज़ूर ﷺ की उम्र शरीफ 12 बरस की हुई तो उस वक़्त अबू तालिब ने तिजारत की गरज़ से मुल्के शाम का सफ़र किया। अबू तालिब को चुकी हुज़ूर ﷺ से बहुत ही वाहिलाना महब्बत थी इस लीये वो आप को भी इस सफ़र में अपने हमराह ले गए।

⚘ ⌬ ➤  हुज़ूर ﷺ ने ए'लाने नबुव्वत से क़ब्ल तिन बार तिजारती सफर फ़रमाया। दो बार मुल्के शाम गए और एक बार यमन तशरीफ़ ले गए, ये मुल्के शाम का पहला सफर है।

⚘ ⌬ ➤  इस सफ़र के दौरान "बुसरा" में "बुहैर" राहिब (ईसाई साधू) के पास आप का क़ियाम हुवा। उसने तौरेत व इन्जील में बयान की हुई नबिय्ये आखिरुज़्ज़मा की निशानियो से आप को देखते ही पहचान लिया और बहुत अक़ीदत और एहतिराम के साथ उसने आप के काफिले वालो की दा'वत की और अबू तालिब से कहा की ये सारे जहान के सरदार और रब्बुल आ'लमिन के रसूल है, जिन को खुदा ने राहमतुल्लिल आ'लमिन बना कर भेजा है।

⚘ ⌬ ➤ मेने देखा है की शजरो हजर इनको सज्दा करते है और अब्र इन पर साया करता है और इनके दोनों शानो के दर्मियाने मोहरे नबुव्वत है। इस लीये तुम्हारे हक़ में यही बेहतर होगा की अब तुम इन को लेकर आगे न जाओ और अपना माले तिजारत यही फरोख्त कर के बहुत जल्दी मक्का चले जाओ। क्यू की मुल्के शाम में यहूदी लोग इनके बहुत बड़े दुश्मन है। वहा पहुचते ही वो लोग इनको शहीद कर डालेंगे।

⚘ ⌬ ➤ बहेरा राहिब के कहने पर अबू तालिब को खतरा महसूस होने लगा। चुनान्चे उन्हों ने वही अपनी तिजारत का माल फरोख्त कर के हुज़ूर ﷺ को अपने साथ ले कर मक्कए मुकर्रमा वापस आ गए...✍

          *📬 [ सीरते मुस्तफा, स. 86 ] 📚*

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             *का'बे की ता'मीर ParT~1*
           •──────────────•

⚘ ⌬ ➤ आप की रास्त बाज़ी और अमानत व दियानत की बदौलत खुदा वन्दे आ'लम ने आप को इस कदर मक़्बूले खलाइक बना दिया और अक़्ले सलीम और बे मिषाल दानाई का ऐसा अज़ीम जौहर अता फरमा दिया की कम उम्री में आप ने अर्ब के बड़े बड़े सरदारो के झगड़ो का ऐसा ला जवाब फैसला फरमा दिया की बड़े बड़े दानीश्वरो और सरदारो ने इस फैसले की अ'ज़मत के आगे सर झुका दिया, और सब ने बिल इत्तिफ़ाक़ आप को अपना हकम और सरदारे अ'ज़िम तस्लीम कर लिया।

⚘ ⌬ ➤ चुनान्चे इस किस्म का एक वाकिया ता'मीरे का'बा के वक़्त पेश आया जिस की तफ़सील ये है की जब आप की उम्र 35 बरस की हुई तो ज़ोरदार बारिश से हरमे का'बा में ऐसा अ'ज़िम सैलाब आ गया की का'बे की इमारत बिल्कुल ही मुन्हदिम हो गई।

⚘ ⌬ ➤ हज़रते इब्राहिम व इस्माइल का बनाया हुवा का'बा बहुत पुराना हो चूका था।इमालक़ा क़ाबिलए जरहम और क़सी वगैरा अपने अपने वक़्तों में इस का'बे की तामीर व मरम्मत करते रहे थे मगर चुकी इमारत नशीब में थी इस लिये पहाड़ो से बरसता पानी के बहाव का ज़ोरदार धरा वादिये मक्का में हो कर गुज़रता था और अक्षर हरमे का'बा में सैलाब आ जाता था। का'बे की हिफाज़त के लीये बालाई हिस्से में कुरैश ने कई बन्द भी बनाए थे मगर एओ बन्द बार बार टूट जाते थे। इस लिये कुरैश ने ये तै किया की इमारत को ढ़ा कर फिर से का'बे की एक मज़बूत इमारत बनाई जाए जिस का दरवाज़ा बुलंद हो और छत भी हो...✍

    *📬 [ सीरते मुस्तफा, स.  96, 97 ] 📚*

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                 *का'बे की ता'मीर ParT~2*
               •──────────────•

⚘ ⌬ ➤ चुनान्चे कुरैश ने मिलजुल कर ता'मीर का कम शुरू कर दिया। इस ता'मीर में हुज़ूर ﷺ भी शरीक हुए और सरदाराने कुरैश के दोश बदोश पथ्थर उढ़ा उढ़ा कर लाते रहे। मुख़्तलिफ़ क़बीलों ने ता'मीर के लिये मुख़्तलिफ़ हिस्से आपस में तकसीम कर लिये।

⚘ ⌬ ➤ जब इमारत "ह-जरे अस्वद" तक पहुच गई तो क़बाइल में सख्त झगड़ा खड़ा हो गया। हर क़बीला ये चाहता था की हम "ह-जरे अस्वद" को उठा कर दिवार में नस्ब करे। ताकि हमारे क़बीले के लिये ये फख्र व ए'जाज़ का बाइष बन जाए।

⚘ ⌬ ➤ इस कश्मकश में 4 दिन गुज़र गए यहां तक नौबत पहुची की तलवारे निकल आई।  बनु अब्दुद्दार और बनू अदि के क़बीलों ने तो इस पर जान की बाज़ी लगा दी और ज़मानए जाहिलिय्यत के दस्तूर के मुताबिक़ अपनी कस्मो को मज़बूत करने के लिये एक पियाले में खून भर कर अपनी उंग्लिया उसमे डबो कर चाट ली।

⚘ ⌬ ➤ 5 वे दिन हरमे का'बा में तमाम क़बाइले अरब जमा हुए और इस झगड़े को तै करने के लिये एक बड़े बूढ़े शख्स ने ये तज्वीज़ पेश की, की कल जो शख्स सुब्ह सवेरे सब से पहले हरमे का'बा में दाखिल हो उस को पंच मान लिया जाए। वो जो फैसला करदे सब उसको तस्लीम कर ले। चुनान्चे सब ने ये बात मानली...✍

     *📬 [ सीरते मुस्तफा, स. 96, 97 ] 📚*

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                 *का'बे की ता'मीर ParT~3*
               •──────────────•

⚘ ⌬ ➤ खुदा عزوجل की शान, की सुबह को जो शख्स हरमे का'बा में दाखिल हुवा वो हुज़ूर ﷺ ही थे। आप ﷺ को देखते ही सब पुकार उठे की वल्लाह ये "अमिन" है लिहाज़ा हम सब इनके फैसले पर राज़ी है।

⚘ ⌬ ➤ आप ﷺ ने उस झगड़े का इस तरह तस्फिया फ़रमाया की पहले आप ने ये हुक्म दिया की जिस जिस क़बीले के लोग हजरे अस्वद को उसके मक़ाम लर रखने के मुद्दई है उन का एक सरदार चुन लिया जाए। चुनान्चे हर क़बीले वालो ने अपना अपना सरदार चुन लिया। फिर हुज़ूर ﷺ ने अपनी चादर मुबारक को बिछा कर हजरे अस्वद को उस पर रखा और सरदारो को हुक्म दिया की सब लोग इस चादर को थाम कर मुक़द्दस पथ्थर को उठाए। चुनान्चे सब सरदारो ने चादर को उठाया और जब हजरे अस्वद अपने मक़ाम पर पंहुच गया तो हुज़ूर ﷺ ने अपने मुतबर्रक हाथो से इस मुक़द्दस पथ्थर को उढ़ा कर उसकी जगह रख दिया।

⚘ ⌬ ➤ इस तरह एक ऐसी खुरेज़ लड़ाई टल गई जिस के नतीजे में न मालूम कितना खून खराबा होता।

⚘ ⌬ ➤ खानए का'बा की इमारत बन गई लेकिन तामीर के लिये जो सामान जमा किया गया था वो कम पड़ गया इस लिये एक तरफ का कुछ हिस्सा बाहर छोड़ कर नई बुन्याद क़ाइम कर के छोटा सा का'बा बना लिया गया।

⚘ ⌬ ➤ का'बए मुअ'ज़्ज़मा का ये हिस्सा जिस को कुरैश ने इमारत से बहार छोड़ दिया "हतिम" कहलाता है जिस में का'बए मुअ'ज़्ज़मा की छत का परनाला गिरता है...✍

     *📬 [ सीरते मुस्तफा, स. 97, 98 ] 📚*

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  *का'बा कितनी बार तामीर किया गया..❔*
                 •─────────•

⚘ ⌬ ➤ हज़रते अल्लामा जलालुद्दीन सुयूती ने तारीखे मक्का में तहरीर फ़रमाया है की खानए का'बा 🔟 मर्तबा तामीर किया गया।

⚘1⃣ ➤ सबसे पहले फरिश्तों ने ठीक "बैतूल मा'मूर" के सामने जमींन पर खानए का'बा को बनाया।

⚘2⃣ ➤ फिर हज़रते आदम ने इस की तामीर फ़रमाई।

⚘3⃣ ➤ इसके बाद हज़रते आदम के फर्जनदो ने इस इमारत को बनाया।

⚘4⃣ ➤ इसके बाद हज़रते इब्राहिम खलिलुल्लाह और उनके फ़रज़न्द हज़रत इस्माइल ने इस मुक़द्दस घर को तामीर किया। जिसका तज़्किर क़ुरआन में है।

⚘5⃣ ➤ कौमे इमालका की इमारत।

⚘6⃣ ➤ इसके बाद क़ाबिलए जरहम ने।

⚘7⃣ ➤ कुरैश के मुरिशे आला "क़सी बिन किलाब" की तामीर।
8कुरैश की तामीर जिस में खुद हुज़ूर ﷺ ने भी शिरकत फ़रमाई और कुरैश के साथ खुद भी अपने दोशे मुबारक पर पथ्थर उठा कर लाते राहे।

⚘9⃣ ➤ हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर ने अपने दौरे ख़िलाफ़त में हुज़ूर के तज्वीज़ करदा नक्शे के मुताबिक़ तामीर की। यानि हतिम की जमींन को का'बे में दाखिल कर दिया। और दरवाज़ा सत्हे जमींन के बराबर निचा रखा और एक दरवाज़ा मशरिक़ की जानिब और एक मगरिब की जानिब बना दिया।

⚘🔟 ➤ अब्दुल मालिक बिन मरवान उमवि के ज़ालिम गवर्नर हज्जाज बिन यूसफ षकफ़ि ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर को शहीद कर दिया। और इनके बनाए हुए का'बे को ढ़ा दिया। और फिर ज़मानाए ज़हालिय्यत के नक्शे के मुताबिक़ का'बा बना दिया। जो आज तक मौजूद है...✍

     *📬 [ सीरते मुस्तफा, स. 98, 99 ] 📚*

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                 *कारोबारी मशागिल*
               •───────────•

⚘ ⌬ ➤ हुज़ूर ﷺ का अस्ल खानदानी पेशा तिजारत था और चुकी आप ﷺ बचपन ही में अबू तालिब के साथ कई बार तिजारती सफर फरमा चुके थे। जिससे आप ﷺ को तिजारती लेन देन का काफी तजरबा भी हासिल हो चूका था। इसलिये ज़रीअए मआश के लिये आप ﷺ ने तिजारत का पेशा इख़्तियार फरमाया। और तिजारत की गरज़ से शाम व बुसरा और यमन का सफर फ़रमाया। और ऐसी रास्त बाज़ी और अनामत व दियानत के साथ आप ﷺ ने तिजारत कारोबार किया की आप ﷺ के शुरकाए कार और तमाम अहले बाज़ार आप को "अमिन" के लक़ब से पुकारने लगे।

⚘ ⌬ ➤ एक कामयाब ताजिर के लिये अमानत, सच्चाई, वादे की पाबंदी, खुश अख़लाक़ी तिजारत की जान है। इन खुसुसिय्यत में मक्का के ताजिर अमिन ﷺ ने जो तारीखी शाहकार पेश किया है उसकी मिषाल तारीखे आलम में नादिरे रोज़गार है।

⚘ ⌬ ➤ हज़रते अब्दुल्लाह बिन अबिल हम्साअ सहाबी رضي الله تعالي عنه का बयान है की नुज़ूले वहय और एलाने नुबुव्वत से पहले मेने आप ﷺ से कुछ खरीदो फरोख्त का मुआमला किया। कुछ रक़म मेने अदा कर दी, कुछ बाक़ी रह गई थी। मेने वादा किया की में अभी अभी आ कर बाकि की रक़म भी अदा करदुंगा। इत्तिफ़ाक़ से तिन दिन तक मुझे अपना वादा याद नहीं आया। तीसरे दिन जब में उस जगह पंहुचा तो हुज़ूर ﷺ को उसी जगह मुन्तज़िर पाया। मगर मेरी इस वादा खिलाफी से हुज़ूर ﷺ के माथे पर इक ज़रा बल नहीं आया। बस सिर्फ इतना ही फ़रमाया की तुम कहा थे ? में इस मक़ाम पर तिन दिन से तुम्हारा इन्तिज़ार कर रहा हु।

⚘ ⌬ ➤ इस तरह एक सहाबी हज़रते साइब जब मुसलमान हो कर बारगाहे रिसालत ﷺ में हाज़िर हुए तो लोग उनकी तारीफ़ करने लगे तो रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया की में इन्हें तुम्हारी निस्बत ज्यादा जानता हु। हज़रते साइब कहते हे में अर्ज़ गुज़ार हुवा मेरे माँ बाप आप पर फ़िदा हो आप ने सच फ़रमाया, एलाने नुबुव्वत से पहले आप मेरे शरीके तिजारत थे और क्या ही अच्छे शरीक थे, आप ने कभी लड़ाई झगड़ा नहीं किया था...✍

  *📬 [ सीरते मुस्तफा, स. 103, 104 ] 📚*

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             *पैगाम ए उम्मते मुहम्मदी ﷺ*

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●BISMILLAHIRRAHMANI RRAHIM●

          *गैर मा'मूली किरदार PosT~1*
            •─────────────•

⚘ ⌬ ➤ हुज़ूर ﷺ का ज़मानए तुफुलियत खत्म हुवा और जवानी का ज़माना आया तो बचपन की तरह आप ﷺ की जवानी भी आम लोगो से निराली थी। आप ﷺ का शबाब मुजस्स्मे हया और चाल चलन इस्मत व वक़ार का कामिल नमूना था। एलाने नबुव्वत से क़ब्ल हुज़ूर ﷺ की तमाम ज़िन्दगी बेहतरीन अख़लाक़ व आदात का खज़ाना थी।

⚘ ⌬ ➤ सच्चाई, दियानत दारी, वफादारी, अहद की पाबन्दी, बुज़ुर्गो की अज़मत, छोटो पर शफ़क़त, रिश्तेदारो से महब्बत, रहम व सखावत, कौम की खिदमत, दोस्तों से हमदर्दी, अज़ीज़ों की गम ख्वारी, गरीबो और मुफलिसों की खबर गिरी, दुश्मनो के साथ नेक बर्ताव, मखलुके खुदा की खैर ख्वाहि, गरज़ तमाम नेक खसलतो और अच्छी बातो में आप ﷺ इतनी बुलंद मन्ज़िल पर पहुचे हुए थे की दुन्या के बड़े से बड़े इंसानो के लिये वहा तक रसाई तो क्या ? इसका तसव्वुर भी मुमकिन नहीं है।

⚘ ⌬ ➤ कम बोलना, फ़ुज़ूल बातो से नफरत करना, खन्दा पेशानी और खुशरूई के साथ दोस्तों और दुश्मनो से मिलना। हर मुआ-मले में सादगी और सफाई के साथ बात करना हुज़ूर ﷺ का खास शेवा था।

⚘ ⌬ ➤ हिर्स, तमअ, दगा, फरेब, झूट, शराब खोरी, बदकारी, नाच गाना, लूटमार, चोरी, फोहश गोई, इश्क बाज़ी, ये तमाम बुरी आदते और मज़्मुम खसल्ते जो ज़मानए जाहिलिय्यत में गोया हर बच्चे के खमीर में होती थी हुज़ूर ﷺ की जाते गिरामी इन तमाम उयुब व नक़ाइस से पाक साफ़ रही। आप ﷺ की रास्त बाज़ी और अनामत व दिनायत का पुरे अरब में शोहरा था और मक्का के हर छोटे बड़े के दिलो में आप ﷺ के बरगुज़ीदा अख़लाक़ का एतिबार और सब की नज़रो में आप ﷺ का एक ख़ास वक़ार था...✍

  *📬 [ सीरते मुस्तफा, स. 104, 105 ] 📚*

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          *गैर मा'मूली किरदार PosT~1*
            •─────────────•

⚘ ⌬ ➤ बचपन से तक्रिबन चालीस बरस की उम्र शरीफ हो गई। लेकिन ज़मानए जाहिलिय्यत के माहोल में रहने के बा वुजूद तमाम मुशरिकाना रुसुम और जाहिलाना अतवार से हमेशा आप ﷺ का दामने इस्मत पाक ही रहा।

⚘ ⌬ ➤ मक्का शिर्क व बूत परस्ती का सब से बड़ा मर्कज़ था। खानए का'बा में 360 बुतो की पूजा होती थी। आप ﷺ के खानदान वाले ही का'बे के मुतवल्ली और सज्ज़ादा नशीन थे। लेकिन इस के बा वुजूद आप ﷺ ने कभी भी बुतो के आगे सर नहीं झुकाया।

⚘ ⌬ ➤ गरज़ नुज़ूले वहय और एलाने नुबुव्वत से पहले भी आप ﷺ की मुक़द्दस ज़िन्दगी अखलाके हसना और महासिन अफआल का मुजस्समा और तमाम उयुब व नक़ाइस से पाक व साफ़ रही।

⚘ ⌬ ➤ चुनान्चे एलाने नुबुव्वत के बाद आप ﷺ के दुश्मनो ने इन्तिहाई कोशिश की, की कोई अदना सा एब या ज़रा सी ख़िलाफे तहज़ीब कोई बात आप ﷺ की ज़िन्दगी के किसी दौर में भी मिल जाए तो उस को उछाल कर आप ﷺ के वक़ार पर हमला करके लोगो की निगाहो में आप ﷺ को ज़लिलो ख्वार करदे। मगर तारीख गवाह है की हज़ारो दुश्मन सोचते थक गए लेकिन कोई एक वाक़ीआ भी ऐसा नहीं मिल सका जिस से वो आप ﷺ पर अंगुश्त नुमाई कर सके। लिहाज़ा हर इंसान इस हक़ीक़त के एतराफ़ पर मजबूर है की बिला शुबा हुज़ूर ﷺ का किरदार इन्सानिय्यत का एक ऐसा मुहय्यिरुल उकुल और गैर मामूली किरदार है जो नबी के सिवा किसी दूसरे के लिये मुमकिन ही नही है।

⚘ ⌬ ➤ ये वजह है की एलाने नुबुव्वत के बाद सईद रूहे आप ﷺ का कलिमा पढ़ कर तन, मन, धन के साथ इस तरह आप पर कुर्बान होने लगी की उन की जा निषारीयो को देख कर शम्अ के परवानो ने जा निषारि का सबक सीखा। और हक़ीक़त शनास लोग फ़ेरते अक़ीदत से आप ﷺ के हुस्ने सदाक़त पर अपनी एक्लो को कुर्बान कर के आप ﷺ के बताए हुए इस्लामी रास्ते पर आशिक़ाना अदाओ के साथ ज़बाने हाल से ये कहते हुए चल पड़े की..✍

   चलो   वादिये   इश्क़   में  पा   बरहन

     ये   जंगल   वो  है  जिसमे  काटा   नहीं   है

  *📬 [ सीरते मुस्तफा, स. 105, 106 ] 📚*

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                      🕋﷽🕋

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     *एलाने नुबुव्वत से बैअते अक़बा तक*
           •──────────────•

⚘ ⌬ ➤  जब हुज़ूर ﷺ की मुक़द्दस ज़िन्दगी का 40वा साल शुरु हुवा तो ना गहा आप ﷺ की जाते मुक़द्दस में एक नया इन्क़िलाब रुनुमा हो गया की एक दम आप खल्वत पसंद हो गए और अकेले तन्हाई में बैठ कर खुदा की इबादत करने का ज़ौक़ व शौक़ पैदा हो गया। आप अकषर अवकात गौरों फ़िक्र में पाए जाते थे और आप का बेशतर वक़्त मनाज़िरे कुदरत के मुशाहदे और काएनाते फितरत के मुतालए में सर्फ होता था। दिन रात ख़ालिक़े काएनात की ज़ात व सिफ़ात के तसव्वुर में मुस्तग्रक और अपनी कौम के बिगड़े हुए हालात के सुधार और इसकी तदबिरो के सोच बिचार में मसरूफ़ रहने लगे और उन दिनों एक नई बात ये भी हो गई की हुज़ूर ﷺ को अच्छे अच्छे ख्वाब नज़र आने लगे और आप का हर ख्वाब इतना सच्चा होता की ख्वाब में जो कुछ देखते उसकी ताबीर सुब्हे सादिक़ की तरह रोशन हो कर ज़ाहिर हो जाया करती थी।

                           *गारे हिरा*
                   •─────────•

⚘ ⌬ ➤ मक्कए मुकर्रमा से तकरीबन तिन मिल की दुरी पर "जबले हिरा" नमी पहाड़ के ऊपर एक गार है जिस को "गारे हिरा" कहते है।आप ﷺ अकषर कई कई दिनों का खाना पानी साथ ले कर इस गार के पुर सुकून माहोल के अंदर खुद की इबादत में मसरूफ़ रहा करते थे। जब खाना पानी खत्म हो जाता तो कभी खुद घर पर आ कर ले जाते और कभी हज़रत बीबी खदीजा खाना पानी गार में पंहुचा दिया करती थी।

⚘ ⌬ ➤ आज भी ये नूरानी गार अपनी अस्ली हालत में मौजूद और ज़ियारत गाहे खलाइक़ है...✍

*📬 [ सीरते मुस्तफा, स.  107, 108 ] 📚*

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                *पहली वहय ParT~1*
              •────────────•

⚘ ⌬ ➤ एक दिन आप ﷺ गारे हिरा के अंदर इबादत में मशगूल थे की बिलकुल अचानक गार में आप ﷺ के पास एक फरिश्ता ज़ाहिर हुवा। (ये हज़रते जिब्रील थे जो हमेशा खुदा का पैगाम उसके रसूलो तक पहुचाते रहे है) फ़रिश्ते ने एक दम कहा की पढ़िये आप ﷺ ने फ़रमाया की मुझे पढ़ना नहीं आता। फ़रिश्ते ने आप ﷺ को पकड़ा और निहायत गर्म जोशी के साथ आप ﷺ से ज़ोरदार मुआनका किया फिर छोड़ कर कहा की पढ़िये आप ﷺ ने फिर फ़रमाया मुझे पढ़ना नहीं आता। फ़रिश्ते ने दूसरी मर्तबा आप ﷺ को अपने सीने से चीमटाया और छोड़ कर कहा पढ़िये आप ﷺ ने फिर वही फ़रमाया की मुझे पढ़ना नहीं आता। तीसरी मर्तबा फिर फ़रिश्ते ने आप ﷺ को बहुत ज़ोर के साथ अपने सीने से लगा कर छोड़ा और कहा

                          *तर्जुमा*
                    •────────•

⚘ ⌬ ➤ पढ़ो अपने रब के नाम से जिस ने पैदा किया आदमी को खून की फटक से बनाया, पढ़ो और तुम्हारा रब ही सबसे बड़ा करीम जिसने क़लम से लिखना सिखाया आदमी को सिखाया जो न जानता था।

⚘ ⌬ ➤ 👆🏻ये सब से पहली वहय थी जो आप पर नाज़िल हुई...✍🏻

       *📬 [ सीरते मुस्तफा, स. 108 ] 📚*

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                *पहली वहय ParT~2*
              •────────────•

⚘ ⌬ ➤ जो वहय नाज़िल हुई उन आयतो को याद करके हुज़ूर ﷺ अपने घर तशरीफ़ लाए।मगर इस वाकिए से जो बिलकुल ना गहानि तौर पर आप ﷺ को पेश आया इससे आप ﷺ के कल्बे मुबारक पर लरज़ा तारी था। आप ﷺ ने घर वालो से फ़रमाया की मुझे कमली ओढ़ाओ। मुझे कमली ओढ़ाओ। जब आप ﷺ का खौफ दूर हुवा और कुछ सुकून हुवा तो आप ﷺ ने हज़रते बीबी खदीजा से गया में पेश आने वाला वाक़ीआ बयान क्या और फ़रमाया की "मुझे अपनी जान का डर है।" ये सुन कर हज़रते बीबी खदीजा ने कहा की नहीं, हरगिज़ नहीं। आप ﷺ की जान को कोई खतरा नहीं है। खुदा की कसम ! अल्लाह عزوجل कभी भी आप को रुस्वा नहीं करेगा। आप तो रिश्तेदारो के साथ बेहतरीन सुलूक करते है। दुसरो का बार खुद उठाते है। मुसाफिरो की मेहमान नवाज़ी करते है और हक़ व इन्साफ की खातिर सबकी मुसीबतो और मुश्किलात में काम आते है...✍

        *📬 [ सीरते मुस्तफा, स. 109 ] 📚*

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                *पहली वहय ParT~3*
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⚘ ⌬ ➤  हुज़ूर ﷺ को संभाल ने के बाद हज़रते खदीजा आप ﷺ को अपने चचाज़ाद भाई "वरक़ा बिन नौफिल" के पास ले गई।

⚘ ⌬ ➤  वरक़ा उन लोगो में से थे जो "मुवह्हिद" थे और अहले मक्का के शिर्क व बूत परस्ती से बेजार हो कर "नसरानी" हो गए थे और इन्जील का इबरानी ज़बान से अरबी में तर्जमा किया करते थे। बहुत बूढ़े और नाबीना हो चुके थे।

⚘ ⌬ ➤  हज़रते बीबी खदीजा ने उनसे कहा की भाईजान ! आप अपने भतीजे की बात सुनिये। वरक़ा ने कहा की बताइये। आप ने क्या देखा है ?

⚘ ⌬ ➤  हुज़ूर ﷺ ने गारे हिरा का पुर वाक़ीआ बयान फ़रमाया। ये सुनकर वरक़ा ने कहा की ये तो वही फरिश्ता है जिसको अल्लाह عزوجل ने हज़रत मूसा के पास भेजा था। फिर वरक़ा कहने लगे की काश ! में आप के एलाने नुबुव्वत के ज़माने में तंदुरस्त जवान होता। काश ! में उस वक़्त तक ज़िन्दा रहता जब आप की कौम आप को मक्का से बहार निकालेगी।

⚘ ⌬ ➤  ये सुनकर हुज़ूर ﷺ ने ताजजुब से फ़रमाया की क्या मक्का वाले मुझे मक्का से निकाल देंगे ? तो वरक़ा ने कहा जी हा ! जो शख्स भी आप की तरह नुबुव्वत ले कर आया लोग उसके साथ दुश्मनी पर कमर बस्ता हो गए...✍

  *📬 [ सीरते मुस्तफा, स. 109, 110 ] 📚*

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             *पैगाम ए उम्मते मुहम्मदी ﷺ*

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●BISMILLAHIRRAHMANI RRAHIM●

                *पहली वहय ParT~4*
              •────────────•

⚘ ⌬ ➤ पहली वहय उतरी इसके बाद कुछ दिनों तक वहय उतरने का सिलसिला बन्द हो गया और हुज़ूर ﷺ वहय के इन्तिज़ार में मुज़तरिब और बे क़रार रहने लगे। यहा तक की एकदिन हुज़ूर ﷺ कही घर से बाहर तशरीफ़ ले जा रहे थे की किसीने "या मुहम्मद" कह कर पुकारा। आप ﷺ ने आसमान की तरफ सर उठा कर देखा तो ये नज़र आया की वो फरिश्ता (हज़रते जिब्रील) जो गार में आया था आसमान व जमींन के दरमियान एक कुर्सी पर बैठा हुवा है। ये मंज़र देख कर आप ﷺ के कल्बे मुबारक में एक खौफ की कैफिय्यत पैदा हो गई और आप ﷺ मकान पर आ कर लैट गए और घर वालो से फ़रमाया की मुझे कम्बल उढाओ। चुनान्चे आप कम्बल ओढ़ कर लेटे हुए थे की ना गहा आप ﷺ पर सूरए मुद्दशशिर में इब्तिदाई आयात नाज़िल हुई और रब तआला का फरमान उतर पड़ा की

⚘ ⌬ ➤ ऐ बाला पोश ओढ़ने वाले खड़े हो जाओ फिर डर सुनाओ और अपने रब ही की बड़ाई बोलो और अपने कपडे पाक रखो और बुतो से दूर रहो।

⚘ ⌬ ➤ इन आयात के नुज़ूल के बाद हुज़ूर ﷺ को खुदा वन्दे कुद्दूस ने दा'वते इस्लाम के मन्सब पर मामूर फरमा दिया और आप खुदा के हुक्म के मुताबिक़ दा'वते हक़ और तब्लीगे इस्लाम के लिये कमर बस्ता हो गए...✍

  *📬 [ सीरते मुस्तफा, स. 110, 111 ] 📚*

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         *दा'वते इस्लाम के लिये तिन दौर*
            •──────────────•

                           *पहला दौर*
                       •───────•

⚘ ⌬ ➤ तिन बरस तक हुज़ूर ﷺ इन्तिहाई पोशीदा तौर पर निहायत राजदारी के साथ तब्लीगे इस्लाम का फ़र्ज़ अदा फरमाते रहे और इस दरमियान में औरतो में सब से पहले हज़रते बीबी खदीजा और आज़ाद मर्दों में सब से पहले हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ और लड़को में सब से पहले हज़रते अली और गुलामो में सबसे पहले ज़ैद बिन हारिष ईमान लाए।

⚘ ⌬ ➤ फिर हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ की दा'वत व तब्लीग से हज़रते उष्मान, हज़रते ज़ुबैर बिन अल अव्वाम, हज़रते अब्दुर्रहमान बिन ऑफ, हज़रते साद बिन अबी वक्कास, हज़रते तल्हा बिन उबैदुल्लाह भी जल्द ही दामने इस्लाम में आ गए।

⚘ ⌬ ➤ फिर चाँद दिनों के बाद हज़रते अबू उबैदा बिन अल जर्राह, हज़रते अबू सलमा, हज़रते अरक़म बिन अबू अरक़म, हज़रते उष्मान बिन मज़ऊन और उनके दोनों भाई हज़रते कीदाम और हज़रते अब्दुल्लाह भी इस्लाम में दाखिल हो गए।

⚘ ⌬ ➤ फिर कुछ मुद्दत के बाद हज़रते अबू ज़र गिफारी व हज़रते सुहैब रूमी, हज़रते उबैदा बिन अल हारिष बिन अब्दुल मुत्तलिब, सईद बिन ज़ैद बिन अम्र बिन नुफैल और इन की बीवी फ़ातिमा बिन्ते अल खत्ताब हज़रते उमर की बहन ने भी इस्लाम क़बूल कर लिया।

⚘ ⌬ ➤ हुज़ूर ﷺ की चची हज़रते उम्मुल फ़ज़्ल हज़रते अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब की बीवी और हज़रते अस्मा बिन्ते अबू बक्र् भी मुसलमान हो गई। इनके इलावा दूसरे बहुत से मर्दों और औरतो ने भी इस्लाम लाने का शरफ हासिल कर लिया।

⚘ ⌬ ➤ वाज़ेह रहे की सब से पहले इस्लाम लेन वाले जो "साबिकिने अव्वलीन" के लक़ब से सरफ़राज़ है उन खुश नसीबो की फेहरिस्त पर नज़र डालने से पता चलता है की सब से पहले दामने इस्लाम में आने वाले वोही लोग है जो फ़ितरतन नेक तबअ और पहले ही से दिने हक़ की तलाश में सरगर्दा थे और क़ुफ़्फ़ारे मक्का के शिर्क व बूत परस्ती और मुशरीकाना रुसुमे जाहिलिय्यत से मुतनफ्फिर और बेज़ार थे। चुनान्चे नबीये बरहक़ के दामन में दिने हक़ की तजल्ली देखते ही ये नेक बख्त लोग परवानो की तरह शम्ऐ नुबुव्वत पर निषार होने लगे और मुशर्रफ ब इस्लाम हो गए...✍

   *📬 [ सीरते मुस्तफा, स.  111,112 ] 📚*

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         *दा'वते इस्लाम के लिये तिन दौर*
            •──────────────•

                           *दूसरा दौर*
                       •───────•

⚘ ⌬ ➤ तिन बरस की इस खुफ्या दा'वते इस्लाम में मुसलमानो की एक जमाअत तय्यार हो गई।

⚘ ⌬ ➤  इसके बाद अल्लाह عزوجل ने अपने हबीब ﷺ पर सूरए "शु-अराअ" की आयत नाज़िल फ़रमाई और खुदा ﷺ का हुक्म हुवा की ऐ महबूब ! आप अपने खानदान वालो को खुदा से दराइये

⚘ ⌬ ➤  तो हुज़ूर ﷺ ने एक दिन कोहे सफा की चोटी पर चढ़ कर "या मा'शरे क़ुरैश" कह कर कबिलाए कुरैश को पुकारा।

⚘ ⌬ ➤  जब सब कुरैश जमा हो गए तो आप ने फ़रमाया की ए मेरी कौम ! अगर में तुम लोगो से ये कहदु की इस पहाड़ के पीछे एक लश्कर छुपा हुवा है जो तुम पर हमला करने वाला है तो क्या तुम लोग मेरी बात का यकीन कर लोग ? तो सब ने एक ज़बान हो कर कहा की हा ! हा ! हम यकिनन आप की बात का यक़ीन कर लेगें, क्यूकी हम ने आप को हमेशा सच्चा और अमिन ही पाया है।

⚘ ⌬ ➤  आप ने फ़रमाया की अच्छा तो फिर में ये कहता हु की में तुम लोगो को अज़ाबे इलाही से डरा रहा हु और अगर तुम लोग ईमान न लाओगे तो तुम पर अज़ाबे इलाही उतर लड़ेगा।

⚘ ⌬ ➤  ये सुनकर तमाम कुरैश जिन में आप का चचा अबू लहब भी था, सख्त नाराज़ हो कर सब के सब चले गए और हुज़ूर ﷺ की शान में ऊल-फूल बकने लगे...✍

   *📬 सीरते मुस्तफा, स. 112, 113 ] 📚*

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    *रहमते आलम ﷺ पर ज़ुल्मो सितम*
                          *ParT~1*
              •────────────•

⚘ ⌬ ➤  क़ुफ़्फ़ारे मक्का ख़ानदाने बनू हाशिम के इन्तिकाम और लड़ाई भड़क उढ़ने के खौफ से हुज़ूर ﷺ को क़त्ल तो नहीं कर सके लेकिन तरह तरह की तकलीफो और इज़ा रसानियो से आप पर ज़ुल्मो सितम का पहाड़ तोड़ने लगे।

⚘ ⌬ ➤ चुनान्चे सब से पहले तो हुज़ूर ﷺ के काहिन, साहिर, शाइर, मजनून होने का हर कूचा व बाज़ार में ज़ोरदार प्रोपेगंडा करने लगे। आप ﷺ के पीछे शरीर लड़को का गौल लगा दिया जो रास्तो में आप पर फब्तियां कस्ते, गालिया देते और ये दीवाना है, ये दीवाना है, का शोर मचा मचा कर आप ﷺ के ऊपर पथ्थर फेकते।

⚘ ⌬ ➤ कभी क़ुफ़्फ़ारे मक्का आप ﷺ के रास्तो में कांटे बिछते। कभी आप ﷺ के जिस्मे मुबारक पर नजासत डाल देते। कभी आप ﷺ को धक्का देते। कभी आप ﷺ की मुक़द्दस और नाज़ुक गर्दन में चादर का फन्दा डाल कर गला घोटने की कोशिश करते।

⚘ ⌬ ➤ रिवायत है की एक मर्तबा आप ﷺ हरमे काबा में नमाज़ पढ़ रहे थे की एक दम संगदिल काफ़िर उक़्बा बिन अबी मुइत ने आप के गले में चादर का फन्दा डाल कर इस ज़ोर से खीचा की आप का दम घुटने लगा।

⚘ ⌬ ➤ चुनान्चे ये मंज़र देख कर हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ बे करार हो कर दौड़ पड़े और उक़्बा को धक्का दे कर दफा किया और ये कहा की क्या तुम लोग ऐसे आदमी को क़त्ल करते हो जो ये कहता है की "मेरा रब अल्लाह है।"

⚘ ⌬ ➤ इस धक्कम धक्का में हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ ने कुफ्फार को मारा भी और कुफ्फार की मार भी खाई...✍

   *📬 सीरते मुस्तफा, स. 113, 114 📚*

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    *रहमते आलम ﷺ पर ज़ुल्मो सितम*
                          *ParT~2*
              •────────────•

⚘ ⌬ ➤ कुफ्फार आप ﷺ के मोजिज़ात और रूहानी ताशिरात व तसर्रुफात को देख कर आप को सबसे बड़ा जादूगर कहते।

⚘ ⌬ ➤ जब हुज़ूर ﷺ क़ुरआन शरीफ की तिलावत फरमाते तो ये कुफ्फार क़ुरआन और क़ुरआन को लाने वाले (जिब्रील) और क़ुरआन को नाज़िल फरमाने वाले (अल्लाह عزوجل ) को और आप ﷺ को गालिया देते। और गली कूचों में पहरा बिठा देते की क़ुरआन की आवाज़ किसी के कान में न पड़ने पाए और तालिया पिट पिट कर और सीटिया बजा बजा कर इस क़दर शोर मचाते की क़ुरआन की आवाज़ किसी को सुनाई नहीं देती थी।

⚘ ⌬ ➤ हुज़ूर ﷺ जब कही किसी आम मजमे में या कुफ्फार के मेलो में क़ुरआन पढ़ कर सुनाते या दा'वते ईमान का वाज फरमाते तो आप ﷺ का चचा अबू जहल आप के पीछे चिल्ला चिल्ला कर कहता जाता था की ऐ लोगो ! ये मेरा भतीजा झुटा है, ये दीवाना हो गया है, तुम लोग इसकी बात न सुनो। मआ'ज़ल्लाह

⚘ ⌬ ➤ एक मर्तबा हुज़ूर ﷺ "जुल मजाज़" के बाज़ार में दा'वते इस्लाम का वा'ज फरमाने के लिये तशरीफ़ ले गए और लोगो को कलीमए हक़ की दा'वत दी तो अबू जहल आप पर धूल उड़ाता जाता था और कहता था की ऐ लोगो ! इसके फरेब में मत आना, ये चाहता है की तुम लोग लात व उज़्ज़ा की इबादत छोड़ दो...✍

     *📬 सीरते मुस्तफा, 114, 115 📚*

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    *रहमते आलम ﷺ पर ज़ुल्मो सितम*
                          *ParT~3*
              •────────────•

⚘ ⌬ ➤ एक मर्तबा जब की हुज़ूर ﷺ हरमे काबा में नमाज़ पढ़ रहे थे ऐन हालते नमाज़ में अबू जहल ने कहा की कोई है ? जो आले फुला के ज़बह किये हुए ऊंट की ओझड़ि ला कर सज्दे की हालत में इन के कन्धे पर रख दे।

⚘ ⌬ ➤ ये सुन कर उक़्बा बिन अबी मुईत काफ़िर उठा और उस ओझड़ि को ला कर हुज़ूर ﷺ के दोश मुबारक पर रख दिया।

⚘ ⌬ ➤ हुज़ूर ﷺ सज्दे में थे देर तक ओझड़ि कन्धे और गर्दन पर पड़ी रही और कुफ्फार ढढ्ढ़ा मार मार कर हस्ते रहे और मारे हँसी के एक दूसरे पर गिर पड़ते रहे, आखिर हज़रते बीबी फ़ातिमा जो उन दिनों अभी कमसिन लड़की थी आई और उन काफिरो को बुरा भला कहते हुए उस ओझड़ि को आप ﷺ के दोश मुबारक से हटा दिया।

⚘ ⌬ ➤ हुज़ूर ﷺ के कल्बे मुबारक पर क़ुरैश की इस शरारत से इन्तिहाई सदमा गुज़रा और नमाज़ से फारिग हो कर तिन मर्तबा ये दुआ मांगी "ऐ अल्लाह عزوجل ! तू क़ुरैश को अपनी गिरफ्त में पकड़ ले, फिर अबू जहल, उत्बा बिन रबीआ, शैबा बिन रबिआ, वलीद बिन उत्बा, उमय्या बिन खलफ, अम्मार बिन वलीद का नाम ले कर दुआ मांगी की, इलाही ! तू इन लोगो को अपनी गिरफ्त में ले ले।

⚘ ⌬ ➤ हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद फरमाते है की खुदा की कसम ! मेने इन सब काफिरो को जंगे बद्र के दिन देखा की इन की लाशें जमींन पर पड़ी हुई है। फिर इन सब कुफ्फार की लाशो को निहायत ज़िल्लत के साथ घसीट कर बद्र के एक गढ़े में दाल दिया गया और हुज़ूर ने फ़रमाया की इन गढ़े वालो पर खुदा की लानत...✍

     *📬 सीरते मुस्तफा स. 115, 116 📚*

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               *मुसलमानो पर मज़ालिम*
                          *ParT~1*
              •────────────•

⚘ ⌬ ➤ हुज़ूर ﷺ के साथ साथ गरीब मुसलमानो पर भी क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने ऐसे ऐसे ज़ुल्मो सितम के पहाड़ तोड़े की मक्का की जमींन बिलबिला उठी। ये आसान था की क़ुफ़्फ़ारे मक्का इन मुसलमानो को दम जदन में कत्ल कर डालते, मगर इससे उन काफिरो का जोशे इन्तिकाम का नशा नहीं उतर सकता था क्यू की कुफ्फार इस बात में अपनी शान समझते थे की इन मुसलमानो को इतना सताओ की वो इस्लाम को छोड़ कर फिर शिर्क व बूत परस्ती करने लगे।

⚘ ⌬ ➤ इसलिये कत्ल करदेने की बजाए क़ुफ़्फ़ारे मक्का मुसलमानो को तरह तरह की सजाओ और इज़ा रसानियो के साथ सताते थे।

⚘ ⌬ ➤ मगर खुदा की कसम ! शराबे तौहीद के इन मस्तो ने अपने इस्तिक़्लाल व इस्तिकामत का वो मन्ज़र पेश कर दिया की पहाड़ो की चोटिया सर उठा उठा कर हैरत के साथ इन बला कुशाने इस्लाम के जज़्बए इस्तिकामत का नज़ारा करती रही।

⚘ ⌬ ➤ संगदिल, बे रहम और दरिंदो सिफत काफिरो ने इन गरीब व बेकस मुसलमानो पर जब्रो इक्राह और ज़ुल्मो सितम का कोई दक़ीक़ा बाक़ी नहीं छोड़ा।

⚘ ⌬ ➤ मगर एक मुसलमान के पाए इस्तिकामत में ज़र्रा बराबर भी तज़ल्जुल नहीं पैदा हुवा और एक मुसलमान का बच्चा भी इस्लाम से मुह फेर कर काफ़िर व मुर्तद नहीं हुवा।...✍

      *📬 सीरते मुस्तफा, स.  117 📚*

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               *मुसलमानो पर मज़ालिम*
                          *ParT~2*
              •────────────•

⚘ ⌬ ➤ क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने इन गुरबा मुस्लिमीन पर ज़ोरो जफ़ाकारी के बे पनाह अन्दोह नाक मज़ालिम ढाए और ऐसे ऐसे रूह फरसा और जा सोज़ अज़ाबो में मुब्तला किया की अगर इन मुसलमानो की जगह पहाड़ भी होता तो शायद डग मगाने लगता।

⚘ ⌬ ➤ सहराए अरब की तेज़ धुप में जब की वहा की रेत के ज़र्रात तन्नूर की तरह गर्म हो जाते। इन मुसलमानो की पुश्त को कोड़ो की मार से ज़ख़्मी कर के उस जलती हुई रेत पर पीठ के बल लिटाते और सिनो पर इतना भारी पथ्थर रख देते की वो करवट न बदलने पाए।

⚘ ⌬ ➤ लोहे को आग में गर्म करके इनसे उन मुसलमानो के जिस्मो को दागते।

⚘ ⌬ ➤ पाणी में इस कदर डुबकियां देते की उन का दम घुटने लगता।

⚘ ⌬ ➤ चटाइयों में इन मुसलमानो को लपेट कर उन की नाको में धुंआ देते जिस से सास लेना मुश्किल हो जाता और वो कर्ब व बेचैनी से बद हवास हो जाते।...✍

      *📬 सीरते मुस्तफा, स. 118 📚*

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आओ   हम   सब   मिल   कर   पैगाम   - ए -   नबी   ﷺ   को   आम   करें  إن شاء الله عزوجل

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●BISMILLAHIRRAHMANI RRAHIM●

               *मुसलमानो पर मज़ालिम*
                          *ParT~3*
              •────────────•

⚘ ⌬ ➤ हज़रते अब्बास बिन अल अरत رضي الله تعالي عنه ये उस ज़माने में इस्लाम लाए जब हुज़ूर ﷺ हज़रते अरक़म बिन अबू अरक़म رضي الله تعالي عنه के घर में मुक़ीम थे और सिर्फ चन्द ही आदमी मुसलमान हुए थे।

⚘ ⌬ ➤ क़ुरैश ने इनको बेहद सताया। यहां तक की कोयले के अंगारो पर इन को चीत लिटाया और एक शख्स इन के सीने पर पाउ रख कर खड़ा रहा। यहां तक की पीठ की चरबी और रुतुबत से कोयले बुझ गए।

⚘ ⌬ ➤ बरसो के बाद जब हज़रते खब्बाब رضي الله تعالي عنه ने ये वाक़ीआ हज़रते अमीरुल मुअमिनीन हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه के सामने बयान किया तो अपनी पीठ खोल कर दिखाई। पूरी पीठ पर सफेद दाग धब्बे पड़े हुए थे।

⚘ ⌬ ➤ इस इबरत नाक मंज़र को देख कर हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه का दिल भर आया और वो रो पड़े।...✍

       *📬 सीरते मुस्तफा, स. 118 📚*

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               *मुसलमानो पर मज़ालिम*
                          *ParT~4*
              •────────────•

⚘ ⌬ ➤ हज़रते अम्मार बिन यासिर رضي الله تعالي عنه को गर्म गर्म बालू पर चित लिटा कर क़ुफ़्फ़ारे क़ुरैश इस क़दर मारते थे की ये बेहोश हो जाते थे।

⚘ ⌬ ➤ इनकी वालिदा हज़रते बीबी सुमय्या को इस्लाम लाने की बिना पर अबू जहल ने इनकी नाफ के निचे ऐसा नेजा मारा की ये शहीद हो गई।

⚘ ⌬ ➤ हज़रते अम्मार के वालिद हज़रते यासिर رضي الله تعالي عنه भी कुफ्फार की मार खाते खाते शहीद हो गए।

⚘ ⌬ ➤ हज़रते सुहैब रूमी رضي الله تعالي عنه को क़ुफ़्फ़ारे मक्का इस क़दर तरह तरह की अज़िय्यत देते और ऐसी ऐसी मारधाड़ करते की ये घंटो बेहोश रहते।

⚘ ⌬ ➤ जब ये हज़रत करने लगे तो क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने कहा तुम अपना सारा माल व सामान यहाँ छोड़ कर मदीना जा सकते हो।

⚘ ⌬ ➤ आप رضي الله تعالي عنه ख़ुशी ख़ुशी दुन्या की दौलत पर लात मार कर अपनी मताए ईमान को साथ ले कर मदीना चले गए।...✍

        *📬 सीरते मुस्तफा, स. 119 📚*

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               *मुसलमानो पर मज़ालिम*
                          *ParT~5*
              •────────────•

⚘ ⌬ ➤ हज़रते अबू फकीहा رضي الله تعالي عنه सफ्वान बिन उमय्या काफ़िर के गुलाम थे और हज़रते बिलाल رضي الله تعالي عنه के साथ ही मुसलमान हुए थे।

⚘ ⌬ ➤ जब सफ्वान को इन के इस्लाम का पता चला तो उस ने इन के गले में रस्सी का फन्दा डाल कर इन को घसीटा और गर्म जलती हुई जमींन पर इनको चित लिटा कर सीने पर वज़नी पथ्थर रख दिया।

⚘ ⌬ ➤ जब इन को कुफ्फार घसीट कर ले जा रहे थे रस्ते में इत्तिफ़ाक से एक गुबरीला नज़र पड़ा।

⚘ ⌬ ➤ उमय्या काफ़िर ने ताना मारते हुए कहा की देख तेरा खुदा यही तो नहीं है।

⚘ ⌬ ➤ हज़रते अबू फ़क़ीहा رضي الله تعالي عنه ने फरमाया की ऐ काफिरो के बच्चे ! खामोश, मेरा और तेरा खुदा अल्लाह عزوجل है।

⚘ ⌬ ➤ ये सुन कर उमय्या काफ़िर गज़बनाक हो गया और इस ज़ोर से उन का गला घोंटा की वो बेहोश हो गए और लोगो ने समझा की इन का दम निकल गया।

⚘ ⌬ ➤ इसी तरह हज़रते आमिर बिन कुहैरा رضي الله تعالي عنه को भी इस क़दर मारा जाता था की इन के जिस्म की बोटी बोटी दर्द मन्द हो जाती थी।..✍

       *📬 सीरते मुस्तफा, स. 120 📚*

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               *मुसलमानो पर मज़ालिम*
                          *ParT~6*
              •────────────•

⚘ ⌬ ➤ हज़रते बीबी लुबैना जो लौंडी थी।

⚘ ⌬ ➤ हज़रते उमर जब कुफ़्र की हालत में थे इस गरीब लौंडी को इस कदर मारते थे की मरते मरते थक जाते थे

⚘ ⌬ ➤ मगर हज़रते लुबैना उफ़ तक नहीं करती थी बल्कि निहायत जुरअत व इस्तिक़्लाल के साथ कहती थी

⚘ ⌬ ➤ ऐ उमर ! अगर तुम खुदा के सच्चे रसूल पर ईमान नहीं लाओगे तो खुदा तुम से ज़रूर इन्तिकाम लेगा।...✍

          *📬 सीरते मुस्तफा, स. 120 📚*

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     *कुफ्फार का वफ्ढ बारगाहे रिसालत में*
                          *ParT~1*
       •────────────────•

⚘ ⌬ ➤ एक मर्तबा सरदाराने क़ुरैश हरमे काबा में बैठे हुए ये सोचने लगे की आखिर इतनी तकालिफ् और सख्तिया बर्दाश्त करने के बा वुजूद मुहम्मद अपनी तब्लीग क्यू बन्द नहीं करते ? आखिर इनका मकसद क्या है ? मुमकिन है ये इज़्ज़त व जाह या सरदारी व दौलत के ख्वाहा हो।

⚘ ⌬ ➤ चुनान्चे सभी ने उत्बा बिन राबीआ को हुज़ूर ﷺ के पास भेजा की तुम किसी तरह उनका दिली मक़सद मालुम करो।

⚘ ⌬ ➤ चुनान्चे उत्बा तन्हाई में आप ﷺ से मिला और कहने लगा की ऐ मुहम्मद ﷺ आखिर इस दा'वते इस्लाम से आप का मक़सद क्या है ? क्या आप मक्का की सरदारी चाहते है ? या इज़्ज़त व दौलत के ख्वाहा है ? या किसी बड़े घराने में शादी के ख्वाहिश मन्द है ?

⚘ ⌬ ➤ आप के दिल में जो तमन्ना हो खुले दिल के साथ कह दीजिये। में इसकी ज़मानत लेता हु की अगर आप दा'वते इस्लाम से बाज़ आ जाए तो पूरा मक्का आप के ज़ेरे फरमान हो जाएगा और आप की हर ख्वाहिश और तमन्ना पूरी कर दी जाएगी।..✍

   *📬 [ सीरते मुस्तफा, स. 123 ] 📚*

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     *कुफ्फार का वफ्ढ बारगाहे रिसालत में*
                          *ParT~2*
       •────────────────•

⚘ ⌬ ➤  उत्बा की ये साहिराना तक़रीर सुन कर हुज़ूर ﷺ ने जवाब में क़ुरआने मजीद की चन्द आयते तिलावत फ़रमाई।

⚘ ⌬ ➤ जिनको सुन कर उत्बा इस क़दर मुतअश्शिर हुआ की उसके जिस्म का रोंगटा रोंगटा और बदन का बाल बाल खौफे जुल जलाल से लरज़ने और कापने लगा

⚘ ⌬ ➤ और हुज़ूर ﷺ के मुह पर हाथ रख कर कहा की में आप को रिश्तेदारी का वासिता दे कर दर ख्वास्त करता हु की बस कीजिये। मेरा दिल इस कलाम की अ'ज़मत से फटा जा रहा है।

⚘ ⌬ ➤ उत्बा बारगाहे रिसालत से वापस हुआ मगर उस के दिल की दुन्या में एक नया इन्किलाब रुनुमा हो चूका था।

⚘ ⌬ ➤ उत्बा एक बड़ा ही साहिरुल बयान खतीब और इन्तिहाई फसिहो बलीग़ आदमी था। उसने वापस लौट कर सरदाराने कुरैश से कह दिया की मुहम्मद ﷺ जो कलाम पेश करते है वो न जादू है न कहानत न शाइरी, बल्कि वो कोई और ही चीज़ है।

⚘ ⌬ ➤ लिहाज़ा मेरी राय है की तुम लोग उनको उनके हाल पर छोड़ दो। अगर वो कामयाब हो कर सारे अरब पर ग़ालिब हो गए तो इस में हम कुरैशियों ही की इज़्ज़त बढ़ेगी, वरना सारा अरब उनको खुद ही फ़ना कर देगा

⚘ ⌬ ➤ मगर क़ुरैश के सरकश काफिरो ने उत्बा का ये मुखलिसाना और मुदब्बिराना मशवरा नहीं माना बल्कि अपनी मुखालफत और इज़ा रसानियो में और ज्यादा इज़ाफ़ा कर दिया।...✍

*📬 [ सीरते मुस्तफा, साफ, 123-124 ] 📚*

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      *क़ुरैश का वफ्ढ अबू तालिब के पास*
                          *ParT~1*
         •───────────────•

⚘ ⌬ ➤  क़ुफ़्फ़ारे क़ुरैश में कुछ लोग सुलह पसंद भी थे वो चाहते थे की बातचीत के ज़रिए सुल्हो सफाई के साथ मुआमला तै हो जाए।

⚘ ⌬ ➤ चुनान्चे क़ुरैश के चन्द मुअज़्ज़ज़् रुअसा अबू तालिब के पास आए और हुज़ूर ﷺ की दा'वते इस्लाम और बूत परस्ती के खिलाफ तकरीरों की शिकायत की।

⚘ ⌬ ➤ अबू ताकिब ने निहायत नरमी के साथ उन लोगो को समझा बुझा कर रुख्सत कर दिया लेकिन हुज़ूर ﷺ खुदा के फरमान  की तालीम करते हुए अलल एलान शिर्क व बूत परस्ती की मज़म्मत और दा'वते तैहिद का वाज फरमाते ही रहे। इस लिए क़ुरैश का गुस्सा फिर भड़क उठा।

⚘ ⌬ ➤ चुनान्चे तमाम सरदाराने क़ुरैश यानि उत्बा व शैबा व अबू सुफ़यान व आस बिन हश्शाम व अबू जहल व वलीद बिन मुग़ीरा व आस बिन वाइल वगैरा वगैरा सब एक साथ मिलकर अबू तालिब के पास आए और ये कहा की आप का भतीजा हमारे मा'बूदों की तौहीन करता है इसलिये या तो आप दरमियान में से हट जाए और अपने भतीजे को हमारे सुपुर्द करदे या फिर आप भी खुल कर उनके साथ मैदान में निकल पड़े ताकि हम दोनों में से एक का फैसला हो जाए।...✍

     *📬 [ सीरते मुस्तफा, शफा 124 ] 📚*

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         *हिजरते हबशा सि. 5 न-बवी*
                          *ParT~1*
       •────────────────•

⚘ ⌬ ➤ क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने जब अपने ज़ुल्मो सितम से मुसलमानो और अर्सए हयात तंग कर दिया तो हुज़ूर रहमते आ'लम ﷺ ने मुसलमानो को हबशा जा कर पनाह लेने का हुक्म दिया।

                   *नज्जाशी Part~1*
                *•───────────•*

⚘ ⌬ ➤ हबशा के बादशाह का नाम "असहम" और लक़ब "नज़्ज़शि" था। ईसाई दीन का पाबन्द था मगर बहुत ही इन्साफ पसंद और रहम दिल था और तौरेत व इन्जील वगैरा आसमानी किताबो का बहुत ही माहिर आ'लिम था।

⚘ ⌬ ➤ एलाने नबुव्वत के 5वे साल रजब के महीने में 11 मर्द और 4 औरतो ने हबशा की जानिब हिजरत की। इन मुहाजिरिने किराम के मुक़द्दस नाम ये है।

*⚘(1,2) ➤* हज़रते उष्माने गनी رضي الله تعالي عنه अपनी बीबी हज़रत बीबी रुक़य्या के साथ जो हुज़ूर की साहिब जादी है।

*⚘(3,4) ➤* हज़रते अबू हुजैफा رضي الله تعالي عنه अपनी बीबी हज़रते सहला बिन्ते सुहैल के साथ।

*⚘(5,6) ➤* हज़रते अबू सलमह अपनी अहलिया हज़रते उममे सलमह के साथ।

*⚘(7,8) ➤* हज़रते आमिर बिन राबीआ رضي الله تعالي عنه अपनी ज़ौजा हज़रते लैला बिन्ते अबी हश्मी के साथ।

*⚘(9) ➤* हज़रते ज़ुबैर बिन अल अव्वाम رضي الله تعالي عنه

*⚘(10) ➤* हज़रते मुसअब बिन उमैर رضي الله تعالي عنه

*⚘(11) ➤* हज़रते अब्दुर्रहीमान बिन औफ رضي الله تعالي عنه

*⚘(12) ➤* हज़रते उष्मान बिन मज़ऊन رضي الله تعالي عنه

*⚘(13) ➤* हज़रते अबू सबरा बिन अबी रहम या हातिम बिन अम्र رضي الله تعالي عنه

*⚘(14) ➤* हज़रते सुहैल बिन बेज़ा رضي الله تعالي عنه

*⚘(15) ➤* हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضي الله تعالي عنه

*📬 [ सीरते मुस्तफा, सफा 126-127 ] 📚*

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   *हिजरते हबशा सि. 5 न-बवी PosT~1*     •─────────────────────•

                   *नज्जाशी Part~2*
                *•───────────•*

⚘ ⌬ ➤ क़ुफ़्फ़ारे मक्का को जब इन लोगो की हिजरत का पता चला तो उन जालिमो ने इन लोगो की गिरफ्तारी के लिये इनका तआकुब किया लेकिन ये लोग किश्ती लर सुवार हो कर रवाना हो चुके थे। इसलिये कुफ्फार वापस लौटे।

⚘ ⌬ ➤ ये मुहाजिरिन का क़ाफ़िला हबशा की सर जमींन में उतर कर अम्नो अमान के साथ खुदा की इबादत में मसरूफ़ हो गया।

⚘ ⌬ ➤ चन्द दिनों के बाद ना गहा ये खबर फ़ैल गई की क़ुफ़्फ़ारे मक्का मुसलमान हो गए। ये सुनकर चन्द लोग हबशा से मक्का लौट आए मगर यहा आ कर पता चला की ये खबर गलत थी।

⚘ ⌬ ➤ चुनान्चे बाज़ लोग तो फिर हबशा चले गए मगर कुछ लोग मक्का में रूपोश हो कर टहनी लगे लेकिन क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने उन लोगो को ढूंढ़ निकाला और उन लोगो पर पहले से भी ज्यादा ज़ुल्म ढाने लगे, तो हुज़ूर ﷺ ने लोगो को हबशा चले जाने का हुक्म दिया।

⚘ ⌬ ➤ चुनान्चे हबशा से वापस आने वाले और इन के साथ दूसरे मज़लूम मुसलमान कुल 83 मर्द व 18 ओरतो ने हबशा की जानिब हिजरत की।

   *📬 [ सीरते मुस्तफा, साफ 127 ] 📚*

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   *हिजरते हबशा सि. 5 न-बवी PosT~2*     •─────────────────────•

⚘ ⌬ ➤ कुफ्फार का सफ़ीर नज्जाशी के दरबार में

                         *Part~1*
                   *•───────•*

⚘ ⌬ ➤ तमाम मुहज़ीरिन निहायत अम्नो सुकून के साथ हबशा में रहने लगे।

⚘ ⌬ ➤  मगर क़ुफ़्फ़ारे मक्का को कब गवारा हो सकता था की फरजंदाने तौहीद कही अम्नो चैन के साथ के रह सके। इन जालिमो ने कुछ तहाइफ के साथ "अम्र बिन अल आस" और "अम्मारा बिन वलीद" को बादशाहे हबशा के दरबार में अपना सफ़ीर बना कर भेजा।

⚘ ⌬ ➤  इन दोनों ने नज्जाशी के दरबार में पहुच कर तोहफों कर तोहफों का नज़राना पेश किया और बादशाह को सज्दा करके ये फरयाद करने लगे की ऐ बादशाह ! हमारे कुछ मुजरिम मक्का से भाग कर आप क मुल्क में पनाह गुज़िन हो गए है। आप हमारे उन मुजरिमो को हमारे हवाले कर दीजिये।

⚘ ⌬ ➤  ये सुनकर नज्जाशी बादशाह ने मुसलमानो को दरबार में तलब किया। और हज़रते अली के भाई हज़रते जाफर رضي الله تعالي عنه मुसलमानो के नुमाइन्दा बन कर गुफ्तगू के लिये आगे बढे और दरबार के आदाब के मुताबिक़ बादशाह को सज्दा नहीं किया बल्कि सिर्फ सलाम करके खड़े हो गए।

⚘ ⌬ ➤  दरबारियों ने टोका तो हज़रते जाफर رضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया की हमारे रसूल ﷺ ने खुदा के सिवा किसी को सज्दा करने से मना फ़रमाया है। इस लिये में बादशाह को सज्दा नहीं कर सकता।...✍

 *📬 [ सीरते मुस्तफा, स. 127-128 ] 📚*

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⚘ ⌬ ➤ कुफ्फार का सफ़ीर नज्जाशी के दरबार में
                         *PosT~ 2*
                    *•───────•*

⚘ ⌬ ➤  इसके बाद हज़रते जाफर बिन तालिब رضي الله تعالي عنه ने दरबारे शाही में इस तरह तक़रीर शुरुअ फ़रमाई की

⚘ ⌬ ➤ ऐ बादशाह ! हम लोग एक जाहिल कौम थे। शिर्क व बूत परस्ती करते थे। लूटमार, चोरी, डकैती, जुल्मो सितम और तरह तरह की बड़कारियो और बद आ'मालियों में मुबगला थे।

⚘ ⌬ ➤ अल्लाह عزوجل ने हमारी क़ौम में एक शख्स को अपना रसूल बना कर भेजा जिसके हसब व नसब और सिद्दिक़ो दियानत को हम पहले से जानते थे,

⚘ ⌬ ➤ उस रसूल ने हमको शिर्क व बूत परस्ती से रोक दिया और सिर्फ एक खुदाए वाहिद की इबादत का हुक्म दिया और हर किस्म के ज़ुल्मो सितम और तमाम बुराइयो और बड़कारियो से हमको मना किया।

⚘ ⌬ ➤ हम उस रुसुल पर ईमान लाये और शिर्क व बूत परस्ती छोड़ कर तमाम बुरे कामो से ताइब हो गए।

⚘ ⌬ ➤ बस यही हमारा गुनाह है जिस पर हमारी क़ौम हमारी जान की दुश्मन हो गई और उन लोगो ने हमें इतना सताया की हम अपने वतन को खैरबाद कह कर आप की सल्तनत के ज़ेरे साया पुर अम्न ज़िन्दगी बसर कर रहे है।

⚘ ⌬ ➤ अब ये लोग हमें मजबूर कर रहे है की हम फिर उसी पुरानी गुमराही में वापस लौट जाए।

*📬 [ सीरते मुस्तफा, सफा 128-129 ] 📚*

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   *हिजरते हबशा सि. 5 न-बवी ParT~1*     •─────────────────────•

⚘ ⌬ ➤ कुफ्फार का सफ़ीर नज्जाशी के दरबार में
                         *PosT~3*
                    *•───────•*

⚘ ⌬ ➤  हज़रते जाफर رضي الله تعالي عنه की तकरीर से नज्जाशी बादशाह बेहद मुतअश्शिर हुआ। ये देख कर क़ुफ़्फ़ारे मक्का के सफ़ीर अम्र बिन अल आस ने अपने तरकश का आखरी तीर भी फेक दिया और कहा

⚘ ⌬ ➤ ऐ बादशाह ! ये मुसलमान लोग आप के नबी हज़रते इसा अलैहिस्सलाम के बारे में कुछ दूसरा ही ऐतिकाद तख्ते है, जो आप के अक़ीदे के बिलकुल ही खिलाफ है।

⚘ ⌬ ➤ ये सुनकर नज्जाशी बादशाह ने हज़रते जाफर رضي الله تعالي عنه से इस बारे में सुवाल किया तो आप ने सूरए मरयम की तिलावत फ़रमाई। कलामे रब्बानी की ताशीर से नज्जाशी बादशाह के क्लब पर इतना गहरा अशर पड़ा की उस पर रिक़्क़्त तारी हो गया और उस की आँखों से आसु जारी हो गए।

⚘ ⌬ ➤ हज़रते जाफर رضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया की हमारे रसूल ﷺ ने हमको येही बताया है की हज़रते इसा अलैहिस्सलाम खुदा के बन्दे और उसके रसूल है, जो कवारी मरयम के शीकमे मुबारक से बगैर बाप के खुदा की क़ुदरत का निशान बन कर पैदा हुए।

⚘ ⌬ ➤ नज्जाशी बादशाह ने बड़े गौर से हज़रते जाफर की तक़रीर को सुना और ये कहा की बिला शुबा इन्जील और क़ुरआन दोनों एक ही आफ्ताबे हिदायत के दो नूर है और यक़ीनन हज़रते इसा अलैहिस्सलाम खुदा के बन्दे और उसके रसूल है, और में गवाही देता हु की बेशक हज़रत मुहम्मद ﷺ खुदा के वोही रसूल है जिन की बिशारत हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम ने इन्जील में दी है।...✍

*📬 [ सीरते मुस्तफा, सफा 129-130 ] 📚*

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⚘ ⌬ ➤ कुफ्फार का सफ़ीर नज्जाशी के दरबार में
                         *PosT~4*
                     *•───────•*

⚘ ⌬ ➤ बादशाह ने फ़रमाया अगर में दस्तूरे सल्तनत के मुताबिक़ तख्ते शाही पर रहने का पाबंद न होता तो में खुद मक्का जा कर रसूले अकरम की जुतिया सीधी करता और उनके क़दम धोता।

⚘ ⌬ ➤ बादशाह की तक़रीर सुनकर उसके दरबारी जो कट्टर किस्म के ईसाई थे नाराज़ व बरहम हो गए मगर नज्जासि बादशाह ने जोशे इमानि में सब को डाट फटकार कर खामोश कर दिया।

⚘ ⌬ ➤ और क़ुफ़्फ़ारे मक्का के तोहफों को वापस लौटा कर अम्र बिन अल आस और अम्मार बिन वलीद को दरबार से निकलवा दिया

⚘ ⌬ ➤ और मुसलमानो से कह दिया की तुम लोग मेरी सल्तनत में जहा चाहो अम्नो सुकून के साथ आराम व चैन की ज़िन्दगी बसर करो। कोई तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।

⚘ ⌬ ➤ वजह रहे की नज्जाशी बादशाह मुसलमान हो गया था। चुनान्चे उसके इंतकाल पर हुज़ूर ﷺ ने मदिनए मुनव्वरा में उसकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी। हाला की नज्जाशी बादशाह का इंतिक़ाल हबशा में हुवा था और वो हबशा ही में मदफून भी हुए मगर हुज़ूर ﷺ ने गाइबाना उन की नमाज़े जनाज़ा पढ़ कर उनके लिये दुआए मग्फिरत फ़रमाई।

*📬 [ सीरते मुस्तफा, सफा 130 ] 📚*

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  *हज़रते अबू बक्र् और इब्ने दुगन्ना ParT~1*
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⚘⌬ ➤ हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه ने भी हबशा की तरफ हज़रत की मगर जब आप رضي الله تعالي عنه मक़ाम "बर्कुल गम्माद" में पहुचे तो कबिलए काऱा का सरदार "मालिक बिन दुगन्ना" रास्ते में मिला और दरयाफ़्त किया की क्यू ? कहा चले ?

⚘⌬ ➤ आप رضي الله تعالي عنه अहले मक्का के मज़ालिम का तज़किरा फरमाते हुए कहा की अब में अपने वतन मक्का को छोड़ कर खुदा की लम्बी चौड़ी ज़मीं में फिरता रहूँगा खुदा की इबादत करता रहूंगा।

⚘⌬ ➤ इब्ने दुगन्ना ने कहा की ऐ अबू बक्र् ! आप رضي الله تعالي عنه जेसा आदमी न शहर से निकल सकता है न निकाला जा सकता है। आप رضي الله تعالي عنه दुसरो का बार उढ़ाते है मेहमानाने हरम की मेहमान नवाज़ी करते है, खुद कमा कमा कर मुफलिसों और मोहताज़ो की माली इमदाद करते है, हक़ के कामो में सब की इमदाद व इआनत करते है।

⚘⌬ ➤ आप رضي الله تعالي عنه मेरे साथ मक्का वापस चलिये में आप को अपनी पनाह में लेता हु।

⚘⌬ ➤ इब्ने दुगन्ना आप को ज़बर दस्ती मक्का वापस लाया और तमाम क़ुफ़्फ़ारे मक्का से कह दिया की में ने अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه को अपनी पनाह में ले लिया है। लिहाज़ा खबरदार ! कोई इन को न सताए।

*📬 [ सीरते मुस्तफा, सफा 131-132 ] 📚*

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  *हज़रते अबू बक्र् और इब्ने दुगन्ना ParT~2*
 •────────────────────•

⚘⌬ ➤ क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने कहा की हम को इस शर्त पर मंज़ूर है की अबू बक्र् अपने घर के अंदर छुप कर क़ुरआन पढ़े ताकि हमारी औरतो और बच्चों के कान में क़ुरआन की आवाज़ न पहुचे।

⚘⌬ ➤ इब्ने दुगन्ना ने कुफ्फार की शर्त को मंजूर कर लिया। और हज़रते अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه चन्द दिनों तक अपने घर के अंदर क़ुरआन पढ़ते रहे।

⚘⌬ ➤ मगर अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه के जज़्बए इस्लामी और जोशे इमानी ने ये गवारा नहीं किया की माबूदाने बातिल लात व उज़्ज़ा की इबादत तो अलल एलान हो और माबुदे बरहक़ अल्लाह तआला की इबादत घर के अंदर छुप कर की जाए।

⚘⌬ ➤ चुनान्चे आप ने घर के बाहर अपने सहन में एक मस्जिद बना ली और इस मस्जिद में अलल ऐलान नमाज़ों में बुलंद आवाज़ से क़ुरआन पढ़ने लगे और क़ुफ़्फ़ारे मक्का की औरतो और बच्चे भीड़ लगा कर क़ुरआन सुनने लगे।

   *📬 [ सीरते मुस्तफा, सफा 131 ] 📚*

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  *हज़रते अबू बक्र् और इब्ने दुगन्ना ParT~3*
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⚘⌬ ➤ ये मंज़र देख कर क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने इब्ने दुगन्ना को मक्का बुलाया और शिकायत की,

⚘⌬ ➤ अबू बक्र् घर के बहार क़ुरआन पढ़ते है। जिस को सुनने के लिये उन के गिर्द हमारी औरतो और बच्चों का मेला लग जाता है। इससे हमको बड़ी तक़लीफ़ होती है लिहाज़ा तुम उनसे कहदो की या तो वो घर में क़ुरआन पढ़े वरना तुम अपनी पनाह की ज़िम्मेदारी से दस्त हो जाओ।

⚘⌬ ➤ चुनान्चे इब्ने दुगन्ना ने हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه से कहा की ए अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه ! आप घर के अंदर छुप कर क़ुरआन पढ़े वरना में अपनी पनाह से कनारा काश हो जाऊंगा इसके बाद क़ुफ़्फ़ारे मक्का आप को सताएंगे तो में इसका ज़िम्मेदार न होऊंगा।

⚘⌬ ➤ ये सुन कर हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया की ऐ इब्ने दुगन्ना ! तुम अपनी पनाह की ज़िम्मेदारी से अलग हो जाओ मुझे अल्लाह عزوجل की पनाह काफी है और में उसकी मरज़ी पर राज़ी ब रिज़ा हु।

*📬 [ सीरते मुस्तफा, सफा 131-132 ] 📚*

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  *हज़रते हम्ज़ा मुसलमान हो गए ParT~1*
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⚘⌬ ➤ एलाने नुबुव्वत के छटे साल हज़रते हम्ज़ा और हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه दो ऐसी हस्तिया दामने इस्लाम में आ गई जिन से इस्लाम और मुसलमानो के जाहो जलाल और इनके इज्ज़तों इक़बाल का परचम बहुत ही सर बुलंद हो गया।

⚘⌬ ➤  हुज़ूर ﷺ के चचाओं में हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه को आप से बड़ी वाहिलाना महब्बत थी और वो सिर्फ दो तिन साल हुज़ूर ﷺ से उम्र में ज्यादा थे और चुकी इन्हों ने भी हज़रते सुवैबा का दूध पिया था इस लिये हुज़ूर ﷺ के रज़ाई भाई भी थे।

⚘⌬ ➤  हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه बहुत ही ताक़त वर और बहादुर थे और शिकार के बहुत ही शौक़ीन थे। रोज़ाना सुबह सवेरे तीर कमान ले कर घर से निकल जाते और शाम को शिकार से वापस लौट कर हरम में जाते, खानए काबा का तवाफ़ करते और कुरैश के सरदारो की मजलिस में कुछ देर बैठा करते थे।

*📬 [ सीरते मुस्तफा, सफा 132-133 ] 📚*

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      *हज़रते उमर का इस्लाम ParT~5*
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⚘⌬ ➤ हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه के मुसलमान होने का एक सबब ये भी बताया गया है की खुद हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه फ़रमाया करते थे की में कुफ़्र की हालत में क़ुरैश के बुतो के पास हाज़िर था इतने में एक शख्स गाय का एक बछड़ा ले कर आया और उस को बुतो के नाम पर ज़बह किया। फिर बड़े ज़ोर से चीख मार कर किसी ने ये कहा की ऐ खुली हुई दुश्मनी करने वाले !

⚘⌬ ➤ ये आवाज़ सुन कर सब लोग वहा से भाग खड़े हुए। लेकिन में ने ये अज़्म कर लिया की में इस आवाज़ देने वाले की तहक़ीक़ किये बिगैर हरगिज़ हरगिज़ यहा से नहीं लौटूंगा। इसके बाद फिर यही आवाज़ आई ऐ खुली हुई दुश्मनी करने वाले !

⚘⌬ ➤ एक कामयाबी की चीज़ है की एक फ़साहत वाला आदमी "लाइलाहा इल्लल्लाह" कह रहा है। हाला की बुतो के आस पास मेरे सिवा दूसरा कोई भी नहीं था।

⚘⌬ ➤ इसके फ़ौरन ही बाद हुज़ूर ﷺ ने अपनी नुबुव्वत का एलान फ़रमाया। इस वाकिए से हज़रते उमर बेहद मुतास्सिर थे। इसलिये इनके इस्लाम लाने के अस्बाब में इस वाकिए को भी कुछ न कुछ ज़रूर दखल है।

⚘⌬ ➤ हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه को जब क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने बहुत ज्यादा सताया तो आस बिन वाइल हसीम ने भी आप को अपनी पनाह में ले लिया जो ज़मानए जाहिलिय्यत में आप का हलिफ था इस लिये हज़रते उमर कुफ्फार की मारधाड़ से बच गए।..✍

*📬 [ सीरते मुस्तफा, सफा 137-138 ] 📚*

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*शअ'बे अबी ता'लिब सी. 7 न-बवी PosT~1*
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⚘⌬ ➤ एलाने नुबुव्वत के सातवे साल सी. 7 न-बवी में क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने जब देखा की रोज़ बरोज़े मुसलमानो की ता'दाद बढ़ती जा रही है और हज़रते हम्ज़ा رضي الله تعالي عنه व हज़रते उमर رضي الله تعالي عنه जैसे बहादुराने क़ुरैश भी दामने इस्लाम में आ गए तो गैज़ो गज़ब में ये लोग आपे से बाहर हो गए और तमाम सरदाराने किरैश और मक्का के दूसरे कुफ्फार ने ये स्किम बनाई

⚘⌬ ➤  की हुज़ूर ﷺ और आप के खानदान का मुकम्मल बायकॉट कर दिया जाए और इन लोगो को किसी तंग व तारिक जगह में महसूर कर के इनका दाना पानी बंद कर दिया जाए ताकि ये लोग मुकम्मल तौर और तबाह व बर्बाद हो जाए।

⚘⌬ ➤  चुनान्चे इस खौफनाक तज्वीज़ के मुताबिक़ तमाम क़बाईले कुरैश ने आपस में ये मुआह्दा किया की जब तक बनी हाशिम के खानदान वाले हुज़ूर को क़त्ल के लिये हमारे हवाले न कर दे तब तक....

⚘⌬ ➤  कोई शख्स बनू हाशिम के खानदान से शादी बियाह न करे।

⚘⌬ ➤  कोई शख्स इन लोगो के हाथ किसी किस्म के सामान की खरीदो फरोख्त न करे।

⚘⌬ ➤  कोई शख्स इन लोगो से मेलजोल, सलाम व कलाम और मुलाक़ात व बात न करे।

⚘⌬ ➤  कोई शख्स इन लोगो के पास खाने पिने का कोई सामान न जाने दे।

⚘⌬ ➤  मनसूर बिन इकरम ने इस मुआह्दे को लिखा और तमाम सरदाराने क़ुरैश ने इस पर दस्तखत करके इस दस्तावेज़ को काबे के अंदर आवेज़ा कर दिया।..✍

*📬 [ सीरते मुस्तफा, सफा 138-139 ] 📚*

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*शअ'बे अबी ता'लिब सी. 7 न-बवी PosT~2*
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⚘⌬ ➤ अबू तालिब मजबूरन हुज़ूरे अक़्दस ﷺ और दूसरे तमाम खानदान वालो को लेकर पहाड़ की उस घाटी में जिस का नाम "शअ'बे अबी तालिब" था पनाह गुज़ीना हुए।

⚘⌬ ➤ अबू लहब के सिवा ख़ानदाने बनू हाशिम के काफिरो ने भी खानदानी हमिययत व पासदारी की बिना पर इस मुआमले में हुज़ूर ﷺ का साथ दिया और सब के सब पहाड़ के इस तंग व तारिक दुर्रे में महसूर हो कर क़ैदियो की ज़िन्दगी बसर करने लगे।

⚘⌬ ➤ ये 3 बारस का ज़माना इतना सख्त और कठिन गुज़रा की बनू हाशिम दरख्तो के पत्ते और सूखे चमड़े पका कर खाते थे।और इनके बच्चे भूक प्यास की शिद्दत से तड़प तड़प कर दिन रात रोया करते थे।

⚘⌬ ➤ संगदिल और ज़ालिम काफिरो ने हर तरफ पहरा बिठा दिया था की कही से भी घाटी के अंदर दाना पानी न जाने पाए।

⚘⌬ ➤ मुसलमान 3 साल तक हुज़ूर ﷺ और ख़ानदाने बनू हाशिम इन होशरुबा मसाइब् को झेलते रहे यहाँ तक की खुद क़ुरैश के कुछ रहम दिलो को बनू हाशिम की इन मुसीबतो और रहम आ गया और उन लोगो ने इस ज़ालिमाना मुआह्दे को तोड़ने की तहरीक उठाई।..✍

*📬 [ सीरते मुस्तफा, सफा 139-140 ] 📚*

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*शअ'बे अबी ता'लिब सी. 7 न-बवी PosT~3*
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⚘⌬ ➤ चुनान्चे हश्शाम बिन अम्र आमिर, ज़ुहैर बिन अबी उमय्या, मूतइम बिन अदि, अबुल बख्तरि, जमआ बिन अल अस्वद वगैरा ये सब मिल कर एक साथ हरमे काबा में गए और ज़ुहैर ने जो अब्दुल मुत्तलिब के नवासे थे क़ुफ़्फ़ारे क़ुरैश को मुखातब कर के अपनी पुरजोश तक़रीर में ये कहा की

⚘⌬ ➤ ऐ लोगो ! ये कहा का इन्साफ है ? की हम लोग तो आराम से जिंदगी बसर कर रहे है और ख़ानदाने बनू हाशिम के बच्चे भूक प्यास से बे क़रार हो कर बिलबिला रहे है। खुदा की क़सम ! जब तक इस वहशियाना मुआह्दे की दस्तावेज़ फाड़ कर पाउ से न रौंद दी जाएगी में हरगिज़ हरगिज़ चैन से नहीं बैठ सकता।

⚘⌬ ➤ ये तकरीर सुन कर अबू जहल ने तड़प कर कहा की खबरदार ! हरगिज़ हरगिज़ तुम इस मुआह्दे को हाथ नहीं लगा सकते। जमआ ने अबू जहल को ललकारा और इस ज़ोर से डेटा की अबू जहल की बोलती बंद हो गई।

⚘⌬ ➤ इस तरह मूतइम बिन अदि हश्शाम बिन अम्र ने भी ख़म ठोक कर अबू जहल को झिड़क दिया और अबुल बख्तरि ने तो साफ साफ कह दिया की ऐ अबू जहल ! इस ज़ालिमाना मुआह्दे से न हम पहले राज़ी थे और न अब हम इसके पाबन्द है।..✍

   *📬 [ सीरते मुस्तफा, सफा 140 ] 📚*

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  *ग़म का साल सी. 10 नबवी हिस्सा ~1*
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⚘⌬ ➤ हुज़ूरे अक़्दस ﷺ "शअबे अबी तालिब" से निकल कर अपने घर में तशरीफ़ लाए और चन्द ही रोज़ क़ुफ़्फ़ारे क़ुरैश के ज़ुल्मो सितम से कुछ अमान मिली थी की अबू तालिब बीमार हो गए और घाटी से बाहर आने के 8 महिने बाद इनका इंतिक़ाल हो गया।

⚘⌬ ➤ अबू तालिब की वफ़ात हुज़ूर ﷺ के लिये एक बहुत ही जां गुदाज़ और रूह फरासा हादिसा था,

⚘⌬ ➤ क्यू की बचपन से जिस तरह प्यार व महब्बत के साथ अबू तालिब ने आप ﷺ की परवरिश की थी और ज़िन्दगी के हर मोड़ पर जिस जां निषारि के साथ आप की नुसरत व दस्त गिरी की और आप के उमदुष्मनो के मुक़ाबिल सीना सिपर हो कर जिस तरह आलामो मसाइब् का मुक़ाबला किया इस को भला हुज़ूर किस तरह भूल सकते थे।..✍

*📬 [ सीरते मुस्तफा, सफा 141-142 ] 📚*

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           *अबू  तालिब  का  ख़ातिम*
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⚘⌬ ➤ जब अबू तालिब मरजुल मौत में मुब्तला हो गए तो हुज़ूर ﷺ उनके पास तशरीफ़ ले गए और फ़रमाया की ऐ चचा !

⚘⌬ ➤ आप कलिमा पढ़ लीजिये। ये वो कलिमा है की इस के सबब से में खुदा के दरबार में आप की मग्फिरत के लिये इसरार करूँगा।

⚘⌬ ➤ उस वक़्त अबू जहल और अब्दुल्लाह बिन अबी उमय्या अबू तालिब के पास मौजूद थे। उन दोनों ने अबू तालिब से कहा ऐ अबू तालिब ! क्या आप अब्दुल मुत्तलिब के दिन से रु गर्दानी करेंगे ? और ये दोनों बराबर अबू तालिब से हुफ्तगु करते रहे यहाँ तक की अबू तालिब ने कलिमा नहीं पढ़ा बल्कि उनकी ज़िन्दगी का आखरी क़ौल ये रहा की "में अब्दुल मुत्तलिब के दन पर हु" ये कहा और उनकी रूह परवाज़ कर गई।

⚘⌬ ➤ हुज़ूर ﷺ को इससे बड़ा सदमा पंहुचा और आप ने फ़रमाया की में आप के लिये उस वक़्त तक दुआए मग्फिरत करता रहूँगा जब तक अल्लाह तआला मुझे मना न फ़रमाएगा।

⚘⌬ ➤ इसके बाद ये आयत नाज़िल हो गई

⚘⌬ ➤ नबी और मुअमिनीन के लिये ये जाइज़ ही नहीं की वो मुशरिकीन के लिये मग्फिरत की दुआ मांगे अगर्चे वो रिश्तेदार ही क्यू न हो। जब इन्हें मालुम हो चूका है की मुशरिकीन जहन्नमी है।..✍

*📬 [ सीरते मुस्तफा, सफा 142-143 ] 📚*

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     *हज़रते  बीबी  ख़दीजा  की  वफ़ात*
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⚘⌬ ➤ हुजरे अक़्दस के क़ल्बे मुबारक पर अभी अबू तालिब के इंतिक़ाल का ज़ख्म ताज़ा ही था की अबू तालिब की वफ़ात के तिन दिन या पांच दिन के बाद हज़रते बीबी ख़दीजा भी दुन्या से रिहलत फरमा गई।

⚘⌬ ➤ मक्का में अबू तालिब के बाद सब से ज्यादा जिस हस्ती ने रहमते आ'लम की नुसरत व हिमायत में अपना तन, मन, धन सब कुछ क़ुर्बान किया वो हज़रते बीबी ख़दीजा की ज़ाते गिरामी थी।

⚘⌬ ➤ जिस वक़्त दुन्या में कोई आप का मुख्लिस मुशीर और ग़म ख्वार नहीं था, हज़रते बीबी ख़दीजा ही थी की हर परेशानी के मौक़ा पर पूरी जां निषार के साथ आप की ग़म ख्वारी और दिलदारी करती रहती थी

⚘⌬ ➤ इसलिये अबू तालिब और हज़रते बीबी ख़दीजा दोनों की वफ़ात से आप के मददगार और ग़म गुसार दोनों ही दुन्या से उठ गए जिस से आप के क़ल्बे नाजुक पर इतना अज़ीम सदमा गुज़रा की आप ने उस साल का नाम "आ'मूल हुज़्न" यानि ग़म का साल रख दिया।

⚘⌬ ➤ हज़रते बीबी ख़दीजा ने रमज़ान सी. 10 नबवी में वफ़ात पाई। ब वक़्ते वफ़ात पैसठ बरस की उम्र थी। मक़ामे हुजून (क़ब्रिस्तान जन्नतुल मअ'ला) में मदफूं हुई।

⚘⌬ ➤ हुज़ूर खुद ब नफ़्से नफ़ीस क़ब्र में उतरे और अपने मुक़द्दस हाथो से उन की लाश को ज़मीन के सुपुर्द फ़रमाया।..✍

*📬 [ सीरते मुस्तफा, सफा 143-144 ] 📚*

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         *ताइफ़ वग़ैरा का सफ़र हिस्सा~1*
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⚘⌬ ➤ मक्का वालो के इनाद और सरकशी को देखते हुए जब हुज़ूर ﷺ को उन लोगो के ईमान लाने से मायूसी नज़र आई तो आप ने तब्लीगे इस्लाम के लिये मक्का के कुर्बो जवार की बस्तियों का रुख किया।

⚘⌬ ➤  चुनान्चे इस सिलसिले में आप ﷺ ने ताइफ़ का भी सफ़र फ़रमाया। इस सफ़र में हुज़ूर ﷺ के गुलाम हज़रते ज़ैद बिन हारिष رضي الله تعالي عنه भी आप के हमराह थे।

⚘⌬ ➤ ताइफ़ में बड़े बड़े उमरा और मालदार लोग रहते थे। उन रइसो में "अम्र" का खानदान तमाम क़बाइल का सरदार शुमार किया जाता था। ये लोग तिन भाई थे। अब्दे यालील, मसऊद, हबीब। हुज़ूर ﷺ इन तीनो के पास तशरीफ़ ले गए और इस्लाम की दा'वत दी।

⚘⌬ ➤ उन तीनो ने क़बूल नहीं किया बल्कि इन्तिहाई बेहूदा और गुस्ताखाना जवाब दिया। उन बद नसीबो ने इसी पर बस नहीं कीया बल्कि ताइफ़ के शरीर गुंडों को उभार दिया की ये लोग हुज़ूर ﷺ के साथ बुरा सुलूक करे।..✍

   *📬 [ सीरते मुस्तफा, सफा 144 ] 📚*

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  ⚘ताइफ़  वग़ैरा  का  सफ़र  हिस्सा  ~  1⚘                            
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⚘⌬ ➤ चुनान्चे लुच्चों लफंगों का ये शरीर गुरौह हर तरफ से आप ﷺ पर टूट पड़ा और ये शरारतो के मुजस्स्मे आप पर पथ्थर बरसाने लगे यहाँ तक की आप के मुक़द्दस पाउ ज़ख्मो से लहू लुहान हो गए। और आप ﷺ के मोज़े और ना'लैन मुबारक खून से भर गए।

⚘⌬ ➤ जब आप ﷺ ज़ख्मो से बेताब हो कर बैठ जाते तो ये ज़ालिम इन्तिहाई बे दर्दी के साथ आप का बाज़ू पकड़ कर उठाते और जब आप ﷺ चलने लगते तो फिर आप पर पथ्थरो की बारिश करते और साथ साथ ताना ज़नी करते। गालिया देते। तालिया बजाते। हँसी उड़ाते।

⚘⌬ ➤ हज़रते ज़ैद बिन हारिष رضي الله تعالي عنه दौड़ दौड़ कर हुज़ूर ﷺ पर आने वाले पथ्थरो को अपने बदन पर लेते थे और हुज़ूर ﷺ को बचाते थे यहाँ तक की वो भी खून में नहा गए और ज़ख्मो से निढाल हो कर बे क़ाबू हो गए। यहाँ तक की आखिर आप ﷺ ने अंगूर के एक बाग़ में पनाह ली।

   *📬  सीरते  मुस्तफा,  सफ़ह  145  📚*

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  ⚘ताइफ़ वग़ैरा का सफ़र हिस्सा  ~  2⚘                            
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⚘⌬ ➤ हमारे आक़ा ﷺ ने जिस बाग़ में पनाह ली थि वो बाग़ मक्का के मशहूर काफ़िर उत्बा बिन रबीआ का था। हुज़ूर ﷺ का ये हाल देख कर उत्बा और उसके भाई शैबा बिन रबीआ को आप पर रहम आ गया और काफ़िर होने के बा वुज़ूद खानदानी हमिय्यत ने जोश मारा।चुनान्चे उन दोनों काफ़िरो ने हुज़ूर ﷺ को अपने बाग़ में ठहराया और अपने नसरानी गुलाम "अद्दास" के हाथ से आप की खिदमत में अंगूर का एक ख़ोशा भेजा।

⚘⌬ ➤  हुज़ूर ﷺ ने बिस्मिल्लाह पढ़ कर खोशे को हाथ लगाया तो अद्दास तअज्ज़ुब से कहने लगा की इस अतराफ़ के लोग तो ये कलिमा नहीं बोला करते ! हुज़ूर ﷺ ने उससे दरयाफ़्त फ़रमाया की तुम्हारा वतन कहा है ? अद्दास ने कहा की में शहर नैनवा का रहने वाला हु।

⚘⌬ ➤  आप ﷺ ने फ़रमाया की वो हज़रते युनुस बिन मत्ता अलैहिस्सलाम का शहर है। वो भी मेरी तरह खुदा के पैगम्बर थे। ये सुन कर अद्दास आप ﷺ के हाथ पाउ चूमने लगा और फ़ौरन ही आप का कलिमा पढ़ कर मुसलमान हो गया।

     *📬 सीरते मुस्तफा, सफा 145 📚*

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  ⚘ताइफ़ वग़ैरा का सफ़र हिस्सा  ~  3⚘                            
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⚘⌬ ➤ इस सफ़र में जब आप ﷺ मक़ाम "नख़ला" में तशरीफ़ फ़रमा हुए और रात को नमाज़े तहज्जुद में क़ुरआने मजीद पढ़ रहे थे तो "नसिबैन" के जिन्नों की एक जमाअत आप की खिदमत में हाजिर हुई और क़ुरआन सुन कर य सब जीन्न मुसलमान हो गए।

⚘⌬ ➤ फिर उन जिन्नों ने लौट कर अपनी क़ौम को बताया तो मक्कए मुकर्रमा में जिन्नों की जमाअत ने फ़ौज दर फ़ौज़ आ कर इस्लाम क़बूल किया।

⚘⌬ ➤ चुनान्चे क़ुरआने मजीद में सूरए जिन्न की इब्तदाई आयतो में खुदा वन्दे आ'लम ने इस वक़ीए का तज़्क़िरा फ़रमाया है।..✍🏻

*📬  सीरते मुस्तफा, सफा 145-146 📚*

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  ⚘ताइफ़ वग़ैरा का सफ़र हिस्सा  ~  4⚘                            
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⚘⌬ ➤ इस सफ़र में मुद्दतो बाद एक मर्तबा उम्मुल मुअमिनीन हज़रते आइशा ने हुज़ूर ﷺ से दरयाफ़्त किया या रसूलल्लाह ﷺ क्या जंगे उहूद के दिनसे भी ज्यादा सख्त कोई दिन आप पर गुज़रा है ?

⚘⌬ ➤ तो आप ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया की हा ऐ आइशा ! वो दिन मेरे लिये जंगे उहूद के दिन से भी ज्यादा सख्त था जब मेने ताइफ़ में वहा के एक सरदार "अब्दे यालील" को इस्लाम की दा'वत दी। उसने दा'वते इस्लाम को हक़ारत के साथ ठुकरा दिया और अहले ताइफ़ ने मुझ पर पथराव किया। में इस रंजो ग़म में सर झुकाए चलता रहा यहा तक की मक़ामे "क़नुश्शआलिब" में पहुच कर मेरे होशो हवस बजा हुए।

⚘⌬ ➤ वहा पहुच कर जब मेने सर उठाया तो क्या देखता हु की एक बदली मुझ पर साया किये हुए है उस बादल में से हज़रते जिब्रील अलैहिस्सला ने मुझे आवाज़ दी और कहा की अल्लाह तआला ने आप की क़ौम का क़ौल और उन का जवाब सुन लिया और अब आप की खिदमत में पहाड़ो का फिरिश्ता हाज़िर है। ताकि वो आप के हुक्म की तामील करे।

 *📬 सीरते मुस्तफा, सफा 146-147 📚*

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  ⚘ ताइफ़ वग़ैरा का सफ़र हिस्सा  ~  5⚘                            
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⚘⌬ ➤ मक़ामे नख़ला में हुज़ूर ﷺ ने चन्द दिनों तक क़याम फ़रमाया। फिर आप मक़ामे "हिरा" में तशरीफ़ लाए और क़ुरैश के एक मुमताज़ सरदार मुतइम बिन अदी के पास ये पैगाम भेजा की क्या तुम मुझे अपनी पनाह में ले सकते हो ?

⚘⌬ ➤ अरब का दस्तूर था की जब कोई इनसे हिमायत और पनाह तलब करता तो वो अगर्चे कितना ही बड़ा दुश्मन क्यू न हो वो पनाह देने से इंकार नहीं कर सकते थे।

⚘⌬ ➤ चुनान्चे मुतइम ने हुज़ूर ﷺ को अपनी पनाह में ले लिया और उसने अपने बेटो को हुक्म दिया की तुम लोग हथियार लगा कर हरम में जाओ और मुतइम खुद घोड़े पर सुवार हो गया और हुज़ूर ﷺ को अपने साथ मक्का लाया और हरमे का'बा में अपने साथ ले कर गया और मज्मए आम में एलान कर दिया की मेने मुहम्मद को पनाह दी है।

⚘⌬ ➤ इसके बाद हुज़ूर ﷺ ने इत्मिनान के साथ हजरे अस्वद को बोसा दिया और का'बे का तवाफ़ करके हरम में नमाज़ अदा की और मुतइम और इसके बेटो ने तलवारो के साए में आप को आप के दौलत खाने तक पंहुचा दिया।

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  ⚘ क़बाइल में तब्लीगे इस्लाम हिस्सा  ~  1⚘                            
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⚘⌬ ➤ हुज़ूर ﷺ का तरीक़ा था की हज के ज़माने में जब की दूर दूर के अरबी क़बाइल मक्का में जमा होते थे तो हुज़ूर ﷺ तमाम क़बाइल में दौरा फ़रमा कर लोगो को इस्लाम की दा'वत देते थे।

⚘⌬ ➤ इसी तरह अरब में जा बजा बहुत से मेले लगते थे जिन में दूरदराज़ के क़बाईले अरब जमा होते थे। इन मेलो में आप ﷺ ने क़बाईले अरब के सामने दा'वते इस्लाम पेश फ़रमाई।

⚘⌬ ➤  अरब के क़बाइल बनू आमिर, मुहारीब, फ़ज़ारा, गस्सान, मुर्रह, सुलैम, अब्स, बनू नसर्, कन्दा, क्लब, उज़्रा, हज़ारिमा वग़ैरा इन सब मशहूर क़बाइल के सामने आप ﷺ ने इस्लाम पेश फ़रमाया

⚘⌬ ➤ मगर आप ﷺ का चचा अबू लहब हर जगह आप के साथ साथ जाता और जब आप किसी क़बीले के सामने वा'ज़ फ़रमाते तो अबू लहब चिल्ला चिल्ला कर ये कहता की "ये दिन से फिर गया है" ये झूट कहता है।

     *📬  सीरते मुस्तफा, सफा 148 📚*

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  ⚘ क़बाइल में तब्लीगे इस्लाम हिस्सा  ~  2⚘                            
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⚘⌬ ➤ क़ाबिलए बनू जहल बिन शैबान के पास जब आप ﷺ तशरीफ़ ले गए तो हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه भी आप के साथ थे। इस क़ाबिले का सरदार "मफरूक़" आप ﷺ की तरफ मुतवज्जेह हुवा और उसने कहा की ऐ कुरैशी बरादर ! आप लोग के सामने कौन सा दिन पेश करते है ?

⚘⌬ ➤ आप ﷺ ने फ़रमाया की खुदा एक है और में उस का रसूल हु। फिर आप ने सूरए अनआ'म की चन्द आयते तिलावत फ़रमाई। ये सब लोग आपकी तक़रीर और क़ुरआनी आयतो की ताशीर से इन्तिहाई मुतअश्शिर हुए लेकिन ये कहा की हम अपने उस खानदानी दिन को भला एक दम कैसे छोड़ सकते है ? जिस पर हम बरसहा बरस से करबंद है।

⚘⌬ ➤ इसके इलावा हम मुल्के फारस के बादशाह किसरा के ज़ेरे अशर और रईय्यत है। और हम ये मुआहदा कर चुके है की हम बादशाहे किसरा के सिवा किसी और के ज़ेरे अशर नहीं रहेंगे। हुज़ूर ﷺ ने उन लोगो की साफ़गोई की तारीफ़ फ़रमाई और इर्शाद फ़रमाया की खैर खुदा अपने दिन का हामी व नासिर और मुईन व मददगार है।

  *📬 सीरते मुस्तफा, सफा 148-149 📚*

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  ⚘ मदीने में आफ्ताबे रिसालत की तजल्लिया हिस्सा  ~  1⚘                            
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⚘⌬ ➤ मदिनए मुनव्वरह का पुराना नाम "यषरब" है। जब हुज़ूर ﷺ ने इस शहर में सुकूनत फ़रमाई तो उसका नाम मदिनतुन्नबी (नबी का शहर) पद पड़ गया। फिर ये नाम मुख़्तसर हो कर मदीना मशहूर हो गया।

⚘⌬ ➤ तारीखी हेशिय्य्त से ये बहुत पुराना शहर है। हुज़ूर ﷺ ने जब एलाने नुबुव्वत फ़रमाया तो इस शहर में अरब के दो क़बीले "औस" और "ख़ज़रज" और कुछ यहूदी आबाद थे। औस व ख़ज़रज क़ुफ़्फ़ारे मक्का की तरह "बूत परस्त" और यहूदी "अहले किताब" थे।

⚘⌬ ➤ औस व ख़ज़रज पहले तो बड़े इत्तिफ़ाक़ो इत्तिहाद के साथ मिलजुल कर रहते थे मगर फिर अरबो की फितरत के मुताबिक़ इन दोनों क़बीलों में लड़ाईया शुरू हो गई। यहाँ तक की आखिरी लड़ाई जो तारीखे अरब में जंगे बआष के नाम से मश्हूर है इस क़दर हौलनाक और खुरेज़ हुई की इस लड़ाई में औस व ख़ज़रज के तक़रीबन तमाम नामवर बहादुर लड़ भीड़ कर कट मर गए और ये दोनों क़बीले बेहद कमज़ोर हो गए।

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  ⚘ मदिने में इस्लाम क्यू कर फैला ⚘                            
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⚘⌬ ➤ अन्सार बूत परास्त थे मगर यहूदियो के मेलजोल से इतना जानते थे की नबिय्ये आखिरुज़्ज़मा का जूहुर होने वाला है और मदीने के यहूदी अकषर अन्सार के दोनों क़बीलों औस व ख़ज़रज को धमकिया भी दिया करते थे की नबिय्ये आखिरुज़्ज़मा के जूहुर के वक़्त हम उन के लशलर में शामिल हो कर तुम बूत परस्तो को दुन्या से नसतो नाबूद कर डालेंगे इस लिये नबिय्ये आखिरुज़्ज़मा की तशरीफ़ आवरी का यहूद और अन्सार दोनों को इंतज़ार था।

⚘⌬ ➤ सी 11 नबवी में हुज़ूर ﷺ मामूल के मुताबिक़ हज में आने वाले क़बाइल को दा'वते इस्लाम देने के लिये मिना के मैदान में तशरीफ़ ले गए और क़ुरआन मजीद की आयते सुना सुना कर लोगो के सामने इस्लाम पेश फ़रमाने लगे। हुज़ूर ﷺ मिनाइ अक़बा (घाटी) के पास जहा आज "मस्जिदुल अक़बा" है तशरीफ़ फ़रमा थे की क़बिलए ख़ज़रज के 6 आदमी आप के पास आ गए। आप ﷺ ने उन लोगो से उनका नाम व नसब पूछा। फिर क़ुरआन की चन्द आयते सूना कर उन लोगो को इस्लाम की दा'वत दी जिससे ये लोग बेहद मुतशशिर हो गए और एक दूसरे का मुह देख कर वापसी में ये कहने लगे की यहूदी जिस नबिय्ये आखिरुज़्ज़मा किं खुश खबरी देते रहे है यक़ीनन वो नबी यही है। लिहाज़ा कही ऐसा न हो की यहूदी हमसे पहले इस्लाम की दा'वत क़बूल करले। ये कह कर सब एक साथ मुसलमान हो गए और मदीने जा कर अपने अहले खानदान और रिश्तेदारो को भी इस्लाम की दा'वत दी।

⚘⌬ ➤ उन 6 खुश नसीबो के नाम

⚘⌬ 1⃣ ➤ हज़रते उक़्बा बिन आमिर बिन नाबि।

⚘⌬ 2⃣ ➤ हज़रते अबू उमामा असअद बिन जरारह

⚘⌬ 3⃣ ➤ हज़रते औफ़ बिन हारिष

 ⚘⌬ 4⃣ ➤ हज़रते राफ़ेअ बिन मालिक

⚘⌬ 5⃣ ➤ हज़रते कुत्बा बिन आमिर बिन हदीदा

⚘⌬ 6⃣ ➤ हज़रते जाबिर बिन अब्दुल्लाह बिन रय्याब। رضي الله تعالي عنه

   *📬 सीरते मुस्तफा, सफा  150-151 📚*

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  ⚘बैअ'ते अ'क़बा ऊला हिस्सा  ~  1⚘                            
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⚘⌬ ➤ दूसरे साल सी. 12 नबवी में हज के मौक़ा पर मदीने के बारह अश्खास मिना की उसी घाटी में छुप कर मुशर्रफ़ ब इस्लाम हुए और हुज़ूर ﷺ से बैअ'त हुए। तारीख़े इस्लाम में इस बैअ'त का नाम "बैअ'ते अ'क़बा ऊला" है। साथ ही इन लोगो ने हुज़ूर ﷺ से ये दर ख़्वास्त भी की, की अह्कामे इस्लाम की तालीम के लिये कोई मुअल्लिम भी इन लोगो के साथ कर दिया जाए।

⚘⌬ ➤ चुनान्चे हुज़ूर ﷺ ने हज़रते मुसअब बिन उमैर رضي الله تعالي عنه को इन लोगो के साथ मदिनए मुनव्वरह भेज दिया। वो मदीने में हज़रते असअद बिन ज़रारह رضي الله تعالي عنه के मकान पर ठहरे और अन्सार के एक एक घर में जा जा कर इस्लाम की तब्लीग करने लगे रोज़ाना एक दो नए आदमी आगोशे इस्लाम में आने लगे। यहा तक की रफ्ता रफ्ता मदीने से कुबा तक घर घर इस्लाम फ़ैल गया।..✍

  *📬 सीरते मुस्तफा, सफा 151,152 📚*

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  ⚘बैअ'ते अ'क़बा ऊला हिस्सा  ~  2⚘                            
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⚘⌬ ➤  क़बिलए औस के सरदार हज़रते साद बिन मुआम बहुत ही बहादुर और बा अशर शख्स थे। हज़रते मुसअब बिन उमैर رضي الله تعالي عنه ने जब उनके सामने इस्लाम की दा'वत पश की तो उन्होंने पहले तो इस्लाम से नफ़रत व बेज़ारी ज़ाहिर की

⚘⌬ ➤ मगर जब हज़रते मुसअब رضي الله تعالي عنه ने उन को क़ुरआन पढ़ कर सुनाया तो एक दम उनका दिल पसीज गया और इस क़दर मुतअशशिर हुए की सआदते ईमान से सरफ़राज़ हो गए।

⚘⌬ ➤  इनके मुसलमान होते ही इनका क़बीला "औस" भी दामने इस्लाम में आ गया। उसी साल बक़ौल मश्हूर माहे रजब की 27 वी रात को हुज़ूर ﷺ को ब हालते बेदारी "मे'राजे जिस्मानी" हुई। और इसी सफ़रे मे'राज में 5 नमाज़े फ़र्ज़ हुई जिस का तफसिलि बयान इन्शा अल्लाह मो'जिज़ात के बाब में आएगा।..✍

     *📬 सीरते मुस्तफा, सफा 152 📚*

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  ⚘बैअते अक़बा षानिय हिस्सा  ~  1⚘                          
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⚘⌬ ➤ इस के एक साल बाद सी. 13 नबवी में हज के मौके पर मदीने के तक़रीबन 72 अश्खास ने मिना की उसी घाटी में दस्ते हक़ परस्त ﷺ पर बैअते की और ये अहद किया की हम लोग आप की और इस्लाम की हिफाज़त के लिये अपनी जान कुर्बान कर देंगे।

⚘⌬ ➤  इस मौक़ा पर हुज़ूर ﷺ के चचा हज़रते अब्बास भी मौजूद थे जो अभी तक मुसलमान नहीं हुए थे। उन्होंने मदीने वालो से कहा की देखो ! मुहम्मद ﷺ अपने खानदान बनी हाशिम में हर तरह मोहतरम और बा इज़्ज़त है।

⚘⌬ ➤ हम लोगोने दुश्मनो के मुक़ाबले में सीना सिपर हो कर हमेशा इन की हिफाज़त की है। अब तुम लोग इनको अपने वतन में ले जाने के ख्वाहिश मन्द हो तो सुन लो ! अगर मरते दम तक तुम लोग इन का साथ दे सको तो बेहतर है वरना अभी से कनारा कश हो जाओ।..✍

*📬 सीरते मुस्तफा, सफा 152-153 📚*

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            ⚘हिजरते मदीना ⚘                          
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⚘⌬ ➤ मदिनए मुनव्वरह में जब इस्लाम और मुसलमानो को एक पनाह गाह मिल गई तो हुज़ूर ﷺ ने सहाबाए किराम को आम इजाज़त दे दी की वो मक्का से हिजरत करके मदीना चले जाए।चुनान्चे सब से पहले हज़रते अबू सलमा رضي الله تعالي عنه ने हिजरत की। इसके बाद यके बाद दीगरे दूसरे लोग भी मदीना रवाना होने लगे।

⚘⌬ ➤ जब क़ुफ़्फ़ारे कुरैश को पता चला तो उन्हों ने रोक टोक शुरुअ कर दी मगर छुप छुप कर लोगो ने हिजरत का सिलसिला जारी रखा यहा तक की रफ्ता रफ्ता बहुत से सहाबाए किराम मदीना चले गए। सिर्फ वोही हज़रात मक्का में रह गए जो या तो काफ़िरो की क़ैद में थे या अपनी मुफलिसी की वजह से मजबूर थे।

⚘⌬ ➤ हुज़ूरे अक़्दस ﷺ को चुकी अभी तक खुदा عزوجل की तरफ से हिजरत का हुक्म नहीं मिला था इसलिये आप मक्का ही में मुक़ीम रहे और हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ और हज़रते अली मुर्तज़ा رضي الله تعالي عنه को भी आप ने रोक लिया था।लिहाज़ा ये दोनों शमए नबुव्वत के परवाने भी आप ही के साथ मक्का में ठहरे हुए थे।..✍

*📬 सीरते मुस्तफा, सफा 155-156 📚*

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  ⚘बैअते अक़बा षानिय हिस्सा  ~  1⚘                          
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⚘⌬ ➤ जब अन्सार ये बैअत कर रहे थे तो हज़रते साद बिन ज़रारह ने या हज़रते अब्बास बिन नज़ला ने कहा की मेरे भाइयो ! तुम्हे ये भी खबर है ? की तुम लोग किस चीज़ पर बैअत कर रहे हो ? खूब समझ लो की ये अरबो अज़म् के साथ एलाने जंग है।

⚘⌬ ➤ अन्सार ने तैश में आ कर निहायत ही पुरजोश लहजे में कहा की हा ! हा ! हम लोगो इसी पर बैअत कर रहे है।

⚘⌬ ➤ बैअत हो जाने के बाद आप ने इस जमाअत में से बारह आदमियो को नकीब (सरदार) मुक़र्रर फ़रमाया। इनमे 9 आदमी क़बिलए ख़ज़रज के और तिन अश्खास क़बिलए औस के थे।..✍

   *📬  सीरते मुस्तफा, सफा 154 📚*

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  ⚘बैअते अक़बा षानिय हिस्सा  ~  2⚘                          
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⚘⌬ ➤ हुज़ूर ﷺ के चचा हज़रते अब्बास की बात सुन कर हज़रते बराअ बिन अज़ीब तैश में आ कर कहने लगे की हम लोग तलवारो की गोद में पले है।

⚘⌬ ➤ हज़रते बराअ इतना ही कहने पाए थे की हज़रते अबुल हैशम ने बात काटते हुए ये कहा की या रसूलुल्लाह ﷺ ! हम लोगो के यहूदियो से पुराने ताल्लुक़ात है। अब ज़ाहिर है की हमारे मुसलमान हो जाने के बाद ये ताल्लुक़ात टूट जाएंगे। कही ऐसा न हो की जब अल्लाह तआला आप को गलबा अता फरमाए तो आप हम लोगो को छोड़ कर अपने वतन मक्का चले जाए।

⚘⌬ ➤ ये सुन कर हुज़ूर ﷺ ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया की तुम लोग इत्मीनान रखो की तुम्हारा खून मेरा खून है और यकीं करो मेरा जीना मरना तुम्हारे साथ है। में तुम्हारा हु और तुम मेरे हो। तुम्हारा दुश्मन मेरा दुश्मन और तुम्हारा दोस्त मेरा दोस्त है।..✍

   *📬 सीरते मुस्तफा, सफा 153 📚*

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  ⚘कुफ्फार कॉन्फरन्स हिस्सा  ~  1⚘                          
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⚘⌬ ➤ जब मक्का के काफ़िरो ने ये देख लिया की हुज़ूर ﷺ और मुसलमानो के मददगार मक्का से बाहर मदीना में भी हो गए और मदीना जाने वाले मुसलमानो को अन्सार ने अपनी पनाह में ले लिया है तो क़ुफ़्फ़ारे मक्का को ये खतरा महसूस होने लगा की कहि ऐसा न हो की मुहम्मद ﷺ भी मदीना चले जाए और वहा से अपने हामियो की फ़ौज ले कर मक्का पर चढ़ाई न कर दे।

⚘⌬ ➤ चुनान्चे इस खतरे का दरवाज़ा बन्द करने के लिये क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने अपने पंचायत घर में एक बहुत बड़ी कॉन्फरन्स मूनअक़ीद की। और ये क़ुफ़्फ़ारे मक्का का ऐसा ज़बर दस्त नुमाइंदा इज्तिमा था की मक्का का कोई भी ऐसा दानिश्वर और बा अशर शख्स न था जो इस कॉन्फरन्स में शरीक न हुवा हो।

⚘⌬ ➤ खुशुशियत के साथ अबू सुफ़यान, अबू जहल, उत्बा, जबीर बिन मूतइम, नज़र बिन हारिष, अबुल बख्तरि, जमआ बिन अस्वद, हकीम बिन हिजाम, उमय्या बिन खलफ वग़ैरा तमाम सेदाराने कुरैश इस मजलिस में मौजूद थे।

⚘⌬ ➤ शैताने लइन भी कम्बल ओढ़े एक बुज़ुर्ग शैख़ की सूरत में आ गया। कुरैश के सरदारो ने नाम व नसब पूछा तो बोला की में "शैख़ नज्द" हु इस लिए ये कॉन्फरन्स में आ गया हु की में तुम्हारे मुआमले में अपनी राय भी पेश कर दू।

⚘⌬ ➤ ये सुन कर कुरैश के सरदारो ने इब्लीस को भी अपनी कॉन्फरन्स में शरीक कर लिया और कॉन्फरन्स की करवाई शुरू हो गई।..✍

   *📬  सीरते मुस्तफा, सफा 156 📚*

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                      🕋﷽🕋

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  ⚘कुफ्फार कॉन्फरन्स हिस्सा  ~  2⚘                          
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⚘⌬ ➤ जब हुज़ूर ﷺ का मुआमला पेश हुवा तो अबुल बख़्तरि ने ये राय दी की इनको किसी कोठरी में बंद करके इन के हाथ पाऊ बांध दो और एक सुराख से खाना पानी इनको दे दिया करो।

⚘⌬ ➤ शैखे नजदी (शैतान) ने कहा की ये राय अच्छी नहीं है। खुदा की क़सम ! अगर तुम लोगो ने उन को किसी मकान में क़ैद कर दिया तो यक़ीनन उनके जां निषार असहाब को इसकी खबर लग जाएगी और वो अपनी जान पर खेल कर उनको क़ैद से छुड़ा लेंगे।

⚘⌬ ➤ अबुल अस्वद रबीआ बिन अम्र आमिर ने ये मशवरा दिया की इनको मक्का से निकाल दो ताकि ये किसी दूसरे शहर में जा कर रहे। इस तरह हम को इन के क़ुरआन पढ़ने और इनकी तब्लीगे इस्लाम से नजात मिल जाएगी।

⚘⌬ ➤ ये सुन कर शैख़ नजदी ने बिगड़ कर कहा की तुम्हारी इस राय पर लानत, क्या तुम लोगो को मालुम नहीं की मुहम्मद ﷺ के कलाम में कितनी मिठास और ताशीर व दिलकशी है ? खुदा की क़सम ! अगर तुम लोग इनको शहर बदर कर के छोड़ डोंगे तो ये पुरे मुल्के अरब में लोगो को क़ुरआन सुना सुना कर तमाम क़बाइले अरब को अपना ताबे फरमान बना लेगें और फिर अपने साथ एक अ'ज़िम लश्कर कोल कर तुम और ऐसी यलगार कर देंगे की तुम इनके मुक़ाबले से आजिज़ व लाचार हो जाओगे और फिर बजुज़ इस के की तुम इनके गुलाम बन कर रहो कुछ बनाए न बनेगी इस लिये इनको जिला वतन करने की तो बात ही मत करो।..✍

   *📬  सीरते मुस्तफा, सफा, 157 📚*

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  ⚘ कुफ्फार कॉन्फरन्स हिस्सा  ~  3⚘                          
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⚘⌬ ➤ अबू जहल बोला की साहिबो ! मेरे ज़ेहन में एक राय है जो अब तक किसी को नहीं सूझी ये सुनकर सब के कान खड़े हो गए और सब ने बड़े इश्तियाक़ के साथ पूछा की कहिये वो क्या है ?

⚘⌬ ➤ तो अबू जहल ने कहा की मेरी राय ये है की हर क़बीले का एक एक मश्हूर बहादुर तलवार ले कर उठ खड़ा हो और सब यक्बारगि हम्ला कर के मुहम्मद ﷺ को कत्ल कर डाल।

⚘⌬ ➤ इस तदबीर से खून करने का जुर्म तमाम क़बीलों के सर पर होगा। ज़ाहिर है की ख़ानदाने बनू हाशिम इस खून का बदला लेने के लिये तमाम क़बीलों से लड़ने की ताक़त नहीं रख सकते।

⚘⌬ ➤ लिहाज़ा यक़ीनन वो खून-बहा लेने पर राज़ी हो जाएगे और हम लोग मिलजुल कर आसानी के साथ खून-बहा की रक़म अदा कर देंगे।..✍

   *📬 सीरते मुस्तफा, सफा 157-158 📚*

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  ⚘कुफ्फार कॉन्फरन्स हिस्सा  ~  4⚘                          
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⚘⌬ ➤ अबू जहल की ये खुनी तज्वीज़ सुन कर शैख़ नजदी मारे ख़ुशी के उछल पड़ा और कहा की बेशक ये तदबीर बिलकुल दुरुस्त है। इस के सिवा और कोई तज्वीज़ क़ाबिले क़ुबूल नहीं हो सकती।

⚘⌬ ➤  चुनान्चे तमाम शुरकए कॉन्फ्रेंस ने इत्तिफाके राय से इस तज्वीज़ को पास कर दिया और मजलिसे शूरा बरखास्त हो गई और हर शख्स ये खौफ़नाक अज़्म ले कर अपने अपने घर चला गया।

⚘⌬ ➤  खुदा वन्दे कुद्दूस ने क़ुरआने मजीद की इस आयत में ये वक़ीए का ज़िक्र फ़रमाते हुए इर्शाद फ़रमाया की

⚘⌬ ➤  (ऐ महबूब याद कीजिये) जिस वक़्त कुफ्फार आप के बारे में खुफ्या तदबीर कर रहे थे की आप को क़ैद करदे या क़त्ल करदे या शहर बदर करदे ये लोग खुफ्या तदबीर कर रहे थे और अल्लाह عزوجل खुफ्या तदबीर कर रहा था और अल्लाह عزوجل की पोशीदा तदबीर सब से बेहतर है।

⚘⌬ ➤ अल्लाह तआला की खुफ्या तदबीर क्या थी ? इस का जल्वा देखिये की किस तरह उस ने अपने हबीब की हिफाज़त फ़रमाई और कुफ्फार की सारी स्किम को किस तरह उस क़ादिरे क़य्यूम ने तहस नहस फरमा दिया।

   *📬  सीरते मुस्तफा, सफा 158 📚*

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  ⚘हिजरते रसूल का वाक़ीआ हिस्सा  ~  1⚘                          
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⚘⌬ ➤ जब कुफ्फार हुज़ूर ﷺ के क़त्ल पर इत्तिफ़ाक़ करके कॉन्फरन्स ख़त्म कर चुके और अपने अपने घरो को रवाना हो गए तो हज़रते ज़ीब्रिले अमिन अलैहिमुस्सलाम रब्बुल आ'लमिन का हुक्म ले कर नाज़िल हो गए की ऐ महबूब ﷺ ! आज रात को आप अपने बिस्तर पर न सोए और हिजरत कर के मदीना तशरीफ़ ले जाए।

⚘⌬ ➤ चुनान्चे ऐन दो पहर के वक़्त हुज़ूर ﷺ हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه के घर तशरीफ़ ले गए और हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه से फ़रमाया की सब घर वालो को हटा दो कुछ मशवरा करना है। हज़रते अबू बक्र् सिद्दीक़ رضي الله تعالي عنه ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह ﷺ ! आप पर मेरे माँ बाप कुर्बान यहा आप की अहलिया (हज़रते आइशा) के सिवा और कोई नहीं है। (उस वक़्त हज़रते आइशा से हुज़ूर ﷺ की शादी हो चुकी थी)

⚘⌬ ➤ हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया की ऐ अबू बक्र् ! अल्लाह तआला ने मुझे हिजरत की इजाज़त फरमा दी है। हज़रते अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه ने अर्ज़ किया की मेरे मा बाप आप पर कुर्बान ! मुझे भी हमराही का शरफ़ अता फरमाइये। आप ﷺ ने उन की दरख्वास्त मंज़ूर फरमा ली।

   *📬  सीरते मिस्तफा, सफा 159 📚*

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  ⚘हिजरते रसूल का वाक़ीआ हिस्सा  ~  2⚘                          
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⚘⌬ ➤  हज़रते अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه ने 4 महीने से दो उतनिया बबूल की पत्ती खिला खिला कर तैयात की थी की हिजरत के वक़्त ये सुवारी के काम आएगी। अर्ज़ की या रसूलल्लाह ﷺ इनमे सेनक उतनी आप क़बूल फरमा ले। आप ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया की क़बूल है मगर में इस की क़ीमत दूंगा। हज़रते अबू बक्र् رضي الله تعالي عنه ने बा दिले ना ख्वास्ता फ़रमाने रिसालत से मजबूर हो कर इसको क़बूल किया।

⚘⌬ ➤ हज़रते आइशा सिद्दीक़ा तो उस वक़्त बहुत कम उम्र थी लेकिन उनकी बड़ी बहन हज़रते बीबी अस्मा ने सामाने सफर दुरुस्त किया और तोषादान में खाना रख कर अपनी कमर के पटके को फाड़ कर दो टुकड़े किये। एक से तोषादान को बाधा और दूसरे से मशक का मुह बांधा। ये वो क़ाबिले फख्र शरफ़ है जिस की बिना पर इनको जातुन्नताकैन (दो परके वाली) के मुअज़्ज़ज़् लक़ब से याद किया जाता है।

⚘⌬ ➤ इसके बाद हुज़ूर ﷺ ने एक काफिर को जिस का नाम "अब्दुल्लाह बिन उरैक्ट" था जो रास्तो का माहिर था राहनुमाइ के लिये उजरत पर नोकर रखा और इन दोनों उतानियो को उसके सिपुर्द करके फ़रमाया की तिन रातो के बाद वो इन दोनों उटनियो को ले कर "गारे शौर" के पास आ जाए। ये सारा निज़ाम कर लेने के बाद हुज़ूर ﷺ अपने मकान पर तशरीफ़ लाए।..✍

   *📬 सीरते मुस्तफा, सफा  159-160  📚*

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  ⚘काशानए नबुव्वत का मुहासरा हिस्सा  ~  1⚘                          
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⚘⌬ ➤  क़ुफ़्फ़ारे मक्का ने अपने प्रोग्राम के मुताबिक़ काशानए नुबुव्वत को घेर लिया और इन्तिज़ार करने लगे की हुज़ूर सो जाए तो इन पर क़ातिलाना हम्ला किया जाए। उस वक़्त घर में हुज़ूर ﷺ के पास सिर्फ अली मुर्तज़ा थे।

⚘⌬ ➤  क़ुफ़्फ़ारे मक्का अगर्चे रहमते आ'लम के बद तरीन दुश्मन थे मगर उसके बा वुज़ूद हुज़ूर ﷺ की अमानत व दियानत पर कुफ़्फ़ार को इस क़दर एतिमाद था की वो अपने क़ीमती माल व सामान को हुज़ूर ﷺ के पास अमानत रखते थे।

⚘⌬ ➤  चुनान्चे उस वक़्त भी बहुत सी अमानतें काशानए नुबुव्वत में थी। हुज़ूर ﷺ ने हज़रते अली رضي الله تعالي عنه से फ़रमाया की तुम मेरी सब्ज़ रंग की चादर ओढ़ कर मेरे बिस्तर पर सो रहो और मेरे चले जाने के बाद क़ुरैश की तमाम अमानतें इन के मालिको को सोप कर मदीना चले आना।..✍

   *📬  सीरते मुस्तफा, सफा 160-161 📚*

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  ⚘काशानए नबुव्वत का मुहासरा हिस्सा  ~  1⚘                          
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⚘⌬ ➤ ये बड़ा ही खौफ़नाक और बड़े सख्त खतरे का मौक़ा था। हज़रते अली رضي الله تعالي عنه को मालुम था की क़ुफ़्फ़ारे मक्का हुज़ूर को क़त्ल का इरादा कर चुके है मगर हुज़ूरे अक़्दस ﷺ के इस फरमान से की तुम क़ुरैश की सारी अमानतें लौटा कर मदीना चले आना हज़रते अली رضي الله تعالي عنه को यक़ीने कामिल था की में ज़िन्दा रहूँगा और मदीने पहुँचूँगा

⚘⌬ ➤ इस लिये रसूलुल्लाह ﷺ का बिस्तर जो आज काटो का बिछौना था, हज़रते अली رضي الله تعالي عنه के लिये गुलो की सेज बन गया और आओ बिस्तर पर सुबह तक आराम के साथ मीठी मीठी नींद सोते रहे। अपने इसी कारनामे पर फख्र करते हुए शेरे खुदा ने अपने अशआर में फ़रमाया

*⚘⌬ तर्जुमा ➤* मेने अपनी जान को खतरे में डाल कर उस ज़ाते गिरामी की हिफाज़त की जो ज़मीन पर चलने वालो और खानए काबा व हतिम का तवाफ़ करने वालो में सब से ज्यादा बेहतर और बुलंद मर्तबा है।

*⚘⌬ तर्जुमा ➤* रसूले खुदा को ये अंदेशा था की क़ुफ़्फ़ारे मक्का इन के साथ खुफ्या चाल चल जाएंगे मगर खुदा वन्दे मेहरबान ने इन को काफ़िरो की खुफ्या तदबीर से बचा लिया।..✍

   *📬 सीरते मुस्तफा, सफा 161 📚*

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_*🕋 ⚘ мαιiκo  мoια  κi  βααяgαн - Ё - Aαιiγα  мαi  Dυα  нαi  мαιiκo  мoια  нαмε  κεнηε, Sυηηε, ραdнηε, ιiκнηε,  βoιηε  Sε  Ziγαdα  Aмαι  κi  τofεεq - Ё - яαfεεq  Aτα   Fαямαγε.*_

              ⚘ امين  يارب العالمين ⚘

                       _*ταιiβ-Ё-Dυα*_
          _*мαяноомα ƒαƭเɱα βεgαм*_
       *_мαянοοм мυнαммα∂ ѕι∂∂ιգ_*
          *_Tαɱαɱ ααLαɱ ε αrωααɦ_*

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